अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
मोतिहारी:चुनावी मौसम में चुनाव जीतने के ख़ातिर राजनीतिक दल तो हर तरह के हथकंडे अपनाते ही हैं. लेकिन ज़रा सोचिए कि इन्हीं राजनीतिक दलों के नक़्शे-क़दम पर पुलिस-प्रशासन और लोकतंत्र का चौथा खंभा यानी हमारी मीडिया भी चलने लगे तो फिर क्या होगा? चुनाव के चंद रोज़ पहले कैसे पुलिस व मीडिया माहौल को साम्प्रदायिक बना सकती है. इसका जीता-जागता उदाहरण बिहार के पूर्वी चम्पारण जिले के शहर मोतिहारी में देखने को मिला.
आमतौर पर पुरानी रिवायत के मुताबिक़ हर साल मुहर्रम के मौक़े पर हर मुस्लिम इलाक़ों में इस्लामी झंडा लगाया जाता है. जिस पर अरबी भाषा में क़लमा लिखा होता है. जिसका रंग हरा होता है. चांद-तारे भी बने होते हैं. यहां यह भी स्पष्ट कर देना चाहिए कि कुछ ऐसी ही रिवायत नागपंचमी के मौक़े पर निकलने वाले महावीरी अखाड़े या हिन्दुओं के अन्य त्योहारों में भी यहां देखने को मिलता है, जिसमें भगवा झंडों से पूरा इलाक़ा पाट दिया जाता है.
ठीक उसी रिवायत के मुताबिक़ इस बार भी चम्पारण में मुहर्रम के मौक़े पर हरे रंग के झंडे शहर में जगह-जगह लगाए गए थे. मुस्लिम समुदाय ने अपना मुहर्रम का अखाड़ा भी काफी शांति के साथ निकाल कर लोगों को साम्प्रदायिक सदभाव बनाए रखने का पैग़ाम दिया. इस्लामिक गानों की जगह ज़्यादातर आखाड़ों में देशभक्ति गाने बजे. खासतौर पर ‘मेरे देश-प्रेमियो! आपस में प्रेम करो...’ गाना तो लगभग हर अखाड़े में गाया जा रहा था. ‘भारत मां की सुरक्षा करते मुस्लिम जवान’ वाली झांकियां भी निकाली गई थी.
अखाड़े से जुड़े लोगों को लगा था कि कल के अख़बार में इन तमाम चीजों का ज़िक्र होगा. लेकिन अगले दिन उन्होंने जैसे अख़बार उठाया. एक ख़बर ने सबके होश उड़ा दिये. ख़बर की हेडिंग थी – 'मोतिहारी में लहराया पाकिस्तानी झंडा'यह ख़बर हिन्दी भाषा के लगभग सारे अख़बारों में थी. ख़बर पुलिस के एफआईआर के हवाले से लिखी गई थी.
ख़बर में बताया गया था - ‘मोतिहारी शहर के हनुमानगढ़ी मोहल्ले में एक पोल पर पाकिस्तानी झंडा लहराते मिला. पुलिस ने उस झंडे को ज़ब्त कर लिया. झंडे पर अरबी भाषा में कुछ लिखा हुआ था.’इस ख़बर में यह भी लिखा हुआ था - ‘पुलिस भाषा विशेषज्ञ से जानकारी ले रही है. नगर पुलिस ने अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ राष्ट्रद्रोह का मामला दर्ज कर लिया है.’
खबर के मुताबिक़ ‘शुक्रवार की देर शाम नाका-एक के प्रभारी ओपी राम गश्त पर थे. उन्होंने झंडे को देखा और ज़ब्त कर लिया. झंडे की लंबाई साढ़े तीन फीट व चौड़ाई सवा दो फीट है. नगर थानाध्याक्ष अजय कुमार ने बताया कि झंडा लगाने वाले की तलाश की जा रही है.’
इस ख़बर ने पूरे पूर्वी चम्पारण में लोगों को हरकत में ला दिया. एक तरफ़ लोग यह बताने की कोशिश में जुटे हुए थे कि वो झंडा पाकिस्तानी नहीं हो सकता. क्योंकि पाकिस्तान के झंडे पर किसी भी तरह का कोई क़लमा अरबी भाषा में लिखा हुआ नहीं होता और झंडे का रंग हरे के साथ-साथ थोड़ा सफेद भी होता है. लेकिन दूसरी तरफ़ इस बात को प्रचारित किया जाने लगा कि मुसलमानों का मनोबल बढ़ गया है. वे मोतिहारी को पाकिस्तान बनाना चाहते हैं.
इस बाबत मो. आलम बताते हैं, ‘ये मीडिया की साम्प्रदायिकता नहीं तो और क्या है. जहां मुहर्रम के अखाड़े में तिरंगा लहराया गया. उसकी किसी ने कोई ख़बर नहीं की, लेकिन इस झूठे मामले को तूल दे दिया गया. पुलिस ने आख़िर वह झंडा मीडिया के लोगों को दिखाया क्यों नहीं?’
आलम आगे बताते हैं कि एक ख़ास पार्टी के लोगों ने इस ख़बर की ज़ेराक्स कराकर लोगों में बांटने का काम किया और लोगों को इस बात से भ्रमित किया कि देखो! चुनाव से पहले जब ये पाकिस्तान का झंडा लहरा रहे हैं, तो अगर ग़लती से नीतीश कुमार की सरकार फिर से बन गई तो ये मुसलमान इसे पूरा पाकिस्तान बना देंगे.
इस तरह की कई अफ़वाहें अपने सियासी फ़ायदे को लेकर चम्पारण के गांव-देहातों में फैलाई गई. हालांकि आज एक ऐसा ही बयान भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी एक रैली ने दिया, ‘भाजपा हारी तो पाकिस्तान में पटाख़े फूटेंगे.’ खैर, जब इस झंडे पर खूब राजनीति हो गई. जिसे जो फ़ायदा लेना था, मिल गया तब फिर बुधवार को उसी पुलिस प्रशासन ने यह स्पष्ट किया, ‘पुलिस जांच में ज़ब्त झंडा पाकिस्तान का नहीं पाया गया.’
लेकिन अब इस ख़बर को सिर्फ़ एक अख़बार ने छोड़कर (8वें पृष्ठ पर) किसी भी अख़बार ने कोई ख़बर प्रकाशित नहीं की. दिलचस्प बात यह है कि जिस पुलिस को यह झंडा पाकिस्तानी नज़र आ रहा था. अब वही पुलिस प्रशासन बता रही है कि वह झंडा पाकिस्तान का नहीं था. क्योंकि झंडा एक ही रंग का है. उस पर स्लोगन लिखा गया है और चांद के साथ कई सितारे बनाए गए हैं. जबकि पाकिस्तान के झंडे में पहले उजले रंग की पट्टी और उसके बाद गहरे हरे रंग पर एक चांद व सितारा रहता है.’
पूर्वी चम्पारण में पत्रकार अक़ील मुश्ताक़ का इस पूरे मामले पर कहना है, ‘यह कितना अजीब है कि कोई फोन करके पुलिस को सूचना देता है. पुलिस आनन-फानन में झंडा उतार लेती है. बल्कि झंडे को ज़ब्त कर लेती है. एफ़आईआर भी दर्ज कर लेती है. जबकि पाकिस्तान के झंडे को आसानी से पहचाना जा सकता है. ऐसे में तो यही कहा जा सकता है कि पुलिस भी कहीं न कहीं इस झंडे के बहाने माहौल को साम्प्रदायिक रंग में रंगने की कोशिश कर रही थी.’