पटना :‘जेएनयू को बंद व बदनाम करने के लिए कन्हैया को मोहरा बनाकर जान से मारने की योजना से मोदी सरकार का फासिस्टी चेहरा बेनक़ाब हो गया है. इसी के मद्देनज़र कन्हैया की बेशर्त रिहाई की मांग को लेकर हमने 27 फरवरी, 2016 को शहीद चन्द्रशेखर आजाद की शहादत दिवस पर मोदी सरकार का पुतला पूरे राज्य में जलाने का फैसला लिया है.’
यह फैसला आज 22 फरवरी को केदार भवन में हुए बिहार राज्य किसान सभा की राज्य किसान कौंसिल की बैठक में लिया गया. इस बैठक की अध्यक्षता राज्य अध्यक्ष रामचन्द्र सिंह (पूर्व विधायक) ने की.
बैठक का उद्घाटन करते हुए राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सत्य नारायण सिंह (पूर्व विधायक) ने देश दुनिया की राजनीतिक घटनाओं की चर्चा करते हुए हैदराबाद और जेएनयू की घटनाओं की विस्तृत चर्चा की. साथ ही बेक़सूर कन्हैया को फर्ज़ी विडियो के आधार पर फंसाने की साज़िश और उसकी गिरफ्तारी की सख्त निंदा भी की.
इस बैठक में पूरे देश में चल रहे किसानों की समस्या पर विस्तार से चर्चा की गई. साथ बिहार राज्य किसान सभा के कार्यकारी महासचिव अशोक प्रसाद सिंह ने बताया कि –‘राष्ट्रीय सम्मेलन 3 से 6 मार्च, 2016 तक हैदराबाद में होने जा रहा है. इस अवसर पर बिहार के सैकड़ों प्रतिनिधि हैदराबाद के इस सम्मेलन में शामिल होंगे.’
नई दिल्ली :ग्रीनपीस के नासा उपग्रह डेटा विश्लेषण में यह तथ्य सामने आया है कि इस शताब्दी में पहली बार भारतीय को चीन के नागरिकों की तुलना में अधिक वायु प्रदूषण का दंश झेलना पड़ा.
चीन द्वारा वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये साल-दर-साल अपनाये गए उपायों की वजह से वहां की आबो-हवा में सुधार हुआ है. जबकि भारत का प्रदूषण स्तर पिछले दशक में धीरे-धीरे बढ़कर अधिकतम स्तर पर पहुंच गया है.
स्पष्ट रहे कि ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ के अनुसार दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 13 शहर भारत में है. जबकि अपने राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक रैंकिंग रिपोर्ट में ग्रीनपीस ने बताया था कि राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक वाले 17 शहरों में 15 शहरों का प्रदूषण स्तर भारतीय मानकों से कहीं ज्यादा है.
इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि देश भर के 32 स्टेशनों में 23 स्टेशन में राष्ट्रीय मानक से 70 प्रतिशत अधिक प्रदूषण स्तर दर्ज किया गया है, इससे स्पष्ट है कि आम लोगों का स्वास्थ्य ख़तरे में है.
भारत-चीन प्रदूषण पर बात करते हुए ग्रीनपीस पूर्व एशिया के वायु प्रदूषण विशेषज्ञ लॉरी मिलिविरटा कहते हैं कि –‘चीन एक उदाहरण है, जहां सरकार द्वारा मज़बूत नियम लागू करके लोगों के हित में वायु प्रदूषण पर नियंत्रण पाया जा सका है. भारत सरकार को भी चीन में वायु प्रदूषण से होने वाले नुक़सान से बचने के लिए आवश्यक योजना बनाने की ज़रुरत है. यह देखते हुए कि प्रदूषण कण हजारों किलोमीटर का सफ़र तय करते हैं, सरकार को राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और शहर स्तर पर कार्य-योजना बनाने की ज़रुरत है और प्रदूषण को कम करने के लिये लक्ष्य तय करने की भी ज़रुरत है.’
पिछले तक़रीबन 10 दिनों से ‘फ़रार’ चल रहा उमर ख़ालिद अपने 5 दोस्तों के साथ रविवार देर रात जेएनयू कैम्पस न सिर्फ लौट आया है, बल्कि रोहिथ वेमुला के दोषियों को सज़ा दिलाने के लिए कैम्पस के एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक के पास चल रहे अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल में भी शामिल हो गया है.
इस मौक़े से आज सोमवार को उनके पिता व वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. क़ासिम रसूल इलियास ने जेएनयू कैम्पस में जाकर अपने बेटे उमर ख़ालिद व उसके अन्य दोस्तों से न सिर्फ़ मुलाक़ात की और बल्कि उनके इस लड़ाई का हौसला-अफ़ज़ाई भी किया.
उन्होंने साफ़ तौर पर कहा कि –‘बेटा! तुम्हारे इस लड़ाई में मैं भी साथ हूं. तुम्हें सिर्फ़ जेएनयू ही नहीं, बल्कि पूरे मुल्क के लोगों का शुक्रिया अदा करना चाहिए, जो तुम्हारे इस लड़ाई में मानसिक तौर पर तुम्हारे साथ हैं.’
डॉ. इलियास ने उमर खालिद को यह भी कहा कि –‘बेटा! तुमने जिस हिम्मत का प्रदर्शन किया है, वो आगे भी जारी रहना चाहिए. किसी के भी दबाव में आने की कोई ज़रूरत नहीं है.’
डॉ. क़ासिम रसूल इलियास ने TwoCircles.netसे खास बातचीत में कहा कि –‘आगे जेएनयू छात्र संघ व टीचर्स संघ जो फैसला करेगा, उमर उसका हर हाल में पालन करेगा. वो तो आत्मसमर्पण के लिए ही बैठा है, पुलिस जब चाहे सबूत के साथ गिरफ़्तार कर लें.’
उन्होंने दिल्ली के पुलिस कमिश्नर बी.एस. बस्सी के उस बयान की भी निन्दा की, जिसमें उन्होंने कहा है कि –‘अगर वे निर्दोष हैं तो उन्हें इसका साक्ष्य पेश करना चाहिए.’
डॉ. इलियास का कहना है कि बस्सी साहब को यह बयान देने के बजाए, जेएनयू के छात्रों के दोषी होने के सबूत पेश करना चाहिए.
इधर उमर खालिद का भी कहना है कि –‘आगे का सारा फैसला जेएनयू के छात्र व टीचर्स ही मिलकर करेंगे. मैं खुद कोई फैसला अपने लिए नहीं करूंगा.’
डॉ. इलियास उमर खालिद व उसके दोस्तों से मुलाक़ात के बाद जेएनयू टीचर्स एसोसियशन के कई टीचरों से भी मुलाक़ात की. टीचरों ने भी उन्हें यह भरोसा दिलाया कि उमर खालिद अब सिर्फ आपका ही बच्चा नहीं है, बल्कि हम सब भी उसके गार्जियन हैं. उसके साथ किसी भी तरह की नाइंसाफ़ी नहीं होंगे देंगे.
स्पष्ट रहे कि उमर खालिद पर ‘राजद्रोह’ का आरोप लगाया गया है. आरोप है कि उसने जेएनयू में अफ़ज़ल गुरू की याद में ‘शहीदी दिवस’ मनाते हुए ‘भारत विरोधी’ नारे लगाएं. पुलिस 11 फ़रवरी से उमर खालिद की तलाश में थी.
लेकिन उसके पिता उमर खालिद को निर्दोष बताते हैं. वो पूरी ज़िम्मेदारी के साथ उमर का पक्ष रखते हुए बताते हैं कि –‘इस बात की खोज होनी चाहिए कि नारे किसने लगाएं? जो लड़का भारत के आम आदमी की लड़ाई लड़ रहा हो. देश के किसानों, दलितों और आदिवासियों की लड़ाई लड़ रहा हो. जिसकी पूरी ज़िन्दगी जंतर-मंतर पर शोषित वर्ग के अधिकारों के संघर्ष में गुज़र गई हो. जो भारत के आदिवासियों पर पीएचडी कर रहा हो. जिसे विदेशों से पढ़ने का ऑफर मिल रहा हो, लेकिन जिसने विदेशी स्कॉलरशिप को ठुकरा कर अपने देश में रहना पसंद किया हो, वो लड़का देशद्रोही कैसे हो सकता है.’
जेएनयू की कहानी में एक दिलचस्प मोड़ आया है. जिस उमर खालिद व उसके साथियों को दिल्ली पुलिस पूरे भारत में खोज रही थी, वो उमर खालिद व उसके साथी रविवार को जेएनयू कैम्पस में छात्रों को संबोधित कर रहे थे और पुलिस को ललकार रहे थे कि –आओ हमें गिरफ़्तार कर लो...
इस घटनाक्रम के बाद जेएनयू कैम्पस में फिर से गहमा-गहमी बढ़ गई है. अब तक इस लड़ाई अलग-अलग छात्र-संगठन के लोग थे, लेकिन अब इस लड़ाई में जेएनयू के आम छात्र भी शामिल हो गए हैं.
TwoCircles.netने सोमवार जेएनयू कैम्पस में दर्जनों छात्र-छात्राओं से बात की. इनकी बातों ने यह साबित कर दिया कि अब इस लड़ाई में आम छात्र भी कूद चुके हैं, क्योंकि जेएनयू की बदनामी किसी को किसी भी क़ीमत पर बर्दाश्त नहीं है.
जेएनयू से एम.फिले कर रहे छात्र शायन का कहना है कि –‘सारे कॉमरेड के लौट आने की ख़बर आते ही हज़ारों छात्र जमा हो गए. सुबह से तमाम स्टूडेंट यहां खड़े हैं. इन्हें कोई ऑर्गनाइजेशन मोबलाइज़ नहीं कर रहा है.’
वो बताते हैं कि –‘जेएनयू को एक साज़िश के तहत बदनाम किया जा रहा है. कैम्पस में जो कुछ भी हुआ है, उसको कैम्पस में ही निपटाया जा सकता था.’
इस पूरे घटनाक्रम में मीडिया के रोल को लेकर छात्रों में काफी गुस्सा है. यहां के छात्रों का स्पष्ट तौर पर मानना है कि वीडियो के साथ छेड़छाड़ करके टीवी चैनलों पर चलाया गया. उमर खालिद को एक मुस्लिम युवा होने के नाते जानबुझ कर टारगेट किया किया, क्योंकि कन्हैया कुमार हिन्दू नाम होने की वजह से ‘देशद्रोही’ के चेहरे में फिट नहीं बैठ रहे थे.
शायन बताते हैं कि –‘बीजेपी व आरएसएस के लोगों ने इस मामले को तुल दिया. पूरे मुनिरका में उमर का पोस्टर लगाया ग. जिस पर लिखा था –‘उमर ख़ालिद जहां मिले, गोली मार दो…’ इतना ही नहीं, सोशल मीडिया पर भी एक टीम दिन-रात लगकर जेएनयू के छात्रों को देशद्रोही बताने में जुटी रही.
वो कहते हैं कि –‘अगर सच में मीडिया में अगर कोई सबूत है, तो उसको दिखाए. लेकिन इन्हें बग़ैर किसी सबूत के फ़र्ज़ी वीडियो के आधार पर जजमेंट देने का अधिकार किसने दे दिया?’
जेएनयू के ही एक दूसरे छात्र सूर्य प्रकाश का कहना है कि –‘मीडिया वालों ने जेएनयू को इस क़दर बदनाम किया कि अब कोई ऑटो वाला जेएनयू आने को तैयार नहीं हो रहा है. हद तो तब हो गई कि एक ऑटो वाले एक लड़की को पाकिस्तानी बताकर उसके मुंह पर थूक दिया. खैर, उन बेचारों को क्या पता कि हम हमेशा उनके ही हक़ के लिए लड़ते आए हैं.’
वो बताते हैं कि –‘आरोप यहां के 10 छात्रों पर है. लेकिन सिर्फ उमर खालिद को ही टारगेट किया जा रहा है, क्योंकि वो मुसलमान है. ऐसा बिल्कुल नहीं होना चाहिए.’
अमृता कुमारी का कहना है कि –‘जेएनयू के तमाम छात्रों से सेडिशन के सारे आरोप सरकार जल्द से जल्द हटाए. स्लोगन और राजनीति का साथ शुरू से रहा है. हर लोकतांत्रिक समाज में डिबेट का, बहस का, असहमति का अधिकार हमेशा रहना चाहिए. इसे ख़त्म नहीं किया जा सकता. हमारा मानना है कि ये मामला जेएनयू का एक ‘पॉलिटिकल टार्गेटिंग’ का है.
अमृता की दोस्त अनन्या बताती हैं कि –‘इस मामले की पृष्ठभूमि पहले से ही तैयार किया जा चुका था. आरएसएस का मुखपत्र ‘पाञ्चजन्य’ पिछले दो साल से आर्टिकल छाप रहे थे कि जेएनयू में किस प्रकार सोशल डिस्क्रिमिनेशन की पढाई हो रही है. यहां जेंडर को लेकर एक अलग से डिपाटमेंट है. यहां पर इक्वल अपरच्यूनिटी सेल है. यहाँ पर जीएस केस है. इसलिए जेएनयू एंटी-नेशनल है.’
यहां पीएचडी कर रहे राकेश का कहना है कि –‘सरकार ये कैसे कर सकती है? और मीडिया ने तो अपना पूरा स्तर ही गिरा दिया है. जहाँ एक तरफ़ जेएनयू के छात्रों को पूरी दुनिया इंटेक्चुअल की नज़र से देखती है, वहीं मीडिया और कुछ दलों ने इसे देशद्रोही बना दिया है. जबकि सच्चाई यह है कि असल देशद्रोही यहीं हैं.’
रागिनी जो कि एक ब्लाइंड स्टूडेंट हैं, बताती हैं कि –‘मेरे लिए जेएनयू भगवान के घर जैसा है. जेएनयू ने मुझे एक अलग सोच, एक अलग दिशा में, देशहित और समाज के उन मुद्दों पर सोचने को मजबूर किया, जिसको सरकार हमेशा नज़रअंदाज़ करती है. अगर यहां डिसेन्ट व डिस्कशन नहीं रहेगा, तो यह यूनिवर्सिटी ही मर जाएगी. यूनिवर्सिटी होता है चीज़ों को सीखने के लिए, धारणाओं को अंडरलाइन कर समझने के लिए.’
इस प्रकार TwoCircles.netने यहां जितने भी छात्र-छात्राओं से मुलाक़ात की, उनका स्पष्ट तौर पर कहना था कि आरएसएस के इशारे पर चलने वाली यह सरकार जेएनयू को बदनाम करके इसे बंद करने या फिर छात्रों को डराकर उनके सोचने-समझने की सलाहियत को ख़त्म करने की साज़िश रच रही है, क्योंकि यहां के छात्र हमेशा से इनके ‘देशद्रोही’ विचारधारा के ख़िलाफ़ रहे हैं. लेकिन जेएनयू के छात्र हार मारने वाले नहीं है, अब इस सरकार व उनके विचारधारा की हक़ीक़त पूरी दुनिया को बताई जाएगी.
मंगलवार देर रात उमर खालिद व अनिर्बाण भट्टाचार्या ने जेएनयू कैम्पस के बाहर गेट पर आकर खुद को जेएनयू छात्रों व शिक्षकों के सामने आत्म-समर्पण कर दिया है. इस समय दोनों के वकील भी मौजूद थे. इस आत्म-समर्पण के बाद पुलिस दोनों वंसत विहार थाने ले गई है.
इस आत्म-समर्पन के मौक़े से जेएनयू के हज़ारों छात्र भी मौजूद थे और उन्होंने दोनों के साथ होने का नारा भी लगाया.
स्पष्ट रहे कि दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को ही जेएनयू के दो छात्रों उमर खालिद और अनिर्बन को सरेंडर करने का निर्देश दिया था. और अब इस मामले की सुनवाई बुधवार यानी आज दिन के समय होगी.
हालांकि इससे पहले हाईकोर्ट से सुरक्षा और कोर्ट में ही समर्पण करने की याचिका उमर खालिद के वकीलों ने दायर की थी. इस याचिका में कन्हैया कुमार के साथ पटियाला हाउस में हुए हंगामे को आधार बनाया गया है. यह याचिका एक और आरोपी अनिर्बन की ओर से भी दायर की गई है.
गौरतलब है कि अनिर्बाण भट्टाचार्या व उमर खालिद दोनों पर ‘राजद्रोह’ का आरोप लगाया गया है. आरोप है कि इन्होंने जेएनयू में अफ़ज़ल गुरू की याद में ‘शहीदी दिवस’ मनाते हुए ‘भारत विरोधी’ नारे लगाएं. पुलिस 11 फ़रवरी से दोनों की तलाश में थी.
भारतीय मीडिया ने भले ही जेएनयू में ‘पाकिस्तान ज़िन्दाबाद’ के नारे लगाने के मामले को तुल दिया हो, लेकिन दिल्ली पुलिस की रिपोर्ट कुछ और ही कहानी बयान करती है.
दरअसल, जेएनयू में नारेबाजी के मामले में दिल्ली पुलिस की रिपोर्ट में नया खुलासा हुआ है. रिपोर्ट में कहा गया है कि जेएनयू में कार्यक्रम के दौरान कुल 29 नारे लगाए गए, लेकिन 'पाकिस्तान जिंदाबाद'का कोई नारा नहीं लगा था.
अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस के एक ख़बर के मुताबिक़ दिल्ली पुलिस (साउथ) के डिप्टी कमिश्नर प्रेमनाथ ने ‘ए ब्रीफ बैकग्राउंड एंड फैक्चुअल नोट ऑन द इंसीडेन्ट ऐट जेएनयू रिगार्डिंग केस एफआईआर नम्बर 110/16 दिनांक 11.02.2016’ विषय पर एक रिपोर्ट दिल्ली के कमिश्नर बी.एस. बस्सी को सौंपा है.
12 पन्ने की इस रिपोर्ट में इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अफ़ज़ल की बरसी के दौरान कार्यक्रम में कई तरह के नारे गूंजे थे, लेकिन ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ का नारा नहीं गूजा था. इस रिपोर्ट में 29 नारों की चर्चा है, लेकिन ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे का कोई जिक्र नहीं है.
इस जांच रिपोर्ट में प्रत्यक्षदर्शियों को भी शामिल किया गया है, जिनमें विश्वविद्यालय के छात्र और स्टाफ शामिल हैं.
गौरतलब है कि जेएनयू कैम्पस में 9 फरवरी की रात को संसद पर हमले के दोषी अफ़ज़ल गुरु के ‘शहादत दिवस’ की बरसी मनाई गई और इस मौके पर देश-विरोधी नारे लगाए गए. आरोप है कि यहां पर कुछ छात्रों ने ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ जैसे देशद्रोही नारे लगाए थे.
ये ख़बर जी-न्यूज़ नामक एक निजी चैनल ने दिखाया था. चैनल के इस रिपोर्ट में ‘पाकिस्तान ज़िन्दाबाद’ के नारे भी सुनाई दे रहे हैं.
12 फरवरी को इसी निजी टेलीविजन चैनल की फुटेज के आधार पर बीजेपी सांसद महेश गिरी ने एक मामला दर्ज कराया था और फिर जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार की गिरफ़्तारी हुई थी.
हालांकि रविवार को पत्रकार विश्व दीपक ने ज़ी न्यूज़ से इस्तीफा देते हुए बताया कि -'वीडियो में ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ का नारा था ही नहीं, उसे हमने बार-बार हमने उन्माद फैलाने के लिए चलाया था.’
लखनऊ/बाराबंकी:भारत के कोनों-कोनों तक पहुंचकर राहत कार्य करने वाली अमरीका संस्था इन्डियन मुस्लिम रिलीफ एंड चैरीटीज़ यानी IMRC के सातवें सालाना स्वास्थ्य जागरूकता अभियान के पहले ही दिन अमरीका के १० चिकित्सकों ने उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में तकरीबन 550 ज़रूरतमंदों का इलाज किया. जबकि अभियान के पहले चरण में कम से कम 1500 ज़रूरतमंदों को मुफ्त में स्वास्थ्य सुविधाएं दी गयीं.
20 फरवरी से 23 फरवरी तक चलने वाले इस सालाना अभियान के पहले चरण में लखनऊ के पास बाराबंकी रोड पर स्थित जहांगीराबाद इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में कैम्प से इस अभियान की शुरुआत हुई.
IMRC की मुहिम की शुरुआत साल 2010 में शुरू हुई थी. तब से लेकर आजतक कम से कम छः बार इस मुहिम के दम पर IMRC ने भारत के गाँवों, बस्तियों और शहरों में घूम-घूमकर ज़रूरतमंदों को स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा दी है. अभियान की ख़ास बात है कि इस से लोगों और क्षेत्र के लोकल डॉक्टरों को स्वास्थ्य सेवाओं की बारीक और मौलिक जानकारी दी जाती है. इसके साथ ही लोगों को हेल्थ केयर की मौलिक जानकारी से रूबरू कराया जाता है. बीते साल हैदराबाद, बीजापुर और बांगरपेट में मिलाकर लगभग दस हजार मरीजों को स्वास्थ्य सेवाएं दी गयी थीं.
अलग-अलग क्षेत्रों के दस विशेषज्ञों के साथ इस कैम्प की शुरुआत की गयी है और रोचक बात यह है कि यह सभी डॉक्टर अमरीका से ताल्लुक रखते हैं. इन दस डाक्टरों में महिला रोग, शिशु रोग, सर्जरी, जनरल मेडिसिन के साथ अलग-अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल हैं.
20 फरवरी को अभियान के पहले दिन डॉक्टरों ने मिलकर लगभग 550 लोगों का स्वास्थ्य परीक्षण किया और उन्हें ज़रूरी सुविधाएं मुहैया करायीं.
65 साला शहाबुद्दीन की नज़रों के साथ दिक्क़त है, वे बाक़ायदा साफ़ नहीं देख पाते हैं. बाराबंकी के एक छोटे से गाँव से 35 किलोमीटर का सफ़र तय करने के बाद वे इस स्वास्थ्य कैम्प में आए, और अपने विचार हमसे साझा किए.
उन्होंने कहा, ‘मैं बहुत सारे आँख के डॉक्टरों के यहाँ हो चुका हूँ. लेकिन किसी ने भी उस तरह का इलाज नहीं किया जैसे इस मेडिकल कैम्प के डॉक्टर बिना पैसों के कर रहे हैं. दूसरे अस्पतालों में ढेर सारे पैसे ऐंठने के बावजूद सही इलाज नहीं मिलता है, लेकिन यहां सभी सुविधाएं बिना पैसों के मिल रही हैं. दवाओं और ज़रूरी जांच के लिए मुझे एक रुपया भी नहीं देना पड़ा.’
22 साला मोहम्मद नूरियां लगभग 400 किलोमीटर का सफ़र करने के बाद इस कैम्प में पीलिया के बाद की कमजोरी से निजात पाने के लिए इस स्वास्थ्य कैम्प में आए थे. जांच के दौरान हुई बातचीत में उन्होंने बताया, ‘पहले मैं रोज़ दो घंटे फ़ुटबाल खेलता था लेकिन अब दो मिनट भी चल लेता हूं तो थकान हो जाती है. यहाँ दिखा लिया है, अब डॉक्टरों ने जांच कराने को कहा है जो अच्छा है कि मुफ्त है.’
मुहिम में लगे डॉ. जॉन रॉज़ेन्बर्ग ने कहा, 'ये कोई छोटा और आसान काम नहीं है. हमने लगभग 550 मरीजों को पहले दिन देखा था. दर्द, एलर्जी और पेट की बीमारियों से परेशान रोगियों की संख्या ज्यादा थी. शुरुआत अच्छी और उत्साह से भर देने वाली हुई है. हम लगे हुए हैं कि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक मुक़म्मिल सुविधाएं पहुंचा सकें.'
बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. कामिल अहमद ने जानकारी दी कि पेट, फेफड़ों और स्किन के संक्रमण के रोगी बच्चों की संख्या ज्यादा थी. कुछ रोगी ऐसे भी थे, जिन्हें किस्म-किस्म के दौरे आते थे.
लोगों को दवाइयों के साथ ज़रूरी मेडिकल जांच और एक्स-रे जैसे महंगे जांच मुफ्त में मुहैया कराए गए. स्वास्थ्य शिविर में कई सौ किलोमीटर का सफ़र तय करके आने वाले अशक्त और गरीब तबके के लोग शामिल थे, जो अभियान का हिस्सा बनने के बाद खुद को खुशनसीब मान रहे थे.
संस्था के निदेशक मंज़ूर ग़ोरी ने कहा, ‘भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में इस तरह की सुविधाएं पहुंचाने के लिए बहुत मेहनत और ऊर्जा की ज़रुरत है. लेकिन काम के बाद एक संतुष्टि का एहसास होता है कि इन लोगों के जीवन में हम कोई सुधार लाने का प्रयास कर सके. लखनऊ के बाद हमारा अभियान केरल और हैदराबाद की ओर कूच करेगा.’
लखनऊ के बाद हैदराबाद में ब्राईट फ्यूचर स्कूल(हसन नगर), इंडो-यूएस स्कूल(किशन बाग़), शाहीन नगर मरकाज़ और बाबा नगर इंडो-यूएस स्कूल में 26-29 फरवरी तक यह मेडिकल जागरूकता अभियान चलाया जाएगा.
इसके बाद केरल के कोझिकोड शहर के कूदारंजी, मुक्कम और कोडियाथूर गाँवों में 3 मार्च से लेकर 6 मार्च तक अभियान का अंतिम सत्र चलेगा.
IMRC की नींव साल 1981 में रखी गयी थी. अमरीका की यह चैरिटेबल संस्था अन्य लगभग 100 संस्थाओं के साथ मिलकर भारत के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में कई किस्म के कार्यक्रम चला रही है. संस्था का उद्देश्य ज़रूरतमंद तबके को शिक्षा, आपातकालीन सेवाएं, स्वास्थ्य व न्यायसम्बंधी ज़रूरतें, खाना और छत की ज़रूरतें मुहैया कराना है. असम दंगे 2012, मुज़फ्फरनगर दंगे 2013, 2014 की कश्मीर बाढ़ और 2015 की चेन्नई बाढ़ के वक़्त संस्था ने घरों-घरों तक जाकर लोगों को ज़रूरी सेवाएं प्रदान की हैं. संस्था की लोगों से अपील है कि वे यदि भोजन या पैसों के रूप में IMRC को चन्दा देना चाहते हैं तो वे www.imrcusa.orgपर जाकर साथ निबाह सकते हैं.
मुंबई :टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साईंसेज़ के कैम्पस में चल रहे ‘लिटरेचर फेस्टिवल’ के अवसर पर मशहूर उर्दू उपन्यास लेखक रहमान अब्बास, सोशल एक्टिविस्ट मुख्तार खान और मनीष मोदी की उपस्थिति में पुस्तक ‘पानी डूब जाएगा’ का आवरण पृष्ठ का प्रक्षेपण हुआ.
‘पानी डूब जाएगा’ उर्दू नज़्मों का संग्रह है, जो लैब एकेडेमिया –रिसर्च एंड पब्लिकेशन सेंटर द्वारा देवनागरी लिपि में प्रकाशित हो रही है. उर्दू नज़्मों का यह संग्रह दरअसल जामिया मिल्लिया इस्लामिया के पूर्व छात्र असरारुल हक़ जीलानी का है.
बिहार के दरभंगा शहर में जन्में असरारुल हक़ जीलानी वर्त्तमान समय में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साईंसेज़ से ही एमए सोशल वर्क (मेंटल हेल्थ) कर रहे हैं. असरार एक कवि भी हैं, साथ ही साथ कहानियां और नाटक भी लिखते हैं.
इस कविता संग्रह में उन्होंने अपने कल्पनाओं और भावनाओं का ऐसे समागम तैयार किया है, जिसमें प्रेम-रस के साथ-साथ समाजिक और पर्यावरण के मुद्दे भी बोलते हुए नज़र आते हैं.
इनकी ख़ासियत यह है कि मोहब्बत और अमन का दामन थामे हुए सामाजिक और पर्यावरण मुद्दे का भी रुमानीकरण कर देते हैं. इस किताब में आप देखेंगे कि किस तरह से कवि पत्ता जो पर्यावरण का हिस्सा है, उसे कैसे मोहब्बत को जोड़कर देखते हैं.
हरे हरे ख़्वाबों को तराश कर देता हूं शक्ल पत्तों की गीले गीले अहसास के क़तरों से ख़्यालों की टहनियों पे चिपकाता हूँ उन पत्तों को फिर तसव्वुर के तने से जोड़ देता हूँ उनको तो बन जाती है तुम्हारी तस्वीर
जिनको हिन्दुस्तानी कविता पढ़ने का शौक़ है, वो इस किताब में मोहब्बत की मिठास और सामाजिक मुद्दे का तीखापन महसूस कर सकते हैं. ये किताब मार्च महीने के दूसरे सप्ताह में बाज़ार में आएगी.
इस देश का एक नागरिक होने के नाते यह मेरा कर्त्तव्य है कि मैं अपने माननीय प्रधानमंत्री जी को देश की हालत से अवगत कराउं, क्यूंकि वह देश में कम होते हैं. देश के विकास के लिए अक्सर विदेश का दौरा करते हैं. काश! यह सारी मेहनत हमारे पहले के प्रधामंत्री भी किये होते, तो आज हमारे वर्त्तमान प्रधानमंत्री जी को इतनी मेहनत न करनी पड़ती.
मैं दिल्ली अपने कुछ निजी काम से आया तो पता चला कि जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के छात्रों ने हमारे देश के विरोध में नारे लगायें. मुझे गुस्सा आया और सीधा वहां गया. लोगों से मिलना शुरू किया. अपनी बात बताई कि ‘देश विकास के रास्ते पर चल रहा है, फिर आप ऐसा क्यों कर रहे हैं.’
यह सारे छात्र हम पर टूट पड़े. कहा –कौन सा विकास? कैसा विकास? और शुरू हुआ वाद-विवाद… मैंने अपनी सुनाई क्योंकि मुझे विकास चाहिए था, पर उनकी भी सुनी. वह बोले –
हमें आज़ादी चाहिए भूख से. लोग यहां भूखे मर रहे हैं. क्योंकि ग़रीब पर महंगाई की मार किसानों की आत्म-हत्या. पेट्रोल का दाम. दाल तो 150 रूपये किलो. लेकिन मोबाइल 251 रूपये में. क्या ग़रीब मोबाइल से पेट भरेगा?
रेल का किराया बढ़ाकर बुलेट ट्रेन चलेगी. गरीब कहाँ जायेगा?
मोदी जी! ये सब बातें करते-करते कुछ नारे भी लग रहे थे –हमें आज़ादी चाहिए... हमें आज़ादी चाहिए...
मैंने सोचा यह काहे की आज़ादी मांग रहे हैं. आज़ाद तो हम 67 साल पहले ही हो चुके हैं. यह बच्चे हैं तो शायद इन्हें मालूम नहीं... या स्कूल के मास्टर ने या इनके माता-पिता ने इन्हें बताया ही न हो.
आरक्षण की बातें भी हुई. गुजरात के पटेल आंदोलन में हज़ारों-करोड़ की देश की सम्पति लूटी. अब जाट आंदोलन में 2 से 3 हज़ार करोड़ की संपत्ति नष्ट हो चुकी है. इन सबके आड़ में यह ग़रीबों के आरक्षण को हटाना चाहते हैं. यह एक गन्दी राजनीति है. यहां तो सही मानो में पूरा का पूरा कन्फ़्यूज़ कर गएं. यह बच्चा सब तो चच्चा की तरह बात करता है. यह आंदोलन में राजनीति काहे का, ज़रा इस पर भी प्रधानमंत्री जी नज़र रखियेगा.
एक ढाबा में खाने गए तो वहां सबके मुंह पर सुना कन्हैया कुनार, उमर खालिद, अनिर्बाण भट्टाचार्य... ज़रा मैंने उत्सुकता से पूछा –यह कौन लोग हैं? भाई यहां के मास्टर हैं क्या? बोले –नए मास्टरमाईंड हैं. मैंने पूछा –यह क्या होता है? बोलें –टीवी नहीं देखते क्या? हम बोले –ग़रीब हूं. मज़दूर आदमी टीवी कहां से खरीदूं? और मज़दूरी करके थका हरा सो जाता हूं. पर हां! जब हम ट्रेन से आ रहे थे तो मालूम हुआ कि टीवी पर जंग चल रही है. बड़ा कन्फ्यूज़न में हूं. सुना था कि मैदान में जंग होती है लेकिन यह टीवी पर जंग... मेरी उत्सुकता और बड़ी फिर तो ऐसी कहानी सुनी कि लगा सरदार भगत सिंह जी का आत्मा यहीं कहीं भटक रही हैं हमने कहा –भाई हम भी उन लोगों से मिलना चाहते हैं. बोले –वह कन्हैया तो जेल में हैं. उसके साथी लोग यहाँ हैं. आप मिल सकते हैं.
मेरे मन में एक बात जगी. यह तो हमारी मज़दूरों की लड़ाई, ग़रीबों की लड़ाई लड़ रहे हैं. हम कन्हैया के साथियों से मिलने के लिए निकल पड़े. एक जगह दिखा बहुत सारा लोग फोटो ले रहे हैं. हमें लगा यहां मुफ्त में फोटो खींचा रहा है. शायद इसलिए भीड़ है. दिल्ली में हमने कभी भी फोटो नहीं खिंचवाए थे. हम हु वहां पहुंच गए. बाद में मालूम हुआ कि कन्हैया के साथी भी यहीं हैं. मास्टर लोग भी थे. हम बड़ी मुश्किल से अंदर घुसे. अनिर्बाण दिखा. साधारण सा मरियल सा लगता है. माता-पिता ने इसे सही से खिलाया-पिलाया नहीं. हम दूर से देखते रहे. उसके पिता आये. बोले –बेटा हमें तुम पर गर्व है. तुम ग़रीबों की, मज़दूरों की लड़ाई लड़ रहे हो. अंत में जीत तुम्हारी होगी.
मेरे आंखों में आंसू आ गए. यह लोग मेरी लड़ाई लड़ रहे हैं और लोग इन्हें देशद्रोही कह रहे हैं. मोदी जी एक ग़रीब-मज़दुर की दिल की आवाज़ है. आप तक ज़रूर पहुंचे कि यह कैसे देशद्रोही हो सकते हैं. हाथ में क़लम लेकर देश का निर्माण होता है. वह यह सब बच्चे करेंगे विकास. होगा ज़रूर होगा...
अभी ये सब सोच ही रहा था कि उमर खालिद दिखा. यह भी एक ग़रीब का बच्चा. शरीर पर मांस नहीं और ग़रीबों की समस्या, आदिवासियों की समस्या, दलितों की लड़ाई, यह कमज़ोर बच्चे कैसे लड़ेंगे. मैं इसके क़रीब गया और अपने पोटली से एक-एक लिट्टी निकाली और दोनों को देकर कहा –मैं मोदी जी को जो हम सबके प्रिय प्रधानमंत्री हैं उनको सब बताउंगा. आप सब तो मेरा भविष्य हो.
मेरे प्रिय मोदी जी! उम्मीद है कि आप मेरी बात ज़रूर सुन सकते हैं और सबको साथ लेकर इस देश का विकास भी कर सकते हैं.
लखनऊ:हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्र रोहित वेमुला और जेएनयू के छात्रों के समर्थन में लखनऊ के हज़रतगंज स्थित गांधी प्रतिमा पर हस्ताक्षर अभियान चला रहे छात्र संगठन एसआईओ के छात्रों पर संघ और भाजपा नेताओं द्वारा घातक हमला किए जाने का ताज़ा मामला सामने आया है.
लखनऊ विधानसभा से बमुश्किल सौ मीटर की दूरी पर गांधी प्रतिमा के पास जमात-ए-इस्लामी हिन्द के छात्र संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक ऑर्गेनाइजेशन(SIO) के छात्र रोहित वेमुला की मांगों का समर्थन और जेएनयू के प्रति सरकार की कार्रवाईयों के खिलाफ हस्ताक्षर अभियान के ज़रिए प्रदर्शन कर रहे थे. सुरक्षा व्यवस्था की दृष्टि से उत्तर प्रदेश पुलिस का दस्ता वहां था.
मौके पर मौजूद लोगों के मुताबिक़ देखते ही देखते प्रदर्शनस्थल पर कई 10-15 अज्ञात लोग जुट गए, जिनके बारे में यह कयास लगाए जा रहे थे कि वे भाजपा व संघ के कार्यकर्ता हैं. देखते ही देखते इन कार्यकर्ताओं ने हस्ताक्षर अभियान चला रहे इन छात्रों पर लाठियां भांजनी शुरू कर दिया. रोचक बात यह है कि घटनास्थल पर मौजूद पुलिसवाले यह तमाशा देखते रहे और छात्रों को पीट रहे कार्यकर्ताओं के खिलाफ पुलिस ने कोई तात्कालिक एक्शन नहीं लिया. छात्रों की पिटाई के बाद हमलावर लोग सामने स्थित भाजपा कार्यालय में चले गए.
इस प्रदर्शन में SIO के छात्र के अलावा सामजिक संगठन रिहाई मंच के कार्यकर्ता शामिल थे. रिहाई मंच के कार्यकर्ता अनिल यादव ने बताया कि घटना के बाद जब वे और बाक़ी सभी लोग एफआईआर दर्ज कराने कोतवाली पहुंचे तो कोतवाली प्रभारी विजयमल सिंह यादव उलटा उनसे पूछने लगे कि वे लोग देशद्रोहियों का पक्ष क्यों ले रहे हैं? मौके पर मौजूद एक दारोगा ने भुक्तभोगी छात्रों से कहा कि इस तरह का काम करेंगे तो पिटने के लिए तैयार रहना होगा. हालांकि तीन घंटे की आनाकानी के बाद विजयमल सिंह यादव ने एफआईआर दर्ज किया और यह भी संज्ञान में लिया कि हमलावर भाजपा कार्यालय से सम्बद्ध थे. घायल छात्र तारिक़ अमीन – जो लखनऊ विश्वविद्यालय में बी.कॉम. के छात्र हैं – का मेडिकल भी कराया गया.
इस मामले में भाजपा के लखनऊ प्रकोष्ठ के पदाधिकारियों से बात करने पर वे साफ़ नकार रहे हैं, और वही पुराना देशभक्ति बनाम देशद्रोह का राग अलाप रहे हैं.
सामाजिक संगठन रिहाई मंच ने आरोप लगाया है कि यह कार्रवाई प्रदेश की सपा सरकार और भाजपा के साम्प्रदायिक गठजोड़ का एक नमूना है. राजीव यादव ने कहा है कि प्रदेश सरकार सूबे में ऐसे हालात पैदा कर रही है, जिससे अभिव्यक्ति की आज़ादी पर पहरा बिठाया जा सके.
विजयमल सिंह यादव का नाम तब भी सुर्ख़ियों में आया था जब IPS अमिताभ ठाकुर ने मुलायम सिंह यादव पर धमकाने का आरोप लगाया था. मामले में एफआईआर दर्ज कराने जब अमिताभ ठाकुर हज़रतगंज थाने पहुंचे तो विजयमल सिंह यादव ने एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर दिया था. अब यह मामला मीडिया से गायब है, कुछेक प्रादेशिक चैनलों ने इसे चलाकर बंद कर दिया है.
मैडम! आपका संसद में दिया गया भाषण वाक़ई बेहतरीन था. मैंने आपको पहले अभिनय करते हुए कभी नहीं देखा, क्योंकि मेरे घर में टीवी ही नहीं था. लेकिन आज जब यू-ट्यूब पर आपका भाषण देखा तब मैं आपका अभिनय देखकर दंग रह गया. आपके इस अभिनय की जितनी तारीफ़ की जाए कम है. आपकी आवाज़ में शानदार उतार-चढ़ाव और आपके भाव वाक़ई बेजोड़ थे.
मुझे लगता है कि दूसरी सभी अभिनेत्रियों को अभी आपसे काफी कुछ सीखने की ज़रूरत है और बेहतर होता कि राहुल गाँधी भी आपसे अभिनय की क्लास लेते...
स्मृति “मल्होत्रा” ईरानी जी, मैं अपने इस पत्र के माध्यम से आपके भाषण के बारे में कुछ बातें करना चाहता हूँ. ज़ाहिर है कि आपने काफी मेहनत से तैयार किया होगा. लेकिन इतनी मेहनत के बाद भी आपने खुद को जाति रहित बताने की कोशिश कर सब बेकार कर दिया.
मैडम यह भारत देश है. इस देश के बारे में बाबा भीमराव अम्बेडकर ने कहा है कि “आप यहां अपना धर्म बदल सकते हैं, घर बदल सकते हैं, परन्तु जाति नहीं बदल सकते. जाति कभी नहीं जाती.” मैडम यहां किसी की जाति का पता लगाना मुश्किल काम नहीं है. कभी-कभी सिर्फ़ उपनाम ही काफी होता है तो कभी-कभी हमारी राष्ट्रीय ख़ुफ़िया एजेंसियां भी इस काम को बखूबी अंजाम देती हैं.
स्मृति “मल्होत्रा” ईरानी जी, आपने अपने भाषण की शुरूआत इस वक्तव्य के साथ किया कि आप किसी की मदद उसका धर्म या जाति देखकर नहीं करतीं और फिर आपने अपने इस कथन को साबित करने के लिए लगभग 66 हज़ार पत्रों में से कश्मीर के निवासी मुस्लिम छात्र इक़बाल रसूल डार का नाम लिया. मैं इसके लिए आपको बधाई देना चाहता हूं.
स्मृति “मल्होत्रा” ईरानी जी, इसके पश्चात आपने जाति की राजनीति करने वाले नेताओं पर निशाना साधते हुए कहा कि –‘उन्होंने एक बच्चे की मौत पर जातिगत ओछी राजनीति की है. रोहिथ आपके लिए एक बच्चे की तरह था और एक मां होने के नाते आपने उसके लिए भावुक होने का प्रदर्शन भी किया. मुझे भी एक पल के लिए लगा कि आप सही कह रही हैं, लेकिन फिर स्मृति “मल्होत्रा” ईरानी जी मेरे मन में यह सवाल उठा कि इस मां को ऐसी क्या ज़रूरत आ पड़ी थी कि उसे रोहिथ को गैर-दलित साबित करने के लिए ख़ुफ़िया एजेंसी का सहारा लेना पड़ा? क्या यह जाति आधारित राजनीति का हिस्सा नहीं था?
स्मृति “मल्होत्रा” ईरानी जी, आपने अपने भाषण में रोहिथ के नोट की आख़िरी लाइन “No one is responsible for my death.”को बार-बार दोहराया. स्मृति “मल्होत्रा” ईरानी जी, मैं जानना चाहता हूँ कि क्या आपको रोहिथ के नोट का सिर्फ यही अंश दिया गया था या आपने जान-बूझ कर सिर्फ इसी अंश को पढ़ा. खैर दोनों ही संभावनाओं के मद्देनज़र मैं आपके साथ रोहिथ के नोट के कुछ अंश और साझा करना चाहता हूं.
“The value of a man was reduced to his immediate identity and nearest possibility. To a vote. To a number. To a thing. Never was a man treated as a mind. As a glorious thing made up of star dust. In every field, in studies, in streets, in politics, and in dying and living.”
आगे वह लिखता है:
“My birth is my fatal accident. I can never recover from my childhood loneliness. The unappreciated child from my past.”
स्मृति “मल्होत्रा” ईरानी जी, मुझे आपसे जानने की ख्वाहिश है कि आप जाति के प्रश्न पर क्यों भाग खड़ी होती हैं? क्यों आप इन सवालों को सुनकर विचलित हो जाती हैं? मायावती जी के सवाल पर जवाब देने की जगह आपकी बौख़लाहट भरी आवाज़ आपकी बैचैनी छुप क्यों नहीं पाती? आप ऐसे सवालों का जवाब क्यों नहीं देती? खैर मैं अब आपके भाषण के अगले हिस्से जेएनयू की तरफ़ बढ़ता हूं. लेकिन उससे पहले में इतिहास से कुछ आपके समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूं.
स्मृति “मल्होत्रा” ईरानी जी, वर्ष 1989 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री ने मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू कर दलित और पिछड़ों के सामाजिक व आर्थिक न्याय की दिशा में काम करने की कोशिश की. दलित पिछड़ों ने भी इसको लागू कराने के लिए लामबंद होना शुरू हुए, तब वह लामबंदी संघ की आंखों की कील बन गई. इस आन्दोलन के शुरू होने से पहले ही ख़त्म करने के लिए दलित-पिछड़ों को राम मंदिर निर्माण रथ यात्रा के लिए धर्म की बूटी दे दी गई. यह बूटी संघ के लिए वरदान साबित हुई और मंडल कमीशन के कुछ सुझाव छोड़कर बाकी आज तक लागू नहीं हो सका है.
आज फिर वर्तमान समय में जब रोहिथ की शहादत के बाद दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक एक आन्दोलन के रूप में एकजुट हुए हैं, तब आपने देश को जेएनयू की घटना के ज़रिए ‘राष्ट्रवाद’ का घोल पिलाना शुरू किया, क्योंकि आप जान चुकी हैं कि जनता धर्म की राजनीति से त्रस्त हो चुकी है. ऐसे में आपका छद्म ‘राष्ट्रवाद’ ही आख़िरी उपाय बचता है. इस सन्दर्भ में समुअल जोनसन का कथन बिल्कुल सटीक बैठता है: “Patriotism is the last refuge of scoundrel.”
स्मृति “मल्होत्रा” ईरानी जी, वैसे मैं सिर्फ़ आपसे सवाल ही नहीं करना चाहता, बल्कि आपका आभार भी व्यक्त करना चाहता हूं. आपका आभार व्यक्त करने की वजह आपके द्वारा जनता के साथ साझा किया गया Marcus Tullius Cicero का कथन है:
A nation can survive its fools, and even the ambitious. But it cannot survive treason from within. An enemy at the gates is less formidable, for he is known and carries his banner openly. But the traitor moves amongst those within the gate freely, his sly whispers rustling through all the alleys, heard in the very halls of government itself. For the traitor appears not a traitor; he speaks in accents familiar to his victims, and he wears their face and their arguments, he appeals to the baseness that lies deep in the hearts of all men. He rots the soul of a nation, he works secretly and unknown in the night to undermine the pillars of the city, he infects the body politic so that it can no longer resist. A murderer is less to fear.
स्मृति “मल्होत्रा” ईरानी जी, इस कथन में बिल्कुल सही कहा गया है कि एक देश अपने मूर्खों और महत्वकांक्षियों को निभा सकता है, लेकिन अपने अन्दर के राजद्रोह को नहीं. मैं इस कथन से सहमत हूं. आज भारत को ख़तरा है, उन तथाकथित देशभक्तों से जिन्हें तिरंगे के तीन रंग अशुभ नज़र आते हैं. आज भारत को ख़तरा है, उन देशभक्तों से जिन्होंने 52 वर्षों तक अपने मुख्यालय पर तिरंगा नहीं फहराया. आज भारत को ख़तरा है उन देशभक्तों से जिनका आदर्श स्वतंत्र भारत का प्रथम हत्यारा है. आज भारत को ख़तरा है उन देशभक्तों से जिनका आदर्श हिटलर जैसा बर्बर शासक है. एक बार फिर से धन्यवाद स्मृति “मल्होत्रा” ईरानी जी इस कथन को साझा करने के लिए...
जय भीम, जय हिन्द
मो. ज़ाकिर रियाज़
(मो. ज़ाकिर रियाज़ ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया से सामाजिक कार्य में पोस्ट ग्रेजुएशन किया है. वर्तमान में रेहड़ी पटरी कामगारों के अधिकारों के लिए कार्यरत हैं.)
कानपुर के सैय्यद महमूदुल हसन और उनके बेटे सैय्यद हसीबुल हसन को कानपुर पुलिस लाइन में बैठाकर ‘फ़र्जी मुक़दमें में फंसाने का’ एक मामला सामने आया है. पुलिस के इस ‘षडयंत्र’ के रचे जाने से पूरा परिवार सदमें में है.
रिहाई मंच के एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार कानपुर के अजीतगंज के फैसल हसन ने रिहाई मंच से संपर्क करके बताया है कि 24 फरवरी को शाम के क़रीब तीन बजे उनके मामा सैय्यद महमूदुल हसन (पुत्र अबुल हसन साकिन बेगमपुरवा नई मस्जिद कानपुर) के पास फोन आया कि आप थाना जरीब चौकी आ जाइए. आपके जानने वाले किसी आदमी की दुर्घटना हो गई है. दुर्घटना हुए आदमी के मोबाइल फोन से आख़िरी फोन आपके ही नंबर पर किया गया है. इसलिए आप जरीब चौकी आ जाइए और उनकी शिनाख्त करके ले जाइए.
सैय्यद महमूदुल हसन अपने बेटे हसीबुल हसन जो कि इंस्टीट्यूट ऑफ मोबाइल टेक्नॉलाजी चलाते हैं, के साथ जरीब चौकी गए. जहां सैय्यद महमूदुल हसन ने आस-पास के लोगों से पूछा कि यहां कहां दुर्घटना हुई है. इस बीच हबीबुल हसन पुलिस चौकी के अंदर चले गए, जहां उनको बैठा लिया गया. कुछ देर बाद हसीबुल हसन ने फोन करके अपने पिता महमूदुल हसन को बताया कि मुझको पुलिस लाइन पूछताछ के लिए लाया गया है.
महमूदुल हसन अपने साथ दो-तीन लोगों को लेकर पुलिस लाइन गए तो उनसे बोला गया कि कुछ देर बाद पूछताछ के बाद उनके बेटे को छोड़ दिया जाएगा. लेकिन उनको भी अंदर बुला लिया गया और पुलिस लाइन में ही बैठा लिया गया और दोनों लोगों का फोन लेकर बंद कर दिया गया है. जिनके नंबर ये हैं –हसीबुल हसन 9839900891 और महमूदुल हसन 9369494789
रिहाई मंच के अध्यक्ष एडवोकेट मुहम्मद शुऐब और इंडियन नेशनल लीग के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहम्मद सुलेमान ने इस संदर्भ में जब कानपुर एसपी को फोन किया तो उन्होंने फोन नहीं उठाया. इस पूरे घटना से परिवार सदमें में है और अब तक दोनों लोगों की घर वापसी नहीं हुई है.
दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट के बाद अब इलाहाबाद कचहरी में रोहित वेमुला और जेएनयू प्रकरण को लेकर धरना दे रहे छात्रों और कार्यकर्ताओं पर गुरुवार को वकीलों ने हमला कर दिया. धरना दे रहे लोगों को ‘देशद्रोही’ और ‘पाकिस्तान समर्थक’ कहकर उन पर हमला किया गया. इस हमले में कुछ छात्रों को गंभीर चोटें आई हैं. खासतौर पर जनवादी पार्टी के के.के. पाण्डेय, सीपीआई के अविनाश मिश्रा और आईसा के सुनील मौर्या को काफी गंभीर चोटें आई हैं.
इस हमले में वकीलों ने महिलाओं को भी नहीं बख्शा. उन पर जातिवादी और अभद्र टिप्पणियां की गईं. प्रदर्शन में मौजूद पीयूसीएल के जेनरल सेकेट्री उत्पला शुक्ला व शहरी गरीब मोर्चा की प्रभा व मानविका को काफी चोटें आई हैं.
स्पष्ट रहे कि रोहित वेमुला और जेएनयू मुद्दे की निष्पक्ष जांच, कन्हैया कुमार सहित अन्य छात्र नेताओं की रिहाई और अभिव्यक्ति की आज़ादी को लेकर कुछ वामपंथी संगठनों ने धरना-प्रदर्शन आयोजित किया था. इस धरने में विशेष तौर छह वामपंथी दल –भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (लेनिनवादी), सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया (कम्युनिस्ट), रिवोलूशनरी सोशलिस्ट पार्टी आफ इंडिया शामिल थे. इसके अलावा ऑल इंडिया फारवर्ड ब्लॉक-एसएफ़आई, आईसा, एआडीएसओ, वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया, जनवादी पार्टी सहित इलाहाबाद के छात्रों, ट्रेड यूनियन नेताओं, महिला अधिकार कार्यकर्ताओं, सिविल सोसाइटी और साहित्य जगत के कुछ लोग शामिल थे.
इस हमले की वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया ने कड़ी निन्दा की है. पार्टी के उत्तर प्रदेश राज्य के सचिव संजय सिंह पुलिस पर आरोप लगाते हुए कहा है कि –‘पुलिस घटनास्थल पर मौजूद थी, हमला करने वाले वकीलों की ड्रेस में थे, लेकिन पुलिस ने इन्हें नहीं रोका. बस खड़े होकर तमाशा देखते रहें.
इस संबंध में प्रदर्शनकारियों ने कर्नलगंज थाने आकर हमलावरों के खिलाफ़ एफआईआर दर्ज करवाई है.
गुण्डे वकीलों द्वारा किए गए इस हमले की कड़ी निंदा लखनऊ की सामाजिक संस्था रिहाई मंच ने भी की है. मंच ने कहा है कि आगामी 16 मार्च को लखनऊ में होने वाला ‘जन विकल्प मार्च’ सपा और भाजपा के सांप्रदायिक गठजोड़ को बेनक़ाब करेगा.
इंसाफ़ अभियान के प्रदेश प्रभारी व हाईकोर्ट अधिवक्ता राघवेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि इलाहाबाद में आरएसएस पोषित वकीलों द्वारा यह हमला पूर्वनियोजित व पुलिस के संरक्षण में हुआ है.
उन्होंने कहा कि जिस तरीक़े से संघी गुण्डों ने महिला कार्यकर्ताओं पर हमले ही नहीं किए, बल्कि उनके साथ अभद्रता और भद्दी-भद्दी गालियां दी, उसने इन संघी राष्ट्रवादियों का महिला विरोधी चेहरा बेनक़ाब किया है.
रिहाई मंच प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य अनिल यादव ने कहा कि कल अमित शाह के यूपी में बहराइच दौरे के बाद जिस तरीक़े से लखनऊ में और आज इलाहाबाद में संघियों ने हिंसक हमले किए उसने साफ़ कर दिया कि सपा सरकार के पुलिसिया संरक्षण में भाजपा के गुण्डे हमले कर रहे हैं. इसीलिए हमलावरों को पकड़ना तो दूर उनके खिलाफ़ एफ़आईआर तक दर्ज नहीं किया जा रहा है.
भोपाल में यूनियन कार्बाइड गैस हादसे के पांच संगठनों के नेताओं ने आज एक पत्रकार वार्ता में अमरीकी कंपनियों से अतिरिक्त मुआवज़े के लिए दायर सुधार याचिका के प्रति राज्य तथा केंद्र सरकारों द्वारा जान-बूझकर की जा रही लापरवाही की तीव्र निंदा की है. साथ ही इन संगठनों ने आज सर्वोच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार को सुधार याचिका पर त्वरित सुनवाई के लिए निवेदन करते हुए पोस्टकार्ड कैंपेन भी शुरू किया है.
इस पत्रकार वार्ता में भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की रशीदा बी ने कहा कि –‘सरकार द्वारा सुधार याचिका दायर करने के 5 से ज़्यादा साल बीत चुके हैं और आज तक एक भी सुनवाई नहीं हुई है.’
उन्होंने आगे कहा कि –‘यह बड़ी शर्म की बात है कि सरकार ने अतिरिक्त मुआवज़े की याचिका पर त्वरित सुनवाई के लिए एक भी दरख़्वास्त पेश नहीं की है और यहां भोपाल में गैस काण्ड के पीड़ित गैस जनित बीमारियों और अपर्याप्त मुआवज़े की वजह से आर्थिक तंगी से जूझते हुए दम तोड़ रहे हैं.’
स्पष्ट रहे कि रशीदा बी को पिछले ही महीने राष्ट्रपति द्वारा ‘कामयाब महिला’ के तौर पर पुरस्कृत किया गया है.
भोपाल गैस पीड़ित निराश्रित पेंशनभोगी संघर्ष मोर्चा के बालकृष्ण नामदेव ने कहा कि –‘गैस पीड़ितों के सही मुआवज़ा पाने के कानूनी हक़ के प्रति सरकार की उदासीनता गैस पीड़ितों की मौत और बीमारी के सही आंकड़े पेश करने में लापरवाही से स्पष्ट होता है.’
उन्होंने आगे बताया कि –‘केंद्रीय मंत्री से साल भर पहले दिए गए वायदे के विपरीत गैस काण्ड की वजह से हुई मौतों और बीमारियों के आँकड़े बहुत काम करके बताए जा रहे हैं.’
भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एंड एक्शन के सतीनाथ षडंगी के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष भारत सरकार की 1. 2 बिलियन डॉलर की अतिरिक्त मुआवज़े की याचिका 474 पन्नों की है. इसके विपरीत 1989 में 470 मिलियन डॉलर समझौते राशि को पर्याप्त ठहराने के यूनियन कार्बाइड और डाऊ केमिकल के तर्क 3657 पन्नों में पेश किया गया है. बात सिर्फ़ पन्नों की नहीं है. तथ्यों और तर्कों में सुधार की बहुत गुंजाइश है, पर सबसे ज़रूरी है कि सुधार याचिका को तुरंत सुना जाए.
भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा के नवाब ख़ाँ ने कहा कि –‘सरकार के द्वारा हाल में जो दस्तावेज़ पेश किया गया है, वह रसायन एवं खाद्य विभाग के अवर सचिव के व्याकरण और तथ्यों की गलतियां युक्त 7 पन्नों का हलफ़नामा है. यही दिखाता है कि सुधार याचिका सरकार के लिए महत्वपूर्ण मामला नहीं है.’
साफ़रीन ख़ान पीएम नरेन्द्र मोदी से सवाल पूछती हैं कि –‘अमरीका के राष्ट्रपति ने 11 मौतों के लिए एक ब्रिटिश कम्पनी को 20 बिलियन डॉलर हर्ज़ाने में देने के लिए मजबूर किया. लेकिन 25,000 हज़ार मौतों के लिए दो अमरीकी कम्पनियों से इस राशि का मात्र 5% माँगा जा रहा है, तो हमारे प्रधानमंत्री क्यों कुछ नहीं बोलते?’
उनके मुताबिक़ अतिरिक्त मुआवज़े के लिए मज़बूत मामला तैयार करने और उसकी जल्द-से-जल्द सुनवाई करवाने के प्रति सरकारी लापरवाही से सिर्फ अमरीकी कंपनियों को ही फायदा पहुंच रहा है.
पिछले दिनों हरियाणा में जाट आन्दोलन के नाम पर जो कुछ हुआ. उसे निश्चित तौर पर आन्दोलन तो क़तई नहीं कहा जा सकता. सड़कों पर जो नंगा नाच चल रहा था, उसे हमला बताना शायद समझदारी की बात भी नहीं होगी. ये विशुद्ध रूप से एक सुनियोजित दंगा था, जिसे दिल्ली की केन्द्र सरकार व राज्य सरकार आंख मूंद कर देख रही थीं.
ज़रा याद कीजिए कि यहां किस प्रकार स्कूल जलाये गये? कैसे इन जाट दंगाईयों ने अस्पताल को फूंक डाला? मॉल को ख़ाक कर दिया? मार्केट और दुकानें लूट ली गयीं? न जाने कितने हज़ार वाहन और दुकानें फूंक डाली गयीं? कैसे घरों में घुसकर लूटपाट, आगजनी और हत्याएं की गईं? कैसे मंत्रियों के घरों पर भी हमले हुए? बस्तियों को जला दिया गया?
यदि आंकड़ों की बात करें तो आरक्षण की मांग को लेकर 9 दिन चले इस आंदोलन के दौरान कुल 19 लोगों की मौत हुई, जबकि सैकड़ों घायल हुए. एसोचैम के एक रिपोर्ट के मुताबिक 21 फ़रवरी तक ही क़रीब 20,000 करोड़ का नुक़सान हो चुका था. यही नहीं, नॉर्दन रेलवे को 200 करोड़ से ज़्यादा का नुक़सान हुआ. करीब 10 लाख रेल यात्री इस आंदोलन के चलते परेशान हुए और 1000 से ज़्यादा ट्रेनें प्रभावित हुईं.
यानी इन जाट दंगाइयों ने लाखों करोड़ रुपये का नुक़सान कर दिया. लाखों लोगों की रोज़ी-रोटी छीन ली. हज़ारों व्यापारियों की ज़िन्दगी भर की कमाई को चुटकी बजाकर स्वाहा कर दिया. लेकिन खट्टर सरकार व उनके आका मोदी सरकार और इन दोनों के ‘बाप’ यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को इसमें कोई ‘राष्ट्रद्रोह’ नहीं दिखता. मीडिया को भी यह दंगाई ‘राष्ट्रद्रोही’ नज़र नहीं आते. हद तो यह हो गई कि नंगी आंखों से दिखने वाला इस दंगे के सच को नज़रअंदाज़ करके ज़्यादातर मीडिया चैनल लोगों को जेएनयू के कन्हैया कुमार व उमर खालिद के चेहरे दिखाकर मुल्क को ‘देशभक्ति’ का पाठ पढ़ाते रहें.
ख़ैर हरियाणा में जाट रिजर्वेशन के नाम पर जो कुछ हुआ, उसने इस देश के ज़िम्मेदार नागरिकों के समक्ष एक भयावह तस्वीर खींच दी है. लेकिन सवाल यह है कि अगर यह आन्दोलन जाटों की जगह कुछ मुसलमानों ने किया होता तो प्रतिक्रिया का आलम क्या होता? क्या ये मुमकिन नहीं था कि एक बड़ा तबक़ा उन्हें देशद्रोही और ग़द्दार बताकर समाज के लिए ‘कैंसर’ साबित करने में जुट जाता, जैसा कि हाल में ही पश्चिम बंगाल राज्य के मालदा शहर में हुआ था.
जी हां! अब ज़रा याद कीजिए बीते महीने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से 1700 किलोमीटर दूर मालदा में घटित होने वाली घटना को. याद कीजिए कि कैसे कुछ मुसलमानों ने कानून को अपने हाथ में लिया था तो मेनस्ट्रीम मीडिया में कोहराम मच गया. कैसे टीवी चैनलों की डिबेट चीख़-पुकार में बदल गई. कैसे सोशल मीडिया पर ‘इंटरनेट हिंदूओं’ ने सिर पर आसमान को उठा लिया. हर तरफ़ से मुसलमानों के उन्मादी, अतिवादी, चरमपंथी और आतंकवादी होने के सर्टिफिकेट बांटे गए. कैसे हर जगह इसकी गूंज सुनाई पड़ी. कैसे पीएम मोदी की पार्टी यानी बीजेपी ने इस इस घटना पर राजनीति की. किस क़दर राजनीतिक बावेला खड़ा किया गया?
लेकिन ज़रा ग़ौर करिए कि दिल्ली से महज़ चंद किलोमीटर की दूरी पर जाट आरक्षण के नाम पर हुए आंदोलन में जमकर लूट, मारपीट, आगज़नी और जमकर तोड़फोड़ हुई. गाड़ियों और बसों से मांओं, बहनों और बेटियों को जबरन उतारा गया, खेत में ले जाया गया, गैंगरेप किया गया. लेकिन मीडिया में बड़ा मुद्दा नहीं बन पाया. एक-दो चैनलों को छोड़कर किसी भी चैनल ने इस पर डिबेट करना मुनासिब नहीं समझा. प्राईम टाईम में चिल्लाने वाले एंकर खामोश ही नज़र आएं. सोशल मीडिया के ‘इंटरनेट हिंदू’ भी राष्ट्रवाद की गोली लेकर खामोश ही रहें. अब सवाल है कि आख़िर देश में ये दोहरा रवैया क्यों है? सच तो यह है कि जब ये दो घटनाएं एक साथ ज़ेहन से टकराती हैं और कई सवाल खड़े कर जाती हैं. और ये सवाल देश के मेनस्ट्रीम मीडिया की साख से जुड़ा है, जो एक ही तरह की मिलती-जुलती ख़बरों के चयन और उसे प्राथमिकता देने के दोहरे पैमाने की चुगली करता है.
सवाल है कि हरियाणा का यह आंदोलन किसी मुसलमान ने किया होता तो क्या मेनस्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया का रवैया वही होता, जो आज जाट आंदोलन को लेकर है. मैं तो ये सोचकर सहम जाता हूं कि अगर ऐसा मुसलमानों ने किया होता तो उनके हाथ काट दिए जाते, पैर तोड़ दिए जाते, जुबान खामोश कर दी जाती है. उनकी ज़मीन तंग कर दी जाती. वही आर्मी, जिन्हें हरियाणा भेजा गया था, वो हरकत में नज़र आती.
सवाल यह भी है कि आख़िर एक ही जैसे गुनाह के लिए इंसाफ़ के दो अलग-अलग तराजू क्यों है? क्या ये इस बात की ओर इशारा नहीं करता कि समानता की बात करने वाले हमारे सामाजिक ढांचे में ऐसा भेदभाव क्यों?
दरअसल, मीडिया व सरकार का यही रवैया क़ौम की सियासत करने वालों को मौक़ा देती हैं. देश-वासियों के दिलों में नफ़रत भरती हैं. लोगों के दिल से क़ानून का डर निकाल देती हैं. बल्कि सच तो यह है कि इन हालातों का फ़ायदा क़ौम के बाहर ही नहीं, क़ौम के भीतर भी उठाया जाता है. क़ौम के भीतर के कुछ तथाकथित रहनुमा ऐसे ही मुद्दों को अपनी भड़काऊ सियासत का हथियार बना लेते हैं. मगर यह भी है कि भावनाओं के इस जंग में जो पिसता है, वो आम मुसलमान है. जिसकी बुनियादी समस्याओं की चिंता किसी को नहीं है. मगर उसके नाम पर मढ़ने के लिए तोहमतों का पूरा का पूरा ज़ख़ीरा मौजूद रहता है.
‘देश में जो वर्तमान सरकार है, वो आरएसएस के इशारे पर काम कर रही है. उनके विचारधारा को ही आगे बढ़ा रही है. इस सरकार को आम जनता से कोई मतलब नहीं है. देश में दहशत का माहौल है. हर कोई ख़ौफ़ज़दा है. विशेषकर दलित, आदिवासी व अल्पसंख्यक तबक़ा... ये ख़ौफ़ का पैदा होना लोकतंत्र के लिए ख़तरा है. लोकतंत्र शांति चाहती है, इंसाफ़ चाहती है.’
यह बातें आज जामिया नगर के जोगाबाई स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जेक्टिव स्टडीज़ के कांफ्रेस हॉल में आयोजित एक प्रेस कांफ्रेस को संबोधित करते हुए ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल के जेनरल सेकेट्री डॉ. मंज़ूर आलम ने कहा.
उन्होंने कहा कि ‘आज मुल्क जिन हालात से गुज़र रहा है, इससे हम सभी अच्छी तरह वाक़िफ़ हैं. हम अपने दिल में महसूस भी करते हैं कि मुल्क के लोगों को दो हिस्सों में तक़सीम करने की कोशिश की जा रही है. एक पार्टी हिन्दुओं व मुसलमानों के दरम्यान नफ़रत की दीवार खड़ी करके अपना भविष्य संवारने में लगी है. हम अपनी आंखों से यह सारा मंज़र देख रहे हैं और यह सोच कर रह जाते हैं कि धरना, जुलूस और रैली हमारा काम नहीं है. यह काम तो सियासी पार्टियों व मानवाधिकार के लिए काम करने वाले संस्थाओं का है, लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि इन सियासी पार्टियों व संस्थाओं को ताक़त हमसे मिलती है. अगर हम ही अपनी ताक़त को न समझ सकें तो क्या सरकार क्या तवज्जो देगी?’
दरअसल, ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल 28 फरवरी 2016 को नई दिल्ली के मालवंकर हाल में ‘शांति एवं न्याय की मांग और हमारी ज़िम्मेदारियां’ विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करने जा रही है. आज का यह प्रेस कांफ्रेंस इसी के संदर्भ में था.
इस एक दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन में जस्टिस राजेन्द्र सच्चर, जस्टिस अहमदी, स्वामी अग्निवेश, के. रहमान खान, जॉन दयाल जैसे 35 से अधिक अहम वक्ताओं के नाम शामिल हैं.
इस प्रेस कांफ्रेस को संबोधित करते हुए डॉ. मंज़ूर आलम ने कहा कि –‘इस भारत में जिस तरह अशांति और अविश्वास का पैदा हो रहा है, वो ख़तरे की घंटी है. इस सरकार पर विशेष रंग चढ़ा हुआ है. और सरकार का हर फैसला उसी रंग के उत्थान और विकास से जुड़ा है. जो लोग इस दायरे से बाहर हैं, उन सबके सामने गंभीर सवाल हैं और उनका जवाब नहीं मिल पा रहा है. लेकिन हम उन्हीं का जवाब तलाशने के लिए 28 फरवरी को जमा होंगे.’
इस प्रेस वार्ता में डॉ. मंज़ूर आलम ने रोहित वेमुला व जेएनयू के मुद्दे पर भी बात की और पत्रकार के कई सवालों के जवाब भी दिएं. और आख़िर में कहा कि –‘आप पत्रकारों के क़लम की नोंक भले ही टूट जाए, लेकिन झुकनी नहीं चाहिए.’
डॉ. मंज़ूर आलम के कुछ अहम बातों को आप नीचे के वीडियो क्लिपों में सुन सकते हैं.
यूपी में हाल में हुए उपचुनाव की एक छुपी हुई तस्वीर यह रही है कि बैरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (मजलिस) ने अपने तेवरों का परिचय दे दिया है.
पिछले दिनों उत्तरप्रदेश के तीन विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए. मजलिस ने सिर्फ़ बीकापुर विधानसभा सीट पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. प्रदीप कुमार कोरी नामक मजलिस के यह उम्मीदवार यहां चौथे स्थान पर रहें, लेकिन उनको मिले वोट कांग्रेस के वोट से कई गुणा ज़्यादा और बीजेपी के उम्मीदवार के लगभग बराबर है. यह आलम तब है जब सूबे में बीजेपी की कई सरकारें रह चुकी हैं और वर्तमान में वो केन्द्र की सत्ता में है.
बीकापुर के इस सीट पर मुक़ाबले में 12 उम्मीदवार मैदान में थे. लेकिन दरअसल मुक़ाबला समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के बीच ही था. तीसरे स्थान पर बीजेपी थी. बीजेपी के उम्मीदवार रामकृष्ण तिवारी को कुल 11933 वोट मिलें, वहीं मजलिस को 11857 वोट हासिल हुए यानी बीजेपी से सिर्फ 76 वोट कम. जबकि कांग्रेस पांचवे स्थान पर रही और वोटों के मामले में काफी पीछे नज़र आई. उसके मुस्लिम उम्मीदवार असद अहमद को सिर्फ़ 2945 वोट हासिल हुए.
ऐसे में यह स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है कि एक नई नवेली पार्टी अपनी पहली ही कोशिश में इस क़दर मज़बूत वोट-बैंक के होने का अहसास करा जाती है तो ये आने वाले भविष्य की सियासी तस्वीर का आईना ज़रूर हो सकता है.
मजलिस से जुड़े युवा नेता आदिल हसन आज़ाद कहते हैं कि –‘आने वाले चुनाव में हम काफी सीटों पर कामयाब होने वाले हैं. बीकापुर सीट पर तो हमारे पास कार्यकर्ता ही नहीं थे. लेकिन अब युवाओं की पूरी फौज पार्टी के साथ रोज़ जुड़ रही है. आने वाला चुनाव हमारे नाम होगा और हम यूपी के काफी सीटों पर जीत दर्ज करेंगे.’
दरअसल, ओवैसी ने अपने राजनीतिक सोच का एक बेहतरीन परिचय देते हुए इस सीट पर दलित उम्मीदवार को टिकट दिया, जबकि दूसरी पार्टियां जातीय समीकरण में इसके उलट थे. मजलिस को मिले वोट बताते हैं कि मुसलमानों के साथ-साथ दलितों ने भी जमकर साथ दिया है. ऐसे में अगर यही कंबीनेशन 2017 के चुनाव में भी चल गया तो इसमें कोई दो राय नहीं है कि मजलिस कई जमे-जमाए खिलाड़ियों का खेल बिगाड़ सकती है.
स्पष्ट रहे कि मजलिस पूरी मज़बूती के साथ इस मुद्दे को उठाती रही है कि ओवैसी मुसलमानों के सच्चे हमदर्द हैं. उसका यह भी कहना है कि बाकी पार्टियों ने मुसलमानों के वोटों का सिर्फ़ इस्तेमाल किया है और अपनी सत्ता की तिजोरी भरी है. खास बात यह है कि मुसलमान अब मजलिस पर भरोसा भी करने लगे हैं. जो पार्टी पहले सिर्फ़ हैदराबाद तक ही सीमित थी, वो अब महाराष्ट्र, बिहार और उत्तर प्रदेश में दस्तक दे चुकी है.
मजलिस की यह सफलता इस ओर इशारा करती है कि देश में मुस्लिम राजनीत का एक नया ‘ध्रुव’ तैयार हो रहा है, जिसमें दलित भी साथ है. अगर इस ‘ध्रुव’ की चाल इसी तरह चलती रही तो आने वाले वक़्त में बड़े-बड़े महारथियों को पीछे छोड़ सकता है.
‘मुसलमान औरतों की आवाज़: सड़क से संसद तक’: बंदिशों की बेड़ियों को झकझोरने की कोशिश
Fahmina Hussain, TwoCircles.net
बदलते समय, बदलते समाज, बदलते परिवेश के बीच अब हिन्दुस्तान की मुस्लिम महिलाओं ने भी बंदिशों की बेड़ियों को झकझोरना शुरु कर दिया है. शिक्षा, आजीविका, बुनियादी सुविधाएं, नौकरी के मौक़े और अन्य सभी संसाधनों तक औरतों की पहुंच होनी चाहिए, ताकि उन्हें हाशिये की स्थिति से उबरने में मदद हो सके.
इन्हीं मुद्दों को रखते हुए ‘बेबाक कलेक्टिव’ नामक महिला समूह मंच ने आज दिल्ली के राजघाट स्थित गांधी सदन में मुस्लिम औरतों के अधिकारों के सन्दर्भ में ‘मुसलमान औरतों की आवाज़: सड़क से संसद तक’ विषय पर दो-दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया.
इस दो दिवसीय सम्मलेन में उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, बिहार, कश्मीर, तेलंगाना और अन्य राज्यों से तकरीबन 400 से अधिक महिलाएं शामिल हुईं. इस सम्मेलन का मुख्य उदेश्य मुस्लिम औरतों के जीवन से सम्बंधित कई मुद्दें जैसे शिक्षा, अतिवाद, भेदभाव, हिंसा और भारत के संविधान द्वारा दिए गये अन्य मौलिक अधिकारों पर चर्चा और बहस करना था.
इस सम्मेलन को संबोधित करते हुए जस्टिस राजेन्द्र सच्चर ने कहा कि –‘इस्लाम ने ही पहली दफ़ा औरतों को उनका हक़ दिया.’
उन्होंने कहा कि –‘सभ्य समाज की ज़िम्मेदारी है कि अल्पसंख्यकों को उनका अधिकार दे. अल्पसंख्यकों के जो फंड्स होते हैं, सरकार उनको उन पर खर्च नहीं करती. इनके नाम पर जारी फंड्स दूसरे समुदाय को फायदा पहुंचाने के लिए किया जाता है.’
एडवोकेट वृन्दा ग्रोवर ने कहा कि –‘सरकारें कमिटियां किसी मामले को दबाने के लिए बनाती हैं. लेकिन कभी-कभी सरकारें धोखा खा जाती हैं. कुछ ऐसा ही सच्चर कमिटि व जस्टिस वर्मा कमिटी मामले में हुआ.’
प्रोफेसर जोया हसन ने कहा कि –‘मुस्लिम समाज ने अब तक जितने भी कॉलेज या संस्थान बनाए हैं, वो सिर्फ अपने मुनाफ़े के लिए बनाए हैं. जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए.’
उन्होंने कहा कि –‘यह अजीब इत्तेफ़ाक़ है कि अब तक जितने भी मुस्लिम मर्द नेता बने हैं, उन्होंने कभी औरतों के अधिकारों की बात नहीं की है. उनके मसले को नहीं उठाया है.’
वहीं सैय्यदा हामिद का कहना था कि –‘हमारे पैग़म्बर औरतों के लिए खास वक़्त निकालते थे. उनकी समस्याओं को न सिर्फ सुनते थे, बल्कि उनका समाधान भी करते थे, लेकिन आज आलम यह है कि औरतों को मस्जिद में दाखिल होने तक पर पांबदी है.’
इस सम्मलेन में ऐसी कई महिलाओं ने शिरकत की, जिन्होंने परिवार के भीतर कई प्रकार की हिंसाओं और समाज में मौजूद धार्मिक आस्था, कट्टरवाद, घरेलू हिंसा, भेदभाव जैसी चीज़ों का सामना किया है.
इस सम्मलेन में सच्चर समिति की रिपोर्ट पर भी चर्चा हुई, जिसमें मौजूदा भाजपा सरकार द्वारा सच्चर समिति की सिफ़ारिशों को सफलतापूर्वक लागू न करने के प्रति गंभीर चिंता व्यक्त की गई. इसके साथ ही हिंसा और भेदभावों का सामना करने वाली मुस्लिम औरतों की सामाजिक सुरक्षा की ज़रूरतों की बात भी की गई, जिसमें समुदाय केंद्र, पुस्तकालय, कानूनी सहायता, आश्रय गृह, वर्किंग हॉस्टल, ट्रेनिंग सेंटर जैसी चीज़ों को सरकार द्वारा मुहैया कराने की बात कही गई.
सम्मलेन में शामिल आबिदा जो कि मधय-प्रदेश के एक संस्था द्वारा यहां शामिल हुए थी, उनका कहना था कि –‘शिक्षा और तरक्क़ी में धर्म की दीवार खड़ी जा रही है, जबकि इस्लाम में इस तरह की पाबंदियां नहीं हैं, जिसकी चर्चा अक्सर कुछ मौलाना हज़रात करते रहते हैं. हालांकि इस्लाम में ऐसी किसी बात का ज़िक्र नहीं किया गया है.’
सामाजिक कार्यकर्ता वरुणा अंचल ने अपने संबोधन में कहा कि –‘औरतों की शिक्षा, नौकरी और शादी को लेकर तरह-तरह की ग़लत-फ़हमियां फैलाई गई हैं, जबकि औरतों के प्रति हर धर्म में काफी सकारात्मक बातें हैं. तरक्की के लिए आगे आने को तैयार महिलाओं ने अब अपने हक़ मांगने शुरू कर दिए हैं.’
इस सम्मेलन में इस्लामिक विद्वान भी शामिल थे और उन्होंने महिलाओं की भावनाओं की क़द्र करते हुए उनके तर्क को भी सही ठहराया. उनका भी मानना है कि न सिर्फ़ मदरसों को मेनस्ट्रीम से जोड़ने का ज़रूरत है, बल्कि इस्लामिक शिक्षा को मॉडर्न शिक्षा के साथ रखने के बारे अब सोचना चाहिए.
इस दो दिवसीय सम्मलेन में जस्टिस राजेन्द्र सच्चर, डॉ. सैय्यद हामिद, प्रो. जोया हसन, प्रो. उमा चक्रवर्ती और एडवोकेट वृंदा ग्रोवर ने भी इस सम्मेलन में आए महिलाओं को सम्बोधित किया.
रविवार 28 फ़रवरी को गांधी स्मृति से राजघाट तक रैली निकाल कर इस सम्मलेन का समापन किया जाएगा.
इस सम्मलेन में डाक्यूमेंट्री फिल्म ‘त्रियक’ की भी स्क्रीनिंग की गई, जो कि मुस्लिम औरतों के व्यक्तिगत जीवन से राजनिति तक के सफ़र को दिखाया गया है.
आज़मगढ़ :रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने सपा सरकार पर वादा खिलाफी का आरोप लगाते हुए कहा है कि उसने चार सालों में जनता से किए गए एक भी वादों को पूरा नहीं किया. सरकार लगातार वादे पूरे होने के झूठे दावे कर रही है, लेकिन जनता हकीक़त समझने लगी है.
रिहाई मंच अखिलेश सरकार के झूठ और लूट को बेनकाब करने के लिए 16 मार्च को विधानसभा पर जन-विकल्प मार्च करेगा.
सरायमीर, आजमगढ़ में एक प्रेस कांफ्रेंस को सम्बोधित करते हुए रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने कहा कि पूरे सूबे में सपा की वादा खिलाफी के खिलाफ़ जनता में आक्रोश है. लेकिन अखिलेश यादव जनता से किए गए वादों को पूरा करने के बजाए जनता की गाढ़ी कमाई का करोड़ों रूपया वादों के पूरे होने के झूठे प्रचार पर खर्च कर रहे हैं.
उन्होंने कहा कि सपा ने वादा किया था कि सरकार बनने के बाद आतंकवाद के आरोप में फंसाए गए बेगुनाह मुस्लिम युवकों को छोड़ दिया जाएगा. लेकिन एक भी बेगुनाह नहीं छूटा, उल्टे खालिद मुजाहिद की हत्या भी पुलिस, खुफिया और एटीएस के अधिकारियों ने करा दी, जिनके खिलाफ़ नामजद मुक़दमा होने के बावजूद एक भी अधिकारी से पूछताछ तक नहीं की गई. इसी तरह तारिक़ कासमी और खालिद मुजाहिद की गिरफ्तारी को संदिग्ध बताने वाली निमेष कमीशन की रिपोर्ट पर भी सरकार ने कोई अमल नहीं करके दोषी पुलिस अधिकारियों को बचाया.
उन्होंने कहा कि सपा सरकार का यही साम्प्रदायिक चेहरा कन्हैया और उमर खालिद के सवाल पर असहमति जताने वाले लोगों पर पुलिस की मौजूदगी में हो रहे हमलों में भी देखा जा सकता है.
उन्होंने कहा कि ये कैसे सम्भव हो सकता है कि विधानसभा से सौ मीटर की दूरी पर रोहित वेमुला और कन्हैया के इंसाफ़ के लिए मांग कर रहे छात्रों और इलाहाबाद की कचहरी में प्रदर्शन कर रहे लोगों पर साम्प्रदायिक गुंडों द्वारा हमला किया जाता है और घायल लोगों की एफ़आइआर लिखे जाने से पहले ही हमलावरों की तरफ़ से झूठे आरोपों में मुक़दमें दर्ज कर दिए जाते हैं.
रिहाई मंच के अध्यक्ष ने कहा कि प्रदेश में संघी गुंडा तत्वों के हमलों का मुलायम सिंह द्वारा बाबरी मस्जिद तोड़ने गए लोगों पर फायरिंग का आदेश देने पर माफी मांगने के बाद ही शुरू होना अकारण नहीं है.
उन्होंने आरोप लगाया कि मुलायम सिंह शुरू से ही संघ परिवार के छुपे एजेंट रहे हैं, जो अब खुलकर संघ के मुस्लिम विराधी एजेंडे को बढ़ाने में लग गए हैं.
उन्होंने कहा कि अपने संसदीय सीट आज़मगढ़ से मुस्लिम विहीन गांव तमौली को गोद लिया जाना भी उनके संघ एजेंट होने को साबित करता है.
मंच के अध्यक्ष ने कहा कि इन चार सालों में बसपा और कांग्रेस जैसे विपक्षी दलों ने एक बार भी मुसलमानों से किए गए वादों पर सरकार को नहीं घेरा. मुसलमानों के खिलाफ़ सभी पार्टियों में आम सहमति है कि इन्हें आतंकवाद के नाम पर जेलों में सड़ाना है, आईएस के नाम पर बेगुनाहों को फंसाना है.
उन्होंने कहा कि सरकार और पार्टियों से जनता की नाराज़गी के प्रदर्शन के लिए ही रिहाई मंच और इंसाफ़ अभियान 16 मार्च को लखनऊ के रिफाहे आम से विधान सभा तक ‘जन-विकल्प मार्च’ करने जा रहा है, ताकि दलितों, किसानों, महिलाओं और मुसलमानों से किए गए वादों से वादा खिलाफी को आवाज़ दी जा सके.
प्रेस कांफ्रेंस को सम्बोधित करते हुए इंसाफ़ अभियान के प्रदेश सचिव अवधेश यादव ने कहा कि सपा के चार सालों के शासन में गुंडागर्दी और अपराध बढ़ा है. महिलाएं और कमजोर तबके समाजवादी गंडों के निशाने पर हैं. पुलिस का राजनीतिक इस्तेमाल खुलेआम हो रहा है, आरटीआई से सूचना मांगने वाले कार्यकर्ताओं को सूचना आयुक्त तक पीटने लगे हैं. युवाओं और छात्रों को रोज़गार देने के बजाए उन्हें बेरोज़गारी और नशे की तरफ़ धकेला जा रहा है.
उन्होंने कहा कि लोहिया शराबबंदी का आंदोलन चलाते थे, लेकिन उनके नाम पर राजनीति करने वाली सरकार शराब की कीमतों में कटौती कर रही है. जिससे परिवार और समाज टूट रहा है. लेकिन इन मुद्दों पर विपक्ष भी चुप है.
उन्होंने कहा कि इंसाफ़ अभियान और रिहाई मंच सपा के युवा और समाज-विरोधी नीतियों के खिलाफ़ 16 मार्च को युवाओं, दलितों, मुसलमानों और किसानों के सवालों को उठाकर प्रदेश सरकार को चेतावनी देगा.
प्रेस कांफ्रेंस को सम्बोधित करते हुए इंसाफ़ अभियान के प्रदेश उपाध्यक्ष विनोद यादव और रिहाई मंच नेता मसीहुददीन संजरी ने कहा कि 16 मार्च के जन-विकल्प मार्च में शामिल होने के लिए लोगों के बीच सघन जनसम्पर्क अभियान चलाया जा रहा है.
उन्होंने कहा कि जन-विकल्प मार्च प्रदेश में व्याप्त जंगल राज, कारपोरेट परस्त नीतियों और साम्प्रदायिक आतंकवाद के खिलाफ़ नए राजनीतिक विमर्श की शुरूआत करेगा.
‘ये मुल्क बहुत तेज़ी के साथ फ़ासिज़्म और ग़ैर-ऐलानशुदा इमरजेंसी की तरफ़ बढ़ रहा है. मुल्क में असहिष्णुता, ख़ौफ़ व हिंसा के माहौल में ज़बरदस्त इज़ाफ़ा हुआ है. ऐसे में वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया मार्च के पहले सप्ताह में ‘मुल्क में लोकतंत्र की बहाली : फ़ासिज़्म से मुक़ाबला’ विषय पर देश-व्यापी मुहिम चलाएगी.’
यह बातें शनिवार को वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. क़ासिम रसूल इलियास ने एक प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए कहा.
उन्होंने कहा कि –‘एक वक़्त था कि इंदिरा इज़ इंडिया और इंडिया इज़ इंदिरा के नारे लगाए जा रहे थे, बिल्कुल उसी तरह अब मोदी इज़ इंडिया और इंडिया इज़ मोदी कहने की कोशिश की जा रही है. यानी जो मोदी के समर्थन में हैं वो रामज़ादे हैं और जो मोदी के विरोध में हैं वो हरामज़ादे हैं. हाल ही में अलीगढ़ से बीजेपी सांसद ने कहा था कि अगर यूनिवर्सिटी में मोदी, आरएसएस और बीजेपी के विरोध को देशद्रोह माना जाएगा. तो ऐसे में सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि क्या अब मोदी, आरएसएस और बीजेपी के विरोध को ‘देशद्रोह’ माना जाएगा?’
स्पष्ट रहे कि डॉ. क़ासिम रसूल इलियास ‘राजद्रोह’ के मामले में गिरफ़्तार उमर ख़ालिद के पिता है. TwoCircles.netने उनसे खास बातचीत की. इस बातचीत के कुछ अंश को आप नीचे के वीडियो में देख व सुन सकते हैं.
वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया के दिल्ली प्रदेश के अध्यक्ष सिराज तालिब बताते हैं कि –‘मौजूदा सरकार पूरी तरह से आरएसएस के इशारे पर काम कर रही है. वो मुल्क में भगवा निज़ाम क़ायम करना चाहते हैं. इन्हीं हालात को देखते वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया पूरे मुल्क में एक अभियान चलाएगी और लोगों को बताएगी कि इन बेईमानों व भ्रष्टाचारियों से कैसे निपटा जाए’
वहीं वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया के राजस्थान राज्य यूनिट के अध्यक्ष राशिद हुसैन का कहना है कि –‘मुल्क के युवा जिन्हें अच्छे दिन का सपना दिखाया गया था, उनसे सोचने की आज़ादी छिनी जा रही है. यह सरकार आदिवासियों की आवाज़ दबा देना चाहती है. यह दलितों व अल्पसंख्यकों के आवाज़ को दबा देना चाहती है. और जो मुल्क के असल मुद्दे हैं, वो ‘राष्ट्रवाद’ का छद्म मुद्दा छेड़कर दबा देना चाहती है. लेकिन हमारी पार्टी देश के गरीबों के मुद्दों दबने नहीं देगी. हम गांधी व अम्बेडकर के सपनों का भारत इस मुल्क के लोगों को देना चाहते हैं.’