Quantcast
Channel: TwoCircles.net - हिन्दी
Viewing all articles
Browse latest Browse all 597

तो क्या आरएसएस ही राष्ट्र है और जो उसके खिलाफ़ है वो राष्ट्रद्रोही?

$
0
0

Afroz Alam Sahil, TwoCircles.net

एक थे नाथूराम गोडसे... जिन्होंने हमारे देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या की. जिन्हें 1959 में पंजाब की अम्बाला जेल में फांसी पर लटका दिया गया. भारत में एक वर्ग आज भी बड़ी शान से इनकी पूजा करता है. महात्मा गांधी की पुण्यतिथी को ‘शौर्य दिवस’ के रूप में मनाता है और उनके विचारों पर चलने की क़समें खाता है.

बल्कि ये तबक़ा तो खुलेआम बयान देता है कि –‘गोडसे जी हमारे अराध्य हैं. हम उन्हें हत्यारा नहीं मानते. उन्होंने अन्याय के खिलाफ़ आवाज़ उठाई, इसलिए हम उनका अनुकरण करते हैं और उनका संदेश जन-जन तक पहुंचाने के लिए 30 जनवरी के दिन को शौर्य दिवस के रूप में मनाते हैं.’

एक थे अफ़ज़ल गुरू... जो भारतीय संसद पर हुए आतंकवादी हमले के दोषी हैं. जिन्हें 2013 में दिल्ली के तिहाड़ जेल में फांसी पर चढ़ा दिया गया. भारत का एक वर्ग अफ़ज़ल गुरू को निर्दोष मानता है. और कश्मीर की आज़ादी की बात करता है.

पहला समूह अब राष्ट्रवादी है और खुद को राष्ट्रभक्त मानता है और दूसरे समूह को वो राष्ट्रद्रोही... इस समूह की नज़र में अब शाहरूख व आमिर ख़ान भी देशद्रोही हैं, क्योंकि इन्होंने मुल्क में बढ़ते असहिष्णुता के ख़िलाफ़ बोला था.

जबकि दूसरा समूह ये मानता है कि इनका राष्ट्रवाद झूठा है. असल मक़सद बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा बनाए गए संविधान को ख़त्म करके भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना है. असल में देशद्रोही तो ये आज के तथाकथित ‘देशभक्त’ हैं, जो देश को जोड़ने के बजाए तोड़ने का काम कर रहे हैं.

इस दूसरे समूह का सवाल है कि अफ़ज़ल गुरु की फांसी की चर्चा अगर राष्ट्रद्रोह है तो नाथूराम गोडसे की फांसी की चर्चा और उसका महिमामंडन ‘गंगा स्नान’ कैसे हो सकता है?

दूसरे समूह का सवाल है कि अगर अफ़ज़ल गुरू के फांसी पर इस देश में चर्चा नहीं हो सकती, तो फिर नाथूराम गोडसे की फांसी पर देश में पिछले 56 सालों से चर्चा क्यों हो रही है? आख़िर दोनों को सज़ा इस देश की सर्वोच्य न्यायालय ने दिया है. दोनों को दोषी इसी न्यायालय ने माना है. ऐसे में अफ़ज़ल गुरू पर चर्चा राष्ट्रद्रोह है, तो नाथूराम गोडसे पर चर्चा देशभक्ति कैसे हो सकती है? अगर किसी दुकान पर गोडसे की किताब –“मैंने गाँधी को क्यों मारा” या उसके भाई की किताब “गाँधी वध क्यों” बिकती हुई दिखती है तो उस दुकान पर, उसके प्रकाशक पर देशद्रोह का मुक़दमा क्यों नहीं चलना चाहिए?

यानी इस दूसरे समूह के कई सवाल हैं, जिसका स्पष्ट जवाब पहले समूह के पास दूर-दूर तक नज़र नहीं आता.

और सबसे गंभीर बात यह है कि इस ‘राष्ट्रवाद’ और ‘राष्ट्रद्रोह’ के पीछे जो देश के असल मुद्दे हैं, वो कहीं न कहीं पीछे छूटते नज़र आ रहे हैं. वो है इस देश में आम आदमी की समस्या...

यह कितनी हैरान कर देने वाली बात है कि मुल्क में बढ़ती महंगाई पर कोई बात नहीं कर रहा है. अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में तेल के दाम घटे हैं, पर हमारे मुल्क में इनके दाम वहीं के वहीं हैं, लेकिन इन पर कोई चर्चा नहीं हो रही है. देश में महंगी होती स्वास्थ्य सेवा या शिक्षा के भगवाकरण पर कोई चर्चा नहीं हो रही है... ऐसे हज़ारों मुद्दे हैं, जिन्हें यहां गिनवाया जा सकता है. लेकिन आज मैं भी इनकी चर्चा यहां नहीं करूंगा. ये समस्याएं आज मेरे लेख के मुद्दा नहीं हैं.

मुद्दा आज जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार की गिरफ़्तारी का है. जिन्हें ‘राष्ट्रद्रोह’ के आरोप में गिरफ़्तार किया गया है और तीन दिन के न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है.

हालांकि जिस ‘पाकिस्तान ज़िन्दाबाद’ का नारा लगाने का आरोप कन्हैया पर लगा है. दरअसल, वो नारा एबीवीपी कार्यकर्ताओं द्वारा लगाया जा रहा था. इस संबंध में एक ताज़ा वीडियो भी सोशल मीडिया पर खूब शेयर किया जा रहा है.

कन्हैया की राष्ट्रभक्ति समझने के लिए गिरफ़्तारी के पूर्व उसके द्वारा दिया गया भाषण ही काफी है, जिसका वीडियो यू-ट्यूब पर मौजूद है. इस वीडियो में वह स्पष्ट तौर पर भारतीय संविधान का सम्मान करने की बात कह रहा है. पाकिस्तान जिंदाबाद के नारा लगाने वालों के खिलाफ़ कार्रवाई की मांग कर रहा है.

दरअसल, इस खेल के पीछे एबीवीपी का हाथ है और उसी के आन्दोलन के बाद कन्हैया को गिरफ़्तार किया गया. तो ऐसे में यह बिल्कुल स्पष्ट बात है कि महज़ पाकिस्तान जिंदाबाद कह देने भर से कन्हैया की गिरफ्तारी नहीं हुई है. असल सबब कुछ और है.

जेएनयू के छात्रों की माने तो इस गिरफ्तारी का सबब कन्हैया द्वारा फासिस्टों को ललकारना है. वो अपने इस वीडियो में नागपुरिया और झंडेवालान से प्रकाशित-प्रसारित संघी संविधान को भी ललकार रहा है. वो संघियों से सवाल कर रहा है कि ‘जंग-ए-आज़ादी’ में तुम अंग्रेजों के साथ मिलकर भारतीयों पर गोलियां चलाया करते थे, फिर आज देशभक्ती का सर्टिफिकेट बांटने का अधिकार तुम्हारे पास कहां से आ गया?

इस वीडियो में कन्हैया के सारे सवाल चुभने वाले हैं और संघियों के दिमाग़ में इसकी चुभन इतनी अधिक बढ़ी कि इस देश के गृहमंत्री को इस मसले पर बयान देना पड़ा और इसी प्रतिक्रिया में कन्हैया को गिरफ़्तार किया गया.

दरअसल, संघियों के निशाने पर जेएनयू पहले से रहा है. और यहां असल मुद्दा शिक्षा के मंदिर कहे जाने वाले शिक्षण संस्थानों पर ‘सरकारी निशाने’ का है. यदि आप ग़ौर से देखेंगे तो पाएंगे कि ये ‘सरकारी निशाना’ उन्हीं संस्थानो पर है, जहां के छात्र आरएसएस के विचार पर सवाल खड़े करते हैं.

हैरानी की बात यह है कि छात्रों द्वारा सवाल खड़े करते ही आरएसएस की विचारधारा के साथ जुड़े केन्द्र की मोदी सरकार, जिसके हाथ में सत्ता है, ताक़त है, वो अपने हर हथकंडे का इस्तेमाल इन छात्रों पर करना शुरू कर देती है. उन छात्रों को टारगेट करने का हर संभव प्रयास किया जाता है, जो आरएसएस के विचारधारा के ख़िलाफ़ होते हैं. पहले पुणे में एफटीआईआई पर हमला, मद्रास आईआईटी पर हमला, हैदराबाद में आईएफएलयू पर हमला और फिर रोहित वेमुला द्वारा ‘आत्महत्या’... हर बार सरकार व संघियों को बैकफुट पर आना पड़ा. और इन तमाम मामलों में जेएनयू के छात्रों ने जमकर सरकार की आलोचना की.

सवाल यह भी है कि जैसे जेएनयू के कुछ छात्रों की हरकतें जितनी अस्वीकार्य और चिंताजनक है, उतनी ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हत्यारे को शूरवीर सिद्ध करते हुए 30 जनवरी को 'शौर्य दिवस'के रूप में मनाने वालों की सिरफिरी हरकतें भी चिंताजनक हैं. लेकिन इस मामले में हमारी मीडिया व सरकार खामोश नज़र आती है. आख़िर क्यों?

यह कितनी हैरानी की बात है कि देश में खुलेआम हिन्दू महासभा व आरएसएस कार्यकर्ता राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि को ‘शौर्य दिवस’ के रूप में मनाते हैं. तिरंगे का विरोध करते हैं, उसे जलाते हैं, लेकिन तब इन राष्ट्र-विरोधियों पर इस देश में कोई बवाल नहीं मचता. इन पर हमारी पुलिस व सरकार कोई कार्रवाई नहीं करती. हमारी मीडिया के एंकरों व पत्रकारों के मुंह को भी 'लकवा'मार जाता है.

दूसरी तरफ़ राजस्थान के एक ज़िले में ‘आरएसएस मुर्दाबाद’ के नारे लगाने पर दर्जनों मुस्लिम नौजवानों पर राष्ट्रद्रोह का मुक़दमा करके इन्हें जेल के सलाखों के पीछे डाल दिया जाता है. सबके सब हरकत में नज़र आते हैं.

ऐसे में सवाल यह पैदा होता है कि आरएसएस का विरोध करने वाले राष्ट्र-विरोधी कैसे हो गए? क्या आरएसएस के ख़िलाफ़ जो विचारधारा है, उनके लिए भारत में कोई जगह नहीं? क्या मौजूदा सरकार में आरएसएस ही राष्ट्र हो गया है? जबकि ये वही आरएसएस है, जिस पर भारत सरकार कभी प्रतिबंध लगा चुकी है और जिसके जिसके कार्यकर्ता और नेताओं ने महात्मा गांधी की हत्या की. जिसने तिरंगे को काफी समय तक स्वीकार नहीं किया. बल्कि आजादी के पहले तो इन्होंने कई बार तिरंगे को फाड़ा और जलाया भी. ये वही आरएसएस है जिसके बहुत सारे लोगों का मानना था कि आजादी के बाद भारत का विलय नेपाल में हो जाना चाहिए, क्योंकि नेपाल दुनिया का एक मात्र हिंदू राष्ट्र है. खुद सावरकर ने नेपाल नरेश को स्वतंत्र भारत का ‘भावी सम्राट’ घोषित किया था. (एएस भिंडे-विनायक दामोदर सावरकर, व्हीर्लस विंड प्रोपोगेंडा 1940, पृष्ठ संख्या 24)

आखिर में सबसे अहम यह बात कि उन्माद किसी भी रंग का क्यों न हो, उसकी भर्त्सना होनी ही चाहिए. आगे अब देखना दिलचस्प होगा कि सरकार ‘पाकिस्तान ज़िन्दाबाद’ के नारे लगाने वाले उन युवकों के खिलाफ़ क्या कार्रवाई करती है. क्योंकि सोशल मीडिया पर जो वीडियो शेयर किया जा रहा है, उसके मुताबिक़ नारा लगाने वाले ‘गुंडे’ एबीवीपी के कार्यकर्ता हैं.


Viewing all articles
Browse latest Browse all 597

Latest Images

Trending Articles





Latest Images