अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
‘ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत’ के चुनाव में इस बार काफी हलचल रही. इस बार का चुनाव पिछले चुनाव से काफी अलग था. इसमें धन, बाहुबल से लेकर रसूख और जोड़-तोड़ का जमकर इस्तेमाल किया गया. नौकरशाहों की मदद ली गई. सत्ता की हनक और राजनीति के हर हथकंडे का जमकर प्रयोग किया गया.
दूसरी ओर एक अहम बात यह भी हुई कि इस तंज़ीम के नुमाइंदे इस तरह की हरकतों की सच्चाई को खुलेआम स्वीकार कर रहे हैं. उनके मुताबिक़ तंज़ीम के नाम पर यह सियासी खेल खुलकर खेला गया है और वे अब इसे दुरूस्त करने की पूरज़ोर कोशिश करेंगे.
दरअसल, पिछले दिनों ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत के सदर व मजलिस आमला के सदस्यों के चयन के लिए चुनाव हुआ था. इस चर्चित चुनाव अध्यक्ष पद के लिए मुसलमानों के तीन अहम नाम मैदान में थे. तीन लोगों के बीच कड़ी टक्कर में बाजी नवेद हामिद के हाथ लगी. वो पांच वोटों से यह चुनाव जीत गए.
इस चुनाव में साउथ एशियन कौंसिल फॉर माईनरिटीज़ के सचिव नवेद हामिद, रिटायर्ड आईपीएस मंज़ूर अहमद और पूर्व राज्यसभा सांसद मो. अदीब के बीच मुक़ाबला था.
ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मशावरत के कुल 158 सदस्यों में से 147 यानी 93 फीसदी सदस्यों ने अपने वोट का इस्तेमाल किया. 3 वोट अवैध पाया गया. इन 144 वोटों में से 52 वोट नवेद हामिद को मिले. दूसरे नंबर पर रहे डॉ. मंज़ूर अहमद को 47 वोट तो तीसरे नंबर पर रहे मो. अदीब को 45 सदस्यों का वोट हासिल हुआ.
इस नतीजे के बाद पुराने परम्परा के मुताबिक़ आज इस तंज़ीम के नए अध्यक्ष नवेद हामिद को कार्यभार सौंपा गया. उन्होंने इस मौक़े पर स्पष्ट किया कि सभी को साथ लेकर चलना और मशावरत को अधिक सक्रिय बनाना मेरी प्राथमिकताओं में शामिल है. इस अवसर पर उन्होंने मुजतबा फारुख को तंज़ीम का महासचिव बनाए जाने की घोषणा भी की.
स्पष्ट रहे कि नवेद हामिद 2012 में भी अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ चुके हैं. लेकिन उस समय सिर्फ़ 2 वोटों से डॉ. ज़फ़रूल इस्लाम खान से वो चुनाव हार गए थे. अब जब वो चुनाव जीत गए हैं तो स्वाभाविक है कि दोनों के दिल में पुराना टीस ज़रूर उबाल मारेगा, जिसकी झलक आज मंच पर खुलेआम सबने देखा. आरोप-प्रत्यारोप का खेल जमकर चला. लोगों के दखल के बाद कहीं जाकर मामला शांत हुआ.
इस अवसर पर TwoCircles.net से बात करते हुए मुशावरत के वर्तमान अध्यक्ष नवेद हामिद ने कुछ बेहद उम्मीद भरे संकेत भी दिए. उनके मुताबिक़ तंज़ीम का चेहरा बदलने के क़वायद की सख्त ज़रूरत है. इसमें महिलाओं और युवाओं के साथ-साथ हर मुसलमानों के हर फिरक़े के लोगों को मुकम्मल जगह मुहय्या कराई जाएगी. साथ ही इस बात की भी क़वायद होगी कि तंज़ीम के कामकाज में साफ़गोई और ईमानदारी की पूरी गुंजाईश क़ायम रहे.
उन्होंने TwoCircles.net के साथ बात करते हुए बताया कि –‘एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी मुझे सौंपा गया है, जिसे मैं पूरी ईमानदारी के साथ निभाने की कोशिश करूंगा. जिस मक़सद के तहत आज से 51 साल पहले इस संगठन को बनाया गया था, उस मक़सद को अब ज़मीन पर उतारने की पूरी कोशिश करूंगा.’
दरअसल, 1964 में क़ायम ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत का क़द मुस्लिमों तंज़ीमों खासा बड़ा है. यह मुसलमानों के सात बड़े संगठनों की नुमाइंदगी करती है.
पिछले साल अगस्त महीने में हुए इस तंज़ीम के स्वर्ण जयंती समारोह में कभी उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा था –‘सामाजिक शांति के लिए राजनीतिक दूरदर्शिता ज़रूरी है.’ लेकिन जिस तरह मशावरत का यह चुनाव मौक़ापरस्ती, पैसे और रसूख का खेल बना, उसे किसी भी हाल में सही नहीं ठहराया जा सकता. ऐसे में अगर ऐसी संस्था के भीतर इस तरह के तत्व अपनी जगह बनाने में कामयाब होते हैं तो यह मुस्लिम क़ौम के लिए बेहद चिंता का सबब है. चिंता इसलिए और भी बढ़ जाती है, क्योंकि मुसलमानों के नाम पर होने वाली राजनीति का सीधा सरोकार क़ौम के रहनुमाओं से ही होता जा रहा है.