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संघ परिवार के राष्ट्रविरोधी इतिहास को सार्वजनिक करने के लिए होगा सम्मेलन

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TwoCircles.net News Desk

लखनऊ :जेएनयू अध्यक्ष कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी और देशभर में शैक्षणिक सस्थानों, प्रगतिशील विचारों व अभिव्यक्ति की आजादी पर बढ़ रहे संघी हमले के खिलाफ़ आंदोलन की रणनीति बनाने के लिए रिहाई मंच की बैठक आज लाटूश रोड स्थित लखनऊ कार्यालय पर हुई.

बैठक में निर्णय लिया गया कि स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रेज़ों के पक्ष में खड़े होने के संघ परिवार के इतिहास के दस्तावेज़ों को सार्वजनिक कर लोगों को संघ की देश विरोधी विचारधारा से अवगत कराया जाएगा.

Rihai Manch

मंच ने अपनी बैठक में हेडली के गुमराह करने वाले बयान का इस्तेमाल भाजपा द्वारा इशरत जहां की फ़र्ज़ी मुठभेड़ में की गई हत्या को जायज़ ठहराने की कोशिश की निंदा की.

मंच जल्दी ही इस मसले पर अपनी विस्तृत रिपोर्ट जारी कर आईएसआई और सीआईए के डबल एजेंट रहे हेडली के बयानों और केंद्र सरकार की अपने साम्प्रदायिक खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों को इशरत की हत्या से बेदाग़ साबित करने की कोशिश को बेनकाब करेगा.

बैठक में वक्ताओं ने कहा कि जेएनयू में हुए आयोजन में संघ परिवार से जुड़े तत्वों ने ही पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लगाया था. ताकि आयोजन-कर्ताओं को राष्ट्रविरोधी तत्व घोषित करके रोहित वेमुला मामले में संघ की भूमिका पर हो रही बहस को भटकाया जा सके.

वक्ताओं ने कहा कि संघियों का इतिहास ही रहा है कि वे मुस्लिमों की वेशभूषा में जाकर आपराधिक कृत्य करते हैं. संघ परिवार से जुड़े देश के पहले आतंकी गोडसे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या करने के कई प्रयासों में नकली दाढ़ी-टोपी लगाकर उनको मारने गया था. इसी तरह संघी आतंकवादियों ने मालेगांव कब्रिस्तान में आतंकी हमले को नक़ली दाढ़ी-टोपी लगाकर अंजाम दिया था, जिसका जिक्र एटीएस की चार्जशीट में भी है. इसी तरह बीजापुर कर्नाटक में भी आरएसएस के लोग मुस्लिम बहुल इलाकों में स्वतंत्रता व गणतंत्र दिवस पर चोरी-छिपे पाकिस्तान का झंडा फहराते हुए पकड़े जा चुके हैं. ठीक इसी तरह मेरठ में गणतंत्र दिवस को काला दिवस बताते हुए हिंदू महासभा के लोगों ने राष्ट्रध्वज को जलाया, लेकिन उनके खिलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं हुई, जो साबित करता है कि सपा सरकार भी इस राष्ट्र-विरोधी कृत्य में संघ परिवार की विचारधारा से प्रेरणा प्राप्त कर रही है.

बैठक में रिहाई मंच के अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब, शकील कुरैशी, जैद अहमद फारुकी, फ़रीद खान, लक्ष्मण प्रसाद, विनोद यादव, संतोष यादव, अनिल यादव, शाहनवाज़ आलम, राजीव यादव आदि शामिल हुए.


तो क्या एबीवीपी के कार्यकर्ता लगा रहे हैं ‘पाकिस्तान ज़िन्दाबाद’ के नारे?

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TwoCircles.net News Desk

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के विवाद ने अब एक नया मोड़ ले लिया है. सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा एक वीडियो में यह बताया जा रहा है कि जेएनयू में ‘पाकिस्तान ज़िन्दाबाद’ के नारे लगाने वाले कोई और नहीं, बल्कि भारतीय जनता पार्टी की छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के कार्यकर्ता हैं.

ये वीडियो 1:32 मिनट की है और News Kannada ने इसे यू-ट्यूब पर शेयर किया है. इस वीडियो में दावा किया गया है कि दरअसल 9 फरवरी को जेएनयू में हुए विवाद के पीछे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के कार्यकर्ता थे. वही ‘पाकिस्तान ज़िन्दाबाद’ के नारे लगा रहे थे.

नोट: News Kannada ने इस वीडियो को यू-ट्यूब से हटा लिया है, लेकिन ये वीडियो दूसरे यू-ट्यूब चैनल पर मौजूद हैं. यू-ट्यूब पर मौजूद इस वीडियो को आप यहां देख सकते हैं.

तो क्या आरएसएस ही राष्ट्र है और जो उसके खिलाफ़ है वो राष्ट्रद्रोही?

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Afroz Alam Sahil, TwoCircles.net

एक थे नाथूराम गोडसे... जिन्होंने हमारे देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या की. जिन्हें 1959 में पंजाब की अम्बाला जेल में फांसी पर लटका दिया गया. भारत में एक वर्ग आज भी बड़ी शान से इनकी पूजा करता है. महात्मा गांधी की पुण्यतिथी को ‘शौर्य दिवस’ के रूप में मनाता है और उनके विचारों पर चलने की क़समें खाता है.

बल्कि ये तबक़ा तो खुलेआम बयान देता है कि –‘गोडसे जी हमारे अराध्य हैं. हम उन्हें हत्यारा नहीं मानते. उन्होंने अन्याय के खिलाफ़ आवाज़ उठाई, इसलिए हम उनका अनुकरण करते हैं और उनका संदेश जन-जन तक पहुंचाने के लिए 30 जनवरी के दिन को शौर्य दिवस के रूप में मनाते हैं.’

एक थे अफ़ज़ल गुरू... जो भारतीय संसद पर हुए आतंकवादी हमले के दोषी हैं. जिन्हें 2013 में दिल्ली के तिहाड़ जेल में फांसी पर चढ़ा दिया गया. भारत का एक वर्ग अफ़ज़ल गुरू को निर्दोष मानता है. और कश्मीर की आज़ादी की बात करता है.

पहला समूह अब राष्ट्रवादी है और खुद को राष्ट्रभक्त मानता है और दूसरे समूह को वो राष्ट्रद्रोही... इस समूह की नज़र में अब शाहरूख व आमिर ख़ान भी देशद्रोही हैं, क्योंकि इन्होंने मुल्क में बढ़ते असहिष्णुता के ख़िलाफ़ बोला था.

जबकि दूसरा समूह ये मानता है कि इनका राष्ट्रवाद झूठा है. असल मक़सद बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा बनाए गए संविधान को ख़त्म करके भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना है. असल में देशद्रोही तो ये आज के तथाकथित ‘देशभक्त’ हैं, जो देश को जोड़ने के बजाए तोड़ने का काम कर रहे हैं.

इस दूसरे समूह का सवाल है कि अफ़ज़ल गुरु की फांसी की चर्चा अगर राष्ट्रद्रोह है तो नाथूराम गोडसे की फांसी की चर्चा और उसका महिमामंडन ‘गंगा स्नान’ कैसे हो सकता है?

दूसरे समूह का सवाल है कि अगर अफ़ज़ल गुरू के फांसी पर इस देश में चर्चा नहीं हो सकती, तो फिर नाथूराम गोडसे की फांसी पर देश में पिछले 56 सालों से चर्चा क्यों हो रही है? आख़िर दोनों को सज़ा इस देश की सर्वोच्य न्यायालय ने दिया है. दोनों को दोषी इसी न्यायालय ने माना है. ऐसे में अफ़ज़ल गुरू पर चर्चा राष्ट्रद्रोह है, तो नाथूराम गोडसे पर चर्चा देशभक्ति कैसे हो सकती है? अगर किसी दुकान पर गोडसे की किताब –“मैंने गाँधी को क्यों मारा” या उसके भाई की किताब “गाँधी वध क्यों” बिकती हुई दिखती है तो उस दुकान पर, उसके प्रकाशक पर देशद्रोह का मुक़दमा क्यों नहीं चलना चाहिए?

यानी इस दूसरे समूह के कई सवाल हैं, जिसका स्पष्ट जवाब पहले समूह के पास दूर-दूर तक नज़र नहीं आता.

और सबसे गंभीर बात यह है कि इस ‘राष्ट्रवाद’ और ‘राष्ट्रद्रोह’ के पीछे जो देश के असल मुद्दे हैं, वो कहीं न कहीं पीछे छूटते नज़र आ रहे हैं. वो है इस देश में आम आदमी की समस्या...

यह कितनी हैरान कर देने वाली बात है कि मुल्क में बढ़ती महंगाई पर कोई बात नहीं कर रहा है. अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में तेल के दाम घटे हैं, पर हमारे मुल्क में इनके दाम वहीं के वहीं हैं, लेकिन इन पर कोई चर्चा नहीं हो रही है. देश में महंगी होती स्वास्थ्य सेवा या शिक्षा के भगवाकरण पर कोई चर्चा नहीं हो रही है... ऐसे हज़ारों मुद्दे हैं, जिन्हें यहां गिनवाया जा सकता है. लेकिन आज मैं भी इनकी चर्चा यहां नहीं करूंगा. ये समस्याएं आज मेरे लेख के मुद्दा नहीं हैं.

मुद्दा आज जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार की गिरफ़्तारी का है. जिन्हें ‘राष्ट्रद्रोह’ के आरोप में गिरफ़्तार किया गया है और तीन दिन के न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है.

हालांकि जिस ‘पाकिस्तान ज़िन्दाबाद’ का नारा लगाने का आरोप कन्हैया पर लगा है. दरअसल, वो नारा एबीवीपी कार्यकर्ताओं द्वारा लगाया जा रहा था. इस संबंध में एक ताज़ा वीडियो भी सोशल मीडिया पर खूब शेयर किया जा रहा है.

कन्हैया की राष्ट्रभक्ति समझने के लिए गिरफ़्तारी के पूर्व उसके द्वारा दिया गया भाषण ही काफी है, जिसका वीडियो यू-ट्यूब पर मौजूद है. इस वीडियो में वह स्पष्ट तौर पर भारतीय संविधान का सम्मान करने की बात कह रहा है. पाकिस्तान जिंदाबाद के नारा लगाने वालों के खिलाफ़ कार्रवाई की मांग कर रहा है.

दरअसल, इस खेल के पीछे एबीवीपी का हाथ है और उसी के आन्दोलन के बाद कन्हैया को गिरफ़्तार किया गया. तो ऐसे में यह बिल्कुल स्पष्ट बात है कि महज़ पाकिस्तान जिंदाबाद कह देने भर से कन्हैया की गिरफ्तारी नहीं हुई है. असल सबब कुछ और है.

जेएनयू के छात्रों की माने तो इस गिरफ्तारी का सबब कन्हैया द्वारा फासिस्टों को ललकारना है. वो अपने इस वीडियो में नागपुरिया और झंडेवालान से प्रकाशित-प्रसारित संघी संविधान को भी ललकार रहा है. वो संघियों से सवाल कर रहा है कि ‘जंग-ए-आज़ादी’ में तुम अंग्रेजों के साथ मिलकर भारतीयों पर गोलियां चलाया करते थे, फिर आज देशभक्ती का सर्टिफिकेट बांटने का अधिकार तुम्हारे पास कहां से आ गया?

इस वीडियो में कन्हैया के सारे सवाल चुभने वाले हैं और संघियों के दिमाग़ में इसकी चुभन इतनी अधिक बढ़ी कि इस देश के गृहमंत्री को इस मसले पर बयान देना पड़ा और इसी प्रतिक्रिया में कन्हैया को गिरफ़्तार किया गया.

दरअसल, संघियों के निशाने पर जेएनयू पहले से रहा है. और यहां असल मुद्दा शिक्षा के मंदिर कहे जाने वाले शिक्षण संस्थानों पर ‘सरकारी निशाने’ का है. यदि आप ग़ौर से देखेंगे तो पाएंगे कि ये ‘सरकारी निशाना’ उन्हीं संस्थानो पर है, जहां के छात्र आरएसएस के विचार पर सवाल खड़े करते हैं.

हैरानी की बात यह है कि छात्रों द्वारा सवाल खड़े करते ही आरएसएस की विचारधारा के साथ जुड़े केन्द्र की मोदी सरकार, जिसके हाथ में सत्ता है, ताक़त है, वो अपने हर हथकंडे का इस्तेमाल इन छात्रों पर करना शुरू कर देती है. उन छात्रों को टारगेट करने का हर संभव प्रयास किया जाता है, जो आरएसएस के विचारधारा के ख़िलाफ़ होते हैं. पहले पुणे में एफटीआईआई पर हमला, मद्रास आईआईटी पर हमला, हैदराबाद में आईएफएलयू पर हमला और फिर रोहित वेमुला द्वारा ‘आत्महत्या’... हर बार सरकार व संघियों को बैकफुट पर आना पड़ा. और इन तमाम मामलों में जेएनयू के छात्रों ने जमकर सरकार की आलोचना की.

सवाल यह भी है कि जैसे जेएनयू के कुछ छात्रों की हरकतें जितनी अस्वीकार्य और चिंताजनक है, उतनी ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हत्यारे को शूरवीर सिद्ध करते हुए 30 जनवरी को 'शौर्य दिवस'के रूप में मनाने वालों की सिरफिरी हरकतें भी चिंताजनक हैं. लेकिन इस मामले में हमारी मीडिया व सरकार खामोश नज़र आती है. आख़िर क्यों?

यह कितनी हैरानी की बात है कि देश में खुलेआम हिन्दू महासभा व आरएसएस कार्यकर्ता राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि को ‘शौर्य दिवस’ के रूप में मनाते हैं. तिरंगे का विरोध करते हैं, उसे जलाते हैं, लेकिन तब इन राष्ट्र-विरोधियों पर इस देश में कोई बवाल नहीं मचता. इन पर हमारी पुलिस व सरकार कोई कार्रवाई नहीं करती. हमारी मीडिया के एंकरों व पत्रकारों के मुंह को भी 'लकवा'मार जाता है.

दूसरी तरफ़ राजस्थान के एक ज़िले में ‘आरएसएस मुर्दाबाद’ के नारे लगाने पर दर्जनों मुस्लिम नौजवानों पर राष्ट्रद्रोह का मुक़दमा करके इन्हें जेल के सलाखों के पीछे डाल दिया जाता है. सबके सब हरकत में नज़र आते हैं.

ऐसे में सवाल यह पैदा होता है कि आरएसएस का विरोध करने वाले राष्ट्र-विरोधी कैसे हो गए? क्या आरएसएस के ख़िलाफ़ जो विचारधारा है, उनके लिए भारत में कोई जगह नहीं? क्या मौजूदा सरकार में आरएसएस ही राष्ट्र हो गया है? जबकि ये वही आरएसएस है, जिस पर भारत सरकार कभी प्रतिबंध लगा चुकी है और जिसके जिसके कार्यकर्ता और नेताओं ने महात्मा गांधी की हत्या की. जिसने तिरंगे को काफी समय तक स्वीकार नहीं किया. बल्कि आजादी के पहले तो इन्होंने कई बार तिरंगे को फाड़ा और जलाया भी. ये वही आरएसएस है जिसके बहुत सारे लोगों का मानना था कि आजादी के बाद भारत का विलय नेपाल में हो जाना चाहिए, क्योंकि नेपाल दुनिया का एक मात्र हिंदू राष्ट्र है. खुद सावरकर ने नेपाल नरेश को स्वतंत्र भारत का ‘भावी सम्राट’ घोषित किया था. (एएस भिंडे-विनायक दामोदर सावरकर, व्हीर्लस विंड प्रोपोगेंडा 1940, पृष्ठ संख्या 24)

आखिर में सबसे अहम यह बात कि उन्माद किसी भी रंग का क्यों न हो, उसकी भर्त्सना होनी ही चाहिए. आगे अब देखना दिलचस्प होगा कि सरकार ‘पाकिस्तान ज़िन्दाबाद’ के नारे लगाने वाले उन युवकों के खिलाफ़ क्या कार्रवाई करती है. क्योंकि सोशल मीडिया पर जो वीडियो शेयर किया जा रहा है, उसके मुताबिक़ नारा लगाने वाले ‘गुंडे’ एबीवीपी के कार्यकर्ता हैं.

जेएनयू के प्रोफ़ेसर का एबीवीपी के गुंडों ने किया बीएचयू में विरोध, लगाए अपमानजनक नारे

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By सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net

वाराणसी:इस रविवार काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के फैकल्टी ऑफ आर्ट्स में आयोजित इस व्याख्यान में जेएनयू के प्रोफ़ेसर, प्रसिद्ध समाजशास्त्री और हिंदी के कवि बद्रीनारायण का अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के कार्यकर्ताओं ने जमकर विरोध किया और अपमानजनक नारेबाजी भी की.

दरअसल बद्रीनारायण बीएचयू में ‘हाशिए का समाज और विकासशील भारत’ विषय पर व्याख्यान देने आए थे. दोपहर २ बजे यह व्याख्यान शुरू हुआ, जिसमें बद्रीनारायण ने दलित और हाशिए के अनु समुदायों और विकासशील भारत के साथ-साथ वर्तमान परिदृश्य में उनके हालातों पर चर्चा की. बद्रीनारायण का वक्तव्य ख़त्म होने के बाद प्रसिद्द कथाकार और साहित्य अकादमी सम्मान लौटा देने वाले काशीनाथ सिंह अपना अध्यक्षीय भाषण दे रहे थे.

ठीक इसी समय नारे लगाते, भारत का झंडा लिए, सर पर केसरिया कपड़ा बांधे करीब सौ लड़के सभागार में घुस आए. सभी के हाथों में तख्तियां थीं, जिन पर जेएनयू को देशद्रोही संगठन करार दिया गया था, देशद्रोहियों को सजा दी गयी थी. उन्होंने हाथों में सियाचिन में मारे गए सभी जवानों की तस्वीरें भी ली हुई थीं.

बद्रीनारायण को मंच पर देखते ही कुछ लोगों ने ‘मारो गोली सालों को’, ‘मारो जूता खींच के’ सरीखे भयाक्रांत और अपमानजनक नारे लगाने शुरू कर दिया. कुछ लड़के मंच पर चढ़ने का प्रयास भी करने लगे, जिनकी देहभाषा हिंसक लग रही थी. सभागार में उपस्थित लेखकों और कवियों के प्रयास से उन्हें रोका जा सका.

बाद में मंच पर उपस्थित लेखकों से कहने लगे कि वे जेएनयू के प्रोफ़ेसर को यहाँ से भेज दें. उनकी मांगों में जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया के कथित ‘देशद्रोह’ की निंदा करना भी शामिल था. लेखकों और कवियों ने जवाब में कहा कि किसी सरकारी संस्थान के अध्यापक को कहीं भी क्यों बुलाया जाए इसके लिए एबीवीपी के छात्रों को सरकार से बात करनी होगी और यदि देश में कहीं भी देशद्रोह की घटना हो रही है, तो वे उसकी निंदा करते हैं.

करीब पंद्रह मिनट तक चले इस तमाशे के बाद वे सभी नारे लगाते हुए हॉल से बाहर चले गए. वक्तव्य के बाद शुरू हुए काव्यपाठ में सभी कवियों ने प्रदर्शनकारियों की इस हरक़त की घोर निंदा की. कमोबेश सभी कवियों ने साम्प्रदायिक शक्तियों और पूंजीवादी ताकतों के खिलाफ कवितायेँ पढ़ीं और अपने संक्षिप्त वक्तव्यों से समाज के हाशिए के समुदायों का समर्थन किया.

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय को एक लम्बे समय से देश के हिंदूवादी दक्षिणपंथी राजनीति का गढ़ माना जाता रहा है. यहां नियमित तौर पर संघ की शाखाएं लगती हैं और एबीवीपी का वाराणसी प्रकोष्ठ अपने वजूद में काफी मजबूत है. लेखक संगठनों ने देश के जाने-माने समाजशास्त्री और जेएनयू के प्रोफ़ेसर के खिलाफ इस हरक़त की कड़े शब्दों में निंदा की है और कहा है कि यह हरक़त देश में बढ़ती असहिष्णुता की और इशारा है.

इस खबर के साथ संलग्न वीडियो को बनाते समय एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने मोबाइल को जेब में रखने की धमकी दी. बाद में जब हम सभागार से बाहर निकले तो कार्यकर्ताओं ने हमारे मोबाइल छीनने के प्रयास किए. हमने यह बताया कि हम मीडिया से हैं तो उन्होंने कहा, 'तो कौन-से तोप हैं?'और इसी के साथ उन्होंने हमारे साथ धक्कामुक्की शुरू कर दी और पास खड़े लोगों के बीच-बचाव से मामला सुलझ सका.

एक और ‘व्यापम’ के मुहाने पर मध्य प्रदेश!

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Afroz Alam Sahil, TwoCircles.net

मध्य प्रदेश में एक और बड़े घोटाले की तस्वीर धीरे-धीरे साफ़ होती नज़र आ रही है. यह घोटाला राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान यानी NIOS से जुड़ा हुआ है. इसके तार मध्य प्रदेश के उन तमाम सेन्टरों से जुड़े हुए हैं, जहां बिना परीक्षा दिलाए ही एक बड़ी धन-राशि हड़प कर विद्यार्थियों को पास होने की मार्कशीट बांट दी जाती है. ये रैकेट सालों से चल रहा है. इसकी लिखित शिकायत इस देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत तमाम जांच संबंधी संस्थाओं से किया जा चुका है.

आरटीआई से मिले महत्वपूर्ण दस्तावेज़ बताते हैं कि NIOS ने जिस स्कूल को अपना परीक्षा केन्द्र बनाया था, उस परीक्षा केन्द्र में कोई परीक्षा आयोजित नहीं की गई. खुद लिखित रूप में उस स्कूल के प्राचार्य यह बात कह रहे हैं कि –‘NIOS की कोई परीक्षा उनके स्कूल में आयोजित नहीं हुई है. यदि इस स्कूल के नाम से केन्द्र बनाया गया है तो उक्त परीक्षाएं कहीं और सम्पन्न हुई होंगी.’

मध्य प्रदेश के मुरैना ज़िला के सबलगढ़ एक निवासी का आरोप है कि –‘NIOS का यह घोटाला ‘व्यापम’ से कई गुणा बड़ा है. दरअसल, स्कूल के संचालक से सांठ-गांठ कर व मोटी रक़म लेकर उत्तर पुस्तिकाएं सीधे स्कूल संचालक को घर लिखने को दे दी जाती हैं और संचालक राजस्थान व अन्य प्रदेशों के छात्रों से 15 से 20 हज़ार रूपये प्रति छात्र लेकर घरों पर या अपने नीजि स्कूल में फ़र्ज़ी तरीक़े से लिखवा कर उत्तर पुस्तिकाएं बोर्ड को भेज दी जाती हैं.’

हैरानी की बात है कि मध्य प्रदेश में NIOS के परीक्षा में स्थानीय छात्र कम और राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, जम्मू-कश्मीर आदि के छात्र ज़्यादा होते हैं, जिन्हें घर बैठे डिग्री हासिल हो जाती है.

कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती. दिखावे के तौर पर कुछ सेन्टरों पर परीक्षाएं आयोजित भी होती हैं. लेकिन इन सेन्टरों में भी शिक्षक छात्रों को खुलेआम नक़ल कराते हैं. इससे संबंधित कई न्यूज़ यहां के स्थानीय अख़बारों में प्रकाशित होती रही हैं.

उदाहरण के तौर पर दैनिक भास्कर के वेबसाइट पर मौजूद यह ख़बर पढ़ी जा सकती है.

ब्लैकबोर्ड तो साफ करा दिए, सीसीटीवी कैमरे में कैद हुए नकल कराने के फुटेज

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निजी स्कूल संचालक पर रुपए लेकर 10वीं 12वीं पास कराने की गारंटी लेने का आरोप

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इस तरह के अनेकों ख़बरें आए मध्य प्रदेश के अख़बारों में प्रकाशित होते रहते हैं. कुछ ख़बरों के कटिंग यहां भी देखा जा सकता है.

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NIOS के परीक्षा में यह धांधली इसलिए और भी गंभीर हो जाती है, क्योंकि यह परीक्षा 10वीं व 12वीं के स्तर पर हो रही है. इस स्तर पर जिन विद्यार्थियों को बग़ैर परीक्षा दिए या नक़ल कराकर डिग्रियों की सौगात बांटी जा रही है, उन छात्रों का आगे चलकर भविष्य क्या होगा, यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है. या तो ये छात्र आगे की पढ़ाई में इससे भी बड़े सौदेबाज़ी या घपलेबाज़ी को अंजाम देंगे या फिर कुंठित होकर अपना भविष्य चौपट कर लेंगे.

हालांकि यह मामला सौदेबाज़ी या घपलेबाज़ी से कहीं आगे का हो सकता है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखे गए एक पत्र में शिकायतकर्ता ने इस बात की ओर ध्यान केन्द्रित कराया है कि मध्य प्रदेश में चलने वाले इस घोटाले की जांच इसलिए अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि :-

1. यदि कोई छात्र/छात्रा नौकरी के लिए तय आयु-सीमा पार कर चुके हैं, तो NIOS के माध्यम से 10वीं में पुन: प्रवेश लेकर नए जन्म-तिथी के साथ पुनः नौकरी की तैयारी करते हैं.

2. यदि किसी पर कोई अपराधिक प्रकरण चल रहा है तो एक नए नाम से NIOS में 10वीं में प्रवेश ले सकते हैं. और फिर इस परीक्षा पास करने के बाद उसकी एक नई पहचान बन जाती है.

3. यदि कोई विदेशी नागरिक है तो वो भी फर्ज़ी दस्तावेज़ों के आधार पर NIOS में प्रवेश ले सकता है. 10वीं पास करने के बाद मूल निवासी प्रमाण-पत्र और अन्य दस्तावेज़ आसानी से बन जाते हैं.

4. यदि कोई 10वीं या 12वीं में अच्छे अंक प्राप्त नहीं कर पाया है तो वो दुबारा NIOS में दाखिला लेकर और कुछ पैसे खर्च करके अच्छे अंक हासिल कर लेता है.

शिकायकर्ता ने आरोप लगाया है कि NIOS का डिग्री लेने के लिए छात्रों कहीं जाने की ज़रूरत भी नहीं पड़ती, बल्कि शिक्षा माफिया 30-50 हज़ार रूपये लेकर मनचाही मार्कशीट छात्रों को उनके घर उपलबब्ध करा देते हैं. यह मार्कशीट भी असली होती है, क्योंकि परीक्षा की कॉपी छात्र नहीं बल्कि शिक्षा माफिया के लोग बैठकर लिखते हैं. शिकायतकर्ता ने अपने पीएम के नाम अपने शिकायत में चार कोचिंग सेन्टरों के नाम भी दिए हैं, जो इस कारोबार में अग्रणी हैं.

शिकायतकर्ता ने अपने इस शिकायत में NIOS में फैले भ्रष्टाचार के कई सबूत भी दिए गिनाए हैं. जैसे इस शिकायत में आरोप लगाया गया है कि –‘NIOS के भोपाल स्थित क्षेत्रीय केन्द्र के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. ए. के. शर्मा के स्वयं के पुत्र सिद्धार्थ शर्मा ने वर्ष 2010 में 1246872 रोल नम्बर के साथ CBSE से 12वीं की परीक्षा 67 प्रतिशत अंकों के साथ पास की. लेकिन फिर NIOS में सिद्धार्थ शर्मा ने साल 2011 में पुनः एकता हाई सेकेन्ड्री स्कूल, शिवपूरी में रोल नम्बर 100098103110 के साथ दाखिला लिया. जबकि सिद्धार्थ शर्मा का निवास भोपाल में है. एडमिशन फार्म NIOS के भोपाल स्थित क्षेत्रिय केन्द्र के कर्मचारी सीमा शर्मा द्वारा भरा गया. इस फार्म में पता भी भोपाल ही बताया गया. सिद्धार्थ शर्मा की किताबें, अकंसूची आदि भी भोपाल के पते पर ही भेजी गईं. लेकिन सिद्धार्थ ने परीक्षा शिवपूरी में दिया.’

शिकायतकर्ता का आरोप है कि –‘सिद्धार्थ शर्मा के परीक्षा में स्वयं उनकी माता रेखा शर्मा मूल्यांकनकर्ता थी. इस तरह से सिद्धार्थ ने अप्रैल 2011 की परीक्षा 90 प्रतिशत अंकों के साथ उत्तीर्ण हुए. जो अपने आप में एक रिकोर्ड है. क्योंकि विश्व के इस सबसे बड़े ओपन स्कूल में आज तक कोई भी छात्र 90 प्रतिशत अंकों के साथ उत्तीर्ण नहीं हो सका है.’

भ्रष्टाचार का एक और सबूत नीचे के इस वीडियो में भी देखा जा सकता है :

ऐसे कई भ्रष्टाचार के सबूत हैं, जो किसी को भी हैरान कर देने के लिए काफी है. साथ ही इन भ्रष्टाचार के सबूतों की जांच होनी अत्यंत आवश्यक है.

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हैरानी की बात यह है कि शिकायतकर्ता ने NIOS के परीक्षा में होने वाली धांधली के तमाम सबूत इस देश के तकरीबन तमाम जांच एजेन्सियों को भेज दिया है. यहां तक कि अपने शिकायत द्वारा इस देश के प्रधानमंत्री को भी अवगत करा दिया है. लेकिन बावजूद इसके मध्य प्रदेश में इस ‘धांधली का यह खेल’ बदस्तूर जारी है. धांधली करने वाले अधिकारी भी निश्चित हैं क्योंकि उन्हें पता है कि इस प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान हैं. जब व्यापम जैसे मामले में किसी का कुछ बाल बांका नहीं हुआ तो इस मामले में भी कोई जांच नहीं होनी है.

मध्य प्रदेश का घोटालों के गढ़ में तब्दील होते जाना, इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि सिस्टम में कुछ न कुछ बड़ी गंभीर खामी ज़रूर है. शिक्षा के व्यावसायीकरण से कमाई और उगाही की यह तस्वीर बेहद ही डराने वाली है. एक ओर इस व्यवस्था के ज़रिए सफल होकर निकले युवकों के हाथ में जो ज़िम्मेदारियां होंगी, संदेह की घेरे में होंगी और दूसरी ओर असली योग्य युवक अवसरों के अभाव में कुंठा व निराशा में घुट कर जीने को मजबूर होंगे. यही मध्य प्रदेश का कड़वा सच है.

‘पाकिस्तान ज़िन्दाबाद’ का नारा लगाने वाले एबीवीपी नेताओं को बचा रही है केन्द्र सरकार

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TwoCircles.net News Desk

लखनऊ :दिल्ली के पटियाला कोर्ट के भीतर जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार, जेएनयू के प्रोफेसरों और छात्रों पर भाजपा विधायक ओपी शर्मा और संघ परिवार से जुड़े आतंकियों द्वारा हमले की रिहाई मंच ने कड़ी निंदा की है.

मंच ने आरोप लगाया है कि पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लगाने वाले एबीवीपी के कार्यकर्ताओं को भाजपा सरकार बचा रही है और देश में लोकतंत्र को बचाने के लिए आवाज उठाने वालों के खिलाफ मुक़दमा दर्ज कर रही है.

रिहाई मंच द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में मंच के अध्यक्ष एडवोकेट मोहम्मद शुऐब ने कहा कि जिस तरह जेएनयू के छात्र संघ अध्यक्ष और शिक्षकों को भाजपा विधायक और साम्प्रदायिक गुंडों ने कोर्ट परिसर के अंदर पीटा, उससे साबित होता है कि संघी तत्वों को मोदी सरकार ने अब अदालतों के अंदर पहुंच कर भी गुंडागर्दी करने की छूट दे दी है.

उन्होंने कहा कि ऐसी शर्मनाक घटना के बाद तो खुद सुप्रीम कोर्ट को भी इस आपराधिक कृत्य का संज्ञान लेकर भाजपा विधायक को निलम्बित कर देना चाहिए.

रिहाई मंच के अध्यक्ष ने कहा कि जेएनयू के अंदर पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लगाने वाला छात्र व छात्राएं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े हैं, जिसका वीडियो सुबूत भी सोशल मीडिया पर वाइरल हो चुका है.

उन्होंने कहा कि गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि वो जेएनयू की घटना को बर्दाश्त नहीं करेंगे तो वहीं गृह राज्य मंत्री किरन रिजूजु ने कहा था कि वो देशद्रोहियों का गढ़ इसे नहीं बनने देंगे. आज जब वीडियो की वास्तविकता सामने आ गई है कि एबीवीपी के नेता पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे, तो आखिर उनके खिलाफ़ कार्रवाई से भाजपा सरकार क्यों बच रही है. राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल रहने का इतिहास रखने वाले संघ और भाजपा के दबाव में मीडिया इस वीडियो को नहीं दिखा रहा है. जिससे मीडिया और भाजपा का गठजोड़ खुलकर सामने आ गया है.

उन्होंने कहा कि जिस तरीक़े से भाजपा नेताओं ने जेएनयू की छात्राओं पर अभद्र टिप्पणी की उससे भाजपा की महिला विरोधी अश्लील मानसिकता फिर उजागर हुई.

रिहाई मंच नेता राजीव यादव ने कहा कि राजनाथ सिंह कन्हैया कुमार और उनके साथियों को हाफिज़ सईद से जुड़ा बता रहे हैं. जबकि कई आतंकी घटनाओं में शामिल पाए गए संघ परिवार के आतंकियों के चार्जशीट में खुद इन आतंकियों ने खुलासा किया है कि संघ परिवार के नेता इंद्रेश कुमार आईएसआई के एजेंट हैं.

उन्होंने कहा कि एनआईए और खुफिया एजेंसियों के हवाले से जिस तरह गृहमंत्री यह दावा कर रहे हैं, जेएनयू के छात्रों का सम्बंध हाफिज़ सईद से है, उससे एक बार फिर उजागर हो गया है कि खुफिया और सुरक्षा एजेंसियां संघ परिवार के आनुषांगिक संगठन के बतौर काम कर रही हैं.

उन्होंने कहा कि एनआईए को पाकिस्तान में बैठे हाफिज़ सईद और जेएनयू के छात्रों के बीच झूठे सम्बंधों की अफ़वाह फैलाने के बजाए इशरत जहां की हत्या का आदेश देने वाले सफेद और काली दाढ़ी को गिरफ्तार कर अपनी विश्वसनियता बहाल करानी चाहिए. क्योंकि जिस काली और सफेद दाढ़ी को पूरा देश जानता है कि ये मोदी और अमित शाह के लिए कहा जा रहा है, उसे अगर एनआईए नहीं समझ पाती है तो इससे उसकी पेशेवर क्षमता पर भी सवाल उठ जाता है.

राजीव यादव ने यह भी कहा कि राजनाथ सिंह को जेएनयू के छात्रों और पाकिस्तान में बैठे आतंकी हाफिज सईद के सम्बंधों की जांच के बजाए खुद अपनी और संघ परिवार की दुदांर्त महिला आतंकी साध्वी प्रज्ञा के साथ गोपनीय बैठक की तस्वीर पर स्पष्टीकरण देना चाहिए कि वो उस आतंकी के साथ किस आतंकी घटना की साजिश रच रहे थे.

उन्होंने यह भी कहा कि साध्वी प्रज्ञा की गिरफ्तारी पर राजनाथ सिंह उस समय उसके बचाव में खड़े हुए थे और उनके संघी गिरोह ने उनके ऊपर पुष्प वर्षा भी करवाया था.

उन्होंने सुझाव दिया कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहाकर अजित डोभाल के लिए पाकिस्तान जाकर हाफिज़ सईद को गिरफ्तार करके पूछताछ करने से ज्यादा आसान और कम खर्चीला है कि वे गृहमंत्री राजनाथ सिंह से साध्वी प्रज्ञा जैसी फिदाईन आतंकी से सम्बंधों की पड़ताल करें ताकि देश की जनता सुरक्षित महसूस कर सके.

कांग्रेस ‘दलित कॉनक्लेव’ के तर्ज पर अब ‘अल्पसंख्यक कॉनक्लेव’ की तैयारी में

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TwoCircles.net News Desk

पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र कांग्रेस एक बार फिर से देश के अल्पसंख्यकों को अपने पक्ष में करने की प्रक्रिया में जुट गई है. इसी प्रक्रिया के तहत कांग्रेस आने वाले समय में ‘दलित कॉनक्लेव’ के तर्ज पर ‘अल्पसंख्यक कॉनक्लेव’ करने की तैयारी में है.

कांग्रेस से जुड़े एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक़ –‘पार्टी सभी प्रदेशों में ‘अल्पसंख्यक कॉनक्लेव’ की तारीखों को अंतिम रूप देने की तैयारी कर रही है. इस कॉनक्लेव में खास तौर पर मुसलमानों को शामिल करने पर ज़ोर दिया जाएगा. लेकिन पार्टी की कोशिश है कि इस ‘अल्पसंख्यक कॉनक्लेव’ में सिर्फ मुसलमान ही नहीं, बल्कि सिक्ख, ईसाई और जैन समुदाय से जुड़े लोग भी हिस्सा लें.’

कांग्रेस विधानसभा चुनाव के ऐलान से पहले पश्चिम बंगाल, असम और केरल में खासतौर पर कॉनक्लेव में तैयारी में जुट गई है. उसके बाद कांग्रेस ‘अल्पसंख्यक कॉनक्लेव’ पूरे देश में आयोजित करेगी ताकि सभी अल्पसंख्यक समुदायों का भरोसा जीता जा सके.

इसी भरोसा जीतने की प्रक्रिया में पार्टी ने एआईसीसी के अल्पसंख्यक विभाग में भी कई अहम बदलाव किए हैं. पार्टी ने पहली बार अपने अल्पसंख्यक विभाग में सिक्ख, जैन और ईसाई समुदाय से संबंध रखने वाले नेताओं को उपाध्यक्ष बनाया है.

कुछ राज्यों में यह ‘अल्पसंख्यक कॉनक्लेव’ वहां होने वाले ‘ओबीसी कॉनक्लेव’ के साथ ही आयोजित किए जाएंगे. इसी तरह का एक ‘कॉनक्लेव’ 20 फरवरी को आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में आयोजित किया जा रहा है.

सर्वोच्च न्यायालय को एक भारतीय मुस्लिम का ख़त

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By TwoCircles.net Staff Reporter

दिल्ली:देश में हालात अच्छे नहीं होने के कई प्रमाण हैं. नहीं कहा जा सकता कि लेखक, फिल्मकार, साहित्यकार, विचारक, वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री और कलाकार - सभी के सभी झूठ बोल रहे हैं या पैसे खा रखे हैं. ज़ाहिर है कि कहीं कुछ न कुछ तो गड़बड़ है कि मुखालफ़त में इतनी आवाजें उठ रही हैं.

Poem of Devi Prasad Mishra on 16th May

पाठकों के लिए हम लाए हैं एक आम भारतीय मुस्लिम का सुप्रीम कोर्ट के लिए लिखा गया ख़त. पढ़ें -

26 जनवरी, 2016

सेवा में,
माननीय मुख्य न्यायाधीश एंव अन्य न्यायमूर्ति गण
उच्चतम न्यायालय, भारत संघ
नई दिल्ली

आदरणीय,

आदाब व आभार

मैं भारत के एक जन्मजात नागरिक के रूप में अपने देश के सर्वोच्च न्यायालय एवं न्यायाधीशों को लिखित रूप से सम्बोधित करने का यह अवसर पाते हुए गौरव एवं हर्ष महसूस कर रहा हूं और सबसे पहले अपने पैदा करने वाले मालिक अल्लाह परम परमेश्वर के प्रति समर्पण व शुक्र की भावना अर्पित करता हूं कि उसने मुझे इसकी योग्तया, क्षमता एवं साहस प्रदान किया. इसके बाद मैं देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था एवं संविघान के प्रति धन्यवाद व्यक्त करता हूं जिसने मुझे यह अधिकार एवं आज़ादी दी है कि मैं क़ानून और मर्यादा का पालन करते हुए न्यायिक व्यवस्था की प्रहरी सन्सथा के समक्ष अपने मन की वेदना व्यक्त कर सकूं.

आदरणीय,
मैं इस बहुसांस्कृतिक, विविधतापूर्ण और संघीय व्यवस्था वाले भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक मुस्लिम नागरिक हूं. अर्थात मैं इस्लाम धर्म को मानने और उस पर चलने वाले मुस्लिम समुदाय का सदस्य हूं जो भारत की राजनीतिक एंव सामाजिक व्यवस्था में सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में पहचाना जाता है. संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के अनुरूप हमारे संविधान में भी अल्पसंख्यक समुदायों के सम्बन्ध में विशेष प्रावधान हैं जिनके अन्तर्गत मुझे, एक आम नागरिक के व्यक्तिगत अधिकारों से इतर, एक अल्पसंख्यक समुदाय का सदस्य होने के रूप में भी सुरक्षा, सम्मान एवं विकास की ज़मानत दी गयी है और मेरे समुदाय को भी सामूहिक रूप से यह ज़मानत दी गयी है कि उसके मान सम्मान और आस्था की आज़ादी की हिफ़ाज़त की जाएगी. इन समस्त अधिकारों से सशक्त होने की भावना के साथ मैं न्यायपालिका के समक्ष कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों की चर्चा करने का साहस जुटा रहा हूं जिन पर गम्भीरता से विचार करने की ज़रूरत है.

महोदय,
दुनिया के अन्य देशों एवं क्षेत्रों की तरह भारत भी इतिहास के विभिन्न कालों में अपने निवासियों, संस्कृति एंव भूगोल की दृष्टि से विभिन्न प्रकार के रूप लेता और बदलता हुआ आधुनिक भारत के रूप में विकसित हुआ है. इतिहास का कोई भी काल किसी भी क्षेत्र के लिए इस रूप में आदर्श और चिरस्थायी नहीं हो सकता कि उसे उस क्षेत्र का मूल स्वरूप कहा जा सके और आने वाले समय में उस विशेष युग का रूप प्राप्त करने को उसका लक्ष्य मान लिया जाए. प्रकृति की यह अटल जटिलता भारत के लिए भी एक तथ्य है.

अतः, आज जिस रूप में हम एक भारत राष्ट्र हैं वही आज इसका वास्तविक स्वरूप है. यह स्वरूप 1947 में ब्रिटिश की उपनिवेशी सत्ता से मुक्त होने के बाद एक सर्वमान्य संविधान के आधार पर विकसित हुआ है जिसके अनुसार भारत एक धर्मनिर्पेक्ष लोकतान्त्रिक समाजवादी गणराज्य है. इसका कोई सरकारी धर्म नहीं है और यह किसी समुदाय विशेष के गठन एवं विकास के लिए समर्पित नहीं है. बल्कि, यह यहां विद्यमान हर सांस्कृतिक, भाषाई एंव धार्मिक समुदाय का संयुक्त देश है जहां समाज की हर इकाई एंव समूह को जीने और समृद्ध होने का बराबर से अधिकार प्राप्त है. इसी संविधान के आधार पर देश की सारी व्यवस्था टिकी है और शासन के तमाम स्तम्भ, निकाय और संस्थाएं इसी संविधान पर आधारित हैं.

इस संविधान को मानना और इसके मूल ढांचे को स्वीकार करना ही इस राष्ट्र का नागरिक होने की वैधता का आधार बनता है. कोई व्यक्ति या समुदाय यदि इस व्यवस्था को अस्वीकार करने की घोषणा करता है तो वह स्वयं अपने नागरिक अधिकारों के इस आधार को तोड़ता है और नागरिक होने की पात्रता खो देता है.

इस आधुनिक भारत के गठन की पृष्टभूमि में यहां के दो बड़े धार्मिक समुदायों के बीच सांस्कृतिक और ऐतिहासिक कारणों से परस्पर विरोध का एक महत्वपूर्ण तथ्य निहित है. ये दो बड़े समुदाय यानि हिन्दू व मुसलमान अपने हितों की सुरक्षा के लिए एक दूसरे से आशंकित चले आ रहे हैं. हालांकि परस्पर मतभेदों और आशंकाओं की यह स्थिति केवल इन दो समुदायों के बीच की ही समस्या नहीं है बल्कि इस विविधतापूर्ण देश के सभी वर्ग अपने सामूहिक हितों के लिए दूसरों से आशंकित रहते हैं. लेकिन इन सबके बीच सन्तुलन और न्याय स्थापित करने के लिए हमारा संविधान सबके अधिकारों और सीमाओं को स्पष्ट तरीक़े से निर्धारित करता है और यही वह सूत्र है जो समस्त विरोधाभासी तत्वों को एक संयुक्त राष्ट्र के रूप में गठित करता है.

अतएव, संविधान और संविधान की मूल भावना के अनुसार बनने वाले क़ानून देश के सभी समुदायों के बीच सामंजस्य बनाए रखने और शान्ति व सौहार्द को स्थापित रखने का माध्यम है, और संविधान व क़ानून के अनुसार शासन की निगरानी का दायित्व रखने वाली संस्था - न्यायपालिका – हर देशवासी अथवा वर्ग के लिए अपने हितों की सुरक्षा का अन्तिम सहारा है.

देश की शासन व्यवस्था के इस ग्रहणबोध (perception) के साथ, मैं न्यायपालिका का ध्यान इस तथ्य की ओर दिलाना चाहता हूं कि बहुसंख्यक हिन्दू समुदाय के प्रतिनिधित्व का दावा करने वाला एक संगठित वर्ग देश की मौजूदा व्यवस्था को नकारता है और देश को एक हिन्दू राष्ट्र घोषित करता है. इस वर्ग की अगुवाई करने वाला संगठन राष्ट्रीय स्वंयंसेवक संघ के नाम से जाना जाता है जिसके असंख्य लघु संगठन हैं जो विभिन्न क्षेत्रों में इस विचारधारा के साथ सक्रिय हैं. इन सभी संगठनों को सामूहिक रूप से संघ परिवार की संज्ञा दी गयी है.

यह संघ परिवार स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद लोकतान्त्रिक, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी गणराज्य के रूप में गठित आधुनिक भारत की स्थापना के समय से ही इस दिशा में काम कर रहा है कि देश को एक हिन्दू राष्ट्र के रूप में परिवर्तित कर दिया जाए. इस ने देश के मौजूदा स्वरूप को स्वीकार नहीं किया है और अपनी इस स्थिति को यह स्पष्ट रूप से घोषित भी करता है. इस परिवार ने धीरे-धीरे हिन्दू समुदाय की सामूहिक भावना को प्रतिपादित करने वाले वर्ग का रूप ले लिया है.

किसी विचारधारा या आस्था में विश्वास रखना और उसका प्रचार करना तथा उसके पक्ष में जनमत बनाने का प्रयास करना देश के संविधान के अनुसार हर वर्ग और समुदाय का मौलिक अधिकार है, इसलिए संघ परिवार के उपरोक्त प्रयासों पर, यदि वे क़ानून के अऩ्तर्गत हों तो, कोई आपत्ति नहीं की जा सकती. लेकिन मैं जिस बात पर आपत्ति जताने के लिए इऩ मुद्दों को न्यायपालिका के समक्ष उठा रहा हूं, वह यह है कि यह अधिकार जिसे संविधान ने दिए हैं उसे नकार के तथा उसका उल्लंघन करके क्या ये अधिकार उपयोग में लाए जा सकते हैं?

देश का बहुसंख्यक समुदाय या उसके प्रतिनिधित्व का दावा करने वाला कोई वर्ग यदि अपनी आस्था के ढांचे और अपनी आदर्श व्यवस्था का कोई स्पष्ट स्वरूप और उसकी संस्थागत व्याख्या को दर्शन व विचारधारा के रूप में देशवासियों के सामने लाए, उसकी ओर बुलाए और लोग उसे स्वेच्छा से स्वीकार करें, और समस्त देशवासी अपनी पिछली आस्थाओं को त्याग कर इस समुदाय या वर्ग की आस्था को अपना लें, तो यह एक संवैधानिक प्रक्रिया हो सकती है और इसी प्रक्रिया के फलस्वरूप वह काल्पनिक स्थिति प्राप्त करने की कल्पना की जा सकती है कि समस्त देशवासी आम सहमति से राष्ट्र को नया स्वरूप दें. लेकिन समस्त देशवासियों पर किसी एक वर्ग की संस्कृति और राजनीतिक विचारधारा को थोपने और उस विचारधारा के अनुसार देश के संवैधानिक ढांचे को ज़बरदस्ती परिवर्तित करने का वातावरण बनाने का कोई भी प्रयास पूरी तरह से ग़ैरक़ानूनी, संविधान विरोधी और राष्ट्र के अस्तित्व व चरित्र को नुक़सान पहुंचाने की कार्रवाई है.

लेकिन हैरत और चिन्ता की बात है कि संविधान के आधार पर खड़ी व्यवस्था के ढांचे की मौजूदगी में और संविधान के अनुसार शासन को सुनिश्चित करने वाली व्यवस्था की मौजूदगी में एक समुदाय या उसके प्रतिनिधित्व का दावा करने वाला वर्ग देश के हिन्दू राष्ट्र होने की घोषणा करता है लेकिन व्यवस्था और शासन के अंग इसका नोटिस नहीं लेते.

जो वर्ग भारत को हिन्दू राष्ट्र समझता और घोषित करता है और व्यवस्था को ज़ोर ज़बरदस्ती बदलने के प्रयासों में लगा हुआ है, उसकी अगुवाई करने वाले संगठन राष्टीय स्वयंसेवक संघ द्वारा गठित राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी के नाम से राजनीति में सक्रिय है, और इस समय केन्द्र सरकार की सत्ता संभाले हुए है. यह विडम्बना है कि संविधान के आधार पर रजिस्ट्रीकरण करके संविधान की शर्तों के अनुसार कोई संगठन राजनीति में सक्रिय हो, जनमत प्राप्त करे और संविधान की शपथ लेकर देश की सत्ता को हाथ में ले, लेकिन उसकी आकांक्षाएं और लक्ष्य उसी संविधान को खत्म कर देना हो, संवैधानिक चरित्र को बदल देना हो और देश को एक धर्मनिर्पेक्ष संयुक्त राष्ट्र के बजाए हिन्दू राष्ट्र में परिवर्तित कर देना हो.

इस मौजूदा सरकार की छत्रछाया में इस वर्ग के समस्त संगठन और विशेष रूप से आर.एस.एस व उससे जुड़े विभिन्न गुट व संगठन एंव इस विचारधारा से प्रभावित अंसख्य व्यक्ति देश को न केवल हिन्दू राष्ट्र कह रहे हैं बल्कि एक आक्रामक मुद्रा के साथ अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों व ईसाइयों को डराने व धमकाने वाला माहौल बनाए हुए हैं. मैं व्यक्तिगत रूप से अपनी और सामूहिक रूप से अपने समुदाय की मानसिक स्थिति व्यक्त करते हुए न्यायपालिका के सामने स्पष्ट रूप से यह घोषणा कर रहा हूं कि हमारे ख़िलाफ़ देश में घ्रृणा का एक माहौल बनाया जा रहा है. हमें डराया और धमकाया जा रहा है और हमारे ऊपर हमारी सामुदायिक पहचान करके निशाना बना कर जानलेवा हमले किए जा रहे हैं. हमारे ख़िलाफ़ गृहयुद्ध छेड़ने तैयारी की जा रही है और इसके लिए युवाओं को हथ्यार चलाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. हमारे खिलाफ़ घृणात्मक बयानबाज़ी करने वालों में सरकार के मन्त्री, सत्ताधारी दल के नेता और सरकार को समर्थन देने वाले संगठनों के शीर्ष अधिकारी भी शामिल हैं. इसके अलावा, ख़ुफ़िया एजेन्सियां और पुलिस एंव मीडिया का एक वर्ग इस माहौल को बनाने में पूरा सहयोग दे रहे हैं.

इस स्थिति को मैं माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष रखते हुए उसका ध्यान उसकी अपनी संस्थागत ज़िम्मेदारियों की ओर दिला रहा हूं. संविधान के अनुसार न्यायपालिका को यह अधिकार प्राप्त है कि वह देशवासियों के संवैधानिक अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए कार्यपालिका और प्रशासनिक व्यवस्था के अधिकारियों को आदेश दे सकती है. किसी वर्ग विशेष के ख़िलाफ़ घृणात्मक और भय पैदा करने वाली बयानबाज़ी भी क़ानून के अनुसार एक बड़ा अपराध है, और जब अदालत यह देखे कि इस तरह के संगठित प्रयास खुले आम किए किए जा रहे हैं, और सरकार या प्रशासन की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है तो अदालत को यह अधिकार प्राप्त है कि वह आज खुद इसका नोटिस ले.

देशहित में न्यायालयों द्वरा कई मुद्दों पर स्वंयप्रेरित कार्रवाइयों (Suo moto actions) के परिप्रेक्ष्य में, मैं यह देख कर मायूस होता हूं कि देश की सामाजिक एकजुटता अर्थात राष्ट्रीय एकता को आघात पहुंचाने वाली बड़ी बड़ी कार्रवाइयों और महत्वपूर्ण व्यक्तियों की बयानबाज़ियों पर प्रशासन की ओर से अपेक्षित कार्रवाई न होने के बावजूद माननीय न्यायालय ने स्वंयप्रेरित कार्रवाई के अपने अधिकार को उपयोग और व्यक्त नहीं किया है. लेकिन अब इसकी ज़रूरत बहुत ज़्यादा बढ़ गयी है और व्यवस्था में देशवासियों का विश्वास बनाए रखने के लिए यह ज़रूरी है कि अदालत क़ानून और संविधान की प्रहरी बन कर सामने आए.

इसी के साथ मैं यह बिन्दु भी माननीय न्यायालय के समक्ष रखना ज़रूरी समझता हूं कि देश को हिन्दू राष्ट्र कहने, समझने और बनाने के लिए प्रतिबद्ध वर्ग यदि देश के बहुसंख्यकों का प्रतिनिधित्व करता है, और बहुसंख्यक समाज यदि देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने का पक्षधर है तो इसके लिए नैतिकता, मर्यादा और मानवीय सभ्यता की स्वस्थ परम्पराओं का पालन करते हुए संवैधानिक प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए. संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में देश के सभी वर्गों के बीच देश और देशवासियों का भविष्य निर्धारित करने के लिए गम्भीर वार्ताओं का प्रबन्ध किया जाना चाहिए. मौजूदा व्यवस्था को छल और बल के साथ बदल देने के प्रयास पूरे देश के लिए घातक होंगे और कोई भी समुदाय सुख शान्ति के साथ प्रगति एंव विकास के पथ पर आगे बढ़ने के अवसर प्राप्त नहीं कर सकेगा.

मैं इस पत्र को प्राप्त करने और गम्भीरता के साथ इस पर विचार करने का निवेदन करते हुए एक बार फिर आपके प्रति आभार व्यक्त करता हूं.

धन्यवाद,
अदील अख़तर शमसी
दिल्ली


कन्हैया पर हमला : मोदी सरकार की फासीवादी कारगुजारी!

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TwoCircles.net News Desk

पटना :माननीय सुप्रीम कोर्ट ने दो दिनों पूर्व पटियाला हाउस कोर्ट के अंदर छात्रों, शिक्षकों और पत्रकारों की भाजपाई वकीलों के एक ग्रुप द्वारा बुरी तरह पिटाई किए जाने की घटना का संज्ञान लेते हुए दिल्ली पुलिस को सख्त निर्देश जारी करते हुए आज की पेशी के समय पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चत करने हेतु आवश्यक निर्देश दिए थे.

लेकिन बावजूद इसके दिल्ली पुलिस ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का कोई खास पालन नहीं किया.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के बिहार राज्य सचिव सत्य नारायण सिंह का आरोप है कि कोर्ट परिसर के बाहर भाजपा समर्थक उत्पातियों, जिनमें कुछ वकील के वेश में थे, द्वारा कन्हैया कुमार के पक्षकार वकीलों के साथ-साथ पत्रकारों की पिटाई करने और उसके बाद कन्हैया कुमार पर भी कोर्ट रूम के बाहर और भीतर घुसकर प्रहार किये जाने की घटना को मूकदर्शक बनकर देखती रही.

सत्य नारायण सिंह ने भाजपा-संघी उन्मादी वकीलों द्वारा किए गये इस हमले की तीखी भर्त्सना करते हुए इसे मोदी सरकार की फासीवादी कारगुजारी की संज्ञा दी है.

भाकपा नेता ने इस पूरे घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि –‘यह स्पष्ट है कि भाजपा-संघ परिवार एक सोची समझी रणनीति के तहत दीर्घकालिक व्यूह रचना कर ऐसी कार्रवाईयों को अंजाम दे रहा है. दिल्ली पुलिस कमिश्नर उनके हाथों की पठपुतली की तरह काम कर रहे हैं और गृहमंत्री समेत संपूर्ण गृह मंत्रालय, ऐसा प्रतीत होता है, इन फासीवादी कार्रवाइयों का मुख्यालय बन गया है.’

भाकपा के राज्य इकाई ने सरकार से यह मांग की कि कन्हैया कुमार पर से सभी झूठे मुक़दमें वापस लिए जाएं. उन्हें अविलंब रिहा किया जाए और उपरोक्त घटनाक्रम में शामिल उत्पाती-उन्मादी सभी लोगों को गिरफ्तार कर उन्हें कठोर दंड दिए जाएं, जो लोकतांत्रिक मूल्यों और संस्थाओं, विशेषकर न्यायापालिका तक के लिए गंभीर ख़तरे के रूप में सिर उठा रहे हैं.

स्पष्ट रहे कि आज कोर्ट में मामला ऐसा बढ़ा कि सुप्रीम कोर्ट को तत्काल हस्तक्षेप करते हुए केस की सुनवाई को रोकने और कोर्ट रूम को खाली करने का आदेश देते हुए अपने वकीलों का एक दल पूरी घटना की जांच के लिए भेजना पड़ा. लेकिन शरारती तत्वों ने इस दल पर भी हमला बोलकर लोकतंत्रिक मर्यादा और मानवीय व्यवहार की सारी हदें पार कर दीं.

सुप्रीम कोर्ट के द्वारा भेजे गये इस दल ने घटना की पुष्टि कर दी. उसके बाद माननीय न्यायालय ने दिल्ली पुलिस कमीश्नर से जवाब तलब किया कि क्या वह कन्हैया कुमार की हिफ़ाज़त की व्यक्गित ज़िम्मेवारी लेने को तैयार है? यदि नहीं, तो सुप्रीम कोर्ट खुद उनकी सुरक्षा के इंतज़ाम करेगी. इसके बाद कन्हैया को डॉक्टरी जाँच के उपरांत 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में तिहाड़ जेल भेज दिया गया है.

‘देशद्रोह’ को चाहिए मुस्लिम चेहरा!

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Afroz Alam Sahil, TwoCircles.net

देशद्रोह… कन्हैया कुमार… जेएनयू… लगभग पिछले दस दिनों से देश की राजनीति, ख़बरें, मुहल्ले की चर्चाएं इन तीन शब्दों में सिमटी नज़र आती हैं. कन्हैया कुमार देशद्रोह का चेहरा बन गए हैं और जेएनयू इसका अड्डा. लेकिन ‘देशप्रेम’ और ‘देशद्रोह’ की राजनीति करने वाले जानते हैं कि कन्हैया कुमार को ‘देशद्रोह’ का ‘पोस्टर ब्वाय’ बनाना अन्त में उनके लिए फ़ायदे का सौदा साबित नहीं होगा.

इसलिए यह बहुत ज़रूरी है कि अब इस ‘देशद्रोह’ मामले को कोई मुस्लिम चेहरा दे दिया जाए. क्योंकि अफ़ज़ल गुरू के साथ कन्हैया कुमार को जोड़ना उनको अटपटा लगता है और इससे उनके राजनीतिक हित भी नहीं सधते. कट्टर हिन्दूवादी संगठन वामपंथियों के ख़िलाफ़ रहे हैं. और कन्हैया कुमार भी वामपंथी हैं. लेकिन बौद्धिक स्तर पर यह एक सीमित समूह के लिए तो इन दोनों का टकराव समझ में आने की बात हो सकती है, लेकिन आम जनता के लिए कन्हैया कुमार एक हिन्दू ही हैं या कम से कम उनका नाम तो हिन्दू ही है.

दरअसल, रोहित वेमुला प्रकरण पहले ही हिन्दूवादियों को चोट पहुंचा चुका है और बहुजनों व ब्रहमणों के बीच खाई स्पष्ट दिखाई देने लगी है. अब हिन्दूवादी संगठन एक और हिन्दू चेहरे को ज़्यादा दिनों तक ‘राष्ट्रद्रोही’ के रूप में प्रचारित करके नुक़सान नहीं उठाना चाहेंगे. इसलिए बहुत मुमकिन है कि कन्हैया कुमार ज़मानत पर बाहर आ जाएं और जेएनयू में हुए नारेबाज़ी के लिए कुछ मुस्लिम चेहरों को गिरफ़्तार कर लिया जाए. फिर देशद्रोह का ठप्पा अपनी सही जगह पर लगेगा या कम से कम उस जगह जिससे हिन्दूवादियों को फ़ायदा है.

मुसलमानों को देशद्रोही के रूप में प्रचारित करना राजनीतिक रूप से धर्म की राजनीति करने वालों के लिए फायदे का सौदा होगा. इसलिए अगर राष्ट्रद्रोह का कोई मुस्लिम चेहरा आपके सामने आ रहा है तो चौंकिएगा मत. यह एक सोची-समझी एक रणनीति के तहत उठाया गया हिन्दूवादी सत्ता का अगला राजनीतिक क़दम भी हो सकता है.

मीडिया ने तो उमर खालिद नाम का एक चेहरा भी चुन लिया है. टीवी स्क्रीन पर लाल घेरों में उसका चेहरा भी दिखाया जाने लगा है. टीवी चैनलों के एंकर नाम लेकर उसे देशद्रोही बताने में जुट गए हैं.

मीडिया के ज़रिए बताया जा रहा है कि उमर खालिद ‘देशद्रोही नारों’ का ‘मास्टरमाईंड’ है. बल्कि कुछ टीवी चैनलों ने तो उसे आतंकी संगठनों से भी जोड़कर यह भी बता रहे हैं कि उमर खालिद पाकिस्तान जाकर ट्रेनिंग भी ले चुका है. एक चैनल का तो यह भी दावा है कि इसके संबंध आईएसआईएस से भी हैं.

Protest for Umar Khalid

ख़ैर, कन्हैया के बाद अब दिल्ली पुलिस को उमर खालिद की तलाश है. उमर खालिद पर गंभीर आरोप है कि उसने जेएनयू में अफ़ज़ल गुरू की याद में ‘शहीदी दिवस’ मनाते हुए ‘भारत विरोधी’ नारे लगाएं. ये आरोप बेहद ही गंभीर हैं. अगर इसमें सच्चाई है तो उमर ख़ालिद पर निसंदेह कार्रवाई होनी चाहिए.

मगर यहां कुछ सवाल भी खड़े होते हैं कि आख़िरकार दिल्ली पुलिस अभी तक उमर ख़ालिद की कथित ‘भारत विरोधी’ गतिविधियों का सबूत क्यों नहीं पेश कर रही है? आख़िर मीडिया द्वारा किस आधार पर उसे ‘भारत विरोधी’ साबित किया जा रहा है? क्यों अचानक उमर खालिद के नाम को रातों-रात आगे कर दिया गया है? क्यों मीडिया में सारी बहस एक ही नाम पर केन्द्रित होती जा रही है? जबकि उमर के साथ बनोज्योत्सना लाहिरी, अनिर्बन भट्टाचार्या, कोमल भारत मोहिते जैसे 9 और छात्र-छात्राओं का नाम हैं. उमर खालिद के बहाने कहीं ये विभाजनकारी राजनीत को चमकाने की कोशिश तो नहीं हो रही है?

इस मुल्क में किसी को भी भारत विरोधी गतिविधियां करने की इजाज़त नहीं दी जा सकती है. चाहे वो किसी भी नस्ल, धर्म-मज़हब, जाति का हो, मुल्क से गद्दारी किसी भी सूरत में किसी को भी मंज़ूर नहीं है. मगर क़ानून किसी भी तरह के गंभीर से गंभीर आरोपों का सबूत मांगता है. आख़िर क्यों उन सबूतों से मुंह चुराया जा रहा है? क्यों मीडिया उमर खालिद के घर वालों का पक्ष नहीं रख रही है. क्यों उमर के बैकग्राउंड पर तवज्जों नहीं दी जा रही है? यह सोचने वाली बात है कि जो शख्स इस्लाम को ही नहीं मानता, वो जेहादी कैसे बन गया?

यह सारे सवाल बेहद ही गंभीर हैं और संवेदनशील भी. इससे पहले कि ये सवाल साम्प्रदायिक राजनीति के चिंगारी का रूप ले ले, इसका जवाब हमें ज़रूर तलाश कर लेना चाहिए.

उमर खालिद जिस परिवार से ताल्लुक़ रखता है, वो लोग भी अब खुलकर सामने आ गए हैं. उनके मुताबिक़ उमर कम्यूनिस्ट सोच से प्रभावित है. वो मज़दूरों-किसानों समेत दबे-कुचले तबक़ों के हक़ की बात करता है, पर वो भारत विरोधी क़तई नहीं हो सकता. उनका यह भी कहना है कि जब उमर के पास पासपोर्ट ही नहीं है, तो पाकिस्तान कैसे चला गया?

उमर ख़ालिद के पिता डॉ. क़ासिम रसूल इलियास ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के एक्सक्यूटिव कमिटी के सदस्य और वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. वो पूरी ज़िम्मेदारी के साथ उमर का पक्ष रखते हुए बताते हैं कि –‘इस बात की खोज होनी चाहिए कि नारे किसने लगाएं? जो लड़का भारत के आम आदमी की लड़ाई लड़ रहा हो. देश के किसानों, दलितों और आदिवासियों की लड़ाई लड़ रहा हो. जिसकी पूरी ज़िन्दगी जंतर-मंतर पर शोषित वर्ग के अधिकारों के संघर्ष में गुज़र गई हो. जो भारत के आदिवासियों पर पीएचडी कर रहा हो. जिसे विदेशों से पढ़ने का ऑफर मिल रहा हो, लेकिन जिसने विदेशी स्कॉलरशिप को ठुकरा कर अपने देश में रहना पसंद किया हो, वो लड़का देशद्रोही कैसे हो सकता है.’

उनका स्पष्ट तौर पर कहना है कि –‘उमर को ज़बरदस्ती फ्रेम किया जा रहा है. वो एक बड़ी साजिश का शिकार हुआ है. उमर को देशद्रोही किस आधार पर कहा जा रहा है और वो आधार ‘देशद्रोह’ है या नहीं, इसका फैसला कोर्ट को करने दिया जाए तो बेहतर होगा.’

पिता के इन बातों को कुछ देर के लिए दरकिनार कर दिया जाए तो पूरे मामले में यह आशंका भी सर उठाती जा रही है कि कहीं उमर ख़ालिद के नाम पर पूरे मामले को साम्प्रदायिक रंग देने की कोशिश तो नहीं की जा रही है. जिस तरह से मीडिया ट्रायल चल रहा है और जिस तरह से बीजेपी ने इस मुद्दे को हाथों-हाथ उठा लिया है और अब जिस तरह से संसद समेत देश का माहौल गर्माने की तैयारी हो रही है, उसमें उमर ख़ालिद कहीं सबसे माकूल चेहरा तो नहीं साबित होगा? क्योंकि बीजेपी जिस पॉलिटिक्स की आदी हो चुकी है, उसके लिए तो उमर खालिद का नाम व चेहरा दोनों ही सुट करता है.

यहां यह भी स्पष्ट रहना चाहिए कि अगले कुछ महीनों व सालों में कई अहम राज्यों में चुनाव होने हैं. चुनावों को मुद्दा चाहिए. देश को मुसलमानों से ख़तरा हिन्दू वोटों को जोड़ने का मुद्दा हो सकता है.

कन्हैया कुमार के लिए हज़ारों लोग सड़कों पर भी उतरे हैं. प्रदर्शनों ने सरकार की नींद भी हराम की है. और कन्हैया को गिरफ़्तार किए जाने पर मीडिया में भी व्यापक चर्चा हुई है. लेकिन कल जब ‘देशद्रोह’ को एक मुस्लिम चेहरा मिलेगा तो न इस पर प्रदर्शन होंगे और न बहसें. होगा सिर्फ़ ये कि कुछ नौजवान देशद्रोही के आरोप में कुछ महीनों या सालों के लिए जेल चले जाएंगे और हिन्दूवाद के कट्टर समर्थकों को यह संदेश मिलेगा कि उनकी प्यारी सरकार मुसलमानों को उनकी जगह दिखा रही है. और साथ ही जेएनयू में कार्रवाई पर घिड़ी सरकार को इस मुद्दे का फ़ायदेमंद अन्त मिल जाएगा.

‘भारत का संविधान अमेरिका से भी बेहतर है’ –मंज़ूर ग़ोरी

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TwoCircles.net News Desk

नई दिल्ली:‘भारत का संविधान अमेरिका से भी बेहतर है. अमेरिका में लोगों को भोजन या शिक्षा का अधिकार नहीं है. लेकिन भारत का संविधान यहां के लोगों को शिक्षा और भोजन का अधिकार देता है. लेकिन असल समस्या यह है कि सरकार इन योजनाओं को लागू करने में ढिलाई बरतती है. ऐसे में इस देश में सामाजिक कार्य करने वाले लोगों व संस्थाओं की ज़रुरत बढ़ जाती है. हालांकि भारत में सामाजिक कार्य अब धीरे-धीरे ख़त्म हो रहे हैं. मुझे लगता है कि जनकल्याण की सही परिभाषा ही कहीं खो गयी है. जहां तक लोगों की बात है तो वे अपने ऐश व आराम पर बेइंतहा खर्च कर सकते हैं, लेकिन ज़रूरतमंद की मदद करने के लिए वे तैयार ही नहीं होते हैं.’

यह बातें बुधवार को दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया में आयोजित व्याख्यान में अमेरीकी संस्था ‘इन्डियन मुस्लिम रिलीफ़ एंड चैरिटीज़’ (IMRC) के संस्थापक व निदेशक मंज़ूर ग़ोरी ने कहा. यह व्याख्यान ‘भारतीय मुस्लिम, सामाजिक कार्य और जनकल्याण’ विषय पर केन्द्रित था.

IMRC

अपने सामाजिक कार्य की शुरुआत के बारे में बात करते हुए मंज़ूर ग़ोरी ने कहा कि -‘1983 में हुए असम के ‘नेल्ली क़त्लेआम’ के समय मैंने इस काम की शुरुआत की. घटना के तुरंत बाद मैं असम पहुंच गया और कार्य में जुट गया. उस दफ़ा पहली बार मुझे समाज की समस्याओं का पता लगा. उसके बाद से लेकर आज तक मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.’

हालांकि मंज़ूर ग़ोरी बताते हैं कि –‘अब भारत बदल चुका है. 50 साल पहले मैंने जिस भारत को देखा है, वो अब नहीं है. आख़िर क्यों?’

जामिया के सोशल वर्क विभाग के छात्रों को भारतीय मुस्लिम समुदाय की सामाजिक और आर्थिक स्थिति के बारे में बताते हुए मंज़ूर ग़ोरी ने यह सलाह दी कि वे सच्चर कमेटी की रिपोर्ट को ख़याल में रखते हुए भारतीय मुस्लिमों की हालत में सुधार के लिए समाज कार्य में अधिक से अधिक हिस्सा लें.

उन्होंने कहा, ‘युवा इस देश की रीढ़ की हड्डी हैं. इस देश में ज़रूरी आर्थिक और सामजिक बदलाव लाने के लिए युवाओं को जनकल्याण के कार्यक्रमों में भागीदारी दिखानी चाहिए.’

ऐसे प्रयासों और कार्यक्रमों की कमी पर ध्यान दिलाते हुए मंज़ूर ग़ोरी ने कहा कि लोगों की जिम्मेदारी बनती है कि वे आगे आएं और गरीब और वंचित तबकों के लिए काम करें.

मुस्लिम समुदाय को ज़कात देने के लिए प्रेरित करते हुए मंज़ूर ग़ोरी ने कहा कि मुस्लिमों का यह दान उनके समुदाय की भलाई में ही मदद करेगा. इसके बाद उन्होंने छात्रों को IMRC के कामकाज़ के बारे में बताया और स्वास्थ्य व शिक्षा के क्षेत्र में किए जाने वाले प्रयासों से रूबरू कराया.

IMRC

स्पष्ट रहे कि IMRC पिछले 35 सालों से सामाजिक कार्य कर रही है. इस संस्था की नींव साल 1981 में रखी गयी थी. तब से आज तक अमरीका की यह चैरिटेबल संस्था अन्य लगभग 100 संस्थाओं के साथ मिलकर देश के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में कई किस्म के कार्यक्रम चला रही है. संस्था का उद्देश्य ज़रूरतमंद तबके को शिक्षा, आपातकालीन सेवाएं, स्वास्थ्य व न्यायसम्बंधी ज़रूरतें, खाना और छत की ज़रूरतें मुहैया कराना है. असम दंगे 2012, मुज़फ्फ़रनगर दंगे 2013, 2014 की कश्मीर बाढ़ और 2015 की चेन्नई बाढ़ के वक़्त संस्था ने घरों-घरों तक जाकर लोगों को ज़रूरी सेवाएं प्रदान की हैं.

पत्रकार सादिक़ नक़वी से उमर ख़ालिद के ठिकानों के बारे में पूछताछ

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TwoCircles.net Staff Reporter

कन्हैया के बाद अब दिल्ली पुलिस को उमर खालिद की तलाश है. उसी तलाश में आज दिल्ली पुलिस की एक टीम ने उत्तर प्रदेश के बिजनौर शहर में उमर खालिद के एक पत्रकार दोस्त सादिक़ नक़वी से पूछताछ की है और आगे की पूछताछ के लिए उसे दिल्ली बुलाया गया है.

पत्रकार सादिक़ नक़वी उमर खालिद का दोस्त है. दिल्ली यूनिवर्सिटी में सादिक़ और उमर खालिद एक ही क्लास में थे. सादिक़ इन दिनों दिल्ली के ‘हार्ड न्यूज़’ नामक अंग्रेज़ी पत्रिका में काम कर रहा है.

दरअसल, सादिक़ बिजनौर के रहने वाला है. वो इन दिनों छुट्टी लेकर अपने घर गया था. जहां आज दिल्ली पुलिस के अधिकारियों की एक टीम ने उससे सम्पर्क किया और उमर खालिद के ठिकाने के बारे में पूछताछ की. साथ ही उसे दिल्ली आने को कहा गया.

एक ख़बर के मुताबिक़ सादिक़ बिजनौर से दिल्ली के लिए निकल चुका है और दिल्ली कुछ देर में पहुंच जाएगा.

दिल्ली पुलिस के दक्षिण ज़िले के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस घटनाक्रम की पुष्टि की है.

स्पष्ट रहे कि उमर खालिद पर आरोप है कि उसने जेएनयू में अफ़ज़ल गुरू की याद में ‘शहीदी दिवस’ मनाते हुए ‘भारत विरोधी’ नारे लगाएं थे. जबकि उमर खालिद के पिता डॉ. क़ासिम रसूल इलियास इस आरोप को बेबुनियाद बताते हैं. उनका कहना है कि -‘उमर को ज़बरदस्ती फ्रेम किया जा रहा है. वो एक बड़ी साजिश का शिकार हुआ है. उमर को देशद्रोही किस आधार पर कहा जा रहा है और वो आधार ‘देशद्रोह’ है या नहीं, इसका फैसला कोर्ट को करने दिया जाए तो बेहतर होगा.’

पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लगाने वाले ‘सावरकर के शिशुओं’ पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है? –रिहाई मंच

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TwoCircles.net News Desk

लखनऊ :रिहाई मंच ने जेएनयू प्रकरण में वहां के छात्र उमर खालिद को मीडिया के एक हिस्से द्वारा आतंकवाद से जोड़ने पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि खालिद के मुस्लिम होने के चलते उसके नाम पर अफवाहों को फैलाया जा रहा है, जिसमें केन्द्र की खुफिया और सुरक्षा एजेंसियां संलिप्त हैं.

रिहाई मंच के प्रवक्ता शाहनवाज़ आलम ने कहा कि जिस तरह से पहले कहा गया कि जेएनयू के छात्र पाकिस्तान समर्थक और देशद्रोही हैं और उसके बाद अब कहा जा रहा है कि नक्सल समर्थक छात्र संगठन डीएसयू के नेताओं ने नारे लगाए, यह मोदी और संघ परिवार के खिलाफ़ उभरते राष्ट्रव्यापी छात्र आंदोलन को भ्रम और अफ़वाह के ज़रिए साम्प्रदायिक रंग देकर तोड़ने की कोशिश है. जिस तरह से डीएसयू को इसके लिए जिम्मेदार बताया जा रहा है, वह संघी साजिश और मीडिया के वैचारिक दिवालिएपन का सबूत है. वामपंथी संगठन अन्तर्राष्ट्रीयतावाद में विश्वास करते हैं उनके लिए किसी देश का जिंदाबाद या मुर्दाबाद के नारे लगाने कोई एजेंडा नहीं होता.

उन्होंने मांग की कि इस मुद्दे में जिन जेएनयू के छात्रों को फ़रार बताया जा रहा है, उनकी सुरक्षा की गारंटी की जाए. इसके लिए देश का सर्वोच्च न्यायालय संज्ञान में लेकर उन छात्रों को इंसाफ़ देने की अपील करे, जिससे देश निर्माण के प्रति संकल्पित वो छात्र जो संघी आतंकवाद के खौफ़ के चलते अपने परिवारों से दूर हो गए हैं, वह वापस आ सके.

मंच ने कहा है कि लोकतंत्र में आस्था रखने वाला पूरा समाज इन छात्रों के परिवार के साथ खड़ा है.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि जिस तरह से उमर खालिद के पिता वरिष्ठ पत्रकार व सामाजिक-राजनीतिक क़ासिम रसूल इलियास का बयान आया कि सिर्फ मुस्लिम होने के नाते या फिर उनके पूर्व में सिमी से जुड़े होने के चलते उनके बेटे को इस घटना के लिए दोषी बताया जा रहा है, वह इस लोकतांत्रिक देश में बहुत दुखद है. इस लोकतंत्र में एक व्यक्ति को जब यह कहना पड़ जाए के उसके मुस्लिम होने के चलते उसके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जा रहा है, तो इससे बद्तर कुछ नहीं हो सकता.

उन्होंने कहा कि पोलिटिकल प्रिजनर्स कमेटी से जुड़े प्रो. एसएआर गिलानी को जिस तरह से मीडिया देशद्रोही बता रहा है, वह साबित करता है कि ऐसा खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों के इशारे पर किया जा रहा है. क्योंकि उनका संगठन नक्सलवाद और आतंकवाद के नाम पर इन एजेंसियों द्वारा फंसाए जाने वाले बेगुनाहों को छुड़ा कर उनके मुंह पर तमाचा मारता रहता है. रिहाई मंच नेता ने कहा कि ऐसे ही संगठनों के प्रयासों से न्याय व्यवस्था की कुछ गरिमा बची हुई है.

रिहाई मंच नेता राजीव यादव ने कहा कि जेएनयू प्रकरण पर यूपी के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का यह कहना कि देश में न जाने किस-किस मुद्दे पर बहस चल रही है, संस्थान चर्चा में व्यस्त हैं और वो उत्तर प्रदेश के विकास पर केन्द्रित हैं. यह गैर जिम्मेदाराना और बचकाना बयान है. ठीक यही भाषा मोदी की भी है जब गुजरात दंगों का सवाल उठता है तो वो विकास का भोंपू बजाने लगते हैं.

उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद को तोड़ने आए संघियों पर गोली चलवाने के लिए माफी मांगने वाले मुलायम सिंह को इस मसले पर अपनी राय रखनी चाहिए कि वे अफ़ज़ल गुरू की फांसी को सही मानते हैं या गलत.

उन्होंने कहा कि गृह राजमंत्री किरन रिजुजू जो कि जेएनयू प्रकरण के लिए वामपंथियों को दोषी ठहरा रहे हैं, उन्हें अपने छात्र संगठन एबीवीपी के उन कार्यकर्ताओं जिन्होंने अपने ही संगठन की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए एबीवीपी से इस्तीफा दे दिया है, पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए.

उन्होंने कहा कि सपा सरकार ने अपने प्रयास से जिस तरह वयोवृद्ध खालिस्तानी नेता 70 वर्षीय बारियाम सिंह को रिहा किया वह स्वागतयोग्य है, लेकिन सवाल उठता है कि आखिर आतंकवाद के नाम पर फंसाए गए मुस्लिम नौजवानों को सरकार क्यों जेलों में सड़ाने पर तुली है. जबकि उनको छोडने का वादा सपा ने अपने घोषणापत्र में किया था.

राजीव यादव ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर बस्सी जो पहले कन्हैया द्वारा देशद्रोही नारे लगाने के सबूतों के होने की बात कह रहे थे और अब किसी सुबूत के होने से ही इंनकार कर चुके हैं, पर टिप्पणी करते हुए कहा कि झूठे बयान देकर समाज में अराजकता फैलाने के आरोप में उनके खिलाफ़ कानूनी कार्रवई की जानी चाहिए.

उन्होंने कहा कि बस्सी ने जिस तरह खुल कर संघ और भाजपा के गुंडों को बचाया है, वांछित आरोपी वकीलों को गिरफ्तार करने के बजाए उन्हें साम्प्रदायिक वकीलाकें के गिरोहों द्वारा सम्मानित किए जाने के खुला छोड़ दिया, उससे पूरी पुलिस व्यवस्था ही अपमानित हुई है.

रिहाई मंच कार्यकारिणी सदस्य अनिल यादव और लक्ष्मण प्रसाद ने कहा कि कोर्ट परिसर में जिस तरह से हमले हुए हैं, वह दिल्ली पुलिस की सोची समझी साजिश का नतीजा है, जिससे कि मुक़दमा न लड़ा जा सके.

उन्होंने बताया कि ठीक इसी तरह 2008 में आतंकवाद का मुक़दमा लड़ने वाले रिहाई मंच अध्यक्ष एडवोकेट मुहम्मद शुएब व उनके मुवक्किलों पर लखनऊ कोर्ट परिसर में हमला किया गया और मुहम्मद शुऐब के कपड़े फाड़ अर्धनग्न अवस्था में चूना-कालिख पोत घुमाया गया और उल्टे उनके ऊपर ही पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाने का आरोप लगाया गया था. यह हमले लगातार हुए और शाहिद आज़मी की भी इन्हीं खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों ने ऐसे मुक़दमें लड़ने की वजह से हत्या करवा दी.

उन्होंने कहा कि यह मुल्क के संविधान को बचाने की लड़ाई हैं, जिसे शहादत देकर भी लड़ा जाएगा.

रिहाई मंच नेताओं ने कहा कि देश के विश्वविद्यालयों में तिरंगा लगाने से पहले सरकार संघ मुख्यलायों में तिरंगा लगवाए और संघ परिवार के दफ्तर से सावरकर और गोलवरकर जैसे देशद्रोहियों की तस्वीर हटवाए, जिन्होंने न सिर्फ अंग्रेजों से माफी मांगी थी, बल्कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या का षडयंत्र भी रचा था.

उन्होंने आरोप लगाया कि जिस तरह गोडसे ने गांधी जी की हत्या के कई प्रयासों में नकली दाढ़ी टोपी और पठानी सूट पहन कर उन्हें मारने की कोशिश की थी, ठीक उसी तरह जेएनयू में भी एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने जेएनयू में पाकिस्तान जिंदाबादा का नारा लगाया जिसके वीडियों सुबूत वायरल होने के बावजूद पुलिस उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रही है.

उन्होंने कहा कि जेएनयू प्रकरण पर वामपंथियों की आलोचना करने वाले किरन रिजुजू को पहले पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लगाने वाले सावरकर के शिशुओं पर कार्रवाई करनी चाहिए.

आमिर खान की ‘फ्रेम्ड ऐज ए टेररिस्ट’ पुस्तक का हुआ विमोचन

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Afroz Alam Sahil, TwoCircles.net

14 साल जेल में बिताने वाले बेगुनाह मो. आमिर ख़ान ने अपनी आपबीती को मानवाधिकार वकील व लेखिका नंदिता हक्सर की मदद से किताब की शक्ल दी है. जो आज दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेन्टर में लांच हुई.

इस पुस्तक का नाम ‘फ्रेम्ड ऐज ए टेररिस्ट : माई 14 ईयर स्ट्रगल टू प्रूव माई इन्नोसेंस’ है. यह पुस्तक दिल्ली के स्पीकिंग टाईगर प्रकाशक द्वारा प्रकाशित की गई है.

Aamir Book Launch

इस पुस्तक का विमोचन में पूर्व मंत्री कपिल सिब्बल के हाथों हुआ. इस अवसर पर कपिल सिब्बल ने कहा कि –‘इस देश में कई आमिर हैं. हमें इनकी हर तरह की मदद के लिए आगे आना चाहिए. हमें एक ऐसा मैकेनिज़्म बनाने की ज़रूरत है, जिससे कि आमिर जैसे बेगुनाहों की मदद की जा सके.’

आगे उन्होंने कहा कि –‘यह पुस्तक आज के हिसाब से इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि ये आज के राजनीतिक माहौल में देश की व्यवस्था में मौजूद साम्प्रदायिक सोच को प्रदर्शित करता है, जिसका शिकार खुद आमिर भी हुआ.’

इस पुस्तक के विमोचन के बाद भावुक आमिर ने कहा कि –‘रिहाई मिल चुकी है. लेकिन डरता हूं. रात के अंधेरे से, कहीं अकेले निकलने से और काफी समय घर से बाहर रहने से...’

आमिर ने आगे कहा कि –‘मेरे लिए सबसे ज़रूरी है अपने परिवार के साथ-साथ इंसानियत को ज़िन्दा रखने और अपने देश को संजाने-संवारने का काम करूं. मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरे उपर किताब लिखा जाएगा, लेकिन हालात ने यह भी करा दिया.’

आमिर कहते हैं कि –‘मैं चाहता हूं कि ये देश वो देश बने जिसकी कल्पना हमारे गांधी जी ने किया था. जिस तरह के हालात आज देश में है, ऐसे देश की कल्पना गांधी जी ने शायद नहीं की थी.’

वो आगे कहते हैं कि –‘मुझे गर्व है कि मेरे मां-बाप ने पाकिस्तान को नहीं चुना, बल्कि जिन्ना को लात मात कर गांधी के हिन्दुस्तान को चुना.’

Aamir Book Launch

यह मो. आमिर खान वहीं हैं, जिन्हें 27 फ़रवरी 1998 को ‘अगवा’ कर आतंकवाद के आरोप में जेल में डाल दिया गया था. आमिर ग़िरफ़्तारी के वक़्त 18 साल के थे और 14 साल बाद जब वो जेल से रिहा हुए तो उनकी लगभग आधी उम्र बीत चुकी है. दिल्ली हाईकोर्ट समेत कई अदालतों ने उन्हें आतंकवाद के आरोपों से बरी किया है.

पुस्तक विमोचन के इस कार्यक्रम में इस पुस्तक की असल लेखिका नंदिता हक्सर व सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी और आमिर का मुक़दमा लड़ने वाले वकील फ़िरोज़ गाज़ी ने भी अपने विचारों को रखा. साथ ही इस कार्यक्रम में देश के प्रतिष्ठित सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक व पत्रकारों के साथ-साथ पूर्व राज्यसभा सांसद मो. अदीब व लोक जनशक्ति पार्टी के सचिव अब्दुल खालिक़ भी शामिल थे.

मो. आमिर खान की यह पुस्तक लांच होने के पहले से मेरे पास थी. 240 पन्नों की इस पुस्तक में आमिर ने नंदिता हक्सर की मदद से जेल में बिताए अपने 14 सालों को समेटा है. ऐसी अनगिनत सोचने व चिन्तन योग्य बातों को साझा किया है, जिन्हें वही शख्स बता सकता है, जिसने 14 साल जेल में बिताया हो.

क्या चलता है उस शख्स के दिमाग़ में जो बेगुनाह है, लेकिन पूरे 14 साल जेल के सलाखों के पीछे क़ैद रहा है, इसकी झलक यह पुस्तक हमें दिखाती है. आमिर के नीजि ज़िन्दगी में आए बदलाव के साथ यह पुस्तक भारत के न्यायिक व्यवस्था व समाज को दिखलाती है. ऐसे में आज के ताज़ा हालात में यह पुस्तक इस देश के हर उस शख्स को पढ़ना ज़रूरी है, जो देश में बढ़ती साम्प्रदायिकता से लड़ना चाहता है.

23 फरवरी को प्रतिरोध दिवस मनाएंगे बिहार के सभी वाम दल

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TwoCircles.net News Desk

पटना :जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार की साज़िश के तहत गिरफ्तारी और देशद्रोह के झूठे मुक़दमें में फंसाने की केन्द्र सरकार की कार्रवाई और भाजपा-आरएसएस के गुंडों द्वारा छात्रों, पत्रकारों एवं सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता दल पर जारी हमलों से उत्पन्न स्थिति पर विचार करने के लिए छः वामपंथी दलों की संयुक्त बैठक भाकपा कार्यालय में संपन्न हुई. इस बैठक में यह फैसला लिया गया कि आगामी 23 फरवरी को बिहार के सारे वाम दल मिलकर प्रतिरोध दिवस मनाएंगे.

इस संयुक्त बैठक में 23 फरवरी को प्रतिरोध दिवस मनाने के फैसले के साथ-साथ निम्नलिखित निर्णय लिये गये:

1. कन्हैया कुमार को अविलंब रिहा किया जाये, देशद्रोह समेत सभी झूठे मुक़दमें छात्र नेताओं पर से वापस लिए जाएं तथा छात्रों, पत्रकारों एवं अन्य प्रबुद्ध लोगों पर हमला करने वाले संघी गुंडा तत्वों को गिरफ्तार कर कठोर दंड दिए जाए.

2. जेएनयू समेत सभी विश्वविद्यालयों में पुलिस बल के प्रवेश पर रोक लगाई जाए तथा विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता अक्षुण्ण रखी जाए. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रहार बंद हो.

3. भाजपा-संघ परिवार द्वारा वामपंथ के विरूद्ध जारी फासीवादी हमलों का हर स्तर पर प्रतिरोध किए जाए, संयुक्त कार्रवाइयां की जाए.

इस बैठक की अध्यक्षता वरिष्ठ सीपीआई (एम) नेता विजयकांत ठाकुर ने की, जिसमें भाकपा की ओर राज्य सचिव सत्य नारायण सिंह, जब्बार आलम, राजेन्द्र प्रसाद सिंह, रामबाबू कुमार, अखिलेश कुमार, सीपीआई (एम) के राज्य सचिव अवधेश कुमार, अरूण कुमार मिश्र, सीपीआई (एमएल) के राज्य सचिव कुणाल, धीरेन्द्र झा, राजाराम, एसयूसीआई (सी) के अरूण कुमार सिंह, फारवर्ड ब्लॉक के अशोक प्रसाद, टी.एन. आजाद और आरएसपी के महेश प्रसाद शामिल हुए.


पढ़िए वे 23 बातें जो आपको देशद्रोही बनाती हैं

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By सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net

दिल्ली:आज हम आपके सामने वे बातें लेकर आए हैं, जो आपको देशद्रोही बनाती हैं. जानिए और समझिए इन्हें –

JNU protest

१. आप मुसलमान हैं तो आप देशद्रोही हैं.

२. आप ईसाई हैं तो आप देशद्रोही हैं.

३. आप वामपंथी विचारधारा से जुड़े हैं तो आप देशद्रोही हैं.

४. यदि आप पत्रकार हैं और आँख बंदकर सरकार की नीतियों का समर्थन नहीं करते हैं तो आप देशद्रोही हैं. यानी आप सुधीर चौधरी, दीपक चौरसिया, रोहित सरदाना या रजत शर्मा नहीं हैं तो आप देशद्रोही हैं.

५. आप मौत की सज़ा के औचित्य पर सवाल उठाते हैं तो आप देशद्रोही हैं.

६. यदि आप गोडसे को गांधी को हत्यारा मानते हैं तो आप देशद्रोही हैं.

७. आप सिनेमा हॉल चाहे किसी भी कारण से राष्ट्रगान बजने पर – जो न जाने कौन-सा नियम है - न खड़े हों तो आप देशद्रोही हैं.

८. आप सरकार की किसी नीति पर सवाल उठाते हैं तो आप देशद्रोही हैं.

९. आप बढ़ते हुए फाशीवाद के खिलाफ़ आवाज़ उठाते हैं तो आप देशद्रोही हैं.

१०. आप सामंतवाद के खिलाफ़ आवाज़ उठाते हैं तो आप देशद्रोही हैं.

११. यदि आपके विरोध प्रदर्शनों में राहुल गांधी, सीताराम येचुरी या डी राजा आते हैं तो आप देशद्रोही हैं.

१२. आप यदि इस देश के एक स्वतंत्र नागरिक होने का दावा करते हैं तो आप देशद्रोही हैं.

१३. यदि आप एक लेखक हैं और देश में बढ़ते अत्याचार के खिलाफ खड़े होते हैं तो आप देशद्रोही हैं.

१४. यदि आप आमिर खान और सलमान खान हैं तो आप देशद्रोही हैं, लेकिन यदि आप सलमान खान हैं तो देशप्रेमी हैं. आप सलमान खान होने पर एक आदमी की ह्त्या पर चलने वाले मुक़दमे से भी बरी हो सकते हैं.

१५. आप दलित राजनीति का विमर्श करते हैं तो आप देशद्रोही हैं.

१६. आप अल्पसंख्यक राजनीति का विमर्श करते हैं तो आप देशद्रोही हैं.

१७. आप भारत के अलावा किसी भी देश के ज़िंदाबाद होने की कामना करते हैं तो आप देशद्रोही हैं, भले ही आप पूरी आत्मा से अपने देश के प्रति समर्पित क्यों न हों.

१८. आप जनाधिकारों को लेकर जंतर-मंतर पर धरना देते हैं तो आप देशद्रोही हैं.

१९. आप रैलियाँ निकालते हैं तो आप देशद्रोही हैं. लेकिन यदि आप एबीवीपी के कार्यकर्ता हैं और अपनी रैली में गालियां देते या लोगों को पीट देते हुए चलते हैं तो आप देशद्रोही नहीं हैं.

२०. आप वकील नहीं हैं तो आप देशद्रोही हैं.

२१. आप जेएनयू के छात्र हैं तो आप देशद्रोही हैं.

२२. आपके लिए देशभक्ति का मतलब देश से प्यार के साथ देश का सुधार करना भी हो तो आप देशद्रोही हैं.

२३. आप कन्हैया कुमार हैं तो आप देशद्रोही हैं.

ऐसे में हम क्यों न कहना सीखें कि हम सब कहीं न कहीं देशद्रोही हैं.

उमर खालिद जेएनयू में, छात्रों को किया संबोधित

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TwoCircles.net News Desk

जिस उमर खालिद को दिल्ली पुलिस पिछले एक सप्ताह से पूरे मुल्क में तलाश कर रही है, वो आज जेएनयू लौट आया है.

जेएनयू छात्रों के मुताबिक़ उमर खालिद रविवार क़रीब 10 बजे रात में जेएनयू कैम्पस के एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक के सामने न सिर्फ एक सभा को संबोधित किया है. बल्कि कन्हैया कुमार के रिहाई के लिए नारे भी बुलंद किए हैं. इस सभा में तकरीबन 100 से अधिक छात्र मौजूद थे.

उमर खालिद ने अपने संबोधन में कहा कि वो अभी भी अपने स्टैण्ड पर क़ायम है. उसने कोई देश-विरोधी नारे नहीं लगाए हैं.

साथ ही उमर खालिद ने यह भी कहा कि "मैं मेरे खिलाफ़ कोई सम्मन नहीं है."उमर खालिद के इस सभा में दूसरे आरोपी रामा नागा, अनिर्बान भट्टाचार्या, अनंत, आशुतोष भी जेएनयू कैंपस में मौजूद हैं.

इस सभा में जेएनयू छात्र संघ की उपाध्यक्ष शहला राशिद भी मौजूद थी. उन्होंने कहा कि –‘आगे जो कुछ भी होना है, हम उसके लिए तैयार हैं. हमें मालूम है कि पुलिस सादे ड्रेस में यहां भी मौजूद है. हम सबकुछ कैमरों के चकाचौंध में करना चाहते हैं.’

स्पष्ट रहे कि उमर खालिद पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया है. आरोप है कि उसने जेएनयू में अफ़ज़ल गुरू की याद में ‘शहीदी दिवस’ मनाते हुए ‘भारत विरोधी’ नारे लगाएं. पुलिस 11 फ़रवरी से उमर खालिद की तलाश में थी.

सुनिए! उमर खालिद ने कल रात जेएनयू में क्या भाषण दिया?

ऐसा लगता है हम सरकार के प्रवक्ता हैं या सुपारी किलर? - जी न्यूज़ के प्रोड्यूसर विश्वदीपक

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TwoCircles.net Staff Reporter

दिल्ली:जी न्यूज़ के प्रोड्यूसर विश्व दीपक ने कल इस्तीफा दिया और कारण गिनाए जिसमें उन्होंने साफ़ कहा है कि जी मीडिया के न्यूज़ रूम में हमेशा हम सभी से खबरें खबर ऐसे लिखवाई जाती है, जिससे मोदी के एजेंडे को बढ़ावा मिलता है. यहाँ यह भी साफ़ है कि कैसे देश के कुछ न्यूज़ चैनलों ने वीडियो के साथ छेड़छाड़ करके उसे माहौल भड़काने वाला बनाया. पढ़ें नीचे विश्व दीपक की पोस्ट और उनका इस्तीफ़ा -

हम पत्रकार अक्सर दूसरों पर सवाल उठाते हैं लेकिन कभी खुद पर नहीं. हम दूसरों की जिम्मेदारी तय करते हैं लेकिन अपनी नहीं. हमें लोकतंत्र का चौथा खंभा कहा जाता है लेकिन क्या हम, हमारी संंस्थाएं, हमारी सोच और हमारी कार्यप्रणाली लोकतांत्रिक है ? ये सवाल सिर्फ मेरे नहीं है. हम सबके हैं.

JNUSU अध्यक्ष कन्हैया कुमार को 'राष्ट्रवाद'के नाम पर जिस तरह से फ्रेम किया गया और मीडिया ट्रायल करके 'देशद्रोही'साबित किया गया, वो बेहद खतरनाक प्रवृत्ति है. हम पत्रकारों की जिम्मेदारी सत्ता से सवाल करना है ना की सत्ता के साथ संतुलन बनाकर काम करना. पत्रकारिता के इतिहास में हमने जो कुछ भी बेहतर और सुंदर हासिल किया है, वो इन्ही सवालों का परिणाम है.

सवाल करना या न करना हर किसी का निजी मामला है लेकिन मेरा मानना है कि जो पर्सनल है वो पॉलिटिकल भी है. एक ऐसा वक्त आता है जब आपको अपनी पेशेवर जिम्मेदारियों और अपनी राजनीतिक-समाजिक पक्षधरता में से किसी एक पाले में खड़ा होना होता है. मैंने दूसरे को चुना है और अपने संस्थान ZEE NEWS से इन्ही मतभेदों के चलते 19 फरवरी को इस्तीफा दे दिया है.

मेरा इस्तीफा इस देश के लाखों-करोड़ों कन्हैयाओं और जेएनयू के उन दोस्तों को समर्पित है जो अपनी आंखों में सुंदर सपने लिए संघर्ष करते रहे हैं, कुर्बानियां देते रहे हैं.
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(ज़ी न्यूज़ के नाम मेरा पत्र जो मेेरे इस्तीफ़े में संलग्न है)

प्रिय ज़ी न्यूज़,

एक साल 4 महीने और 4 दिन बाद अब वक्त आ गया है कि मैं अब आपसे अलग हो जाऊं. हालांकि ऐसा पहले करना चाहिए था लेकिन अब भी नहीं किया तो खुद को कभी माफ़ नहीं कर सकूंगा.

आगे जो मैं कहने जा रहा हूं वो किसी भावावेश, गुस्से या खीझ का नतीज़ा नहीं है, बल्कि एक सुचिंतित बयान है. मैं पत्रकार होने से साथ-साथ उसी देश का एक नागरिक भी हूं जिसके नाम अंध ‘राष्ट्रवाद’ का ज़हर फैलाया जा रहा है और इस देश को गृहयुद्ध की तरफ धकेला जा रहा है. मेरा नागरिक दायित्व और पेशेवर जिम्मेदारी कहती है कि मैं इस ज़हर को फैलने से रोकूं. मैं जानता हूं कि मेरी कोशिश नाव के सहारे समुद्र पार करने जैसी है लेकिन फिर भी मैं शुरुआत करना चहता हूं. इसी सोच के तहत JNUSU अध्यक्ष कन्हैया कुमार के बहाने शुरू किए गए अंध राष्ट्रवादी अभियान और उसे बढ़ाने में हमारी भूमिका के विरोध में मैं अपने पद से इस्तीफा देता हूं. मैं चाहता हूं इसे बिना किसी वैयक्तिक द्वेष के स्वीकार किया जाए.

असल में बात व्यक्तिगत है भी नहीं. बात पेशेवर जिम्मेदारी की है. सामाजिक दायित्वबोध की है और आखिर में देशप्रेम की भी है. मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि इन तीनों पैमानों पर एक संस्थान के तौर पर तुम तुमसे जुड़े होने के नाते एक पत्रकार के तौर पर मैं पिछले एक साल में कई बार फेल हुए.

मई 2014 के बाद से जब से श्री नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने हैं, तब से कमोबेश देश के हर न्यूज़ रूम का सांप्रदायीकरण (Communalization) हुआ है लेकिन हमारे यहां स्थितियां और भी भयावह हैं. माफी चाहता हूं इस भारी भरकम शब्द के इस्तेमाल के लिए लेकिन इसके अलावा कोई और दूसरा शब्द नहीं है. आखिर ऐसा क्यों होता है कि ख़बरों को मोदी एंगल से जोड़कर लिखवाया जाता है ? ये सोचकर खबरें लिखवाई जाती हैं कि इससे मोदी सरकार के एजेंडे को कितना गति मिलेगी ?

हमें गहराई से संदेह होने लगा है कि हम पत्रकार हैं. ऐसा लगता है जैसे हम सरकार के प्रवक्ता हैं या सुपारी किलर हैं? मोदी हमारे देश के प्रधानमंत्री हैं, मेरे भी है; लेकिन एक पत्रकार के तौर इतनी मोदी भक्ति अब हजम नहीं हो रही है ? मेरा ज़मीर मेरे खिलाफ बग़ावत करने लगा है. ऐसा लगता है जैसे मैं बीमार पड़ गया हूं.

हर खबर के पीछे एजेंडा, हर न्यूज़ शो के पीछे मोदी सरकार को महान बताने की कोशिश, हर बहस के पीछे मोदी विरोधियों को शूट करने की का प्रयास ? अटैक, युद्ध से कमतर कोई शब्द हमें मंजूर नहीं. क्या है ये सब ? कभी ठहरकर सोचता हूं तो लगता है कि पागल हो गया हूं.

आखिर हमें इतना दीन हीन, अनैतिक और गिरा हुआ क्यों बना दिया गया ?देश के सर्वोच्च मीडिया संस्थान से पढ़ाई करने और आजतक से लेकर बीबीसी और डॉयचे वेले, जर्मनी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में काम करने के बाद मेरी पत्रकारीय जमापूंजी यही है कि लोग मुझे ‘छी न्यूज़ पत्रकार’ कहने लगे हैं. हमारे ईमान (Integrity) की धज्जियां उड़ चुकी हैं. इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा ?

कितनी बातें कहूं. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ लगातार मुहिम चलाई गई और आज भी चलाई जा रही है . आखिर क्यों ? बिजली-पानी, शिक्षा और ऑड-इवेन जैसी जनता को राहत देने वाली बुनियादी नीतियों पर भी सवाल उठाए गए. केजरीवाल से असहमति का और उनकी आलोचना का पूरा हक है लेकिन केजरीवाल की सुपारी किलिंग का हक एक पत्रकार के तौर पर नहीं है. केजरीवाल के खिलाफ की गई निगेटिव स्टोरी की अगर लिस्ट बनाने लगूंगा तो कई पन्ने भर जाएंगे. मैं जानना चाहता हूं कि पत्रकारिता के बुनियादी सिद्धांत ‘तटस्थता’ का और दर्शकों के प्रति ईमानदारी का कुछ तो मूल्य है, कि नहीं ?

दलित स्कॉलर रोहित वेमुला की आत्महत्या के मुद्दे पर ऐसा ही हुआ. पहले हमने उसे दलित स्कॉलर लिखा फिर दलित छात्र लिखने लगे. चलो ठीक है लेकिन कम से कम खबर तो ढंग से लिखते.रोहित वेमुला को आत्महत्या तक धकेलने के पीछे ABVP नेता और बीजेपी के बंडारू दत्तात्रेय की भूमिका गंभीरतम सवालों के घेरे में है (सब कुछ स्पष्ट है) लेकिन एक मीडिया हाउस के तौर हमारा काम मुद्दे को कमजोर (dilute) करने और उन्हें बचाने वाले की भूमिका का निर्वहन करना था.

मुझे याद है जब असहिष्णुता के मुद्दे पर उदय प्रकाश समेत देश के सभी भाषाओं के नामचीन लेखकों ने अकादमी पुरस्कार लौटाने शुरू किए तो हमने उन्हीं पर सवाल करने शुरू कर दिए. अगर सिर्फ उदय प्रकाश की ही बात करें तो लाखों लोग उन्हें पढ़ते हैं. हम जिस भाषा को बोलते हैं, जिसमें रोजगार करते हैं उसकी शान हैं वो. उनकी रचनाओं में हमारा जीवन, हमारे स्वप्न, संघर्ष झलकते हैं लेकिन हम ये सिद्ध करने में लगे रहे कि ये सब प्रायोजित था. तकलीफ हुई थी तब भी, लेकिन बर्दाश्त कर गया था.

लेकिन कब तक करूं और क्यों ?

मुझे ठीक से नींद नहीं आ रही है. बेचैन हूं मैं. शायद ये अपराध बोध का नतीजा है. किसी शख्स की जिंदगी में जो सबसे बड़ा कलंक लग सकता है वो है - देशद्रोह. लेकिन सवाल ये है कि एक पत्रकार के तौर पर हमें क्या हक है कि किसी को देशद्रोही की डिग्री बांटने का ? ये काम तो न्यायालय का है न ?

कन्हैया समेत जेएनयू के कई छात्रों को हमने ने लोगों की नजर में ‘देशद्रोही’ बना दिया. अगर कल को इनमें से किसी की हत्या हो जाती है तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा ? हमने सिर्फ किसी की हत्या और कुछ परिवारों को बरबाद करने की स्थिति पैदा नहीं की है बल्कि दंगा फैलाने और गृहयुद्ध की नौबत तैयार कर दी है. कौन सा देशप्रेम है ये ? आखिर कौन सी पत्रकारिता है ये ?

क्या हम बीजेपी या आरएसएस के मुखपत्र हैं कि वो जो बोलेंगे वहीं कहेंगे ? जिस वीडियो में ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ का नारा था ही नहीं उसे हमने बार-बार हमने उन्माद फैलाने के लिए चलाया. अंधेरे में आ रही कुछ आवाज़ों को हमने कैसे मान लिया की ये कन्हैया या उसके साथियों की ही है? ‘भारतीय कोर्ट ज़िंदाबाद’ को पूर्वाग्रहों के चलते ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ सुन लिया और सरकार की लाइन पर काम करते हुए कुछ लोगों का करियर, उनकी उम्मीदें और परिवार को तबाही की कगार तक पहुंचा दिया. अच्छा होता कि हम एजेंसीज को जांच करने देते और उनके नतीजों का इंतज़ार करते.

लोग उमर खालिद की बहन को रेप करने और उस पर एसिड अटैक की धमकी दे रहे हैं. उसे गद्दार की बहन कह रहे हैं. सोचिए ज़रा अगर ऐसा हुआ तो क्या इसकी जिम्मेदारी हमारी नहीं होगी ? कन्हैया ने एक बार नहीं हज़ार बार कहा कि वो देश विरोधी नारों का समर्थन नहीं करता लेकिन उसकी एक नहीं सुनी गई, क्योंकि हमने जो उम्माद फैलाया था वो NDA सरकार की लाइन पर था. क्या हमने कन्हैया के घर को ध्यान से देखा है ? कन्हैया का घर, ‘घर’ नहीं इस देश के किसानों और आम आदमी की विवशता का दर्दनाक प्रतीक है. उन उम्मीदों का कब्रिस्तान है जो इस देश में हर पल दफ्न हो रही हैं. लेकिन हम अंधे हो चुके हैं !

मुझे तकलीफ हो रही है इस बारे में बात करते हुए लेकिन मैं बताना चाहता हूं कि मेरे इलाके में भी बहुत से घर ऐसे हैं. भारत का ग्रामीण जीवन इतना ही बदरंग है.उन टूटी हुई दीवारों और पहले से ही कमजोर हो चुकी जिंदगियों में हमने राष्ट्रवादी ज़हर का इंजेक्शन लगाया है, बिना ये सोचे हुए कि इसका अंजाम क्या हो सकता है! अगर कन्हैया के लकवाग्रस्त पिता की मौत सदमें से हो जाए तो क्या हम जिम्मेदार नहीं होंगे ? ‘The Indian Express’ ने अगर स्टोरी नहीं की होती तो इस देश को पता नहीं चलता कि वंचितों के हक में कन्हैया को बोलने की प्रेरणा कहां से मिलती है !

रामा नागा और दूसरों का हाल भी ऐसा ही है. बहुत मामूली पृष्ठभूमि और गरीबी से संघर्ष करते हुए ये लड़के जेएनयू में मिल रही सब्सिडी की वजह से पढ़ लिख पाते हैं. आगे बढ़ने का हौसला देख पाते हैं. लेकिन टीआरपी की बाज़ारू अभीप्सा और हमारे बिके हुए विवेक ने इनके करियर को लगभग तबाह ही कर दिया है.

हो सकता है कि हम इनकी राजनीति से असहमत हों या इनके विचार उग्र हों लेकिन ये देशद्रोही कैसे हो गए ? कोर्ट का काम हम कैसे कर सकते हैं ? क्या ये महज इत्तफाक है कि दिल्ली पुलिस ने अपनी FIR में ज़ी न्यूज का संदर्भ दिया है ? ऐसा कहा जाता है कि दिल्ली पुलिस से हमारी सांठगांठ है ? बताइए कि हम क्या जवाब दे लोगों को ?

आखिर जेएनयू से या जेएनयू के छात्रों से क्या दुश्मनी है हमारी ? मेरा मानना है कि आधुनिक जीवन मूल्यों, लोकतंत्र, विविधता और विरोधी विचारों के सह अस्तित्व का अगर कोई सबसे खूबसूरत बगीचा है देश में तो वो जेएनयू है लेकिन इसे गैरकानूनी और देशद्रोह का अड्डा बताया जा रहा है.

मैं ये जानना चाहता हूं कि जेएनयू गैर कानूनी है या बीजेपी का वो विधायक जो कोर्ट में घुसकर लेफ्ट कार्यकर्ता को पीट रहा था ? विधायक और उसके समर्थक सड़क पर गिरे हुए CPI के कार्यकर्ता अमीक जमेई को बूटों तले रौंद रहे थे लेकिन पास में खड़ी पुलिस तमाशा देख रही थी. स्क्रीन पर पिटाई की तस्वीरें चल रही थीं और हम लिख रहे थे – ओपी शर्मा पर पिटाई का आरोप. मैंने पूछा कि आरोप क्यों ? कहा गया ‘ऊपर’ से कहा गया है ? हमारा ‘ऊपर’ इतना नीचे कैसे हो सकता है ? मोदी तक तो फिर भी समझ में आता है लेकिन अब ओपी शर्मा जैसे बीजेपी के नेताओं और ABVP के कार्यकर्ताओं को भी स्टोरी लिखते समय अब हम बचाने लगे हैं.

घिन आने लगी है मुझे अपने अस्तित्व से. अपनी पत्रकरिता से और अपनी विवशता से. क्या मैंने इसलिए दूसरे सब कामों को छोड़कर पत्रकार बनने का फैसला बनने का फैसला किया था. शायद नहीं.

अब मेरे सामने दो ही रास्ते हैं या तो मैं पत्रकारिता छोड़ूं या फिर इन परिस्थितियों से खुद को अलग करूं. मैं दूसरा रास्ता चुन रहा हूं. मैंने कोई फैसला नहीं सुनाया है बस कुछ सवाल किए हैं जो मेरे पेशे से और मेरी पहचान से जुड़े हैं. छोटी ही सही लेकिन मेरी भी जवाबदेही है. दूसरों के लिए कम, खुद के लिए ज्यादा. मुझे पक्के तौर पर अहसास है कि अब दूसरी जगहों में भी नौकरी नहीं मिलेगी. मैं ये भी समझता हूं कि अगर मैं लगा रहूंगा तो दो साल के अंदर लाख के दायरे में पहुंच जाऊंगा. मेरी सैलरी अच्छी है लेकिन ये सुविधा बहुत सी दूसरी कुर्बानियां ले रही है, जो मैं नहीं देना चाहता. साधारण मध्यवर्गीय परिवार से आने की वजह से ये जानता हूं कि बिना तनख्वाह के दिक्कतें भी बहुत होंगी लेकिन फिर भी मैं अपनी आत्मा की आवाज (consciousness) को दबाना नहीं चाहता.

मैं एक बार फिर से कह रहा हूं कि मुझे किसी से कोई व्यक्तिगत शिकायत नहीं है. ये सांस्थानिक और संपादकीय नीति से जुडे हुए मामलों की बात है. उम्मीद है इसे इसी तरह समझा जाएगा.

यह कहना भी जरूरी समझता हूं कि अगर एक मीडिया हाउस को अपने दक्षिणपंथी रुझान और रुचि को जाहिर करने का, बखान करने का हक है तो एक व्यक्ति के तौर पर हम जैसे लोगों को भी अपनी पॉलिटिकल लाइन के बारे में बात करने का पूरा अधिकार है. पत्रकार के तौर पर तटस्थता का पालन करना मेरी पेशेवर जिम्मेदारी है लेकिन एक व्यक्ति के तौर पर और एक जागरूक नागरिक के तौर पर मेरा रास्ता उस लेफ्ट का है जो पार्टी द्फ्तर से ज्यादा हमारी ज़िंदगी में पाया जाता है. यही मेरी पहचान है.

और अंत में एक साल तक चलने वाली खींचतान के लिए शुक्रिया. इस खींचतान की वजह से ज़ी न्यूज़ मेरे कुछ अच्छे दोस्त बन सके.

सादर-सप्रेम,
विश्वदीपक

जानिए! क्या सोचते हैं उमर ख़ालिद के पिता डॉ. क़ासिम रसूल इलियास?

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Afroz Alam Sahil, TwoCircles.net

‘हम एक ऐसे फासिस्ट रिजीम में दाखिल हो गए हैं, जो आपके विचारधारा से सहमत नहीं है, उसे दबा दो, मार दो, उसका गला घोंट दो... ये जो ट्रेंड है, यदि इसको रोका नहीं गया तो हमारे संविधान के अंदर चाहे कितने ही मौलिक अधिकार मौजूद क्यों न हो, वो सिर्फ कागज़ के पन्नों तक ही सिमट कर रह जाएंगे. उसका अमल से कोई ताल्लुक नहीं होगा.’

यह बातें TwoCircles.netके साथ एक खास बातचीत में वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. क़ासिम रसूल इलियास ने कहा.

इलियास कहते हैं कि –‘मोदी सत्ता में ‘अच्छे दिन’ के नारे के साथ आए थें. विकास की बातें की थी. ‘सबका साथ –सबका विकास’ का भी नारा दिया है. लेकिन आप देख लीजिए कि डेढ़ साल में देश में क्या हुआ है और क्या क्या हो रहा है? आम आदमी हताश है, परेशान है.’

वो आगे कहते हैं कि –‘जेएनयू मामला के बहाने सरकार का दोगला चेहरा एक्सपोज़ हो रहा है. कश्मीर में जिस पीडीपी के साथ यह सरकार चला रहे हैं, उस पीडीपी का भी वह विचार है, जो नारा जेएनयू में लगा है. फिर वहां आप विरोध क्यों नहीं करते? वहां आपकी देशभक्ति कहां चली जाती है? सच तो यह है कि ये ऐसे लोग हैं, जिनका देश की आज़ादी में गद्दारी का इतिहास रहा है. जिन्होंने गांधी को मार डाला और अब गांधी को मारने वाले गोडसे का महिमामंडन करते हैं. क्या यह देशद्रोह नहीं है?’

Dr. Syed Qasim Rasool Ilyas

TwoCircles.netके साथ इस खास बातचीत में डॉ. क़ासिम रसूल इलियास अपना गुस्सा मीडिया पर भी उतारते हैं. वो बताते हैं कि –‘अर्नब गोस्वामी एक बदतमीज़ एंकर है. किसी की बात नहीं सुनता, सिर्फ़ अपनी थोपता है.’ उनका यह भी कहना है कि –‘मीडिया खुद को देश के न्याय-तंत्र से भी उपर समझता है. इन पर अब लगाम लगना ज़रूरी है.’

इलियास के मुताबिक़ जेएनयू का पूरा घटनाक्रम एक सोची समझी साज़िश का हिस्सा है. जेएनयू बहुत पहले से इनके निशाने पर था. क्योंकि जेएनयू हमेशा आरएसएस व बीजेपी के विचारधारा के ख़िलाफ़ रहा है. ऐसे में बीजेपी के पास डेमोक्रेटिक तौर पर जेएनयू को दबाना मुमकिन नहीं था, तो फिर आख़िर में जेएनयू को बदनाम करके इस मसले का हल निकाला गया.

वो कहते हैं कि हरियाणा में इतना कुछ हो रहा है, लेकिन मीडिया उस पूरे मसले को नहीं दिखा रही है. जान-बुझ कर जेएनयू के मुद्दे पर लगी हुई है. वो बताते हैं कि उनकी पार्टी जल्द ही देश के मौजूदा हालात को लेकर एक देशव्यापी मुहिम चलाएगी.

स्पष्ट रहे कि डॉ. क़ासिम रसूल इलियास ख़ालिद उमर के पिता हैं. उनको भी पूरे परिवार के साथ मारने की धमकी मिल रही है.

नोट : डॉ. क़ासिम रसूल इलियास से यह ख़ास बातचीत रविवार शाम में किया गया है. इसी रात खालिद उमर भी जेएनयू लौट आया और छात्रों को संबोधित भी किया. डॉ. क़ासिम रसूल इलियास का पूरा वीडियो इंटरव्यू आप नीचे देख सकते हैं.

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