Afroz Alam Sahil, TwoCircles.net
केन्द्र में सरकार चाहे जिसकी भी हो, मगर कुछ स्कीमें ‘फ्लैगशिप’ स्कीमों के श्रेणी में आती हैं. उनके साथ कोई छेड़छाड़ नहीं किया जाता है, क्योंकि वे एक बड़े तबक़े के मुस्तक़बिल से जुड़ी होती है. ऐसी ही एक स्कीम ‘मल्टी सेक्टोरल डेवलपमेंट प्रोग्राम’ (एमएसडीपी) यानी बहुक्षेत्रीय विकास कार्यक्रम है.
दरअसल, यह स्कीम मुल्क के 90 ज़िलों में अल्पसंख्यकों के भविष्य को बेहतर बनाने की दिशा में की गई कोशिश का एक नतीजा है, मगर मोदी सरकार ने अब इस पर भी अपनी गाज़ गिरा दी है. न सिर्फ़ अब इसका बजट कम कर दिया गया, बल्कि स्कीम को क्रियांवित करने के लिए ज़रूरी संसाधनों पर भी चोट की गई है.
TwoCircles.netके पास मौजूद दस्तावेज़ बताते हैं कि ताज़ा बजट के आवंटन में अल्पसंख्यकों के उत्थान के लिए सबसे महत्वपूर्ण स्कीम एमएसडीपी का प्रस्तावित बजट इस बार कम कर दिया गया है.
पिछले वित्तीय साल यानी 2015-16 में इस स्कीम के लिए 1251.64 करोड़ का बजट रखा गया था. लेकिन इस साल इस एमएसडीपी स्कीम के लिए प्रस्तावित बजट को घटाकर 1125 करोड़ कर दिया गया है. हालांकि एमएसडीपी स्कीम अल्पसंख्यक मंत्रालय का सबसे महत्वपूर्ण स्कीम माना जाता है, जिसे यूपीए सरकार ने 2008-09 में 90 अल्पसंख्यक बहुल जिलों में शुरू किया गया था. इस स्कीम का मक़सद अल्पसंख्यकों के सामाजिक-आर्थिक अवसंरचना का सृजन करते हुए तथा आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध कराते हुए अल्पसंख्यक बहुल जिलों की विकास सम्बन्धी कमियों को दूर करना था.
TwoCircles.netके पास मौजूद अल्पसंख्यक मंत्रालय के अहम दस्तावेज़ अल्पसंख्यक़ों के कल्याण के लिए शुरू की गई इस स्कीम की हकीक़त बयाँ कर रही है. सच तो यह है कि अल्पसंख्यक, खासकर मुसलमानों के कल्याण का दावा करने वाली यह महत्वपूर्ण स्कीम काग़जों में ही दम तोड़ रही हैं.
चयनित अल्पसंख्यक बहुल जिलों में अल्पसंख्यकों के लिए बहुक्षेत्रीय विकास कार्यक्रम (Multi Sectoral Development Programme for Minorities in selected of Minority Concentrated Districts) के लिए साल 2015-16 में 1251.64 करोड़ का बजट आवंटित किया गया, लेकिन जून 2015 तक उपलब्ध आंकड़ें बताते हैं कि इस स्कीम पर सिर्फ़ 161.42 करोड़ ही खर्च किया जा सका है.
साल 2014-15 में इस स्कीम के लिए 1250 करोड़ का बजट रखा गया, लेकिन रिलीज़ सिर्फ 770.94 करोड़ ही किया गया और 768.21 करोड़ रूपये खर्च भी किया गया.
साल 2013-14 में 1250 करोड़ का बजट रखा गया, लेकिन रिलीज़ हुआ सिर्फ 958.53 करोड़ और खर्च 953.48 बताया गया है, जबकि साल 2012-13 में इस स्कीम के लिए 999 करोड़ का बजट रखा गया, लेकिन रिलीज़ हुआ सिर्फ़ 649.56 करोड़ रूपये और खर्च 641.26 करोड़ रूपये किया गया.
इतना ही नहीं, आगे की कहानी और भी भयावह है. पिछड़े शहरों के रूप में पहचाने गए 251 में से 100 अल्पसंख्यक बहुल कस्बों/शहरों में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई योजना Scheme for promotion of education in 100 minority concentrate towns/cities out of 251 such town/cities identified as backward का हाल तो और भी बुरा है. इस स्कीम के लिए केन्द्र सरकार ने साल 2012-13 में 50 करोड़ का बजट रखा, लेकिन रिलीज़ सिर्फ 4 लाख रूपये ही किया गया लेकिन उदासीनता की हद यह रही कि इसमें से एक रुपया भी खर्च नहीं किया गया.
यही हाल एमसीबी/एमसीडी के अंतर्गत न आने वाले गांवों के लिए ग्राम विकास कार्यक्रम (Village Development Programme for Villages not covered by MCB/MCDs) का भी है. इस स्कीम के लिए भी केन्द्र सरकार ने साल 2012-13 में 50 करोड़ का बजट रखा, लेकिन रिलीज़ सिर्फ़ 4 लाख रूपये ही किया गया और इन चार लाख में से एक फूटी कौड़ी भी खर्च नहीं की गई.
एमसीडी में जिला स्तरीय संस्थाओं को समर्थन (Support to district level institutions in MCDs) के लिए भी साल 2012-13 में केन्द्र सरकार ने 25 करोड़ का बजट रखा, लेकिन इसमें भी सिर्फ चार लाख ही रुपये रिलीज़ किया गया, जिसमें से एक पैसा भी खर्च नहीं किया गया. यानि इस योजना का लाभ एक भी व्यक्ति को नहीं पहुँचा.
इन तीनों स्कीमों में साल 2012-13 के बाद कोई फंड नहीं रखा गया. 2014-15 में जब केन्द्र में मोदी सरकार आई तो इस स्कीम पर उसकी नज़रे-इनायत हुई और इसे एमएसडीपी स्कीम में शामिल कर लिया गया, लेकिन एमएसडीपी का जो हाल है, जो आप उपर देख ही चुके हैं.
हालांकि सरकार का दावा है कि इस स्कीम के अंतर्गत 2014-15 में 80 स्कूलों, 86 छात्रावासों को उचित शौचालय सुविधा देने तथा अन्य स्कूलों में 39 शौचालय बनाने को मंजूरी दी गयी है. वहीं 2015-16 के दौरान 73 छात्रावासों में पर्याप्त शौचालय सुविधाएं तथा अन्य स्कूलों में 52 शौचालय तथा पेयजल सुविधाओं को स्वीकृति दी गयी है.
इससे पहले आठ जुलाई 2014 को राज्यसभा में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री डॉ. नजमा हेपतुल्लाह ने बताया था कि अल्पसंख्यक मंत्रालय की ओर से एमएसडीपी के तहत देश भर में अल्पसंख्यकों की घनी आबादी वाले क्षेत्रों में 117 आईटीआई, 44 पॉलिटेक्निक, 645 छात्रावास, 1,092 स्कूल भवन और 20,656 अतिरिक्त कक्षाएं बनाने की स्वीकृति दी गई है, लेकिन जब हम इन्हें धरातल पर ढूढ़ते हैं तो यह सारे दावे व वादे सिर्फ़ कागज़ों व भाषणों में ही नज़र आते हैं, हक़ीक़त में कहीं कुछ काम खोजने से भी नहीं मिलता.
राजस्थान के सामाजिक कार्यकर्ता आसिफ़ अहमद के मुताबिक़ जो थोड़े-बहुत काम इस स्कीम के तहत हुए भी हैं, तो उन्हें जान-बुझकर ऐसे इलाक़े में कराया गया है, जहां अल्पसंख्यकों का नामो-निशान तक नहीं है.
इतना ही नहीं, कई राज्यों में इस स्कीम को लेकर कई घोटाले की भी ख़बर वक़्त बवक़्त आती रही है. जिन पर TwoCircles.netबाद में विस्तार से चर्चा करेगी.
लेकिन आज यहां चिंता का विषय यह है कि एक तरफ़ हमारी सरकार ‘सबका साथ –सबका विकास’ जैसे नारे पर चलने की क़समें खाती है, वहीं दूसरी तरफ़ एक ख़ास तबक़े के लिए चलाए जा रहे सबसे महत्वपूर्ण स्कीम पर कैंची चलाकर उसने इस स्कीम की जड़े हिलाने की कोशिश भी की है. इससे यह समझना साफ़ हो गया है कि भविष्य में सरकार का इरादा क्या है.
पहले तो बजट ही ऊँट के मुँह में जीरे के समान रखा गया. लेकिन यह जीरा भी ऊँट के मुँह में नहीं गया. इससे भी कड़वा सच यह है कि जो पैसा खर्च हुआ उसका भी बड़ा हिस्सा नेताओं और अफ़सरों की जेब में चला गया.
यह कितना अजीब है कि अल्पसंख्यकों के शैक्षिक, सामाजिक व आर्थिक उत्थान एवं कल्याण के लिए शुरु की गई तमाम सरकारी योजनाओं ने कागजों पर ही दम तोड़ दिया और हमारे नेताओं ने इनकी फातेहा तक नहीं पढ़ी.
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