अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
बिहार चुनाव में एनडीए के घटक दल ‘हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीतन राम मांझी फिर से एक बार चर्चे में हैं. इस बार उनकी चर्चा ‘नक्सलिज़्म’ पर दिए बयान को लेकर चल रहा है.
दरअसल, जीतन राम मांझी ने शनिवार को इमामगंज से नामांकन भरने पहुंचे. इससे पहले मांझी ने एक सभा को संबोधित किया. इस सभा में मांझी ने स्पष्ट तौर पर कहा कि –‘अगर बहू-बेटी की इज्ज़त के लिए, ज़मीन की रक्षा करने या फिर गरीबों के साथ ज्यादती के खिलाफ़ किसी को हथियार उठाना पड़ता है और दुनिया उसे नक्सली कहती है, तो फिर सबसे बड़ा नक्सली जीतन राम मांझी है.’ बल्कि मांझी यहीं नहीं रूके. अपने इस बयान को आगे बढ़ाते हुए यह भी कह डाला कि –‘बड़ा नहीं सबसे पहला नक्सली हूं.’
अभी मांझी के बयान की विपक्ष ने शायद कोई निन्दा भी नहीं की थी कि उन्होंने इस मुद्दे पर दुबारा से पटना के एयरपोर्ट पर बयान दे डाला. मांझी ने कहा कि -‘नक्सली और कोई नहीं बल्कि अपने ही भाई हैं.’
इससे पहले जीतन राम मांझी इस साल के आरंभ यानी 2015 के 22 जनवरी को भी एक बयान नक्सलवाद के पक्ष दे चुके हैं. जिसकी निन्दा बीजेपी के तमाम सीनियर लीडरों ने की थी.
मांझी ने उस समय स्पष्ट तौर पर कहा था कि –‘नक्सली उनके भाई और बेटे जैसे हैं... उन्हें न्याय नहीं मिला, तो वे नक्सली बन गए. इनमें से कुछ बाहरी हैं, लेकिन अधिकतर स्थानीय लोग ही हैं.’
मांझी ने उस समय बिहार के औरंगाबाद नक्सल प्रभावित मदनपुर प्रखंड में नक्सलियों को अपने भाई और बेटे जैसा बताते हुए अधिकारियों और ठेकेदारों पर ग़लत एस्टीमेट बनाने का आरोप भी लगाया था. बल्कि मांझी ने नक्सलियों का बचाव करते हुए यह भी कहा था कि –‘ठेकेदारों से लेवी लेना रंगदारी नहीं है. जो काम 15 हजार रुपये में हो सकता हैं, उससे दोगुनी राशि सरकार से ली जाती है. अगर नक्सली ठेकेदारों से लेवी लेते हैं, तो इसमें हर्ज़ क्या है.’
इतनी ही नहीं, 2015 के 05 जनवरी को जीतन राम मांझी ने मुंगेर ज़िला के तारापुर में भी एक ऐसा ही बयान दिया था. बल्कि एक सभा को संबोधित करते हुए मांझी ने यहां तक कह डाला कि वो सीएम बनने से पहले तीन नक्सलियों के साथ मुलाक़ात भी कर चुके हैं. उस बयान में मांझी ने पीएम नरेन्द्र मोदी को भी निशाने पर लिया था और लोगों को बीजेपी से सावधान रहने की अपील भी की थी.
मांझी ने कहा था कि –‘केंद्र में जब यूपीए की सरकार थी, उस समय बिहार को छह लाख इंदिरा आवास का आवंटन मिला था, लेकिन भाजपा की सरकार ने इसे घटाकर 2 लाख 40 हजार कर दिया... जबकि नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव में विकास के नाम पर वोट मांगा था. इनकी कथनी करनी में फ़र्क़ है, इसलिए आप लोग भाजपा से सावधान रहें.’
लेकिन जीतन राम मांझी अब केन्द्र के उसी बीजेपी के सरकार के साथ हैं. पीएम नरेन्द्र मोदी की तारीफ़ करते वो थकते नहीं हैं. पर सवाल यह है कि क्या केंद्र की मोदी सरकार को अपने नक्सल विरोधी अभियान को रोककर बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी से बात नहीं करना चाहिए? क्या एनडीए को नक्सलिज़्म पर अपने विचार को स्पष्ट नहीं करना चाहिए?
बहरहाल, केन्द्र सरकार का नक्सलिज़्म पर चाहे जो भी विचार हो. पीएम मोदी भले ही दिल्ली के सीएम अरविन्द केजरीवाल को नक्सली बताकर निंदा करते रहे हों, लेकिन वो अपने सहयोगी जीतन राम मांझी के नक्सलिज़्म पर दिए गए बयान की निन्दा शायद ही कर सकें, क्योंकि यहां मामला सियासत की मलाई खाने का है. किसी हाल में हाल में सत्ता पर क़ाबिज़ होने का है. ऐसे में मांझी के ऐसे सौ बयान क़ुर्बान...