अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
पटना:बिहार चुनाव में ‘ओवैसी फैक्टर’ बुरी तरह फ्लॉप रहा. मुस्लिम तबक़े का वोट बटोरकर इस चुनाव में अपनी क़िस्मत चमकाने की ओवैसी की चाहत अधूरी रह गई. बिहार के मतदाताओं ने न सिर्फ़ उनकी पार्टी को बुरी तरह से नकार दिया बल्कि यह संदेश भी दे दिया है कि यह चुनाव आपके लिए एक ‘सबक़’ है.
दरअसल, बिहार की जनता ने ओवैसी की पार्टी को वह सफलता नहीं दी, जिसकी एमआईएम को उम्मीद थी. जीत न सही, मगर जीत के क़रीब भी पहुंचते तो दावा करने को बहुत कुछ होता. लेकिन ज़िला किशनगंज के कोचाधामन की सीट को छोड़कर यह हक़ भी कहीं ओवैसी का पार्टी को नहीं मिला.
ओवैसी की पार्टी इस बिहार विधानसभा चुनाव में पहली बार उतरी थी और 6 सीटों पर अपने क़िस्मत की आज़माईश कर रही थी. लेकिन चुनावी आंकड़े बताते हैं कि इन सीटों को मिलाकर ओवैसी की पार्टी को सिर्फ 80248 वोट मिलें, जो कुल मतदान प्रतिशत का मात्र 0.2% ही है.
सिर्फ़ कोचाधामन से पार्टी के बिहार की ज़िम्मेदारी संभाल रहे अख़्तरूल ईमान 37086 वोट लाकर दूसरे नंबर पर ज़रूर रहें, लेकिन यहां भी हार का अंतर काफी अधिक रहा. इस सीट से जदयू के मोजाहिद आलम 18843 वोटों के अंतर से चुनाव जीतें.
कोचाधामन सीट छोड़कर बाकी तमाम जगहों पर पार्टी काफी पीछे नज़र आई. रानीगंज से डॉ. अमित कुमार मात्र 1669 वोट ही हासिल कर पाए. अमौर से नवाज़िश आलम 1955 वोट लाकर पांचवे स्थान पर रहें. बलरामपुर विधानसभा सीट से 6375 वोट लाकर छठे स्थान पर रहे. तो वहीं किशनगंज से तसीरउद्दीन 16440 वोट लाकर तीसरे स्थान पर ज़रूर नज़र आएं. बायसी से ग़ुलाम सरवर भी 16723 वोट लाकर चौथे स्थान पर नज़र आएं.
इस प्रकार बिहार में सिर्फ 6 सीटों पर 80 हज़ार वोट पाकर ओवैसी की पार्टी ने इस बात के संकेत ज़रूर दिए कि उसकी झोली में चाहे कुछ फीसदी ही सही, पर मतदाताओं के एक तबक़े का भरोसा ज़रूर है.
स्पष्ट रहे कि बिहार के बाद यूपी के चुनाव होने वाले हैं. ओवैसी का पार्टी वहां भी मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है. ऐसे में बिहार का तजुर्बा उनके लिए एक सबक़ ज़रूर हो सकता है. ज़रूरत इस सबक़ से सीखने और सकारात्मक दिशा में क़दम बढ़ाने की है