अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
नई दिल्ली :ख़बर है कि आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह खान के पास बच्चों की स्कूल की फीस जमा करने के पैसे नहीं हैं, जिसके कारण स्कूल ने बच्चों का एडमिशन रद्द कर दिया है.
ओखला क्षेत्र के विधायक अमानतुल्लाह खान का कहना है कि विधायक बनने के बाद उनका खर्च बहुत अधिक बढ़ा है. बतौर एमएलए उन्हें हर महीने 83 हजार पांच सौ रुपए सैलरी के रूप में मिलता है. इसी सैलरी में से वह अपने पांच स्टाफ को हर महीने 62 हज़ार रुपए की सैलरी दे देते हैं. बाक़ी बचे 21 हज़ार में कई खर्च, जैसे गाड़ी का फ्यूल, फोन बिल समेत घर का खर्च है. यही वजह है कि वह बच्चों की फीस जमा नहीं कर पाए.
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उनके मुताबिक़ हमदर्द स्कूल का कुल बकाया 58 हजार रुपए के आसपास है. दोबारा एडमिशन के लिए उन्होंने पार्टी से आर्थिक मदद मांगी है.
इस ख़बर के आने के बाद सोशल मीडिया में चर्चा का माहौल काफी गर्म है. उसके अलावा बटला हाउस की चाय की दुकानों पर भी लोग अमानतुल्लाह खान के इस मामले पर चर्चा करते हुए नज़र आ रहे हैं.
सोशल मीडिया पर Ameeque Jameiने लिखा है, ‘मैं चाहता हूँ कि विधायक जी ख़ुद आकर इस ख़बर पर अपना रूख रखें और अपना मज़ाक़ उड़वाना बंद करें. बेहतर होगा कि सरकारी तालीम को प्रमोट करने वाले आप नेता अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में दाख़िला दिलाकर हम सबको रास्ता दिखाए!’
जामिया नगर में रहने वाले पत्रकार अब्दुल वाहिद आज़ाद का कहना है, ‘अगर वाक़ई विधायक जी के पास पैसे की कमी है तो वह अपने दूसरे खर्चों में कमी कर सकते थे. लेकिन बच्चों की फ़ीस अदा न करना, उस मुसलमान के लिए जिसका मज़हब तालीम को सबसे ज़्यादा अहमियत देता है, बहुत ही शर्म की बात है.’
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आज़ाद आगे कहते हैं, ‘हमारे लिए तो बहुत ही शर्म की बात है कि हमारा नुमाइंदा ऐसा है, जो अपने बच्चों की तालीम को सियासत के बाज़ार में लाकर रख दिया है. बच्चों के तालीम पर खर्च में कटौती की कैंची चलाई है. ऐसे में इस रहनुमा से कोई कैसे अच्छी व बड़ी उम्मीद कर सकता है?’
वहीं बटला हाउस के ही इलाक़े में रहने वाले शारिक़ नदीम का कहना है कि अगर सच में पैसों की कमी है तो फिर सभी ओखलावासी उनके बच्चों के तालीम के लिए चंदा करने के लिए तैयार हैं. बस वे एक बार अपील करके तो देखें.’
स्पष्ट रहे कि यह समस्या उस विधायक के साथ है, जो विधानसभा चुनाव के दौरान खुद इलेक्शन कमीशन को बता चुके हैं कि वे 2015 में 2,00,73,316 यानी 2 करोड़ से अधिक के मालिक हैं. इससे पूर्व 2008 में जब लोजपा से चुनाव लड़े थे तो उनकी माली हैसियत सिर्फ 5,57,000 (5 लाख+) की थी, जो अगले साल चुनाव में बढ़कर 2013 में 14,12,000 (14 लाख+) हो गई.