अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
पटना:बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम आ चुके हैं. महागठबंधन ने इस बार पिछले सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं. इस महागठबंधन को बिहार के 243 सीटों में से 178 सीटें हासिल हुई, तो वहीं एनडीए मात्र 58 सीटों पर सिमट गई.
इस स्पष्ट बहुमत के आधार पर यह ज़रूर कह सकते हैं कि बिहार की अधिकतर जनता ‘विकास पुरूष’ की छवि रखने वाले नीतीश कुमार को ही फिर से मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहती थी.
Clik here to view.

लेकिन बिहार में एक बड़ी आबादी ऐसी भी है, जिसे न जदयू, राजद या कांग्रेस पसंद है और न ही भाजपा, लोजपा, रालोसपा, हम या कोई दूसरी पार्टी पसंद है. यहां तक कि इनका भरोसा इस चुनाव में खड़े निर्दलीय उम्मीदवारों पर भी नहीं है. ऐसे मतदाता बिहार में एक-दो नहीं, सैकड़ों नहीं, हज़ारों नहीं, बल्कि लाखों में हैं.
चुनाव आयोग के आंकड़ें बताते हैं कि ऐसे मतदाताओं की संख्या पूरे बिहार में तकरीबन 947276 है, जिसने ‘इनमें से कोई नहीं’ यानी ‘नोटा’ बटन का प्रयोग किया. यानी ये बिहार के कुल मतदाताओं का 2.5 फीसद है.
अगर राष्ट्रीय स्तर की बात करें तो 2014 लोकसभा लोकसभा चुनाव में नोटा दबाने वाले मतदाताओं की संख्या 5997054 थी. वहीं दिल्ली विधानसभा चुनाव में यह संख्या सिर्फ 35924 रही थी.
गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने 2013 के सितंबर महीने में ईवीएम में ‘नोटा’ का बटन शामिल करने का आदेश दिया था, ताकि मतदाताओं को यह अधिकार मिले कि वे इस बटन को दबाकर चुनाव में शामिल सभी उम्मीदवारों को खारिज कर सके. उच्चतम न्यायालय के आदेश पर ही चुनाव आयोग ने 2013 में ही मिजोरम, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और नई दिल्ली विधानसभा चुनावों में नोटा के विकल्प की शुरुआत की थी. हालांकि निर्वाचन आयोग के अनुसार नोटा विकल्प के अंतर्गत प्राप्त मतों की गणना अवैध मतों के रूप में की जाएगी.