By सिद्धान्त मोहन, TwoCircles.net,
आगरा/ नई दिल्ली: आगरा में मुस्लिम समुदाय की कथित ‘घर-वापसी’ का मुद्दा धीरे-धीरे संसदीय कार्यवाही और केन्द्र सरकार के संचालन को आड़े हाथों लेता नज़र आ रहा है. इस मामले में अभी तक जो भी विकास हुआ है, उसे देखकर यही कहा जा सकता है कि खानापूरी और बहस का दौर पूरे शबाब पर है.
सूत्रों की मानें तो सदर थाने में दर्ज कराई गयी एफ.आई.आर. के मद्देनज़र कोई पुख्ता कार्यवाही अभी तक नहीं की गयी है. मुस्लिम समुदाय के लोग प्रशासन पर पक्षधरता का आरोप लगा रहे हैं, तो हिन्दू कट्टरपंथी उनके खिलाफ़ कार्यवाही होने पर ‘अंजाम देख लेने’ और ‘प्रदर्शन’ करने की धमकियां दे रहे हैं.
वेदनगर स्थित मुस्लिमों की बस्ती (साभार - बीबीसी हिन्दी)
इस मामले में उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य सुहैल अय्यूब ने आगरा जिलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से रिपोर्ट तलब की है. सुहैल अय्यूब ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा, ‘हमने आगरा जिलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से इस मामले के बाबत तीन दिनों के भीतर रिपोर्ट सौंपने को कहा है.’ सुहैल अय्यूब ने यह भी कहा कि ज़मीनी हकीक़त का पता लगाने के लिए आयोग के सदस्य आगरा भी जाएंगे. उनकी आगरा आने की तारीखों का एक-दो दिनों में फ़ैसला हो जाएगा.
इस पूरे विवाद में हाशिए पर सिमटे पड़े पहलू पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है. जिन लोगों ने प्रलोभन और धोखे के साथ हिन्दू धर्म स्वीकार किया, उन लोगों की बातें न तो संसद में हो रही हैं और ना ही किसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में. इन तकरीबन 300 लोगों को तो खुद नहीं पता कि क्या करें और कहां जाएं? वे मझधार में फंसी हुई नाव सरीखे हो गए हैं.
आगरा में आलम तो यह है कि उनकी बस्ती के लोग उन्हें मुस्लिम मानने को तैयार नहीं हैं, साथ ही साथ हिन्दू समाज भी उन्हें हिन्दू नहीं मान रहा है. इसी बस्ती के पास रहने वाले असलम कहते हैं, ‘वे लोग हमारे पास भी आए थे. हम लोग नहीं गए थे. किसी को भी जाने की ज़रूरत नहीं थी. अब मज़हब बदल लेने के बाद कोई भी हमारे साथ क्यों रहेगा?’ असलम चुटकी लेते हुए कहते हैं, ‘इनको तो प्लॉट मिल रहा था. अब तो इन्हें वहां चले जाना चाहिए.’
पास में ही रहने वाले हिन्दू परिवार के मुखिया रामरतन अग्रवाल कहते हैं, ‘हम क्यों मान लें कि वे हिन्दू हैं? वे हमेशा से मुस्लिम थे. आप आज जो भी हों, फ़िर कल आकर कहने लगे कि साहब हम तो आपके जैसे हैं और हमें अपनी जमात में शामिल कर लो, कोई भी क्यों करेगा. जिसने भी इनका धर्मांतरण कराया, ये तो उनकी जिम्मेदारी है कि इनके रहने खाने का प्रबंध करें.’
बात सिर्फ़ असलम या रामरतन जैसे संकुचित सोच वालों की नहीं है, आसपास के इलाकों के लगभग सभी लोग कमोबेश यही राय रखते हैं. इसके बाद रही-सही कसर आगरा के मौलवी समाज ने पूरी कर दी है. कई मौलवियो ने अपने बयानों से इन लोगों को दोराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है. धर्म-परिवर्तन की घटना के बाद जब इन मुस्लिमों को पता चला कि वे मज़हबी स्तर पर ठगी का शिकार हुए हैं, तो इन लोगों ने मौलाना मसरूर रज़ा क़ादरी से जाकर माफ़ी माँगी. मौलाना क़ादरी ने इन्हें माफ़ तो कर दिया लेकिन बाकी मौलवियों ने आनाकानी की.
मौलवियों ने इन लोगों से कहा है कि ये लोग न तो हिन्दू हैं और न ही मुसलमान. इन्हें न तो अल्लाह माफ करेगा और न ही भगवान. दोराहे पर खड़े ये लोग अथाह निराशा से भरे हुए और हरेक उम्मीद पर दम भर रहे हैं. मौलवी समाज के कई लोगों ने बुधवार को इलाके का दौरा किया और इन लोगों को हिदायत भी दी. मौलवी मुदस्सिर खान ने इन लोगों से कहा, ‘आप लोगों को दोबारा निकाह करना होगा. दोबारा कलमा पढ़ना होगा. इस्लाम की अहम हिदायतों को मानना होगा. कुरआन दोबारा पढ़ना होगा. तभी आपको इस्लाम में वापिस लिया जा सकता है.’
रोचक बात ये है कि धर्मांतरण कराने वाले बजरंग दल और संघ के लोग अब मौके पर नज़र नहीं आ रहे हैं. इन लोगों से कथित तौर पर किये गए वादे भी अधूरे पड़े हैं. सही तरीके से देखा जाए तो ये बेघर, बे-पहचान और बे-मज़हब लोग दिनों-दिन ज़िंदगी से दो-चार हो रहे हैं. वेदनगर के बाशिंदे पुलिस और नेताओं के दबाव में अपने-अपने आशियाने छोड़कर जा रहे हैं. गुरूवार की सुबह पुलिस ने इन कबाड़ी लोगों के ठेकेदार इस्माईल को घर से उठा लिया. इस्माईल की पत्नी ने बातचीत में बताया, ‘पुलिसवाले कह रहे थे कि इन्हें पूछताछ के लिए ले जाया जा रहा है.’ यदि स्थानीय लोगों का भरोसा करें तो अब तक इस बस्ती से लगभग 10 परिवार जा चुके हैं, लेकिन प्रशासन का कहना है कि चूंकि ये लोग कबाड़ बीनने का काम करते हैं, इसलिए वे अपने काम पर निकल गए हैं.
ईसाई-सामाजिक अधिकारों के पक्षधर और जनकल्याण में समय व्यतीत करने वाले एनजीओ कैथोलिक सेकुलर फोरम(सीएसएफ) ने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी से इस मामले में फ़ौरन कार्यवाही करने की मांग की है. सीएसएफ के सचिव जोसेफ़ डायस के अनुसार एनडीए की सरकार बनने के बाद ‘घर-वापसी’, धर्मांतरण और लव-जेहाद जैसे मुद्दे बेहद तेज़ी से सामने आ रहे हैं. देश की राजधानी दिल्ली में भी कुछ दिनों पहले चर्च पर पत्थर फेंके गए और उसे जला दिया गया. सीएसएफ ने 25 दिसम्बर को ‘ब्लैक क्रिसमस’ से जोड़ने का प्रयास करते हुए कहा है, ‘हम शांतिप्रिय हैं और धर्म चुनने की स्वतंत्रता का सम्मान करते हैं. लेकिन जिस तरह से यह मामला स्वाधीनता का कम और राजनीतिक ज़्यादा लग रहा है, हम इसकी भर्त्सना करते हैं.’
अलीगढ़ में 25 दिसम्बर के मद्देनज़र बांटे गए पर्चे (साभार - एबीपी)
राष्ट्रीय उलमा काउंसिल के प्रदेश अध्यक्ष डा. निज़ामुद्दीन खान ने कहा कि, ‘बजरंग दाल और आरएसएस के कार्यकर्ताओं ने षड्यंत्र के तहत आगरा में बसे गरीब, नादान और कमज़ोर बंगाली मुस्लिम परिवारों को डरा-धमका कर और बीपीएल कार्ड, आधार कार्ड और ज़मीन का लालच देकर जिस प्रकार अपने धर्म से हटाकर हिन्दू बनाने की कोशिश की है, वह क़ानून और संविधान के विरुद्ध है. यह एक सघन अपराध है और साथ ही साथ साम्प्रदायिक एकता और भाई-चारे के लिए बहुत ही हानिकारक है.’ निज़ामुद्दीन खान ने यह भी कहा, ‘योगी आदित्यनाथ जिस प्रकार मुसलमानों के विरुद्ध आपत्तिजनक, भड़काऊ, अनर्गल व उत्तेजनात्मक बातें करते और खुले-आम धमकियाँ देते हैं, उससे दिन-प्रतिदिन पूर्वांचल में साम्प्रदायिक तनाव बढ़ता जा रहा है. अखिलेश सरकार को ज़रूरत है कि वे यथाशीघ्र योगी आदित्यनाथ पर लगाम लगाएं.’
ज़ाहिर है कि अल्पसंख्यक समुदाय का मायूसी और प्रतिरोध का यह स्वर नाजायज़ नहीं है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बजरंग दल के सदस्यों के बयानों से यह साफ़ पता चल जाता है कि ये दल इस धर्मान्तरण के कार्यक्रम को बतौर उपलब्धि देख रहे हैं. आगामी 25 दिसम्बर के दिन अलीगढ में इसी किस्म का एक और ‘घर-वापसी’ कार्यक्रम कराए जाने की योजना है, जिसमें संभवतः 4000 ईसाई व 1000 मुस्लिम शामिल हो सकते हैं. संघ और बजरंग दल के पदाधिकारियों के साथ भाजपा के जाने-पहचाने फायर-ब्रांड प्रचारक योगी आदित्यनाथ भी इस धर्मांतरण कार्यक्रम में शिरकत करेंगे.
आरएसएस के प्रांत प्रचारक राजेश्वर सिंह ने मीडिया से बातचीत में कहा, ‘इन धर्मांतरण कार्यक्रमों में औसतन 1000 परिवारों के धर्मपरिवर्तन पर संघ 50 लाख रूपए खर्च करता है. अकेले ब्रज प्रांत - जिसमें आगरा, फतेहपुर, मथुरा, फिरोजाबाद, मेरठ, मैनपुरी जैसे नगर शामिल हैं – में हमने लगभग 2.73 लाख लोगों की ‘घर-वापसी’ कराई है. इन पैसों का सबसे बड़ा हिस्सा ईंधन में खर्च हो जाता है, बाकी पूजा-पाठ संबंधी तैयारियों में.’ राजेश्वर सिंह ने टाइम्स से बातचीत में दावा किया था कि एक दिन गिरजाघरों की दीवारें गिर जाएंगी और भारत एक सम्पूर्ण हिन्दू राष्ट्र होगा. राजेश्वर सिंह ने यह दावा भी किया है कि ‘वे चर्चों और मस्जिदों की साजिशों को सफल नहीं होने देंगे और अगले दस सालों में वे भारत को एक सम्पूर्ण हिन्दू राष्ट्र बना देंगे.’ राजेश्वर सिंह समेत संघ के कई पदाधिकारियों ने दावा किया है कि संघ ने 50 से भी ज़्यादा गिरजाघरों का अधिग्रहण कर लिया है.
आगे की खबर है कि आगामी क्रिसमस को अलीगढ़ में होने वाले कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए अलीगढ़ में धर्म जागरण समिति की तरफ़ से पर्चे बांटे गए हैं. इस पर्चे पर मुख्य अपीलकर्ता की नाम पर राजेश्वर सिंह का नाम लिखा हुआ है. इस पर्चे पर लोगों से भारी मात्रा में सम्मिलित होने की अपील की गयी है. संघ के सदस्यों और कार्यकर्ताओं ने कहा है कि वे हर हाल में इस कार्यक्रम को सफल बनाएंगे, भले ही जिला प्रशासन उन्हें पहले से नियोजित जगह पर कार्यक्रम करने की अनुमति न दे.
देश की राजनीति का रुख करें तो संसद में विपक्षी दलों ने भाजपा सदस्यों की जवाबदेही को लेकर भयानक तूफ़ान खड़ा कर दिया है. संसदीय कार्यमंत्री वैंकेया नायडू ने सरकार का बचाव करते हुए कहा कि केन्द्र के साथ-साथ सभी राज्यों में भी धर्म-परिवर्तन को लेकर कानून होना चाहिए. लेकिन इसके साथ वैंकेया नायडू ने यह भी कह दिया कि उन्हें अपनी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि पर गर्व है. इन बातों के साथ वैंकेया नायडू ने धर्म-परिवर्तन के कानून का रास्ता साफ़ तो कर दिया लेकिन उनकी बातों से कमोबेश यह भी ज़ाहिर हो रहा था कि सरकार इस मामले में कोई भी कार्यवाही करने को अभी तैयार नहीं है.
इण्डियन मुस्लिम यूनियम लीग के सांसद मोहम्मद बशीर ने भी प्रश्न पूछने के लिए नोटिस दी थी. उन्हें शून्यकाल का वक्त मिला था, लेकिन जब उनके प्रश्न पूछने की बारी आई तो सदन में भागवद्गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ बनाने की बात पर बहस होने लगी. धर्म-परिवर्तन से उठा मुद्दा पूरी तरह घूमकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके औचित्य पर आकर टिक गया. सदन में कोई भी प्रश्न ‘घर-वापसी’ से जुड़ा नहीं मालूम हो रहा था, सभी प्रश्न मूलतः आरएसएस को संबोधित थे. आम आदमी पार्टी के नेता भगवंत मान ने इस बाबत मौजूं सवाल उठाया कि जिन लोगों की ‘घर-वापसी’ हुई है, क्या उन लोगों के पास घर है?
मज़हब बदलने का सबसे बड़ा आधार तो गरीबी और ग़ुरबत है. एक धर्म से अन्य किसी धर्म का रास्ता अख्तियार करना कोई आसान काम नहीं है, अक़सर यह व्यक्तिगत मजबूरी और परेशानी की मद्देनज़र किया जाता है. वर्षों से चल रही पेंशन, रोजगार योजनाएं, घर-आवंटन की योजनाएं किस गर्त में जाती हैं, इसका पता तभी चलता है जब समाज का एक तबका वक्त के दरम्यान अपना गुज़र-बसर बेहद कठिनाई में करता है और इसी कमज़ोरी का फायदा राजनीति उठाती है.
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