By सिद्धान्त मोहन, TwoCircles.net,
भाजपा की मौजूदा सरकार में जो साम्प्रदायिक और सामुदायिक उठापटक देखने को मिल रहा है, उसका लगभग एक वीभत्स स्वरूप इस हफ़्ते की शुरुआत में आगरा में देखने को मिला जब यहां के 57 मुस्लिम परिवारों ने ‘पुरखों की घर-वापसी’ कार्यक्रम में अपना कथित धर्म-परिवर्तन कराकर हिन्दू धर्म स्वीकार कर लिया.
इस मामले की सरगर्मी में तब तक कोई विकास नहीं हुआ था जब तक यह खबर अखबारों में छप नहीं गयी. इसके बाद जिले में मुस्लिम समाज ने अपनी आपत्ति दर्ज करायी तो लोगों को मसले का पता चला.
अज्जू चौहान(दाहिने, भगवा अंगवस्त्र में) मुस्लिम समुदाय के सदस्यों के साथ धर्मान्तरण की प्रक्रिया को संयोजित करते हुए (साभार - द हिन्दू)
दरअसल हुआ यूं कि आगरा के थाना सदर के अंदर आने वाले इलाके देवरी रोड में सोमवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बजरंग दल के संयुक्त प्रयास धर्म जागरण समन्वय विभाग ने एक बड़े धर्म-परिवर्तन के ‘उत्सव’ को अंजाम दिया. इसे ‘पुरखों की घर-वापसी’ का नाम दिया गया. जानकारी के अनुसार इस धर्म-परिवर्तन कार्यक्रम में लगभग 57 मुस्लिम परिवारों के लगभग 270 सदस्यों ने भाग लिया. ब्राह्मणों द्वारा हवन कराकर और मंत्रोच्चार कराकर सभी मुस्लिमों को तिलक लगाया गया. सभी ने मंदिर में माथा टेककर प्रसाद प्राप्त किया और वापिस जाकर अपने घरों पर भगवा झण्डा लगा दिया. कानूनी तौर पर इस मामले की ज़मीनी हकीकत से लोग वाकिफ़ नहीं हैं, लेकिन फ़िर भी इस मामले के तूल पकड़ने के बाद यह मामला प्रथम दृष्टया प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन कराने का मालूम होता है.
हमने इस बाबत कार्यक्रम के संचालकों से बात करने की कोशिश की. लेकिन मामले की गर्माहट बढ़ने के बाद लगभग सभी संचालकों ने या तो फ़ोन उठाना बंद कर दिया या तो वे बातचीत से मुकरते रहे. फ़िर भी यदि सतही बातों को आधार बनाया जाए तो कार्यक्रम में भागीदारी करने वाले दक्षिणपंथी दल इस कार्यक्रम को और ज़्यादा बड़े स्तर पर करवाने की योजना पर काम कर रहे हैं.
बजरंग दल के संयोजक और कार्यक्रम से प्रमुख रूप से जुड़े अज्जू चौहान ने कहा, ‘मीडिया इसे धर्म-परिवर्तन का नाम दे रहा है, लेकिन यह घर-वापसी है. इन लोगों के परिवारों को 50-60 सालों पहले जबरन इस्लाम क़ुबूल करवा दिया गया था, लेकिन तब से ये लोग अपने घर्म में वापसी को लेकर विलाप कर रहे थे. हमने इनकी घर-वापसी कराई है, जो कहीं से गलत नहीं है.’
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रवक्ता मनमोहन ने भी इस मामले को धर्म-परिवर्तन के बजाय घर-वापसी का नाम दिया. संघ विचारक एमजी वैद्य ने कहा, ‘यह कनवर्ज़न नहीं री-कनवर्ज़न है. इन लोगों ने हिन्दू धर्म में वापसी की है, और हम इनका और ऐसे प्रयासों का स्वागत करते हैं.’
भाजपा सांसद और अपने विवादित बयानों के चलते सुर्ख़ियों में बने रहने वाले योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि आगामी 25 दिसम्बर, यानी क्रिसमस के दिन, वे अलीगढ़ में कम से कम 5000 ईसाईयों और मुसलमानों की ‘घर-वापसी’ की अगुवाई और स्वागत करेंगे. कयास लगाए जा रहे हैं कि इस आगामी धर्मांतरण के कार्यक्रम में लगभग 4000 ईसाईयों और 1000 मुस्लिमों के शिरकत करने की सम्भावना है.
योगी आदित्यनाथ के इस बयान से भाजपा के खेमे में मची खलबली साफ़ देखी जा सकती है. एक तरफ़ जब भाजपा खुद को दूर रखकर मुद्दे का कथित समर्थन कर रही थी, उसी समय भाजपा के सांसद के द्वारा आए बयान से न चाहते हुए भी भाजपा की संलिप्तता बढ़ गयी है. धर्म जागरण मंच के सदस्यों ने इस मुहिम को समर्थन दिया है और कहा है कि ऐसी मुहिम से हिन्दू धर्म व धर्मावलंबियों दोनों के गर्व में इज़ाफा होगा.
अब मुद्दा उठता है कि इस धर्म-परिवर्तन की पृष्ठभूमि की ओर रुख करने पर कौन-सी बातें सामने आती हैं? जिस दिन, यानी सोमवार, धर्मांतरण की प्रक्रिया संपन्न हुई, उस दिन धर्मांतरण करा चुके इस्माईल ने कहा, ‘हमने अपनी मर्ज़ी से हिन्दू धर्म क़ुबूल किया है और इसमें किसी का कोई दबाव नहीं है.’ सोमवार को दिए जा रहे इन बयानों के बाद मंगलवार को वही इस्माईल यह कहने लगे कि ‘यह धर्मान्तरण का काम धोखे से किया गया है. हमें इसकी कोई जानकारी नहीं थी.’ पश्चिम बंगाल के बसीहर इलाके से ताल्लुक रखने वाले इस्माईल ने बताया कि वे 12 साल पहले पश्चिम बंगाल से यहां आए थे. वे बताते हैं, ‘करीब 15 दिनों पहले बजरंग दल और भाजपा नेता उनके पास आए थे और कहा था कि कुछ पूजा-पाठ कराना है. इसके बदले वे उन्हें बीपीएल और प्लॉट दिलवाने का वादा कर गए थे.’ पाठकों को यह बता देना आवश्यक है कि इस्माईल ही वह व्यक्ति थे, जिन्होंने इस धर्मांतरण के पूजा-पाठ सम्बन्धी कार्यक्रमों के बाद लोगों के बीच प्रसाद बांटा था.
इस्माईल के बात से कमोबेश यह तो साफ़ हो ही जाता है कि इस घटना के पीछे के मंसूबे क्या हैं? यह कुल मिलाकर धार्मिक भावनाओं को बरगलाने का अनुचित और गैर-कानूनी प्रयास है, जिसके मकसद बेहद अस्पष्ट और संभावित रूप से खतरनाक हो सकते हैं.
धर्मांतरण कराने वाले एक अन्य सदस्य अब्दुल रहमान गाज़ी ने हमसे बातचीत में कहा, ‘हम लोगों को बाद में पता चला कि हमारा धर्मांतरण कर दिया गया है. हमें पहले कहा गया था कि एक अलां-फलां कार्यक्रम है उसके बाद हम सभी के राशन-कार्ड और आधार-कार्ड बनवा दिए जाएंगे. हम उसी फेर में वहां चले गए, जिसके बाद हमें मीडिया से पता चला कि हमारा धर्मांतरण कर दिया गया है.’
धर्म-परिवर्तन की शिकार मुनीरा ने बताया, ‘उन्हें कहा गया कि चलो, सिर्फ़ फोटो खिंचवाना है. उसके बाद बीपीएल, आधार कार्ड और तुम्हारे नाम प्लॉट की रजिस्ट्री हो जाएगी.’ मुनीरा ने आगे बताया, ‘हम चले गए. वहां काली जी की मूर्ति के सामने बहुत पूजा-पाठ हो रहा था. हम सब डर गए थे इसलिए हमने उस वक्त कुछ नहीं बोला. हमसे हवन और पूजा-पाठ करने को कहा गया, हमने किसी भी बात पर कोई भी आपत्ति नहीं की. बाद में हमें खबरों से पता चला कि हमारा धर्म-परिवर्तन करा दिया गया है.’ मुनीरा आगे कहती हैं, ‘हम लोग अभी भी क़ुरआन पढ़ रहे हैं और नमाज़ अता कर रहे हैं.’
इस धर्मान्तरण का शिकार हुए कई अन्य मुस्लिम भी यह कह रहे थे कि बीपीएल, एपीएल, पहचान-पत्र बनवाने और प्लॉट दिलवाने के नाम पर इन कार्यकर्ताओं ने हमारा धर्म परिवर्तन कराया. ऐसे में यह बजरंग दल और संघ के दावों पर सवाल उठना लाज़िम है कि यह ‘घर-वापसी’ का कार्यक्रम था या जबरन ‘घर-बदली’ का.
तथाकथित जबरन धर्म परिवर्तन के शिकार मुस्लिमों की हालत पर गौर करें तो यह तो प्रथम-दृष्टया साफ़ हो जाता है कि ये लोग बेहद गरीब पृष्ठभूमि से आते हैं. दिहाड़ी मजदूरी और अन्य छोटे-मोटे काम इनकी आजीविका के साधन हैं. कहा तो यह भी जा रहा है कि ये मुस्लिम परिवार बांग्लादेश से आए थे लेकिन इस बात के पुख्ता होने में अभी घोर संदेह भी है. इन बातों से यह तो साफ़ हो जाता है कि संघ और बजरंग दल ने इन परिवारों को क्यों चुना? वे माली हालत से मजबूत और पढ़े-लिखे समुदाय के पास नहीं जा सकते थे क्योंकि भारत के कानून और इन हिंदूवादी संगठनों के इतिहास से वाकिफ़ यह तबका मामले की असलियत को बिना किसी देर के भांप जाता.
हिन्दू धर्म परिवर्तन की तकनीकी समस्याओं पर हमने वाराणसी के प्रख्यात कर्मकांडी पं. मुकुंद उपाध्याय से बात की. उन्होंने कहा, ‘किसी भी धर्म से हिन्दू धर्म में परिवर्तित होने की प्रक्रिया बेहद आसान और सर्वविदित है. इसमें इच्छुक को संकल्प लेना होता है कि वह बिना किसी दबाव में सभी देवताओं, नक्षत्रों और ग्रहों की गवाही में हिन्दू धर्म क़ुबूल करता है.’ पं. उपाध्याय ने समस्याओं पर बात करते हुए कहा, ‘इसमें यह जान लेना सबसे ज़रूरी है कि यदि धर्मांतरण किसी प्रलोभन या दबाव में किया गया है तो यह किसी भी नज़रिए से शास्त्र-सम्मत और न्याय-सम्मत नहीं है क्योंकि संकल्प के सिद्धान्त इच्छुक व्यक्ति पर लागू ही नहीं होते.’
इस मामले के बाद आगरा का मुस्लिम समाज बेहद आक्रोश में है. कई मुस्लिम सदस्यों ने बुधवार को मंटोला चौक पर जाम लगा दिया और जिला-प्रशासन से कानूनी कार्यवाही की मांग करने लगे. जिला प्रशासन ने पहले जाम लगाकर विरोध-प्रदर्शन कर रहे इन लोगों को बातचीत से शान्त कराने की कोशिश की, फ़िर भी इन्हें अपनी मांग से न डिगता हुआ और प्रदेश सरकार का रुख देखकर प्रशासन ने सदर थाने में आरोपितों के खिलाफ़ एफ.आई.आर दर्ज़ कराई, जिसके बाद की कानूनी कार्यवाही अभी भी अपेक्षित है.
कैथोलिक सेकुलर फोरम और जमात-ए-इस्लामी हिंद ने इस घटना पर अपनी कड़ी आपत्ति जतायी है. उन्होंने अपनी तरफ़ से जारी की गयी रिलीज़ में कहा है कि यह सरासर धोखाधड़ी और कानूनी जुर्म है. आरएसएस पहले भी ऐसे कामों को अंजाम देती रही है और यह उन्हीं प्रयासों का हिस्सा है.
ऐसा नहीं है कि सिर्फ़ मुस्लिम समुदाय इस बात से खफ़ा है, हिंदूवादी संगठनों ने भी लगभग मोर्चा कस लिया है. शिवसेना के आगरा जिला प्रमुख वीनू लवानिया ने कहा है कि यदि हिंदूवादी संगठनों के खिलाफ़ कोई कार्यवाही हुई तो वे सड़कों पर उतर आएंगे. हिंदूवादी संगठनों के खिलाफ़ कोई कार्यवाही करने से पहले ईसाई संगठनों के खिलाफ़ कार्यवाही की जाए क्योंकि वे भी कई तरीकों से धर्मांतरण कराते रहे हैं.
भाजपा के आगरा महानगर अध्यक्ष नागेन्द्र दूबे ने तो पहले बात करने में आनाकानी की. फ़िर उन्होंने कहा कि ‘भाजपा किसी भी तरीके के धर्मांतरण कार्यक्रमों में हिस्सेदार नहीं है. लेकिन मैं अभी भी कहता हूं कि यदि कोई व्यक्ति स्वेच्छा से कोई भी धर्म स्वीकार करता है, तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए.’ यह पूछने पर कि क्या धर्म-परिवर्तन के शिकार लोगों के आरोप गलत हैं, दूबे जी कहते हैं, ‘अब गलत क्या तो सही क्या? वे किसी के दबाव और भय के कारण ऐसा कह रहे हैं.’
आगरा में धर्मांतरण पर सियासत और धर्म-सभाओं ने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए हैं. जहां एक ओर हिन्दू संत-महंत इसे सही ठहरा रहे हैं, वहीं मुस्लिम धर्म गुरु व सियासतदार कानूनी कार्यवाही की मांग कर रहे हैं. जमीयत उलेमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय महासचिव मौलाना महमूद मदनी दावा करते हुए कहते हैं, ‘मुसलमान ऐसा कतई नहीं कर सकता है. उसे अपने मज़हब से शिक़ायत नहीं है. मुस्लिम समुदाय ही क्यों, कोई भी समुदाय भला ऐसा अपनी मर्ज़ी से क्यों करेगा? यह लालच देकर कराया गया काम है. यह कानूनी तंत्र के खिलाफ़ जाकर किया गया काम है. इस पर बिना देरी के ध्यान देने की और दोषियों को सजा देने की ज़रूरत है.’
माकपा के नेता सीताराम येचुरी और बहुजन समाजवादी पार्टी की नेत्री मायावती ने संसद में भाजपा सरकार और संघ को आड़े हाथों लिया तो संघ की नीतियों के खिलाफ़ लंबे समय से मोर्चा खोले कांग्रेस के दिग्विजय सिंह ने भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. बात जब जवाबदेही पर आई तो भाजपा के उपाध्यक्ष और प्रवक्ता मुख्तार अब्बास नकवी के यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि ‘यह प्रदेश सरकार की जिम्मेदारी है. यह मामला राज्य की कानून-व्यवस्था से जुड़ा हुआ है. केन्द्र सरकार का इस घटना से कोई मतलब नहीं है.’
जानकारों के मुताबिक इस मुहिम से जुड़े संगठनों ने एक तीर से दो निशाने साधे हैं. एक तरफ़ यह कहकर कि ‘पहले ये लोग जबरन मुस्लिम बना दिए गए’, वे हिन्दू-अस्मिता और हिन्दू-गर्व जैसी भावनाओं को सतह पर ले आए. फ़िर इन परिवारों और सदस्यों का धर्म-परिवर्तन कराकर इन्होंने इन्हीं भावनाओं के साथ सहानुभूति और समर्थन प्राप्त किया. ऐसे में पूरा लक्ष्य देश की आबादी के 80.5 फ़ीसदी हिन्दुओं पर केंद्रित है. यह भी साफ़ है कि ऐसा भविष्य में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र किया जा रहा है, ताकि हिन्दू वोटबैंक को भावनात्मक और संख्यात्मक रूप से मजबूत किया जा सके.