By TwoCircles.Net Staff reporter,
नई दिल्ली: आज के दिन धारा 341 में लगाए गए धार्मिक प्रतिबंध के विरुद्ध राष्ट्रीय ओलमा कौंसिल के ज़रिए दिल्ली में जंतर-मंतर पर एक दिवसीय धरना दिया गया. इस अवसर पर धरने को सम्बोधित करते हुए राष्ट्रीय ओलमा कौंसिल के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना आमिर रशादी मदनी ने कहा, ‘देश की आज़ादी का पहला उद्देश्य देश के सभी वर्गों की सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षिक विकास के लिए सामान अवसर उपलब्ध कराना था. धर्म, जाति, वर्ग, नस्ल, लिंग, भाषा के भेदभाव के बिना सभी पिछड़े वर्गों के पिछड़ेपन को दूर करने और जीवन स्तर को ऊपर उठाने के लिए रिज़र्वेशन सुविधा दी गयी, जिसका उद्देश्य उन पिछड़े वर्गों और अधिकारों से वंचित जनता को सहयोग दिलाना था जो सदियों से अन्याय के शिकार रहे.’ मौलाना मदनी ने आगे कहा, ‘आज़ाद भारत की पहली कांग्रेस सरकार ने समाज के विभिन्न वर्गों के साथ भेदभाव करते हुए धारा 341 में धार्मिक प्रतिबन्ध लगा कर भारतीय संविधान के सिद्धांतो की खिलाफ वर्ज़ी की है. राष्ट्रीय ओलमा कौंसिल का यह मानना है कि धर्म आरक्षण का आधार नहीं होना चाहिए.
जैसा कि संविधान कहता है कि आरक्षण से संबंधित भारतीय संविधान की धारा 340 ,341 और 342 है, जिनमें स्पष्ट रूप से कही धर्म शब्द का प्रयोग नहीं किया गया. आरक्षण के सभी लाभ जाति और पेशे के आधार पर निर्धारित किए गए है. धार्मिक मान्यताओं या किसी विशेष धर्म से सम्बंधित होने के आधार पर न तो किसी को आरक्षण की सुविधा दी जा सकती है और न ही उसको आरक्षण के लाभ से वंचित किया जा सकता है.
यह आश्चर्य व चिंताजनक बात है कि पंडित जवाहर लाल नेहरू की नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने 10 अगस्त 1950 को एक अध्यादेश पास कराया जिसे कंस्टीटूशन (अनुसूचित जाति) आर्डर 1950 कहा जाता है जिसके पैरा-3 में स्पष्ट किया गया है कि कोई व्यक्ति जो हिन्दू धर्म को छोड़ कर किसी और धर्म को स्वीकार करता है वह अनुसूचित जाति नहीं माना जाएगा. किसी ऐसे व्यक्ति को आरक्षण की सुविधा नहीं मिलेगी जो गैरहिन्दू होगा. इस अद्ध्यादेश का अर्थ था कि अनुसूचित जाति (दलित जाति) के मुसलमान ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन और दूसरे धर्म को मानने वाले लोगों को आरक्षण का लाभ उठाने वालों की सूची से बाहर कर दिया जाये जबकि 1936 से 1950 तक तमाम लोग सामान्य रूप से आरक्षण का लाभ उठा रहे थे.’
मुद्दे को थोड़ा धार्मिक विस्तार देते हुए मौलाना मदनी ने कहा, ‘सिख समाज के लोगों ने इसके विरुद्ध आवाज़ खड़ा की तो 1956 में उक्त अध्यादेश में संशोधन करते हुए सिख तथा वर्ष 1990 में बौद्ध दलितों को भी आरक्षण के अंतर्गत लाया गया. लेकिन मुसलमान व ईसाई दलितों को आज भी वंचित रखा जा रहा है. इस प्रकार असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक, अन्याय व अत्याचार पर आधारित नीति का प्रयोग करके दलित मुसलमानों और दलित ईसाईयों से आरक्षण के अधिकार को छिन लिया गया. इस भेदभाव के कारण मेहतर, मोची, खाटी, धोबी, नट, लालबेगी, डफाली, हलालखोर, हेला आदि ऐसी बहुत सारी मुस्लिम व ईसाई दलित जातियां हैं.’
मामले की तह को और खोलते हुए और विरोध की प्रासंगिकता बताते हुए मौलाना मदनी ने कहा, ‘राष्ट्रीय ओलमा कौंसिल का यह दृष्टिकोण है कि एक जैसा पेशा करने वाले तमाम लोगों को समान अवसर मिलना चाहिए. यह हर भारतीय का जन्मसिद्ध अधिकार है तथा धारा 341 से धार्मिक प्रतिबन्ध ख़त्म होना चाहिए. इसीलिए इस मांग को लेकर राष्ट्रीय ओलमा कौंसिल के ज़रिए मिशन 341 के तहत देशव्यापी आंदोलन चलाया जा रहा है, जिसके तहत फरवरी 2014 में हमने जंतर-मंतर पर 18 दिन तक धरना देकर यूपीए की पूर्व सरकार को चेतावनी दी थी कि अगर हमारी बात को नहीं माना गया तो सरकार की ईंट से ईंट बजा देंगे और किसी भी दशा में उसे दुबारा सत्ता में आने नहीं देंगे. चूंकि आज के ही दिन 10 अगस्त 1950 को नेहरू ने साम्प्रदायिकता पर आधारित इस अद्ध्यादेश को जारी किया था इसलिए आज हमने जंतर-मंतर पर एक दिवसीय सांकेतिक धरना दिया है. इसके ज़रिए हम एनडीए की वर्तमान सरकार से यह मांग करते है कि वह धारा 341 से धार्मिक प्रतिबन्ध हटाकर दलित मुसलमानो व ईसाईयों के आरक्षण के संवैधानिक अधिकार को बहाल करके ‘सबका साथ, सबका विकास’ के अपने वादे को पूरा करे.’
साथ ही उन्होंने सरकार को आगाह करते हुए यह भी कहा कि हमारा यह आंदोलन उस वक्त तक जारी रहेगा जब तक धारा 341 से धार्मिक प्रतिबन्ध हटा नहीं लिया जाता है या फिर सिखो और बौद्धों की तरह मुसलमान और ईसाई दलितों को भी आरक्षण की सूची में सम्मलित नहीं कर लिया जाता है. इस अवसर पर राष्ट्रीय ओलमा कौंसिल की ओर धारा 341 से धार्मिक प्रतिबन्ध ख़त्म करने की मांग को लेकर एक मांगपत्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिया गया
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