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भाषण में हीरो, ज़मीन पर ज़ीरो…

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भाषणों में विकास की बड़े-बड़े दावे ज़मीन पर आते ही हवा हो जाते हैं.

अफ़रोज़ आलम साहिल, Twocircles.net

भागलपुर:पीएम मोदी ने भागलपुर में भाषण दिया तो विकास की ख़ूब ताल ठोंकी लेकिन तथ्यों का विश्लेषण उनके दावों की हवा निकाल देता है. हवा में विकास के क़िले बांधने वाले मोदी के विधायक ज़मीन पर विकास कार्य के नाम पर मिले फ़ंड तक को ख़र्च नहीं कर पाते हैं, कोई विशेष कार्य करना तो दूर की बात है.

ज़िला भागलपुर में सात विधानसभा क्षेत्र हैं. इनमें से तीन पर भाजपा के विधायक थे. 2014 उपचुनाव के बाद यह संख्या दो है.


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विधानसभा सीटों में से 152 - बिहपुर विधानसभा से शैलेन्द्र कुमार, 154 - पीरपैती से अमन कुमार और 156 - भागलपुर से अश्विनी कुमार चौबे चुनाव जीत कर आए थे. ये तीनों भाजपा से हैं.

हालांकि 2014 के लोकसभा चुनाव में अश्विनी कुमार चौबे के सांसद बन जाने के बाद उपचुनाव में कांग्रेस के अजीत शर्मा यहां के विधायक बने.


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आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक, भागलपुर के विधायक (जो अब सांसद हैं) अश्विनी कुमार चौबे ने साल 2011-12 से 2013-14 में मिले 400 लाख रुपयों में से सिर्फ़ 200.48 लाख रूपये ही खर्च किए. यानी कुल 51.25 फीसद धन से सम्बंधित विकास कार्य ही हो सका.

1990 से भागलपुर विधानसभा क्षेत्र में लगातार भाजपा की जीत होती रही है. अश्विनी कुमार चौबे यहां 1995 से लगातार विधायक रहे हैं.

एक रिपोर्ट के मुताबिक भागलपुर विधानसभा क्षेत्र का पूरा इलाक़ा शहरी है. भागलपुर शहर प्रमंडल और जिला मुख्यालय भी है लेकिन विकास के आईने में इस क्षेत्र की तस्वीर धुंधली नज़र आती है. पिछले दस साल में योजनाएं तो कई गिनायी गईं हैं लेकिन ऐसी कोई योजना धरातल पर नहीं उतरी, जिससे शहर की तस्वीर बदली हो. लगातार 19 साल तक इस सीट पर भाजपा का क़ब्जा रहने के बाद भी यहां विकास का कोई खास काम नहीं हुआ. शहर की हालत अब भी बदतर है.


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इतना ही नहीं, एक स्थानीय अख़बार की रिपोर्ट बताती है कि यहां पिछले दस साल में 31 नए बोरिंग किए गए जिनमें आधे से अधिक साल भर में फेल हो गए. दुर्घटना में कई मौत के बाद उबड़-खाबड़ राष्ट्रीय राजमार्ग 80 के शहरी क्षेत्र को पीसीसी बनाया गया, लेकिन बिना फ्लैंक और अन्य सड़कों को जोड़े ठेकेदार निकल लिए. बिजली आपूर्ति की स्थिति सुधरी लेकिन फ्रेंचाइजी कंपनी के बिल की गड़बड़ी से उपभोक्ता परेशान हैं.

खैर 2014 उपचुनाव में कांग्रेस के अजीत शर्मा इस क्षेत्र के विधायक बने. उन्हें साल 2014-15 में 2 करोड़ का फंड मिला, जिसमें से उन्होंने 112.59 लाख रूपये खर्च हुए. यानी 55.52 फीसद पैसा विकास कार्यों पर खर्च हुआ.

अगर पीरपैती विधानसभा क्षेत्र की बात की जाए तो यहां के विधायक अमन कुमार ने 2011-12 से 2013-14 में मिले 400 लाख रूपये में से सिर्फ 237.34 लाख रूपये ही खर्च किए. यानी कुल पैसे का 59.87 फीसदी पैसा खर्च हुआ. वहीं उन्हें साल 2014-15 में 200 करोड़ का फंड मिला, जिसमें से सिर्फ 60.99 लाख रूपये खर्च हुए. यानी 27.84 फीसद पैसा विकास कार्यों पर खर्च हुआ.

हालांकि बिहपुर के भाजपा विधायक शैलेन्द्र कुमार खर्च के विकास कार्यों पर खर्च के मामले थोड़े बेहतर रहे. उन्होंने 2011-12 से 2013-14 में मिले 400 लाख रूपये में से 356.39 लाख रूपये खर्च किए. यानी कुल पैसे का 85.36 फीसदी पैसा खर्च हुआ. वहीं उन्हें साल 2014-15 में 2 करोड़ का फंड मिला, जिसमें से उन्होंने 160.32 लाख रूपये खर्च हुए. यानी 69.38 फीसद पैसा विकास कार्यों पर खर्च हुआ.

बताते चलें कि इस ज़िले के नाथनगर विधानसभा क्षेत्र से जदयू के अजय कुमार मंडल विधायक हैं. ये जनता दल यूनाइटेड से हैं. इनकी हालत तो और भी बदतर है.

2011-12 से 2013-14 में मिले 400 लाख रूपये में से उन्होंने सिर्फ 142.79 लाख रूपये ही खर्च किए. यानी कुल पैसे का 35.53 फीसदी पैसा खर्च हुआ. वहीं उन्हें साल 2014-15 में 2 करोड़ का फंड मिला, जिसमें से उन्होंने 56.85 लाख रूपये खर्च किए.

यानी विकास कार्यों पर ख़र्च के मामले में जदयू के विधायक भी कोई तीर नहीं मार सके. वैसे बिहार की राजनीति में विकास सिर्फ़ शब्द भर है. असल मसला तो यहाँ जाति का है. इसलिए विकास के नाम पर भाषणों में हवाई किले बनते रहेंगे, फिर चाहे नीतीश कुमार 'बढ़ चला बिहार'की ताल ठोक रहे हैं या मोदी बड़े-बड़े हवाई वादे कर रहे हों.


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