By TwoCircles.net staff reporter,
पणजी: भले ही गोमांस को लेकर राजनीति कितनी भी गर्म क्यों न हों, उस बहस में छौंक लगाने के लिए कुछ न कुछ घटता ही रहता है. महाराष्ट्र और हरियाणा के बाद अब ताज़ा मामला एक और भाजपाशासित राज्य गोवा का है.
गोवा के मुख्यमंत्री लक्ष्मीकांत पार्सेकर ने कहा है कि ‘चूंकि गोमांस गोवा की ‘फ़ूड हैबिट’ यानी खानपान का हिस्सा है, इसलिए सरकार गोवा में गोमांस पर बैन नहीं लगायेगी.’ इस बयान की चारों ओर प्रशंसा हो रही है क्योंकि इसके साथ पार्सेकर ने यह भी कहा है कि ‘गोवा सरकार मुस्लिमों के खिलाफ़ नहीं जाएगी.’
लक्ष्मीकांत पार्सेकर(Courtesy: IE)
हाल में ही भाजपा के ही शासन के दो राज्यों, महाराष्ट्र व हरियाणा, में गोमांस पर सख्ती से प्रतिबंध लगाया गया. इन प्रतिबंधों के बरअक्स भाजपा के हिन्दू राष्ट्र के सपने को साकार होता देखा गया. लेकिन गोवा की ही भाजपा सरकार ने प्रतिबंध न लगाने के फ़ैसला लेकर पार्टी प्रबंधन को निश्चित रूप से चक्कर में डाल दिया होगा. क्योंकि महाराष्ट्र व हरियाणा में प्रतिबंध सम्बन्धी फैसलों के बाद से इस खबर का बाज़ार गर्म हो गया था कि भाजपा पूरे देश में बीफ के निर्यात व खपत पर प्रतिबंध लगाने की तैयारी में है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राज्यस्तर पदाधिकारी रह चुके पार्सेकर का कहना था कि बीफ के लिए गोहत्या को लेकर हिन्दुओं की भावनाओं को समझते हैं, लेकिन गोवा में गोमांस कर्नाटक से लाकर बेचा जाता है न कि यहां उत्पादन किया जाता है. उन्होंने कहा, ‘यह अल्पसंख्यकों के खानपान का बड़ा हिस्सा है और हम उन्हें नाराज़ नहीं कर सकते.’
ऐसा करने की ज़रूरत क्यों पड़ी? इस प्रश्न का जवाब जानने के लिए गोवा की जनसंख्या के धर्माधारित आंकड़ों की पड़ताल ज़रूरी है. फिलहाल गोवा की कुल 14.59 लाख आबादी का 26.7 प्रतिशत हिस्सा ईसाई समुदाय के लोगों और लगभग 6.9 प्रतिशत हिस्सा मुस्लिम समुदाय के लोगों का है.
इनके साथ ही गोवा की अर्थव्यवस्था का मूल आधार पर्यटन है. यहां हर साल लाखों देशी-विदेशी सैलानी छुट्टियाँ मनाने आते हैं.
यदि इस पूरी संख्या को मिला दिया जाए तो अंदाज़न सवा करोड़ के ऊपर की जनसंख्या हर साल मांसाहार पर टिकी है. बीफ और मटन जैसे गोश्त की खपत का भी अंदाज़ लगाया जा सकता है. ज़ाहिर है कि इन चीज़ों को प्रतिबंधित करके गोवा की भाजपा सरकार अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारेगी क्योंकि इससे पर्यटकों की संख्या में ख़ास कमी आने की भी सम्भावना है.
कयास यह भी लगाए जा रहे हैं कि जहां एक तरफ़ यह क़दम भाजपा के अभियान के खिलाफ़ लिया गया है, वहीं दूसरी तरफ़ यह भी सुगबुगाहट है कि भाजपा गोवा के बहुलतावादी समाज से उठने वाले रेवेन्यू को नष्ट नहीं होने देना चाहती, इसलिए यह कदम भाजपा की मर्ज़ी से लिया गया है.