By TwoCircles.Net staff reporter,
खलघाट: मध्य प्रदेश के निमाड़ क्षेत्र में विस्थापित किसानों, मजदूरों और मछुवारों ने जीवन अधिकार यात्रा शुरू की है. यह जीवन अधिकार यात्रा नर्मदा नदी पर स्थित सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई 139 मीटर तक बढ़ाने के गैरकानूनी निर्णय से 245 गांवों मे बसे 2.5 लाख लोगों की ज़िंदगियों की तबाही के विरोध मे शुरू की गई है.
खलघाट से लेकर राजघाट तक की छः दिवसीय और 85 किलोमीटर लम्बी पदयात्रा मे सैकड़ो विस्थपित शमिल हो रहे है. आन्दोलन के साथ जुड़े गांव-गांव के लोगों ने 12 अगस्त से राजघाट पर जीवन अधिकार यात्रा शुरु करते हुए, चढ़ते पानी से टक्कर लेने का कड़ा निर्णय लिया है.
धरमपुरी के खलघाट, साला, पिपल्दागड़ी, खुजावा, धरम्पुरी, निम्बोला गावों और धरमपुरी शहर में हुए बैठकों और पदयात्रा में सैकड़ों विस्थापित - महिलाओं, युवाओं, बुज़र्गो से एक ही नारा निकल रहा है – ‘नर्मदा घाटी करे सवाल, जीने का हक या मौत का जाल?’
पदयात्रा के पहले नर्मदा के पानी को हाथ लेकर सभी ने संकल्प लिया कि किसानों को वैकल्पिक ज़मीन, भूमिहीन मजदूरों को वैकल्पिक व्यवसाय, मछुआरों को मछली पर हक़, नयी बसावट में सभी सुविधाओं के बिना वे गांव नहीं छोड़ेंगे और डटकर लड़ेंगे.
यात्रा का उद्घाटन वरिष्ठ पत्रकार चिन्मय मिश्र और सरोज बहन ने किया. चिन्मय मिश्र ने कहा, ‘आन्दोलन के 30 सालों के संघर्षपूर्ण सफ़र में लोग अपने अधिकारों के हनन के खिलाफ बार-बार लड़े है और अपनी एकता की ताकत से जीत हासिल करते आये हैं. जिस प्रकार जनविरोधी भू-अर्जन विधेयक पर केन्द्र शासन को आखिर में झुकना पड़ रहा है, अगर लोग संगठित शक्ति से लड़ते रहेंगे तो सरदार सरोवर क्षेत्र के सवालो का जवाब भी शासन को देना ही पड़ेगा.’
वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश मीणा ने संघर्ष को समर्थन देते हुए कहा, ‘कंपनियों के हितों को प्राथामिकता देने वाली केन्द्र सरकार नर्मदा घाटी देश भर के समर्थन को ज़्यादा दिनों तक अनदेखा नहीं कर पाएगी.’ उन्होंने राजस्थान में अवैध रेत खनन के खिलाफ लड़ने वाले लोगों की तरफ से समर्थन घोषित किया.
सामाजिक कार्यकर्ता व नर्मदा बचाओ आन्दोलन का नेतृत्व करती आयीं मेधा पाटकर ने कहा कि निमाड़ और पहाड़ के लिए अब यह जीने-मरने का सवाल है और ३० सालो के संघर्ष की परीक्षा भी, जिसका लिए लोगों को पानी से टक्कर लेने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है.
नर्मदा ट्रिब्युनल के उल्लंघन मे बांध की बैक वाटर लेवल को कम करके १६ हज़ार परिवारों को एक नियोजित साज़िश के तहत डूब से अप्रभावित घोषित करना और बांध का काम पूरा करना गैरकानूनी है. आंदोलन की कार्यकर्ता मीरा ने कहा कि वर्तमान में गुजरात शासन की ही वेबसाइट पर खलघाट मे २०१५ मे 149.84 मीटर बैक वाटर बताया गया है, जबकि बांध की ऊंचाई बढ़ाने का पूरा गैरकानूनी निर्णय इस आधार पर लिया गया कि खलघाट पर बांध बनने के बाद भी 144.92 तक ही बैक वाटर का असर जायेगा. मीरा ने आगे कहा कि इस 5 मीटर के फर्क से हज़ारों परिवारो के अधिकारो और भविष्य के साथ जो खिलवाड़ हो रहा है उसे चिन्हित किया और कार्रवाई की आड़ में लाया जाना चाहिए.
नर्मदा बचाओ आंदोलन के बच्चों ने अपने ढोल, नाच, गीत, नाट्य और नारों से हर बैठक मे जो जोश भरा, उससे लोगों का हौसला और बुलन्द हो गया. ‘घर बचाओ-घर बनाओ आन्दोलन’ के युवा कार्यकर्ताओ और शक्कर कारखानों के घोटालो का पर्दाफ़ाश करने वाले यशवंत बापू ने भी घाटी के संघर्ष को समर्थन दिया.
एकल्वारा, सेमल्दा, बोध्वाडा, पिछोडी, पेन्ड्रा, पिप्लुद, भादल, कुण्डिया, भवरिया, खापरखेड़ा, कड्माल, कोठड़ा, सहित डूब क्षेत्र के कई सारे प्रतिनिधि यात्रा में शामिल हुए हैं.