By TwoCircles.net staff reporter,
नई दिल्ली: होली की छुट्टियों के बाद संसद में आज सोमवार का दिन दो बड़ी बहसों की जगह बन सकता है. क्या होगा आज ऐसा कि केन्द्र सरकार को काले झंडे और सहमति के स्वर दोनों देखने मिलेंगे.
भू-अधिग्रहण बिल
जंतर-मंतर पर किसानों के बहुदिशी विरोध प्रदर्शन के बाद मोदी सरकार ने कहा था कि यदि भूमि-अधिग्रहण बिल का परिवर्धित मसविदा किसानों के खिलाफ़ है तो उसे बदला जाएगा. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने इस मामले की जड़ तक जाने और किसानों के बीच सर्वे कराने के लिए एक समिति का गठन भी किया. अभी तक समिति की खोज और सिफ़ारिशें सामने नहीं आ पाई हैं. न ही कोई ऐसी खबर भी है कि सरकार ने बिल के मसविदे में कोई मूलभूत परिवर्तन भी किया हो.
(Courtesy: IE)
इस उठापटक के बीच यह पूरी सम्भावना बनी हुई है कि केन्द्र सरकार आज लोकसभा में बिल को पेश कर सकती है. लोकसभा में पूर्ण रूप से बहुमत में होने के कारण यह भी मुमकिन है कि लोकसभा में उक्त बिल पास हो जाए. लेकिन बिल के विरोध में खड़े लोग और आम किसान इस बात से लगभग संतुष्ट हैं कि लोकसभा में पारित हो जाने के बाद भी सरकार राज्यसभा में मुंह की खाएगी, क्योंकि सरकार राज्यसभा में स्पष्ट रूप से अल्पमत में है.
अलगाववादी नेता मसरत आलम की रिहाई
जम्मू-कश्मीर में हाल में ही चुनी गयी भाजपा-पीडीपी की सरकार ने अलगाववादी हुर्रियत नेता मसरत आलम को रिहा करने का फैसला हाल में लिया. इस फैसले के लिए पार्टी गठबंधन और राज्य सरकार आलोचनाओं का शिकार हुईं. भाजपा विधायकों ने यह भी कह दिया कि मुख्यमंत्री के ऐसे कदमों से गठबंधन कमज़ोर पड़ सकता है. लेकिन इसके साथ ही यह भी बहस शुरू हो गयी कि यदि गुजरात के फर्जी इनकाउंटर के दोषी रिहा हो सकते हैं तो मसरत आलम की रिहाई में समस्या क्या है? जम्मू-कश्मीर की सत्ता में बमुश्किल अपनी जगह बना पायी भाजपा के लिए पीडीपी का साथ अब गले की हड्डी सरीखा होता जा रहा है, जो न निगलते बने न उगलते.
मसरत की रिहाई के मद्देनज़र सोमवार को संसद में भाजपा को विपक्षी दलों की आलोचना का शिकार होना पड़ सकता है. मुमकिन है कि संसद में जिस तरीके से तमाम बिल और बहसें होनी हैं, वे इस बहस की आड़ में कमज़ोर पड़ जाएं. सूत्रों का कहना है कि इसके लिए एनडीए गठबंधन के सहयोगी दल भी उन्हें आड़े हाथों ले सकते हैं.