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तलाक –एक आम औरत की बिसात ही क्या...?

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Fahmina Hussain, TwoCircles.net

31 साल की यास्मीन से निकाह के समय तो तीन बार ‘क़बूल है’ ज़रूर पूछा गया था, लेकिन जब शौहर ने उसे तीन बार ‘तलाक़’ बोला तो उसमें उसकी मर्ज़ी नहीं शामिल थी, फिर भी मुफ़्ती साहब ने इस तलाक पर अपनी मुहर लगा दी.

बिहार के डेहरी ओन सोन में रहने वाली यास्मीन के तलाक़ को अब 10 साल हो गए हैं. यास्मीन बताती हैं, –‘मेरे शौहर पेंट का काम करते थे. छिटपूट लड़ाई तो हर घर में होती है, लेकिन एक दिन नशे में तीन बार तलाक़ बोला, हालांकि उस समय वो नशे में थे. लेकिन इसके बावजूद उसे तलाक मान लिया गया.’

‘उसके बाद से मैं अलग रहती हूं. अपने भाईयों के घर रहकर अमीर लोगों के घर जाकर झाड़ू-बर्तन का काम करती हूं…’ इतना बोलते ही उसकी आंखें नम हो जाती हैं. आंखों से आंसू छलक पड़ते हैं.

Muslim Women

यह कहानी सिर्फ यास्मीन की ही नहीं है. न जाने इस देश में ऐसी कितनी यास्मीन हैं. जिसे शादी के कुछ ही दिनों बाद तलाक जैसी सज़ा से गुज़ारना पड़ता है. न जाने कितनी ही ऐसी मिसालें हैं, जिसमें आज भी औरतें अपनी इस बदनुमा दाग़ के साथ अपनी ज़िन्दगी गुज़ार रही हैं.

तलाक... तलाक... तलाक... न जाने इस मुद्दे पर कितने ही पन्ने काले किए जा चुके हैं. न जाने कितनी बार बहस हो चुकी है. न जाने कितने बार शरीअत में बदलाव भी हो चुका है. लेकिन हर बार हम कई ऐसे पहलूओं को दरकिनार कर देते हैं, जो इन सबमें सबसे ज़रूरी होता है. उनमें से एक पहलू है –कभी हमने तलाक के बाद उस औरत के जिन्दगी में आए बदलाव पर ग़ौर व फ़िक्र नहीं किया.

गुलनाज़ बानो, जो कि पेशे से आंगनवाड़ी कार्यकर्त्ता हैं. उनकी तलाक को 4 साल हो चुके हैं. तलाक की वजह पूछने पर वो बताती हैं कि –‘सास और उनके बीच होने वाले झगड़े में उनके शौहर में गुस्से में तलाक कह दिया, उसी वक़्त उनके ससुर मौलवी साहब को ले आये और फिर हम अलग र दिए गयें.’

गुलनाज़ आगे बताती हैं कि –‘मेरी एक बेटी है. थोड़ी बड़ी हो चुकी है. स्कूल से लेकर हर जगह एक ‘सोशल-सिक्यूरिटी’ की ज़रूरत पड़ती है. हालांकि इस्लाम दूसरी शादी का अधिकार देता है, लेकिन क्या ज़रूरी है कि जिससे शादी करूं वो मेरी बेटी को अपना ले और आए दिन सौतेले पिता से रेप की ख़बरे पढ़कर दिल डर जाता है.’

ऐसी ही कहानी 21 साल के रुख्साना की भी है. शादी को 4 महीने होते ही तलाक हो गया. वजह पूछने पर बताती हैं कि –‘पहले दिन से ही शौहर को मैं पसंद नहीं थी. उन्हें गोरी बीवी चाहिए थी, लेकिन मेरा रंग थोड़ा कम है.’

फिर वो बताती हैं कि –‘लेकिन शौहर ने मेरा खूब इस्तेमाल किया. चार महीने के बाद पहली विदाई में घर आई. उसके बाद ससुराल से मुझे कोई लेने नहीं आया. मेरे घर वालों की तरफ़ से पूछने पर वहां से तलाक का पेपर आ गया. मेरे अब्बा ने केस फाइल किया है. मामला कोर्ट में चल रहा है. शायद मुझे वापस वो लोग दबाव में आकर रख भी लें या छोड़ दें, पर मेरी ज़िन्दगी पर तो सवाल लग रहे हैं?’ आगे वो यह बोलते हुए रो पड़ती है कि –‘आख़िर इन सब में मेरी क्या ग़लती है...?’

सासाराम की नशीमन खातुन, जो पेशे से टीचर हैं. उनका कहना है कि –‘समाज तलाकशुदा औरतों को बहुत गन्दी निगाह से देखता है. अगर क़ानूनी दांव-पेंच के बाद तलाक मिल भी जाए तो ज़िंदगी भर के ताने से गुज़रना पड़ता है कि लड़की ही की ग़लती होगी.’

रोहतास के अकोढ़ीगोला गांव की रहने वाली 30 साल की रिंकी यादव के पति ने भी उन्हें तलाक दे दिया है. इस तलाक़ में रिंकी की मर्ज़ी शामिल नहीं थी.

वो बताती हैं, –‘मेरे पति शराब पीकर मार-पीट करते थें, पर मैं बर्दाश्त करती रही. पर जब वो किसी और महिला से शादी करना चाहते थे, तब मुझे न चाहकर भी उन्हें तलाक़ देना पड़ा. अभी प्रक्रिया चल रही है, सासाराम कोर्ट में लगभग छह महीने हो गए हैं.’

आगे अपनी बातों में बताती हैं कि अब वो नौकरी की तलाश कर रही हैं, क्योंकि घर वाले बोझ बनने का ताना देते रहते हैं.
हालांकि एक सच यह भी है कि ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता न होने की वजह से महिलाएं कानूनन तलाक़ नहीं ले पाती हैं और आपसी सहमति से वो अलग हो जाती हैं. ऐसे में इन महिलाओं को उनका पूरा हक़ नहीं मिल पाता.

सच तो यह है कि हिन्दू हो या मुस्लिम दोनों ही समुदाय में तलाक को लेकर आज भी हमारे मुल्क में औरतों की राय को ज्यादा तवज्जो नहीं दी जाती. हालांकि पाकिस्तान और बांग्लादेश सहित कई इस्लामी देशों में ट्रिपल तलाक प्रतिबंधित है, लेकिन भारत में अभी भी हालात अलग हैं. मुस्लिम पर्सनल लॉ अभी भी ट्रिपल तलाक की अनुमति देता है.

डेहरी ओन सोन के ईदगाह मस्जिद और मदरसे के आलिम मोहम्मद अलाऊ हाफ़िज़ (50) से तलाक के बारे में पूछने पर बताते हैं -‘अगर शौहर ने अपनी बीबी को तीन बार तलाक़ बोल दिया तो इस दुनिया का कोई क़ानून उसे नहीं बदल सकता. इस्लाम में तलाक़ देने का हक़ केवल मर्दों को है, औरतों को नहीं. इसलिए तो शौहर को मज़िज़े-खुदा का दर्ज़ा दिया गया है, अगर औरतें अपने पति से परेशान है तो वो काज़ी के पास इसकी शिकायत ज़रूर कर सकती हैं.’

वो आगे बताते हैं, –‘अगर शौहर तलाक़ देता है तो उसे बीवी के तीन महीने 13 दिन का खर्च और अगर बच्चा है तो उसका खर्च देना होता है. इसके साथ ही शौहर को मेहर, लड़की को मिलने वाला दहेज वापस करना होगा. अगर बीवी गर्भवती है तो जब तक बच्चा नहीं हो जाता पूरी देखभाल पति की जिम्मेदारी होगी.’

यदि आंकड़ों की बात करें कि एनसीआरबी के 2014 की रिपोर्ट बताती है –भारत में 20,417 महिला आत्महत्या के मामले थें, जिसमें 18 प्रतिशत लोगों ने तलाक़ के कारण आत्महत्या की.

विशेषज्ञों के अनुसार, तलाक़ की वजह से महिलाओं में तनाव की समस्या पैदा होती है और इसका असर लंबे समय तक रहता है.

इस तरह से देखा जाए तो महिलाएं चाहे कितनी भी आगे आ जाएं, निशाना उन्हीं को बनाया जाता है... यानी बात वहीं आकर रुकती है –एक आम औरत की बिसात ही क्या...???


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