Afroz Alam Sahil, TwoCircles.net
अल्पसंख्यक तबक़े से ताल्लुक़ रखने वाले छात्रों के तालीम का एक बड़ा सहारा उनको मिलने वाली स्कॉलरशिप होती है. और शायद सरकार का भी यही मक़सद रहा है कि अनुसूचित जाति-जनजाति और पिछड़ा वर्ग के साथ-साथ अल्पसंख्यक तबक़े के छात्र-छात्राओं को भी पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति मुहैया कराई जाए ताकि उनकी पढ़ाई में आने वाली आर्थिक परेशानी को दूर किया जा सके. और यह सच भी है कि देश के ऐसे हज़ारों अल्पसंख्यक छात्र सरकार के इसी स्कॉलरशिप के सहारे अपनी तालीम पूरी कर अपने पैरों पर खड़े हो सके हैं.
मगर इन दिनों ‘सबका साथ –सबका विकास’ का दावा करने वाली मोदी सरकार ने इस ‘सहारे’ पर भी चोट करना शुरू कर दिया है. मोदी सरकार के इस शासन में न सिर्फ़ अल्पसंख्यक छात्रों को स्कॉलरशिप बांटने की पूरी प्रक्रिया सवालों के घेरे में है, बल्कि अल्पसंख्यक बच्चों को मिलने वाले स्कॉलरशिप के बजट को भी इस नए वित्तीय वर्ष में घटा दिया गया है.
सरकार अल्पसंख्यक छात्रों के शैक्षिक बदहाली को दूर करने की नियत रखते हुए प्रमुख तौर पर तीन स्कॉलरशिप स्कीम इस देश में चला रही है. पहला प्री मैट्रिक स्कॉलरशिप, पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप और तीसरा मेरिट कम मिन्स स्कॉलरशिप... इन तीनों स्कॉलरशिप को लेकर अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के दावे काफी ज़बरदस्त रहे हैं. सरकार का दावा है कि साल 2014-15 में पूरे भारत में 86 लाख प्री मैट्रिक और पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप बांटी गई हैं. लेकिन जिन हाथों को ये स्कॉलरशिप मिलनी चाहिए, जैसे ही TwoCircles.netउनसे बात करती है, सच की सारी परतें खुलकर सामने आ जाती हैं.
TwoCircles.netके पास मौजूद दस्तावेज़ बताते हैं कि इस बार के बजट में मोदी सरकार ने अल्पसंख्यक छात्रों के स्कॉलरशिप पर जमकर कैंची चलाई है.
अल्पसंख्यक छात्रों के लिए सबसे महत्वपूर्ण स्कॉलरशिप यानी प्री-मैट्रिक मैट्रिक स्कॉलरशिप का बजट साल 2015-16 में 1040.10 करोड़ रखा गया था, लेकिन इस बार के प्रस्तावित बजट में इसे 931 करोड़ कर दिया गया है.
यही कहानी पोस्ट-मैट्रिक स्कॉलरशिप की भी है. पिछले साल यानी 2015-16 में इस स्कॉलरशिप के लिए 580.10 करोड़ का बजट प्रस्तावित किया गया था, लेकिन इस बार इसे घटाकर 550 करोड़ कर दिया गया है.
यदि आंकड़ों की बात करें तो TwoCircles.netके पास मौजूद दस्तावेज़ बताते हैं कि साल 2015-16 में प्री-मैट्रिक मैट्रिक स्कॉलरशिप के लिए 1040.10 करोड़ का बजट रखा गया, लेकिन जून 2015 तक इसके नाम पर सिर्फ़ 0.02 करोड़ ही खर्च किया जा सका है.
साल 2014-15 की कहानी थोड़ी अलग है. सरकार अल्पसंख्यक छात्रों पर इस साल ज़्यादा मेहरबान रही. इस साल इस स्कॉलरशिप के लिए 1100 करोड़ का बजट रखा गया था, लेकिन रिलीज़ किया गया 1130 करोड़ और खर्च 1128.84 करोड़ कर दिया गया.
पोस्ट-मैट्रिक स्कॉलरशिप के लिए साल 2015-16 में 580.10 करोड़ का बजट रखा गया, लेकिन जून 2015 तक इसके नाम पर सिर्फ़ 0.01 करोड़ ही खर्च किया जा सका है.
साल 2014-15 में इस स्कॉलरशिप के लिए 598.50 का बजट रखा गया था और सारा धन-राशि रिलीज़ भी कर दिया गया और खर्च 501.32 करोड़ किया गया.
व्यावसायिक और तकनीकी पाठ्यक्रमों स्नातक और स्नातकोत्तर कोर्सेज के लिए योग्यता सह साधन छात्रवृत्ति योजना यानी मेरिट कम मिन्स स्कॉलरशिप के लिए साल 2015-16 में 335 करोड़ का बजट रखा गया, लेकिन जून 2015 तक इसके नाम पर सिर्फ़ 26.33 करोड़ ही खर्च किया जा सका है.
साल 2014-15 में सरकार इस स्कॉलरशिप के लिए कुछ ज़्यादा ही मेहरबान दिखी. इस स्कॉलरशिप के लिए 335 का बजट रखा गया था, लेकिन रिलीज़ 350 करोड़ कर दिया गया और खर्च उससे अधिक किया गया. इस साल इस स्कॉलरशिप पर 381.38 करोड़ खर्च किए गए.
अब यदि इन सरकारी आंकड़ों की बात छोड़ दिया जाए तो ज़मीनी हक़ीक़त यह बताते हैं कि साल 2014-15 के स्कॉलरशिप आज तक कई हज़ार छात्रों को नहीं मिल सका है. आलम तो यह है कि वित्तीय साल 2015-16 अब ख़त्म होने वाला है, लेकिन अब तक किसी भी छात्र को स्कॉलरशिप नहीं मिल सका है.
सामाजिक संस्था ‘मिशन तालीम’ के राष्ट्रीय सचिव एकरामुल हक़ बताते हैं कि सरकार की नियत कभी भी इस स्कॉलरशिप को लेकर साफ़ नहीं रही है. साल 2014-15 में हज़ारों ऐसी शिकायतें सामने आई हैं, जिसमें छात्रों के स्कॉलरशिप जान-बुझ कर डाकिया वापस लेकर चला गया, और फिर तमाम चक्कर लगाने के बाद भी उन छात्रों को आज तक कुछ भी नहीं मिल सका. 2015-16 की कहानी तो और भी भयावह है. अभी तक छात्रों की स्कॉलरशिप नहीं बंट सकी है.
कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती. पिछले दो सालों में अनेक ऐसी ख़बरें मीडिया में आई हैं और खुद TwoCircles.netके इस संवाददाता से कई राज्यों के सैकड़ों छात्रों ने मिलकर शिकायत की है.
एक ख़बर के मुताबिक़ साल 2014-15 में कई राज्यों के प्राइवेट स्कूल में शिक्षा ग्रहण कर रहे बच्चों की प्री-मैट्रिक स्कॉलरशिप की राशि 5700 से घटाकर 1000 रुपये कर दी गई है. उन राज्यों के शिक्षा विभाग का कहना है कि केंद्र सरकार ने जो बजट जारी किया है, उसी हिसाब से स्कॉलरशिप बांटी जा रही है. जबकि योजना में सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले पहली से दसवीं तक के छात्रों को एक हजार रुपये तथा निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को 5700 रुपये छात्रवृत्ति दिए जाने का प्रावधान है.
वहीं हाल के एक ख़बर के मुताबिक़ राजस्थान में खाते में 3 माह से लेनदेन होने पर अल्पसंख्यक छात्रों की स्कॉलरशिप अटक सकती है. यानी इस साल उन्हीं विद्यार्थियों के बैंक अकाउंट में राशि आएगी जिनका बैंक अकाउंट में लेन देने हुए 90 दिन से अधिक समय नहीं हुआ हो.
अब सवाल यह है कि साल 2014-15 में सरकार अल्पसंख्यक छात्रों पर इतना मेहरबान क्यों दिखा? क्या सरकार की मंशा वाक़ई अल्पसंख्यक छात्रों की आर्थिक मदद करना था या कहानी कुछ और है?
जब हम इस सवाल को लेकर गंभीरता से विश्लेषण करते हैं तो पाते हैं कि सरकार की नियत अल्पसंख्यक छात्रों को दिए जाने वाले स्कॉलरशिप को लेकर कभी भी साफ़ नहीं रहा. ऐसे सैकड़ों ख़बरें पिछले सालों मीडिया में आई हैं, जिससे सरकार की मंशा को आसानी से समझा जा सकता है.
एक ख़बर के मुताबिक़ छत्तीसगढ़ के दुर्ग ज़िला शिक्षा विभाग में स्कॉलरशिप वितरण में एक करोड़ पांच लाख रुपए की गड़बड़ी का मामला सामने आया है. गड़बड़ी की पुष्टि इसलिए हो सकी क्योंकि इन रुपयों का विभाग के पास न कोई हिसाब है, न कोई रिकॉर्ड है और न ही कोई कैश बुक...
घोटाले का एक मामला उत्तर प्रदेश में भी देखने को मिल रहा है. यहां के सिर्फ़ बस्ती ज़िला में पिछले चार सालों में 2.50 करोड़ के गबन का मामला सामने आया है. यहां के ज़िला समाज कल्याण अधिकारी की शिकायत पर कोतवाली पुलिस ने 11 स्कूलों के मैनेजरों के खिलाफ़ स्कॉलरशिप हड़पने का केस दर्ज कराया है. इस एफ़आईआर के मुताबिक़ इन स्कूलों में बच्चों की फ़र्जी संख्या दिखाकर स्कॉलरशिप का पैसा हड़पा जा रहा था. मौके पर जाकर जांच करने पर स्कूलों में केवल 5 से 7 बच्चे ही नामांकित मिले, जबकि फाइलों में इनकी संख्या 250 दिखाकर स्कॉलरशिप ली जा रही थी.
ऐसे ही कई मामले उत्तर प्रदेश के दूसरों ज़िलों में भी सामने आए हैं. वाराणसी व मुरादाबाद का नाम यहां प्रमुखता से लिया जा सकता है.
राजस्थान में भी बीजेपी विधायक हबीबुर्रहमान ने सदन के भीतर और बाहर अल्पसंख्यक छात्रों के स्कॉलरशिप के नाम पर टोंक ज़िले में 4.25 करोड रुपए के घोटाले पर सवाल उठाए हैं. हबीबुर्रहमान ने यह भी आरोप लगाया है कि इस साल 30 फसदी बजट कम कर दिया गया है.
घोटाले का नाम आया है तो इसमें मध्य प्रदेश का नाम कैसे पीछे रह सकता है. इस प्रदेश के सिर्फ़ सागर ज़िले में पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की जांच में दोहरी स्कॉलरशिप के अब तक 2713 मामले सामने आ चुके हैं. शिक्षा विभाग के विशेषज्ञों की मानें तो शासन को इस दोहरी स्कॉलरशिप के मामले के ज़रिए क़रीब डेढ़ करोड़ का चूना लगाया गया है.
घोटालों की यह कहानी तो महज़ एक झलक है. ऐसे बेशुमार घोटालों के मामले लगातार हमारे सामने आते रहे हैं. TwoCircles.netजल्द ही इन तमाम घोटालों की परत दर परत खोलकर आपके सामने रखने कोशिश करेगा.
बहरहाल भविष्य में इन स्कॉलरशिप स्कीमों का हश्र क्या होने वाला है, इस बात का अंदाज़ा आप इस बात से ही लगा सकते हैं कि जब बीजेपी विपक्ष में थी तो इनके तमाम नेता इस स्कॉलरशिप स्कीम को तुष्टीकरण की संज्ञा देते हुए इसे भारत के संविधान के धर्मनिरपेक्षता के तत्व के ख़िलाफ़ मानते रहे हैं. खुद पीएम मोदी, जब गुजरात के सीएम थे तो इस स्कॉलरशिप स्कीम का विरोध किया था. अदालत के हस्तक्षेप के बाद उन्होंने अपने शासन के अंतिम सालों में अदालत के आदेश को मानते हुए मजबूरन अपने राज्य में लागू किया था.
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