सिद्धांत मोहन, TwoCircles.Net,
पटना: धीरे-धीरे बिहार में विधानसभा चुनाव की तारीखें पास आती जा रही हैं. चुनाव करीब आते-आते भारतीय जनता पार्टी और जनता दल (यूनाइटेड) के बीच घमासान की स्थिति बढती जा रही है.
एक तरफ सुशील मोदी और अमित शाह के अलावा खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार चुनाव प्रचार में उतर पड़े हैं, वहीँ लालू-नीतीश के गठबंधन की ओर से नीतीश कुमार अकेले मोर्चा सम्हाले हुए हैं.
लालू यादव ने साफ़ तौर पर नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी मान लिया है. ऐसे में नीतीश कुमार अकेले अपने दम पर चुनाव प्रचार और जनसभाएं करते नज़र आ रहे हैं. ऐसा नहीं है कि लालू यादव सभाएं नहीं कर रहे हैं या वे चुनाव-प्रचार में हिस्सेदारी नहीं ले रहे हैं, लेकिन नीतीश कुमार के पैंतरे लालू यादव तो क्या विरोधी पार्टी भाजपा को भी ‘बुरे दिन’ दिखा सकते हैं.
दशरथ मांझी के जीवन पर केतन मेहता द्वारा बनायी गयी फिल्म ‘मांझी – द माउन्टेन मैन’ अगस्त के आखिरी दिनों में देश एक साथ रिलीज़ होगी. पार्टी से जीतनराम मांझी को निष्कासित करने के बाद नीतीश कुमार पर दलित विरोधी होने का आरोप हर ओर से लगना शुरू हुआ. इस आरोप के खेल का फायदा उठाकर जीतनराम मांझी भाजपा से जाकर मिल गए और नीतीश के खिलाफ उनके बोल और मुखर हो गए. जातीय राजनीती का ‘विरोध’ करने वाली भाजपा ने जीतनराम मांझी की आड़ लेकर कहना शुरू किया नीतीश कुमार महादलितों को हाशिए पर धकेल रहे हैं. लेकिन बीते हफ्ते केतन मेहता की फिल्म ‘मांझी’ को पूरे बिहार में टैक्स-फ्री प्रदर्शित करने का निर्णय लेकर नीतीश कुमार ने विरोधियों के लिए आलोचना का एक और रास्ता बंद कर दिया है.
यह बात भी जानने योग्य है कि कुछ रोज़ पहले जीतनराम मांझी ने एक कमज़ोर मांग की थी कि केतन मेहता की फिल्म को प्रदेश में टैक्स-फ्री किया जाए. लेकिन इससे पहले कि जीतनराम मांझी इस मामले पर बखेड़ा खड़ा करते, नीतीश कुमार ने यह निर्णय खुद ही ले लिया. ज्ञात हो कि बिहार में महादलितों के विराट वोटबैंक पर भाजपा और जद(यू), दोनों की नज़र है. हमेशा से जातीय समीकरणों और आरक्षण का विरोध कर रही भाजपा के अमित शाह और नरेंद्र मोदी ने मोदी के दलित होने का रोना रोना शुरू कर दिया है.
बिहार में ही चुनावी रैली को संबोधित करते हुए नितिन गडकरी और नरेंद्र मोदी ने जातिवाद को बिहार के डीएनए में शामिल बताया था. नीतीश कुमार ने यह तथ्य पकड़ लिया और कल प्रधानमंत्री के नाम एक बड़ा और खुला पत्र लिख दिया. इस पत्र में रोषपूर्ण दुःख जताते हुए नीतीश कुमार ने मोदी से यह कहा कि उनके और भाजपा के अन्य नेताओं के कथन से बिहारवासी बेहद दुखी हुए हैं. नीतीश कुमार ने कहा,
मैं बिहार का बेटा हूँ. इस लहजे से मेरा और बिहार के लोगों का डीएनए एक जैसा ही है. मोदी जी, आप जानते हैं कि मेरे पिता एक स्वतंत्रता सेनानी थे और माँ एक सामान्य गृहिणी. मैं बिहार के ग्रामीण परिवेश के एक साधारण परिवार में पला-बढ़ा हूँ. चालीस वर्षों के राजनैतिक जीवन में मैंने गाँधी, लोहिया, जेपी के आदर्शों पर चलने का प्रयत्न किया है और अपनी क्षमता के अनुसार जनता के हित के लिए काम किया है. हमारा यह मानना है कि आपके वक्तव्य ने मेरे वंश पर सवाल तो उठाया ही है, साथ ही, बिहार की विरासत और बिहारी अस्मिता को भी ठेस पहुँचाई है. इस तरह के वक्तव्य इस धारणा को भी बल देते हैं कि आप और आपकी पार्टी हम बिहारवासियों के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं. मुझे आश्चर्य होता है कि आपके सचेत विवेक ने इन वक्तव्यों की गंभीरता को कैसे नहीं समझा?
यहां मुद्दा यह नहीं है कि नीतीश कुमार के भीतर इस किस्म की बयानबाजी से किस किस्म की भावनाएं उमड़ीं. बल्कि मुद्दा तो यह है कि नीतीश कुमार ने अपना दुःख ज़ाहिर करने के लिए माध्यम क्या चुना? नीतीश जानते हैं कि इंटरनेट एक बड़ा माध्यम है. इस पत्र को लिखने के लिए Open letter to Modi से वेबसाईट बनायी और इस पत्र को अपने ट्विटर एकाउंट पर शेयर किया. नीतीश कुमार यह बात अच्छे से जानते हैं कि प्रेसवार्ता करके आरोप लगाने से बात की पहुंच उतनी नहीं होगी, जितनी पहुंच इंटरनेट के ज़रिए मिलेगी. शायद नीतीश कुमार यह जान गए हैं कि टेकसेवी नरेंद्र मोदी की आर्मी से भिड़ने का सही ज़रिया क्या हो सकता है?
परिणाम जो भी हो, लेकिन आने वाले दिनों में बिहार चुनाव का यह समर और भी तगड़ा होता जाएगा, यह तय है.