सिद्धांत मोहन
वाराणसी:बनारस में माहौल खराब हो चुका है. फौरी तौर पर एकतरफा रिपोर्ट करने के बजाय हमने सोचा कि कुछेक रोज़ रूककर और विस्तृत रिपोर्ट की जाए ताकि पाठकों को सही जानकारी मुहैया कराई जा सके. इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर की गयी एक याचिका पर हाईकोर्ट ने हाल में फैसला दिया कि गंगा में मूर्तियों-प्रतिमाओं का विसर्जन नहीं होगा. साथ में कोर्ट ने यह भी कहा कि विसर्जन के लिए प्रशासन कुण्ड-तालाब-पोखरे मुहैया कराएगा, जिनके अलावा श्रद्धालु और पूजा-समितियां और कहीं भी विसर्जन नहीं कर सकेंगी.
एक महीने बाद बनारस दुर्गापूजा और रामलीला के असंख्य दर्शकों से भर जाएगा. नगर में हज़ार से भी ज्यादा छोटी-बड़ी प्रतिमाएं स्थापित की जाएंगी. हाल में ही विश्वकर्मा पूजा और गणेशोत्सव के दौरान पांच सौ से ज्यादा प्रतिमाएं स्थापित की गयीं. हाईकोर्ट के आदेश को मानते हुए नगर प्रशासन ने विश्वकर्मा पूजन की मूर्तियों को नगर के बीचोंबीच स्थित टाउनहाल में कुण्ड खोदकर प्रवाहित करा दिया लेकिन गणेशोत्सव की प्रतिमाओं को लेकर जो बवाल का बवंडर उठा, वह अब थमने का नाम नहीं ले रहा है.
बनारस में रहने वाले मराठी समुदाय के लोगों ने जब भगवान् गणेश की प्रतिमा को गंगा में विसर्जित करने की ओर यात्रा प्रारम्भ की तो प्रशासन ने उन्हें रोका. जिलाधिकारी और एसएसपी इस बात पर ठन गए कि प्रतिमाओं का विसर्जन गंगा में नहीं होगा. बात को संजीदगी से सुलझाने के बजाय प्रशासनिक ठनक के साथ सुलझाने का प्रयास किया गया तो मराठी समुदाय के लोग नगर के बीचोंबीच मूर्तियों के साथ सड़कों पर आकर बैठ गए. सड़कें जाम हो गयीं.
मराठी समुदाय के लोगों के इस आन्दोलन को कुछ बड़े लोगों का तो कुछ संदिग्ध लोगों का समर्थन मिलने लगा. जहां हिन्दू युवा वाहिनी, विश्व हिन्दू परिषद्, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बजरंग दल जैसे संदिग्ध संगठनों ने इस मुहिम का उग्र रूप से समर्थन किया, वहीं भावी शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद भी अपने बटुकों-शिष्यों के साथ धरना स्थल पर पहुंच गए. धरना-प्रदर्शन की बीच एक खबर यह भी उड़कर आई कि योगी आदित्यनाथ मूवमेंट को हवा देने की नीयत से आने वाले हैं, हमने युवा वाहिनी के कार्यकर्ताओं से पूछा तो जवाब मिला कि अभी पूरी तरह से तय नहीं है, लेकिन धर्म की रक्षा के लिए योगी आदित्यनाथ जैसे लोगों की ज़रुरत है.
इसके बाद जो दौर शुरू होता है, उसके बारे में मीडिया ने सिर्फ भ्रम और आधे सच को ही फैलाया है. और इसका भान हमें तब हुआ जब हमने सोशल मीडिया पर आ रहे बयानों को देखना-समझना शुरू किया.
दरअसल काशी को हिला देने वाले इस सोलह घंटे के आन्दोलन में कई ध्रुवों का निर्माण हुआ, जो किस्म-किस्म के हस्तक्षेप कर रहे थे. अधिकतर लोग तो अपनी-अपनी सुविधाओं और अपने राजनीतिक लाभ के लिए जुड़े थे और कुछ ही इसमें असल और सही हस्तक्षेप कर रहे थे. इस आदोलन के शुरू होने के साथ ही विहिप, युवा वाहिनी और बजरंग दल के लोगों ने नगर के नई सड़क, बेनियाबाग और गोदौलिया जैसे बड़े व्यावसायिक मोहल्लों में चढ़ते दिन के दौरान ही दुकाने बलपूर्वक बंद करा दीं.
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जब अपने सहयोगियों के साथ धरनास्थल पर पहुंचे तो वे सिर्फ इस मांग के साथ पहुंचे कि मूर्तियों को गंगा में विसर्जित नहीं कराया जाएगा लेकिन उन्हें सिर्फ गंगा से स्पर्श करा दिया जाए. लेकिन कट्टर दक्षिणपंथियों के शोरशराबे के बीच वे अपनी बात को प्रशासन तक पहुंचा पाने में असफल रहे.
इस पूरे शोर-शराबे का परिणाम यह हुआ कि 22 सितम्बर को देर रात प्रशासन ने सभी को एक ही तराजू के एक ही पलड़े में रखकर तौल दिया. स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद भी उसी घेरे में समेट दिए गए जिसमें विहिप, संघ और बजरंग दल जैसे दक्षिणपंथी संगठन थे. हाईकोर्ट के आदेश को सख्ती से लागू करवाने के लिए प्रशासन ने धरना दे रही भीड़ पर लाठीचार्ज कर दिया. इस लाठीचार्ज में कम से कम सौ लोग घायल हो गए. शान्ति से प्रशासन को अपनी बात से रूबरू करवाने के लिए अड़े हुए स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को भी प्रशासन ने लाठियों से पीट दिया. जिन्हें देर रात राजकीय चिकित्सालय में भर्ती कराया गया. इसके बाद बनारस का संत-समाज इस बात पर अड़ गया कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव संतों से इस कार्रवाई के लिए लिखित माफी मांगें, जो अखिलेश यादव ने नहीं किया.
बनारस में हुए देर रात हुए लाठीचार्ज का वीडियो.
इस घटना के बाद भाजपा, विहिप और संघ के बहुत सारे छोटे-बड़े-छुटभैये नेता नगर छोड़कर फरार हो गए. इस लाठीचार्ज के तुरंत बाद प्रशासन ने 24 लोगों के खिलाफ नामजद व लगभग सवा सौ बेनामी लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर दिया, जिसके लिए धरपकड़ के प्रयास जारी हैं.
दरअसल साल 2014 में ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक याचिका पर फैसला देते हुए गंगा में मूर्तियों के विसर्जन पर रोक लगा दी थी. लेकिन फौरी तौर पर फैसला न लागू हो पाने की स्थिति में प्रशासन ने पूजा समितियों को एक साल की छूट दे दी और प्रशासन को यह निर्देश दिया कि साल 2015 में होने वाले विसर्जनों के लिए वह पुख्ता इंतज़ाम करे. पिछले साल की पूजाओं में इस फैसले को लेकर कोई सुगबुगाहट नहीं थी, लेकिन पूजाओं का मौसम आते ही बनारस की केन्द्रीय दुर्गापूजा समिति ने अपने अध्यक्ष तिलकराज मिश्र के नेतृत्व में इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक रिव्यू पेटीशन लगा दिया, जिस पर अदालती उठापटक जारी है.
इस बारे में तिलकराज मिश्र बताते हैं, ‘कुछ रोज़ पहले डीएम राजमणि यादव ने हमें बैठक के लिए बुलाया था और कहा था कि प्रतिमा विसर्जन के लिए आप लोग कोई जगह देख लीजिए.’ तिलकराज आगे बताते हैं, ‘यह सरासर कोर्ट के आदेश के खिलाफ है. अपने आदेश में कोर्ट ने साफ़ कहा है कि जगह की व्यवस्था प्रशासन को करनी होगी.’ लेकिन इस पर वे लोग तैयार नहीं हुए. तिलकराज का तर्क है कि मिट्टी की मूर्तियों और प्राकृतिक रंगों से पानी को कोई नुकसान नहीं होगा. केन्द्रीय दुर्गापूजा समिति का अध्यक्ष होने के साथ-साथ तिलकराज मिश्र भाजपा व संघ के समर्पित कार्यकर्ता भी हैं.
बहरहाल, लाठीचार्ज के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक अवमानना याचिका दायर कर दी गयी, जिसके जवाब में जस्टिस रणविजय सिंह की बेंच ने प्रशासन से सवाल किया है कि संतों और प्रदर्शनकारी भीड़ पर लाठीचार्ज करने की नौबत क्यों पड़ी? और यह भी पूछा है कि एक साल की मोहलत दिए जाने के बाद भी प्रशासन इंतज़ाम करने में क्यों नाकाम रहा? जिसका जवाब अभी तक तो नहीं ही दिया जा सका है.
इस मामले का राजनीतिक पहलू और भी रोचक है. जनता का मानना है कि विसर्जन पर आदेश सरकार का नहीं कोर्ट का था, जिसकी अवमानना करना गलत है, लेकिन उसके लिए लोगों पर लाठीचार्ज किया जाना भी सही नहीं था. हिन्दू दक्षिणपंथी आरोप लगा रहे हैं कि प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने धार्मिक लाभ उठाने के लिए हिन्दू भीड़ पर अत्याचार कर रहे हैं. वहीं मामले को अलग नज़रिए से देखने वाले लोगों का कहना है कि लाठियां तो अखिलेश ने चलवायीं हैं लेकिन हिन्दुओं की इस उग्र भीड़ के मूवमेंट के लिए भाजपा व संघ जिम्मेदार हैं. किसी भी नतीजे पर पहुँचने के पहले पाठकों को यह बता देना ज़रूरी है कि यह दोनों पक्ष सही साबित हो रहे हैं. इस तनावपूर्ण माहौल में जितना योगदान मोदी-शाहनीत भाजपा का है उतना ही योगदान अखिलेश यादव के चुके हुए समाजवाद का भी है.
मौजूदा स्थिति सही नहीं है. संघ-बजरंग दल के लोग नगर में घूम-घूमकर इसे ‘हिंदुओं की शक्ति पर हमला’ बता प्रचार कर रहे हैं. वे सभी हिन्दुओं से ‘एकजुट’ होने को कह रहे हैं. बीते वक्फे में दर्ज है कि कोई भी धर्म जब ‘एकजुट’ हुआ है तो किस तरीके के परिणाम सामने आए हैं. प्रश्न है कि क्या स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की बात कुछ देर के लिए नहीं सुनी जा सकती थी, जिससे इस किस्म के उग्र और हिंसक आंदोलन को शुरू होते ही सुलझा लिया जाता? बहरहाल, चाय की अड़ियों पर सवाल है हर बात पर ट्वीट मारने वाले नरेंद्र मोदी अपने संसदीय क्षेत्र में हुए इस बवाल के लिए कुछ नहीं कहेंगे. सवाल गहरे हैं और जवाब प्रतीक्षित. बनारस भौचक है कि मोदी-अखिलेश आपने बनारस को क्या बना डाला?
[तस्वीरें भास्कर से साभार]