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‘सीखो और कमाओ’ : न एक्सपर्ट ट्रेनिंग और न ही रोज़गार के मौक़े

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Afroz Alam Sahil, TwoCircles.net

केन्द्र सरकार की ‘सीखो और कमाओ’ स्कीम ने बेरोज़गार अल्पसंख्यक युवाओं में खासी उम्मीदें जगाई थीं. इस स्कीम के भरोसे अल्पसंख्यक युवाओं ने अपने पैरों पर खड़े होने के सपने पाल लिए थे. स्कीम का मूलमंत्र अल्पसंख्यक युवाओं को प्रशिक्षण देकर स्वालंबी बनाना था. इसके लिए अच्छे-खासे फंड्स का इंतेज़ाम भी किया गया, मगर ये पूरी की पूरी योजना कागज़ों पर ही धाराशाई होती नज़र आ रही है. ज़मीन पर इसका क्रियान्वयन न के बराबर ही नज़र आता है.

आलम यह है कि जिन अल्पसंख्यक युवाओं ने इस स्कीम के साथ खुद को शामिल किया था, उन्हें न तो एक्सपर्ट ट्रेनिंग नसीब हो पाई और न ही रोज़गार के मौक़े ही हासिल हुए. कागज़ों में ट्रेनिंग हासिल किए हज़ारों युवा आज भी बेरोज़गार हैं. साथ ही सरकार से उनकी नाउम्मीदी भी बढ़ी है कि –यह सरकार उनके लिए कुछ नहीं कर सकती. उनके ‘अच्छे दिन’ कम से कम इस सरकार में तो आने वाले नहीं हैं...

स्पष्ट रहे कि इस स्कीम की शुरूआत यूपीए सरकार ने 23 सितम्बर 2013 को की थी. इस स्कीम का असल मक़सद अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़े मौजूदा श्रमिकों, विद्यालय छोड़ चुके छात्र/छात्राओं में रोज़गार योग्यता को विकसित और उनके लिए रोज़गार को सुनिश्चित करना है.

TwoCircles.netको अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय से उपलब्ध आंकड़ें बताते हैं कि पहले साल यानी 2012-13 में इस स्कीम के लिए मात्र 20 करोड़ का बजट आवंटित किया गया, लेकिन रिलीज़ 5 लाख रूपये ही किया गया और यह रक़म भी सरकारी तिजोरी का शोभा बढ़ाता रहा.

साल 2013-14 में इस स्कीम के लिए 17 करोड़ का बजट रखा गया. 17 करोड़ रिलीज़ भी किया गया और 16.99 करोड़ रूपये खर्च भी हुए.

2014 में सत्ता में नरेन्द्र मोदी की सरकार आई. यह सरकार इस स्कीम को लेकर काफी सजग नज़र आई. इसके आते ही साल 2014-15 में इस स्कीम का बजट बढ़ाकर 35 करोड़ कर दिया गया. जब रिलीज़ करने की बारी आई तो सरकार और भी अधिक मेहरबान हुई और 46.23 करोड़ रूपया रिलीज़ किया गया. और खर्च भी दिल खोलकर किया गया. इस साल पूरे 46.21 करोड़ रूपये इस स्कीम पर खर्च हुए.

साल 2015-16 में इस स्कीम के लिए 67.45 करोड़ का बजट आवंटित किया गया था, लेकिन जून 2015 तक के उपलब्ध आंकड़ें बताते हैं कि इसमें सिर्फ़ 24.66 करोड़ ही खर्च किया गया. हालांकि वर्तमान बजट में सरकार ने इस स्कीम का बजट बढ़ाकर 210 करोड़ कर दिया है.

सरकार का दावा है कि इस स्कीम के तहत 2015-16 के लिए 1,13,000 लाभार्थियों को प्रशिक्षित करने का लक्ष्य है. इसके लिए बजट आवंटन 192.45 करोड़ रुपए (संशोधित आवंटन) का है. लेकिन वही सरकार यह बताती है कि दिसम्बर 2015 तक 20,980 प्रशिक्षुओं के प्रशिक्षण के लिए 34.34 करोड़ रुपए मंजूर किए गए हैं.

सरकारी आंकड़ें बताते हैं कि 2014-15 के दौरान 20,720 प्रशिक्षुओं के प्रशिक्षित किया गया. साथ ही अब तक पीआईए द्वारा 11919 प्रशिक्षित लोगों को विभिन्न क्षेत्रों में नौकरियां दिलवाईं हैं. यही नहीं, मंत्रालय ने अपने अंतर्गत काम करने वाले राष्ट्रीय अल्पसंख्यक विकास एवं आर्थिक निगम (एनएमडीएफसी) और मारुति सुजूकी इंडिया लिमिटेड के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर कराकर अल्पसंख्यकों के लिए ड्राइविंग प्रशिक्षण की व्यवस्था की, जिसके तहत दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं उत्तर प्रदेश में 2,515 अल्पसंख्यक युवाओं को ड्राइविंग का प्रशिक्षण दिया गया.

लेकिन प्रशिक्षण हासिल करने वाले अब्दुल तालिब का कहना है कि इस प्रशिक्षण के नाम पर सिर्फ ठगने का काम किया जा रहा है. प्रशिक्षण के पहले दिन सिर्फ़ फोटो खिंचाकर प्रशिक्षण देने वाले गायब नज़र आएं. बीच-बीच में जैसे-तैसे खानापूर्ति करके आख़िर में सर्टिफिकेट थमा दिया गया. यानी इसका कोई लाभ मुझे नहीं मिला.

वैसे ही लखनऊ के शमशेर अली का कहना है कि मुझे ड्राईविंग पहले से आती थी. फिर भी मैंने प्रशिक्षण हासिल किया लेकिन आज तक सरकार की ओर से कहीं कोई नौकरी नहीं दिलाई गई.

तबरेज़ व अदनान की भी शिकायत है कि एक तो इस स्कीम के प्रशिक्षण कार्यक्रम में अल्पसंख्यक युवाओं से अधिक बहुसंख्यक समुदाय के युवा होते हैं और थोड़ा-बहुत जो प्लेसमेंट होता है, उसमें भी बहुसंख्यक तबक़े के युवाओं को ही तरजीह दी जाती है.

झारखंड के रांची से संबंध रखने वाले सामाजिक कार्यकर्ता हबीब अख्तर बताते हैं कि इस स्कीम का कोई फायदा झारखंड के मुस्लिम युवक या युवतियों को आज तक नहीं मिल पाया है. तीन साल गुज़र जाने के बाद भी झारखंड के अल्पसंख्यक बेरोज़गार युवकों को रोज़गार से जोड़ने की कोई क़वायद शुरू नहीं हो पाई है.

यानी इन युवकों की बात अगर सच माने तो केन्द्र सरकार की ‘सीखो और कमाओ’ नामक इस स्कीम पर पानी फिरता नज़र आ रहा है. स्कीम का मक़सद अल्पसंख्यक बेरोज़गार युवकों को प्रशिक्षण देकर अपने पैरों पर खड़ा करना था, मगर हक़ीक़त में न तो किसी एक्सपर्ट ट्रेनिंग का इंतेज़ाम है और न ही अवसरों की कोई सौगात. बड़ी उम्मीदों के साथ अल्पसंख्यक युवा इस स्कीम से आस लगाए बैठे थे, मगर समय बीतने के साथ उनकी आशाओं पर वज्रपात हो चुका है.

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