अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
नेशनल क्राईम रिकॉर्ड ब्यूरो के ताज़े आंकड़ों के मुताबिक़ देश के विभिन्न जेलों में 1326 क़ैदी ऐसे हैं, जिन्होंने अपनी मुक़र्रर सज़ा काट ली है, लेकिन जुर्माना न भर पाने की वजह से अभी भी जेलों में बंद हैं. इनमें 27 महिला क़ैदी हैं. पुरूष क़ैदियों की संख्या 1299 है.
यह संख्या सबसे अधिक अंडमान-निकोबार में है. यहां 424 क़ैदी ऐसे हैं जिनकी तय सज़ा की मियाद पूरी हो चुकी है, पर अभी भी यह जेलों में बंद हैं. जबकि दूसरा स्थान उत्तर प्रदेश का है. यहां 372 क़ैदी सज़ा मुकम्मल होने के बाद भी जेलों में हैं. इसमें 13 महिला क़ैदी भी शामिल हैं.
स्पष्ट रहे कि पिछले साल ही सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि जो अंडर-ट्रायल क़ैदी मुक़दमों का सामना कर रहे हैं, अगर वो उस जुर्म के लिए निर्धारित सज़ा का आधा समय जेल में बिता चुके हैं. तो उन्हें रिहा कर दिया जाए.
इस बारे में सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में ही निचली अदालतों को इस काम को दो महीने में पूरा करने के निर्देश दिया था. लेकिन अंडर-ट्रायल क़ैदियों की कौन कहे, सज़ा मुकम्मल होने के बाद भी लोग जेल में ही हैं.
हालांकि आंकड़ें बताते हैं कि साल 2014 में 13,95,121 अंडर ट्रायल कैदियों को रिहा किया गया. इन्हें रिहा कर देने के बाद अब भी 2,82,879 क़ैदी यानी 67.6 फीसदी अभी भी अंडर ट्रायल हैं. यही नहीं, 3,237 लोगों को सिर्फ शक की बुनियाद पर गिरफ्तार किया गया है. वहीं यदि 2013 की बात करें तो नेशनल क्राईम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक़ उस समय देश के विभिन्न जेलों में 3044 क़ैदी ऐसे थे, जिन्होंने अपनी मुक़र्रर सज़ा काट ली थी, लेकिन जुर्माना न भर पाने की वजह से अभी भी जेलों में बंद थे.
यह कितना हास्यापद है कि देश में जहां एक तरफ़ हाई प्रोफ़ाइल व प्रभावशाली व्यक्तियों को बड़े आसानी से राहत मिल जा रही है, तो वहीं देश के विभिन्न जेलों में हज़ारों ग़रीब क़ैदी अपनी सज़ा मुकम्मल हो जाने के बाद भी जेलों में बंद हैं.