By सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net
वाराणसी:इस रविवार काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के फैकल्टी ऑफ आर्ट्स में आयोजित इस व्याख्यान में जेएनयू के प्रोफ़ेसर, प्रसिद्ध समाजशास्त्री और हिंदी के कवि बद्रीनारायण का अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के कार्यकर्ताओं ने जमकर विरोध किया और अपमानजनक नारेबाजी भी की.
दरअसल बद्रीनारायण बीएचयू में ‘हाशिए का समाज और विकासशील भारत’ विषय पर व्याख्यान देने आए थे. दोपहर २ बजे यह व्याख्यान शुरू हुआ, जिसमें बद्रीनारायण ने दलित और हाशिए के अनु समुदायों और विकासशील भारत के साथ-साथ वर्तमान परिदृश्य में उनके हालातों पर चर्चा की. बद्रीनारायण का वक्तव्य ख़त्म होने के बाद प्रसिद्द कथाकार और साहित्य अकादमी सम्मान लौटा देने वाले काशीनाथ सिंह अपना अध्यक्षीय भाषण दे रहे थे.
ठीक इसी समय नारे लगाते, भारत का झंडा लिए, सर पर केसरिया कपड़ा बांधे करीब सौ लड़के सभागार में घुस आए. सभी के हाथों में तख्तियां थीं, जिन पर जेएनयू को देशद्रोही संगठन करार दिया गया था, देशद्रोहियों को सजा दी गयी थी. उन्होंने हाथों में सियाचिन में मारे गए सभी जवानों की तस्वीरें भी ली हुई थीं.
बद्रीनारायण को मंच पर देखते ही कुछ लोगों ने ‘मारो गोली सालों को’, ‘मारो जूता खींच के’ सरीखे भयाक्रांत और अपमानजनक नारे लगाने शुरू कर दिया. कुछ लड़के मंच पर चढ़ने का प्रयास भी करने लगे, जिनकी देहभाषा हिंसक लग रही थी. सभागार में उपस्थित लेखकों और कवियों के प्रयास से उन्हें रोका जा सका.
बाद में मंच पर उपस्थित लेखकों से कहने लगे कि वे जेएनयू के प्रोफ़ेसर को यहाँ से भेज दें. उनकी मांगों में जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया के कथित ‘देशद्रोह’ की निंदा करना भी शामिल था. लेखकों और कवियों ने जवाब में कहा कि किसी सरकारी संस्थान के अध्यापक को कहीं भी क्यों बुलाया जाए इसके लिए एबीवीपी के छात्रों को सरकार से बात करनी होगी और यदि देश में कहीं भी देशद्रोह की घटना हो रही है, तो वे उसकी निंदा करते हैं.
करीब पंद्रह मिनट तक चले इस तमाशे के बाद वे सभी नारे लगाते हुए हॉल से बाहर चले गए. वक्तव्य के बाद शुरू हुए काव्यपाठ में सभी कवियों ने प्रदर्शनकारियों की इस हरक़त की घोर निंदा की. कमोबेश सभी कवियों ने साम्प्रदायिक शक्तियों और पूंजीवादी ताकतों के खिलाफ कवितायेँ पढ़ीं और अपने संक्षिप्त वक्तव्यों से समाज के हाशिए के समुदायों का समर्थन किया.
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय को एक लम्बे समय से देश के हिंदूवादी दक्षिणपंथी राजनीति का गढ़ माना जाता रहा है. यहां नियमित तौर पर संघ की शाखाएं लगती हैं और एबीवीपी का वाराणसी प्रकोष्ठ अपने वजूद में काफी मजबूत है. लेखक संगठनों ने देश के जाने-माने समाजशास्त्री और जेएनयू के प्रोफ़ेसर के खिलाफ इस हरक़त की कड़े शब्दों में निंदा की है और कहा है कि यह हरक़त देश में बढ़ती असहिष्णुता की और इशारा है.
इस खबर के साथ संलग्न वीडियो को बनाते समय एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने मोबाइल को जेब में रखने की धमकी दी. बाद में जब हम सभागार से बाहर निकले तो कार्यकर्ताओं ने हमारे मोबाइल छीनने के प्रयास किए. हमने यह बताया कि हम मीडिया से हैं तो उन्होंने कहा, 'तो कौन-से तोप हैं?'और इसी के साथ उन्होंने हमारे साथ धक्कामुक्की शुरू कर दी और पास खड़े लोगों के बीच-बचाव से मामला सुलझ सका.