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जमीअत ने भी किया कन्हैया का समर्थन, कहा –जबरन आरएसएस की सोच थोपी नहीं जा सकती

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TwoCircles.net Staff Reporter

नई दिल्ली :‘देश को ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाने की किसी भी साज़िश को कामयाब नहीं होने दिया जाएगा. विभिन्न धर्मों के मानने वाले अपनी धार्मिक प्रतीकों और पहचान के साथ संविधान के तहत ही ज़िन्दा रह सकते हैं, उस लिए देश के संविधान और धर्मनिरपेक्षता की रक्षा के लिए हम अपनी अंतिम सांस तक संघर्ष करते रहेंगे. जहां तक देश के 25 करोड़ मुसलमानों और पांच करोड़ ईसाइयों की घर वापसी की बात है तो यह धमकी देने वाले इस बात को ध्यान में रखें कि केवल वे ही नहीं बल्कि दूसरों ने भी अपनी माँ का दूध पिया है.’

जमीअत उलेमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष मौलाना सैय्यद अरशद मदनी ने सांप्रदायिक ताक़तों को यह चेतावनी आज दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में आयोजित ‘राष्ट्रीय एकता सम्मेलन’ के दौरान लोगों को संबोधित करते हुए दिया.

Jamiat Program

मौलाना सैय्यद अरशद मदनी ने कहा कि –‘देश में सांप्रदायिकता का ऐसा नंगा नाच पहले कभी नहीं हुआ. हालात इस समय जितना चिंताजनक हैं, अतीत में इसकी कोई मिसाल नहीं मिलती. देश पूरी तरह फासीवाद की पकड़ में चला गया है. इसलिए ज़रूरत इस बात की है कि देश में धर्मनिरपेक्षता और क़ानून की सर्वोच्चता पर विश्वास रखने वाली राजनीतिक, सामाजिक संगठन व संस्थान सांप्रदायिक ताक़तों के खिलाफ़ एकजुट होकर उनके नापाक इरादों को नाकाम कर दें, क्योंकि अगर मुल्क में संविधान और कानून का शासन नहीं होगा तो यह देश के बहुसंख्यक व अल्पसंख्यक दोनों के लिए विनाशकारी होगा.’

मौलाना मदनी ने सत्तारूढ़ भाजपा के नेताओं पर सीधा निशाना साधते हुए कहा कि किसी को देशभक्ति का सर्टिफिकेट देने वाले या किसी देश का गद्दार क़रार देने वाले ये कौन होते हैं? पहले वो यह बताएं कि उन्होंने इस देश के लिए क्या किया है और उनके पूर्वजों ने देश की आज़ादी के लिए क्या बलिदान दिया है?

मौलाना मदनी ने जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार का समर्थन करते हुए कहा कि किसी भी शिक्षण संस्थान में जबरन आरएसएस की सोच थोपी नहीं जा सकती.

मौलाना मदनी ने हरियाणा और अन्य राज्यों में दलितों पर किए जा रहे अत्याचार की भी निंदा की.

इस मंच पर वर्षों से अपने चचा अरशद मदनी से नाराज़ होकर अपनी खुद की जमीअत उलेमा-ए-हिन्द चलाने वाले मौलाना महमूद मदनी भी नज़र आएं.

मौलाना महमूद मदनी ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि –‘देश के जो हालात हैं, उसमें समस्या केवल मुसलमानों का नहीं, बल्कि मानवता का है. इस समय देश संकट में और मानवता मुश्किल में हैं.’

उन्होंने कहा कि अक्सर यह पूछा जाता है कि राष्ट्रीय एकता की बात सिर्फ मुसलमान ही क्यों करता है? तो इसका उत्तर यह है कि इस देश को आज़ाद कराने में हमारे पूर्वजों ने अपना खून बहाया है, यह हमारा देश है, हमें प्यार है, इसलिए हम मूकदर्शक कैसे रह सकते हैं?

दरअसल, अरशद मदनी के साथ मंच पर साथ नज़र आने के बाद मुसलमानों के एक तबक़े में यह उम्मीद फिर से जगी है कि चचा और भतीजा की जंग को अब विराम लग गया हैं और अब दोनों जमीअत फिर से एक साथ हो जाएंगे.

Jamiat Program

इस अवसर पर कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने अपना संदेश भेजा, जिसे राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आज़ाद ने पढ़कर सुनाया.

वहीं गुलाम नबी आज़ाद ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि आज़ादी की लड़ाई में जमीअत उलेमा-ए-हिन्द के उलेमाओं के बलिदान और सेवाओं को भुलाया नहीं जा सकता. आज एक बार फिर देश कठिन परिस्थितियों से गुज़र रहा है, ऐसे में मौलाना सैय्यद अरशद मदनी के नेतृत्व में जमीअत उलेमा-ए-हिन्द की यह कोशिश सराहनीय है.

आज़ाद ने कहा कि देश में हिन्दू या मुसलमान के बीच कोई लड़ाई नहीं है, बल्कि लड़ाई सांप्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता के बीच है.

उन्होंने कहा कि सांप्रदायिकता चाहे हिन्दूओं में हो या मुसलमानों में, हम दोनों की निंदा करते हैं.

आचार्य प्रमोद कृष्णन ने प्रधानमंत्री पर निशाना साधते कहा कि –‘कल ही उन्होंने कहा है कि पूरी दुनिया उनका परिवार है. वास्तव में यह एक अच्छी बात है, लेकिन अफ़सोस इस बात की है कि पूरी दुनिया को अपना परिवार बताने वाले नरेंद्र मोदी अपने खुद के परिवार को ही अपनाने में हिचक रहे हैं.’

उन्होंने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि एक 'तथाकथित साधु'मुसलमानों को पाकिस्तान भेजने की बात कर रहा है. दो साल हो गए वह किसी मुसलमान को तो पाकिस्तान नहीं भेज सके, लेकिन खुद प्रधानमंत्री ज़रूर पाकिस्तान चले गए, वह भी बिना बुलाए और भारतीयों को बिना बताए.’

इस सम्मेलन में इनके अलावा जस्टिस कोलसे पाटिल, जॉन दयाल, सांसद मोहम्मद सलीम, मौलाना हबीब उर रहमान, मौलाना अशहद रशीदी, डॉ जफ़रूल इस्लाम, मणिशंकर अय्यर, नावेद हामिद, कासिम रसूल इलियास, गुलज़ार आज़मी सहित अन्य कई महत्वपूर्ण लोगों ने अपने विचार व्यक्त किए.


‘तीन तलाक देने वालों को सज़ा मिले’

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Fahmina Hussain, TwoCircles.net

नई दिल्ली :मुस्लिम समाज में तलाक को लेकर हमेशा से बहस होता रहा है. एक बार फिर इस बहस को कानपुर में शनिवार को होने वाले उलेमा व वकीलों के एक इज्तिमा में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य व विधिक सलाहकार व उत्तर प्रदेश के अपर महाधिवक्ता ज़फ़रयाब जीलानी ने हवा दी है.

उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि –‘एक बार में तीन तलाक देने वालों को सज़ा मिलनी चाहिए. इसके लिए उलेमा-ए-कराम एक कांफ्रेंस बुलाएं और इससे जुड़े तमाम पहलुओं पर ग़ौर करने के बाद इसका खाका तैयार करें. तलाक देने वाले पर जुर्माना लगाया जाए और इससे पीड़ित महिला की मदद की जाए.’

हालांकि इससे पूर्व ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और संबद्ध संगठन ‘तीन तलाक’ पर फिर से विचार करने की गुज़ारिश को नकार चुकी है.

पर्सनल लॉ बोर्ड का स्पष्ट तौर पर कहना है कि –‘कुरान और हदीस के मुताबिक़ एक बार में तीन तलाक कहना हालांकि जुर्म है, लेकिन इससे तलाक हर हाल में मुकम्मल माना जाएगा और इस व्यवस्था में बदलाव मुमकिन नहीं है.’

दरअसल, ऑल इंडिया सुन्नी उलेमा काउंसिल ने बोर्ड के साथ-साथ देवबंदी और बरेलवी मसलक को खत लिखकर कहा है कि अगर इस्लामी कानून में गुंजाइश हो तो किसी शख्स द्वारा एक ही मौके पर तीन बार तलाक कहे जाने को एक बार कहा हुआ माना जाए, क्योंकि अक्सर लोग गुस्से में एक ही दफा तीन बार तलाक कहने के बाद पछताते हैं.

तब उस समय ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना अब्दुल रहीम कुरैशी ने तलाक से संबंधित किसी भी पत्र मिलने से इंकार किया था. उनका स्पष्ट तौर पर कहना था कि –‘ बोर्ड को अभी ऐसा कोई पत्र नहीं मिला है.’ साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि –‘ काउंसिल के सुझाव से बोर्ड सहमत नहीं है.’

इस मौक़े से उन्होंने मीडिया को यह भी बयान दिया था कि –‘उन्हें अख़बार की खबरों से पता लगा है कि काउंसिल ने पाकिस्तान समेत कई मुल्कों में ऐसी व्यवस्था लागू होने की बात भी कही है. लेकिन दूसरे मुस्लिम मुल्क में क्या होता है, उससे हमें कोई लेना-देना नहीं है. पाकिस्तान, बांग्लादेश, ईरान, सूडान और दीगर मुल्कों में क्या हो रहा है, वह हम नहीं देखते. हम तो यह देखते हैं कि कुरान शरीफ़, हदीस और सुन्नत क्या कहती है.’

हालांकि इस मौक़े पर अपने बयान में उन्होंने यह भी कहा कि –‘इस्लाम में एक ही मौक़े पर तीन बार तलाक कहना अच्छा नहीं माना गया है, लेकिन इससे तलाक मुकम्मल माना जाएगा. इस व्यवस्था में बदलाव की कोई गुंजाइश नहीं है.’

स्पष्ट रहे कि इन दिनों मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के तीन तलाक के इस मसले पर ‘भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन’ नामक एक महिलावादी संगठन ने अपना अभियान छेड़ रखा है. इस अभियान के तहत इस संस्था ने एक सर्वे भी किया है, जिसका दावा है कि देश की 92 फीसदी मुस्लिम महिलाएं तीन बार तलाक बोलने से रिश्ता ख़त्म होने का नियम एक तरफ़ा मानती हैं और इस पर रोक लगाने की मांग कर रही हैं. इन महिलाओं के मुताबिक़ तलाक से पहले कानूनी प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए और इन मामलों में मध्यस्थता का प्रावधान होना चहिए.

हालांकि मुस्लिम समाज में कुछ लोगों का आरोप है कि ‘भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन’ नामक यह संगठन आरएसएस जैसी संस्थान के इशारे पर चलाया जा रहा है.

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तलाक –एक आम औरत की बिसात ही क्या...?

‘गुंडे पथराव करते रहे और प्रशासन मूकदर्शक बना रहा’

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TwoCircles.net Staff Reporter

पटना :रविवार को मुज़फ़्फ़रपुर के नागरिक समाज की ओर से आयोजित कार्यक्रम ‘मैं जेएनयू बोल रहा हूं’ हिंसक झड़प की भेंट चढ़ गया. इस कार्यक्रम के दौरान भाजपा के छात्र विंग अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी), भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) और आयोजकों में जमकर रोड़ेबाज़ी हुई. जिसके कारण दर्जन भर से अधिक लोग ज़ख्मी हुए.

इस पूरे मामले में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के बिहार राज्य सचिव सत्य नारायण सिंह ने भाजपाई-संघी गुंडों द्वारा नागरिक समाज के लोगों पर हमला किए जाने और पुलिस प्रशासन के मूकदर्शक बने रहने की तीव्र निंदा की है.

सत्य नारायण सिंह का आरोप है कि घटनास्थल पर मुज़फ्फ़रपुर के सिटी एसपी और सदर अनुमंडलाधिकारी पुलिस बल के साथ मौजूद थे, मगर मूकदर्शक बने रहे. क़रीब ढाई-तीन घंटे तक यह तांडव जारी रहा. लेकिन ज़िलाधिकारी और वरीय आरक्षी अधीक्षक सब कुछ हो हवा जाने पर घटनास्थल पर तीन घंटे बाद पहुंचे.

भाकपा राज्य सचिव ने इस पूरे प्रकरण और राज्य में भाजपा की बढ़ती गुंडागिरी पर रोष एवं असंतोष व्यक्त करते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को एक पत्र लिखकर मांग की है कि इस प्रकार की घटनाओं को अंजाम देने में चाहे-अनचाहे संलिप्त अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई की जाए और राज्य के नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकारों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए महागठबंधन सरकार ठोस कार्रवाई करें.

उन्होंने मुज़फ्फ़रपुर के नगर आयुक्त, अनुमंडलाधिकारी और सिटी एसपी को अविलंब बर्खास्त करने की मांग की है.

JNU SPEAKS

इस मामले में मुशहरी बीडीओ के बयान पर मिठनपुरा थाने में भाजपा नेता चंद्रकिशोर पाराशर समेत 200 अज्ञात लोगों पर एफ़आईआर दर्ज की गई है.

दरअसल, यह कार्यक्रम आम्रपाली ऑडिटोरियम में था. आयोजकों के मुताबिक़ प्रशासन से इस कार्यक्रम की अनुमति क़रीब दो हफ़्ते पहले ही ले ली गई थी. लेकिन जब रविवार सुबह आयोजक ऑडिटोरियम पहुँचे, तो उसका दरवाज़ा बंद मिला. वहां कार्यक्रम की अनुमति रद्द करने की सूचना चिपकी हुई थी. भाकपा राज्य सचिव के मुताबिक़ मुख्य द्वार पर चस्पा नोटिस पर लिखा हुआ था कि कल शाम भाजपा के एक नेता के कहने पर सभागार का आरक्षण रद्द कर दिया गया है. इससे एकत्रित लोगों में रोष व्याप्त हो गया और वे नारेबाजी करने लगे. फिर अंत में विकल्प के तौर पर आयोजकों ने ऑडिटोरियम के बाहर कार्यक्रम करना तय किया. लेकिन इसी बीच भाजयुमो व एबीवीपी के गुंडों ने ज़बर्दस्त हमला बोल दिया.

आयोजकों के मुताबिक़ इस दौरान भाजयुमो और एबीवीपी कार्यकर्ताओं ने पथराव भी किया, जिसमें दो लोगों को सिर पर गंभीर चोटें लगीं. इसके अलावा दस अन्य लोग घायल हो गए.

हालांकि दूसरी ओर भाजयुमो के ज़िला महामंत्री रवि रंजन शुक्ला ने पथराव की बात से इनकार किया है. उन्होंने आरोप लगाया कि आयोजकों ने ही भाजयुमो और एबीवीपी कार्यकर्ताओं पर हमले किए. इस हमले में क़रीब आधा दर्जन कार्यकर्ता ज़ख़्मी हो गए हैं.

हालांकि उन्होंने कार्यक्रम का विरोध करने की वजह यह बताई कि –‘शहर में अगर राष्ट्रविरोधी तत्वों के समर्थन में कार्यक्रम होता, तो मुज़फ्फ़रपुर की धरती कलंकित हो जाती. ऐसे में हम राष्ट्रवादियों ने मुज़फ़्फ़रपुर को कलंकित होने से बचाने के लिए यह विरोध किया.’

देश के ताज़ा हालात 1947 जैसे –के.सी. त्यागी

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TwoCircles.net News Desk

नई दिल्ली :‘देश का वर्तमान हालत 1947 से अधिक अलग नहीं है. और जो हिन्दू भाई सहिष्णुता से हटकर कट्टरता की ओर चले गए हैं, उनको वापस लाने की ज़िम्मेदारी भी हमारी ही बनती है.’

यह बातें रविवार को दिल्ली के रामलीला मैदान में चल रही मर्कज़ी जमीअत अहले हदीस की दो दिवसीय राष्ट्रीय कानफ्रेन्स ‘‘मानवता के विकास और शांतिपूर्ण समाज के गठन में इमामों व ख़तीबों की भूमिका और उनके अधिकार’’ में जनता दल (यूनाइटेड) के महासचिव के.सी. त्यागी ने कहा.

उन्होंने धार्मिक परम्पराओं को तोड़ने के प्रयासों की आलोचना करते हुए कहा कि हम इस सोच को कामयाब नहीं होने देंगे. देश का कानून सबको समान अधिकार देता है. ये क़ानून धर्म के नाम पर किसी के साथ भेदभाव नहीं करता.

Markazi Jamiat Ahle Hadees Hind

इस कान्फ्रेंस को संबोधित करते हुए ‘मर्कज़ी जमीअत अहले हदीस हिन्द’ के महासचिव मौलाना असगर अली इमाम महदी सलफी ने कहा कि –‘देश के अन्दर मौजूद विभिन्न संगठन चमन के रंग-बिरंग फूलों की तरह हैं और अपने-अपने कार्य क्षेत्र में मिल्लत और मानवता की सेवा कर रहे हैं. जब कभी मुल्क व मिल्लत के सामने कोई संकट की घड़ी आती है, तो यह सारे संगठन उठ खड़े होते हैं. दरअसल, यह संगठन देश की गंगा जमुनी सभ्यता के संरक्षक हैं.’

आगे उन्होंने कगा कि –‘देश और मानवता को आज आईएसआईएस जैसे अन्य आतंकी संगठनों से ख़तरा है तो उसके रोकथाम के लिये ‘मर्कज़ी जमीअत अहले हदीस हिन्द’ की दावत पर मुस्लिम नेतृत्व इकटठा हुआ है, जिसके लिए वह बधाई के पात्र हैं.’

वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डा. क़ासिम रसूल इलियास ने कहा कि –‘देश में जो वर्तमान हालात हैं, उससे हर कोई परेशान है. देश के आदिवासी और किसान सभी परेशान हैं. मुसलमानों पर आतंकवाद का आरोप लगाया जा रहा है. इस देश के निर्माण में हमारी भी भूमिका है और इस माहौल को ख़त्म करने के लिए हमें संकल्प करना होगा कि हम अन्याय नहीं होने देंगे.’

कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के महासचिव अतुल कुमार अंजान ने कहा कि –‘सरकार यह दावा कर रही है कि विकास हो रहा है, लेकिन यह कैसा विकास है कि गरीब मंहगाई से परेशान है और अमीर की दौलत में वृद्धि हो रही है.’

दारूल उलूम देवबन्द के प्रतिनिधि मौलाना मुफ्ती राशिद क़ासमी ने इमामों और ख़तीबों को सम्बोधित करते हुए कहा कि –‘वह कुरआन व हदीस की रोशनी में लोगों को समझाएं. इससे मिल्लत को फायदा होगा और हमारी कथनी-करनी में कोई विरोधाभास नहीं होना चाहिए, तभी हमारी बातों का असर होगा.’

जमाअत इस्लामी हिन्द के अमीर मौलाना सैय्यद जलालुद्दीन ने कहा कि –‘हमारा विरोधाभास हमारी सबसे बड़ी कमज़ोरी है. इसलिए हम अपने अन्दर बिखराव न होने दें. कुरआन ने एकजुट होकर रहने का संदेश दिया है और यह नसीहत की है कि यदि बिख़रे तो नुक़सान उठाओगे. कुरआनी शिक्षा पर अमल न करने के कारण हम सब कमजोर हैं. लिहाज़ा हमें किताब व सुन्नत की बुनियाद पर एकजुट होना चाहिये.’

अयोध्या के युगल किशोर शास्त्री ने षड़यंत्र के तहत मुस्लिम युवाओं को गिरफ़्तारी की आलोचना करते हुए कहा कि इस तरह की गिरफ़्तारी बन्द होनी चाहिये. आईएसआईएस अमेरीका की पैदावार है, इससे मुसलमानों का कोई सबंन्ध नहीं है.’

सांसद तारिक़ अनवर ने कहा कि धर्म के नाम पर आतंक का जो खेल खेला जा रहा है, उसका मुक़ाबला करना हम सबकी जिम्मेदारी है. आतंकवाद साम्प्रदायिकता का एक घिनौनी शक्ल है. साम्प्रदायिकता किसी भी धर्म में हो, वह निंदनीय है. लोग अपने हितों के लिए धर्म का ग़लत इस्तेमाल करते हैं. ऐसे लोगों के चेहरे को बेनकाब करने की ज़रूरत है.’

Markazi Jamiat Ahle Hadees Hind

ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस मुशावरत के अध्यक्ष नवेद हामिद ने कान्फ्रेंस को मुसलमानों के दिलों की आवाज़ बताते कहा कि –‘यह भारतीय मुसलमानों का सम्मान है कि वह जेलों में 14/20 साल तक बन्द होने के बावजूद संविधान पर पूरा भरोसा रखते हैं.’

उन्होंने कहा कि भारतीय मुसलमानों को घबराने की ज़रूरत नहीं है, बल्कि देश से अपना रिश्ता और अधिक मज़बूत करने की ज़रूरत है.

राज्यसभा सांसद सालिम अंसारी ने धर्म के नाम पर हिन्दू-मुस्लिम के बीच दीवार खड़ी करने की निंदा करते हुए कहा कि –‘भड़काऊ बयान पर सरकार द्वारा रोकने की कोशिश नहीं की जा रही है, जो चिंता का विषय है.’

इस अवसर पर जमीअत दो मुख्य पत्र मासिक हिन्दी और अंग्रेज़ी मासिक के विशेषांकों का लोकार्णपण हुआ, जिसमें आईएसआईएस और आतंकवाद के खिलाफ़ फतवे को विशेष रूप से प्रकाशित किया गया है.

दौड़ने से पहले ही पंक्चर हो गई अल्पसंख्यक मंत्रालय की ‘साइकिल’ योजना

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Afroz Alam Sahil, TwoCircles.net

अल्पसंख्यक तबक़े से ताल्लुक़ रखने वाली लड़कियों पढ़ाई-लिखाई में प्रोत्साहन देने के मक़सद से शुरू की गई केन्द्र सरकार की ‘साइकिल योजना’ अपने शुरूआत के पहले ही साल पूरी तरह से फ्लॉप हो चुकी है.

आलम यह है कि आप किसी भी गांव, तहसील, शहर या ज़िले में पढ़ाई कर रही किसी भी छात्रा से इस बाबत कुछ पूछ लें तो उसे इस योजना की हवा तक नहीं है. और हो भी कैसे, क्योंकि योजना का बजट बस कागज़ों पर आया और चला गया. लेकिन मंत्रालय की ये ‘साइकिल’ कहीं दौड़ती हुई नज़र नहीं आ सकी.

स्पष्ट रहे कि केन्द्र सरकार ने नौवीं क्लास में पढ़ने वाली अल्पसंख्यक तबक़े से संबंध रखने वाली लड़कियों के लिए यह योजना साल 2012-13 में शुरू किया गया था. इस योजना का असल मक़सद यह था कि उन गरीब अल्पसंख्यक छात्राओं को मदद की जाए जो सिर्फ़ स्कूल दूर होने की वजह से पढ़ाई छोड़ देती हैं.

दरअसल, अल्पसंख्यक छात्राएं खासतौर मुस्लिम छात्राएं आठवीं कक्षा के बाद महज़ इसलिए पढ़ाई छोड़ देती हैं, क्योंकि उनका स्कूल दूर है या फिर वहां तक आने-जाने के लिए उनके पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं.

TwoCircles.netके पास मौजूद दस्तावेज़ बताते हैं कि अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय का यह महत्वपूर्ण योजना सिर्फ़ कागज़ों पर बनी और वहीं समाप्त हो गई. यानी केन्द्र सरकार की साइकिल की ये सौगात महज़ एक लोकलुभावन घोषणा से अधिक कुछ भी रहा.

आंकड़े बताते हैं कि नौवीं कक्षा की लड़कियों के लिए फ्री साइकिल योजना (scheme of Free Cycles to girl students of class IX) के लिए साल 2012-13 में केन्द्र सरकार ने सिर्फ 5 करोड़ का बजट रखा था, जिसमें से चार लाख रुपया रिलीज़ भी कियी गया लेकिन इस चार लाख में से भी एक भी पैसा मंत्रालय द्वारा खर्च नहीं किया गया. उसके अगले साल भी इस योजना पर कोई फंड आवंटित नहीं हुआ.

सच तो यह है कि तालीम के मामले में अल्पसंख्यक छात्राओं की हालत दिन प्रतिदिन बदतर होती जा रही है, लेकिन उनकी बेहतरी के नाम पर खर्च किया जा रहा अच्छा-खासा फंड सरकारी लाल फीताशाही के आगे दम तोड़ रहा है. जबकि मुस्लिमों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति पर सच्चर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में लड़कियों की स्थिति को लड़कों से भी बदतर बताया था. बीच में पढ़ाई छोड़ने के मामलों में मुस्लिम लड़कियों की स्थिति और भी ख़राब है. ऐसे में ‘सबका साथ –सबका विकास’ का दावा करने वाली मोदी सरकार से यह उम्मीद जगी थी कि वो इस योजना को आगे बढ़ाएगी, लेकिन इस सरकार ने भी इस योजना पर कोई ध्यान नहीं दिया.

अखिलेश सरकार के 4 साल और अल्पसंख्यक मुद्दे से जुड़े ये 41 सवाल

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TwoCircles.net News Desk

लखनऊ :उत्तर प्रदेश की सामाजिक संगठन रिहाई मंच ने सपा सरकार के चार साल पूरे होने पर अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव, हिंसा, आतंकवाद के नाम पर बेगुनाहों को फंसाने का आरोप के साथ-साथ उर्दू, अरबी और फारसी भाषा एवं अल्पसंख्यक संस्थानों से संबन्धित वादा न पूरा करने पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से 41 सवाल किए हैं.

रिहाई मंच द्वारा किए गए 41 सवाल इस प्रकार हैं :

1. उत्तर प्रदेश के जो बेक़सूर मुस्लिम नौजवान दहशतगर्दी के नाम पर जेलों में बंद हैं, उन्हें चुनावी वादे के अनुसार क्यों नहीं रिहा किया गया?

2. अदालतों द्वारा बरी हुए आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों को चुनावी वादे के अनुसार पुर्नवास और मुआवज़ा क्यों नहीं दिया गया?

3. सांप्रदायिक हिंसा के दोषियों के खिलाफ़ कार्रवाई क्यों नहीं की गई?

4. मुसलमानों को 18 फ़ीसदी आरक्षण देने का वादा पूरा क्यों नहीं किया गया?

5. यूपी में सांप्रदायिक हिंसा बिल लाने के लिए सरकार ने गंभीरता क्यों नहीं दिखाई?

6. सच्चर, रंगनाथ और कुंडू रिपोर्ट सिफ़ारिशों पर अमल क्यों नहीं किया गया?

7. मुज़फ्फ़रनगर में सांप्रदायिक हिंसा में पीड़ित परिवारों को अखिलेश सरकार ने इंसाफ़ दिलाने का वादा पूरा क्यों नहीं किया?

8. लव जिहाद के नाम पर साम्प्रदायिक उन्माद और हिंसा फैलाने वालों के खिलाफ़ सरकार ने उचित धाराओं में कारवाई क्यों नहीं की?

9. राजनैतिक विरोधियों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ़ भड़काऊ भाषण द्वारा प्रदेश में अराजकता फैलाने वाले नेताओं पर कानून के मुताबिक़ कड़ी कार्रवाई क्यों नहीं की गई?

10. प्रदेश के राज्य अल्पसंख्यक आयोग में वार्षिक रिपोर्ट तैयार नहीं होती, मामलों का कोई केस स्टडी नहीं होता. सांप्रदायिक हिंसा से ग्रस्त मुज़फ्फ़रनगर, दादरी तक में आयोग ने कोई दौरा नहीं. इसकी स्थापना के गाईडलाइन के अनुसार जनपदों में अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी के पदों पर तैनात अधिकारी अल्पसंख्यक नहीं हैं. सरकार की इस उदासीनता की वजह क्या है?

11. प्रधानमंत्री के नए 15 सूत्रीय कार्यक्रम के क्रम संख्या 14 व 15 में उल्लिखित है कि जो भी नौजवान दहशतगर्दी के तहत जेलों में बंद किए जाएंगे और अदालती प्रक्रिया से बरी होंगे, उन्हें पुर्नवास मुआवज़ा और सरकारी नौकरी दी जाएगी. परन्तु इस पर अमल क्यों नहीं किया गया?

12. प्रधानमंत्री के नए 15 सूत्रीय कार्यक्रम के मुताबिक़ आतंकवाद के नाम पर जेलों में बंद किए गए नौजवानों को फर्जी तरीके से फंसाने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई उन्हीं धाराओं के तहत किए जाने की बात के बावजूद ऐसे मामलों में कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई?

13. मुसलमानों के अंदर आत्मविश्वास पैदा करने के लिए राजकीय सुरक्षा बलों में मुसलमानों की भर्ती का विशेष प्रावधान करने और कैम्प आयोजित करने का वादा पूरा क्यों नहीं किया गया?

14. सभी सरकारी कमीशनों, बोर्डों और कमेटियों में कम से कम एक अल्पसंख्यक प्रतिनिधि को सदस्य नियुक्त करने के सरकार के वादे का क्या हुआ?

15. सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 से अखिलेश सरकार ने 3 दिसंबर 2015 को सूचना अधिकार नियमावली 2015 से उर्दू भाषा में आवेदन/अपील देने पर पाबंदी क्यों लगाई?

16. बुनकरों की क़र्ज़ माफी क्यों नहीं?

17. किसानों की तरह गरीब बुनकरों को मुफ्त बिजली देने के वादे का क्या हुआ?

18. जिन औद्योगिक क्षेत्रों में अल्पसंख्यकों की बहुलता है, जैसे हथकरघा, हस्तकला, हैण्डलूम, कालीन उद्योग, चूड़ी, ताला, जरी, जरदोजी, बीड़ी, कैंची उद्योग उन्हें राज्य द्वारा सहायता देकर प्रोत्साहित करने, करघों पर बिजली के बकाया बिलों पर लगने वाले दंड और ब्याज को माफ़ कर बुनकरों को राहत देने, छोटे और कुटीर उद्योगों में कुशल कारीगरों की कमी को पूरा करने के लिए प्रत्येक विकास खंड स्तर पर एक-एक आईटीआई की स्थापना करने का वादा पूरा क्यों नहीं हुआ?

19. यूपी के अल्पसंख्यक बहुल्य जिलों में संचालित मल्टी सेक्टोरल डेवलपमेंट प्लान के तहत संचालित अधिकांश योजनाएं अपूर्ण क्यों हैं?

20. 20 अगस्त 2013 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने प्रदेश में अल्पसंख्यक समुदाय को उनका वाजिब हक़ दिलाने के लिए अल्पसंख्यकों को 30 विभिन्न विभागों में संचालित 85 योजनाओं में 20 प्रतिशत मात्राकृत लाभान्वित किए जाने का जो वादा किया था, उसे क्यों नहीं पूरा किया गया?

21. 25 अक्टूबर 2013 की घोषणा के अनुसार स्वर्ण जयंती शहरी रोज़गार योजना के अन्तर्गत मुस्लिमों को 20 प्रतिशत लाभान्वित किया जाना था, जिसमें से स्वर्ण जयंती शहरी योजना अंतर्गत 6 उपयोजनाएं संचालित तो हुई परन्तु 31 मार्च 2014 को समाप्त कर दी गई. इस मद के लिए जो पैसा था वह कहां खर्च हुआ?

22. उर्दू को दूसरी सरकारी भाषा मानने के बावजूद अखिलेश सरकार के कार्यकाल में सरकारी कामकाज में महत्वपूर्ण सरकारी नियमों, विनियमों, सरकारी आदेशों समेत गज़ट का रुपान्तर उर्दू भाषा में क्यों नहीं?

23. ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती उर्दू, अरबी-फारसी विश्वविद्यालय लखनऊ की प्रथम परिनियमावली में उर्दू/अरबी/फारसी के अंक अन्य विषयों की तरह अंक-पत्र में न जोड़े जाने के निर्णय से उक्त विश्वविद्यालय के स्थापना के मक़सद को ही ख़त्म कर दिया गया. ऐसा क्यों किया गया?

24. ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती उर्दू, अरबी-फारसी विश्वविद्यालय लखनऊ की प्रथम परिनियमावली में टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ की नियुक्ति में उर्दू की अनिवार्यता को क्यों समाप्त कर दिया गया?

25. ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती उर्दू, अरबी-फारसी विश्वविद्यालय लखनऊ में एक भी नई फैकल्टी क्यों नहीं खोली गई?

26. ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती उर्दू, अरबी-फारसी विश्वविद्यालय लखनऊ से मदरसों को जोड़ने के बजाए उसे मदरसों से दूर क्यों किया गया?

27. ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती उर्दू, अरबी-फारसी विश्वविद्यालय लखनऊ के कुलपति, रजिस्ट्रार, प्रॉक्टर, ओएसडी, फाइनेंसर कोई भी उर्दू भाषा का सनद प्राप्त क्यों नहीं है?

28. ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती उर्दू, अरबी-फारसी विश्वविद्यालय लखनऊ की प्रथम परिनियमावली उर्दू भाषा में क्यों नहीं?

29. रफीकुल मुल्क मुलायम सिंह यादव आईएएस उर्दू स्टडी सेंटर में मात्र 50 सीट जबकि प्रदेश में 75 जिले. पढ़ाई का माध्यम उर्दू भाषा नहीं और कोई पद स्थाई नहीं, आखिर ऐसा क्यों?

30. उर्दू की प्रोन्नति के लिए मुस्लिम बहुल इलाकों में प्राईमरी, मिडिल व हाई स्कूल स्तर पर सरकारी उर्दू मीडियम स्कूलों की स्थापना क्यों नहीं की गई?

31. अखिलेश सरकार के कार्यकाल में यूपी में एक भी यूनानी मेडिकल कालेज की स्थापना क्यों नहीं की गई?

32. यूपी के 54 जिलों में 253 यूनानी चिकित्सालयों में नर्स और फार्मेसिस्ट की नियुक्ति किसी भी संस्थान में क्यों नहीं?

33. यूनानी चिकित्सा पैथी जिसका कोर्स उर्दू भाषा में है, उसके नर्स और फारमेसिस्ट के कोर्स से उर्दू को क्यों बाहर किया?

34. यूनानी चिकित्सा पैथी की 2008 से आज तक कोई भी नियमावली व स्थाई निदेशक क्यों नहीं?

35. मुसलमानों के वह शैक्षिक संस्थान जो विश्वविद्यालय की शर्तों पर पूरे उतरते हैं, उन्हें कानून के तहत युनिवर्सिटी का दर्जा देने का वादा पूरा क्यों नहीं किया गया?

36. अखिलेश सरकार ने आर्थिक सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से अधिक पिछ़ड़ा मानते हुए दलितों की तरह दलित मुस्लिमों को जनसंख्या के आधार पर अलग से आरक्षण क्यों नहीं दिया?

37. सपा सरकार द्वारा बनाए गए मुहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय की सभी कानूनी बाधाएं समाप्त करने की बात तो की गई थी, लेकिन क्या अच्छा होता कि इस विश्वविद्यालय को सरकारी विश्वविद्यालय के रुप में बनाया गया होता. क्योंकि जो यह विश्वविद्यालय भी डोनेशन की बुनियाद पर ही प्रवेश देता है, जिससे गरीब जनता को सीधा लाभ नहीं पहुंच रहा है. उक्त क्षेत्र में प्राईवेट कई विश्वविद्यालय मौजूद हैं. जबकि बरेली से लेकर मेरठ तक 200 किमी के परिक्षेत्र में एक भी सरकारी विश्वविद्यालय नहीं है. सरकार ने उक्त क्षेत्र में कोई सरकारी विश्वविद्यालय क्यों नहीं बनवाया जिससे जनता को सीधा लाभ पहुंचता?

38. मुस्लिम बहुल जिलों में नए सरकारी शैक्षिक संस्थानों की स्थापना क्यों नहीं की गई?

39. क़ब्रिस्तानों की भूमि पर अवैध क़ब्जे को रोकने व भूमि की सुरक्षा के लिए चहार-दिवारी के निर्माण पर कार्य क्यों नहीं किया गया?

40. दरगाहों के सरंक्षण व विकास हेतु दरगाह ऐक्ट का वादा क्यों पूरा नहीं किया और स्पेशल पैकेज के वादे का क्या हुआ?

41. वक्फ़ डाटा कम्प्यूटरीकृत स्कीम के तहत आज तक वक्फ़ के सारे डाटा कम्प्यूटरीकृत क्यों नहीं किए गए?

भलनी : यहां पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देती हैं सरकारी योजनाएं...

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Nazmul Hafiz for TwoCircles.net

बीमारू राज्यों की क़तार में बिहार का नाम अव्वल है. जो लोग राजधानी पटना देखकर लौट जाते हैं, उनके दिलो-दिमाग में बिहार की तस्वीर सेहतमंद राज्य की बनी होगी.

लेकिन मेरे ख्याल से ऐसा कहना एक छलावा होगा. बिना गांव की हालत जाने मुकम्मल तस्वीर कभी नहीं बन सकती. बिहार का मधुबनी ज़िला कला और संस्कृति के क्षेत्र में भले ही ब्रांड माना जाता हो, लेकिन सच्चाई यह है कि यहां भी कई जिंदगियां दो जून की रोटी के लिए तरस रही हैं.

इस वक़्त मैं मधुबनी ज़िले के करमौली पंचायत में कलुवाही ब्लॉक स्थित भलनी गांव में हूं. आंखों के सामने वह नज़ारा है, जो न सिर्फ़ गांव के गुलाबी मौसम के ख्याल को तोड़ता है, बल्कि सरकारी योजनाओं के दावे की क़लई भी खोलता है.

मेरे आंखों के सामने भव्यता नहीं, बल्कि एक वीभत्स नज़ारा है. 75 वर्षीय मंसूर नदाफ़ एक टूटी चारपाई पर लेटे हैं. उनकी 14 वर्षीय बेटी रमज़ा खातून मुझे देखते ही सलाम करती हैं. मंसूर की 64 वर्षीय अनीसा खातून घरेलू काम में मसरूफ़ हैं.

औपचारिकता के बाद परिवार से रू-ब-रू होता हूं. सभी मुझे सहज करने की कोशिश में असहज जान पड़ते हैं. कच्ची दीवारों से घिरा छोटा सा आशियाना. मैनें घर के भीतर चारों तरफ़ नज़र दौड़ाई. जिंदगी जितने में चलाई जा सके उतना भी समान नहीं दिखा.

कांपते और बूढ़े हाथों से अनीसा खातून ने पानी से भरा गिलास पकड़ाया. बेटी और पिता मेरे सामने बैठ गए. लंबे अरसे से जिनका कोई पुरसाने-हाल न लेने गया हो, वहां मेरा पहुंचना उनके उम्मीदों के चिराग़ को जला रहा था. मैंने एक तस्वीर खींच ली. इसके बाद जो बातचीत में निकला वह जम्हूरियत का मज़ाक़ उड़ाता जान पड़ा...

Bhalni

भूमिहीन मंसूर ने उम्र की एक बड़ी पारी मज़दूरी में गुज़ारी. जब शरीर ने साथ देना छोड़ दिया तो उनकी बीबी अनीसा खातून ने उनका हाथ बंटाना शुरू किया. अब मंसूर और बेटी रमज़ा खातून की रोटी का जुगाड़ अनीसा खातून ही करती हैं.

बातचीत के दरम्यान अनीसा खातून बताती हैं कि बाबू खेत-खलिहान में काम मिलता नहीं, जो चिरौरी और मिनती पर काम मिलता भी है, तो दो जून की रोटी भर के लिए मज़दूरी नहीं मिलती. उम्र तो मेरी भी जवाब दे चुकी है, लेकिन क्या किया जाए... साहब बीमार हैं और बेटी इसकी अभी उम्र क्या है?

मैंने पूछ लिया –बिटिया पढ़ती है या नहीं? जवाब आया –क्या पढ़ाई-लिखाई… सरकारी मदरसा में पढ़ती है. अलग से व्यवस्था कर नहीं सकते बाबू जी. खाने का हो नहीं पाता पढ़ाई पर क्या ध्यान दिया जाए... एक क़र्ज़ा उतरता नहीं, दूसरा चढ़ जाता है... हाड़-तोड़ मेहनत के बाद भी कुछ नहीं बचता.

वृद्धा पेंशन लेते हैं आप लोग? उधर से एक साथ आवाज़ आई. –नहीं... हम लोग को कौन देगा? जिंदगी गुज़र गई है बाबू. अब जितने दिन बचे हैं बस अल्लाह मालिक है... यही छोटी सी घर की ज़मीन है, जिसमें हम तीन लोग का गुज़र-बसर हो रहा है. दूसरे के घर मज़दूरी से जो जुटता है वह दवा-पानी खा जा रहा है.

मेरा अगला सवाल था कि बीपीएल सूची में नाम है आप लोगों का? सभी फिर से एक साथ बोले –सूची में नाम होने से क्या होता है. आज तक कोई फ़ायदा हमें नहीं मिला. बाबू आज तक न कोई पूछने आया न हम किसी को बता पाए. कोई नहीं सुनता हमारी... अब बस यही है जब तक हाथ-पांव चल रहा है तभी तक है. आगे का हम नहीं जानते... न कोई आसरा दिखता है.

हर सवाल का जवाब नहीं. क्या वाक़ई अंतिम आदमी तक नीतियों का फ़ायदा पहुंच रहा है. बिहार सरकार और केंद्र की सरकार दोनों तो यही वादा करते हैं कि हाशिए पर खड़े आदमी तक वे अपनी नीतियों का फ़ायदा पहुंचाएंगे. क्या मधुबनी के भलनी गांव तक पहुंचते-पहुंचते नीतियां अपना असर खो देती हैं या फिर नीतियों को अमल में लाने वाली मशीनरी इसे बीच में ही डकार जाती है.

क़लम और कागज़ समेटेत हुए मैं उस छोटे से आशियाना से निकल आया. सामने बैठे परिवार को जैसे किसी दिलासे की उम्मीद थी. मैं चुप्पी बांधे बाहर निकला. मन में यही सवाल बना रहा –आखिर मंसूर और अनीसा के दर्द से कौन राब्ता क़ायम करेगा...

लेखक नजमुल हफ़ीज़ जन सरोकारी कार्यो के लिए समर्पित हैं. ‘मिसाल नेटवर्क’ के साथ जुड़े हैं. इनसे 7739310121 पर संपर्क किया जा सकता है.

‘मेरा जुर्म बस यह था कि मैंने पाकिस्तानी लड़की से प्यार किया’

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TwoCircles.net Staff Reporter

लखनऊ :‘उस वक्त जब मैं 18 साल का था और मैं टीवी मैकेनिक का काम करता था. मेरा बस जुर्म यह था कि मैंने पाकिस्तानी लड़की से प्यार किया था. मोहब्बत किसी सरहद की मोहताज नहीं होती. हम सब पूरी दुनिया में प्रेम-मोहब्बत से रहने की बात करते हैं, पर जिस तरह से सरहद पार मोहब्बत करने के नाम पर मेरी जवानी के साढ़े ग्यारह साल बरबाद किए उसकी कौन जिम्मेदारी लेगा? पुलिस ने मेरे प्रेम-पत्रों को मुल्क की गोपनीयता भंग कर आईएसआई का एजेंट बताया था. पोटा जैसे क़ानून के तहत मुझ पर मुक़दमा चलाया गया. ऐसे-ऐसे आरोप लगाए गए कि देश-दुनिया का हर शख्स सहम जाए.’

Mohd. Javed

साढ़े 11 साल ‘आतंकवादी’ के नाम पर जेल में रहने के बाद बाइज्ज़त बरी हुए 32 वर्षीय रामपुर निवासी मुहम्मद जावेद TwoCircles.net के साथ एक खास बातचीत में बताते हैं कि –‘सन् 1999 के जनवरी महीने में पहली बार अपनी मां के साथ पाकिस्तान गया था. दरअसल पाकिस्तान में मां के रिश्तेदार रहते हैं और वो उनसे मिलना चाहती थी. मैं अपनी मां के साथ पाकिस्तान पूरे साढ़े तीन महीने रहा. इस दौरान मुझे अपनी फूफी के लड़की पसंद आ गई. मुझे उससे प्यार हो गया. उसने भी मेरे प्यार के प्रोपोजल को क़बूल कर लिया. अब हम वापस अपने देश भारत आ चुके थे, लेकिन हम दोनों के बीच प्रेम-पत्र का आना-जाना लगा रहा. हम दोनों एक दूसरे को इतना चाहने लगें कि मैं दुबारा सन् 2000 के मार्च महीने में अकेले ही मिलने चला गया.’

इस खास बातचीत में जावेद बताते हैं कि –’10 अगस्त 2002 को अपने मैकेनिक की दुकान पर काम कर रहा था. कुछ पुलिस वाले सादे ड्रेस में आकर मुझे पूछताछ के नाम पर ज़बरदस्ती उठाकर ले आएं. मुझे दरअसल दिल्ली लाया गया. तीन दिन लगातार तरह-तरह से टार्चर किया गया. थर्ड डिग्री का इस्तेमाल किया गया. फिर भी जब मैं अपने सच पर क़ायम पर रहा तो मुझे थक-हार कर रामपुर में अदालत में पेश किया गया.’

जावेद बताते हैं कि –‘पूरे 11 साल 7 महीने रामपुर जेल में रहने के बाद आख़िरकार 18 जनवरी 2014 को मुरादाबाद की अदालत से रिहाई मिली. इस दौरान मुझे जो यातनाएं दी गईं उसे शब्दों में बता पाना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है. इस मुहब्बत ने तो मेरा सब कुछ ख़त्म कर दिया.’

जावेद बताते हैं कि –‘आज मैं अदालत से बाइज्ज़त बरी हो चुका हूं, पर मेरी गिरफ्तारी के लिए दोषी पुलिस वालों के खिलाफ़ कोई भी कार्यवाई नहीं हुई. आज बरी होने के बाद मेरा पूरा परिवार तबाह हो गया है. मेरे घर में मेरे अब्बू, अम्मी और छोटे भाई और बहन की मेरे ऊपर जिम्मेदारी है, पर यह कैसे निभाउंगा? मैं इस पर कुछ सोच ही नहीं पा रहा हूं.’

जावेद के मुताबिक़ साढ़े 11 साल जेल में रहने के बाद बाइज्ज़त बरी होने के बावजूद आज तक सरकार ने पुर्नवास तो दूर सरकार का कोई नुमाइंदा उसे पूछने तक नहीं आया.

जावेद ने सरकार के सामने अपनी मांग रखते हुए कहते हैं कि –‘मैं सरकार से मांग करता हूं कि वो अपने चुनाव के समय किए गए वादे के मुताबिक़ वह मेरे और मेरे जैसे उन तमाम बेगुनाहों के पुर्नवास को सुनिश्चित करे, जिससे हम फिर से जिंदगी को पटरी पर ला सकें.’

जावेद से उनकी मुहब्बत यानी उस लड़की के बारे में सवाल पूछने पर वो बताते हैं कि –‘पता नहीं, अब वो कहां है? लेकिन है तो पाकिस्तान में ही. क्या पता अब तक उसका परिवार में कितने सदस्य बढ़ गए होंगे.’

ये पूछने पर कि अगर उन्होंने अभी तक शादी नहीं की होगी, तो क्या आप अभी भी उनसे शादी करना चाहेंगे? इस सवाल पर वो हंसते हुए बताते हैं –‘अभी तो सिर्फ प्यार किया था तो साढे ग्यारह साल जेल काटकर आया हूं, वो भी आतंकवादी व पाकिस्तान के लिए जासूसी करने के आरोप में... अब अगर शादी करने की सोचूंगा तो पता नहीं ये पुलिस पर मुझे ऐसे कितने आरोप लगाएंगे. ये प्यार तो मेरे लिए आग का दरिया साबित हुआ.’ फिर हंसते-हंसते जावेद मायूस हो जाते हैं.

जावेद कहते हैं कि अब अगले कई सालों तक तो शादी के बारे में सोच भी नहीं सकता. हालात ऐसे हो गए कि पता नहीं मैं खुद को कैसे ज़िन्दा रख पाउंगा, ये सोच कर ही परेशान हो जाता हूं. घर-परिवार सब बर्बाद कर दिया इन लोगों ने. मेरे घर में सबकी ज़िम्मेदारी मेरे ही उपर है, पता नहीं मैं इस ज़िम्मेदारी को कैसे निभा पाउंगा?


क्यों असदुद्दीन ओवैसी का ‘भारत माता की जय’ न बोलना एक सराहनीय फैसला है?

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By सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी का बयान कि वे भारत माता की जय नहीं बोलेंगे, की सराहना करने और उसे समर्थित करने के कई रास्ते खुले हुए हैं.

मुस्लिम समुदाय – और खासकर मुस्लिम समुदाय के उस हिस्से जहां असदुद्दीन ओवैसी और उनकी मजलिस का समर्थन का तबका खड़ा है – में यह अचम्भा, भय और संशय व्याप्त है कि असदुद्दीन ओवैसी के इस कथन के साथ खड़ा हुआ जाए या नहीं.

यह कहने में कम से कम गुरेज़ होना चाहिए कि हमें असदुद्दीन ओवैसी के इस कथन के साथ खड़े होना चाहिए. भले ही ओवैसी के राजनीतिक तरीकों से लाख शिकायतें हों, हम भले ही उसका साथ न देते हों लेकिन बैरिस्टर ओवैसी का यह कथन भारतीय परिवेश की उस बहस का एक बड़ा अध्याय है, जिसमें आज हर कोई देशद्रोह की चपेट में आ रहा है.

मोहन भागवत, सरसंघ संचालक, का यह आह्वान कि ओवैसी ‘भारत माता की जय’ बोलें का विरोध ज़रूरी है. एक, पहले तो किसी ऐसे संगठन के मुखिया – जो खुद नाज़ी जर्मनी से निकलकर आया हो – को देशप्रेम की बात करने का कोई अधिकार नहीं है और दो, जनता से प्रश्न रखा जाना चाहिए कि भारत को कितने माँ का दर्जा देते हैं? देते भी हैं या भारत को एक वतन की परिभाषा के बीच देखते हैं.

Asaduddin Owaisi in Bihar

असदुद्दीन ओवैसी का इनकार इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि यह उस मोहन भागवत के कथन की मुखालफ़त करता है, जिनकी सरपरस्ती में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने बार-बार भारतीय मुसलमानों से देशप्रेम का सबूत माँगा है. यह कहने की ज़रुरत कतई नहीं है कि देशप्रेम के इस सर्टिफिकेशन के बीच कई बार जघन्य अपराध हुए हैं, लेकिन याद रखना ज़रूरी है.

जेएनयू के छात्र कन्हैया कुमार और उमर ख़ालिद के देशद्रोह प्रकरण के बाद यह ज़रूरी था कि किसी बड़े फलक से ‘देशद्रोह’ का स्वर उठे और सरकार का तात्कालिक रुख देखने को मिले. लेकिन हाल में ही दो ऐसे प्रकरण हुए जिनसे सरकार की नाक़ामी और लाचारी सामने ज़ाहिर हो जाते हैं. विश्व सांस्कृतिक समारोह, वर्ल्ड कल्चरल फेस्टिवल, के मंच से श्री श्री रविशंकर ने गृह मंत्री राजनाथ सिंह के बगल में बैठकर पाकिस्तान ज़िन्दाबाद का नारा लगाया और दूसरी ओर ओवैसी ने भारत माता की जय बोलने से इनकार कर दिया.

इन दोनों हो वाकयों में किसी भी किस्म का देशद्रोह नहीं है, लेकिन वेंकैया नायडू की नज़र में सिर्फ ओवैसी ही दोषी हैं. यह भी ज़ाहिर है कि ओवैसी की यह हरक़त कितनी भी नागवार क्यों न हो, लेकिन मुस्लिम समुदाय के एक बड़े नेता के रूप में मशहूर ओवैसी के खिलाफ वे हथकंडे नहीं अपनाए जा सकते जो विश्वविद्यालय के छात्रों के खिलाफ अपनाए जा सकते हैं.

अपनी बिना पर यह कह सकता हूँ कि वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में आपको हर बार अपनी वतनपरस्ती ज़ाहिर करने की कोई ज़रुरत नहीं है. देशप्रेम का पैमाना सिर्फ ‘भारत माता की जय’ बोलना नहीं होता है. ओवैसी की द्वेषपूर्ण राजनीति से मुस्लिमों का कुछ भी भला नहीं होगा, यह तय है. लेकिन अभिव्यक्ति की आज़ादी और देश को एक बाध्यता नहीं एक स्वतंत्रता की तरह देखने के मानी भी विकसित करने होंगे और यह हर हाल में ज़रूरी है.

कन्हैया का सहारा लेते हुए यह कहा जा सकता है कि मोहन भागवत की 'भारत माँ'में हमारी माँ और बहनें नहीं शामिल हैं. उनमें चलती गाड़ी में लड़की से बलात्कार करने वाले सेना के जवान हैं. गड़े मुर्दे के रूप में उखाड़ी हुई इशरत जहां नहीं शामिल है, और न तो हमारी माँ-बहनें ही शामिल हैं.

ओवैसी के कथन से इस बात पर बहस किसी भी हाल में नहीं लायी जा सकती है कि ओवैसी खुद को हिन्दुस्तानी मानते हैं या नहीं? किसी भी स्फीयर में, चाहे वह सेकुलर ही क्यों न हो, यदि बहस इस पर आ रही है तो वह निपट मूर्खता है. बहस इस पर होनी चाहिए कि शुद्ध रूप से राजनीतिक लड़ाई में जारी किए गए इस बयान के पीछे ओवैसी अपनी नादानी में वह हस्तक्षेप छेड़ बैठे हैं, जिसकी जानकारी शायद उन्हें खुद को नहीं थी.

कोई नहीं है भजनपुरा का फुरसा हाल लेने वाला...

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Anzar Bhajanpuri for TwoCircles.net

बिहार के कोसी क्षेत्र की पहचान दुनिया भर में है. 2008 की कोसी त्रासदी ने यहां की कठिन ज़िन्दगी और संघर्ष को सबकी आंखों के सामने ला दिया था. इस बाढ़ त्रासदी ने न सिर्फ़ इलाक़े को छितर-बितर कर दिया, बल्कि लोगों के भविष्य में भी अंधेरा बिखेर दिया था. लेकिन अब भी कोसी अंचल में जहां घूमिए गरीबी और भूख लोगों से लिपटी ही दिखाई देगी.

अंचल में एक से बढ़कर एक संघर्ष कथाएं हैं या फिर त्रासदियां. ऐसा ही एक हादसा है, जिसने इस अंचल को देश भर में फिर से सुर्खियों में ला दिया था.

3 जून, 2011 की तारीख़ थी. अररिया जिले के फारबिसगंज से लगे हुए गांव भजनपुरा में एक मामूली विवाद ने कई लोगों की जानें लील लीं. घटना के बाद दिल्ली से लेकर बिहार तक सियासत गरमा गई. भजनपुरा को लगा हादसे के बाद सियासतदां इस इलाक़े की सुध लेंगे. आलम यह है कि भजनपुरा मदद की आस में है और कोई फुरसा हाल लेने वाला नहीं...

3 जून 2011 को अररिया जिले में फारबिसगंज से लगे हुए भजनपुरा गांव में एक कारखाने की चारदीवारी को लेकर विरोध प्रदर्शन हुआ था. कारखाने के निर्माण को लेकर गांव वालों में रोष था. एक तरफ़ गांव वाले शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे, तो दूसरी तरफ़ कारखाने वालों की ओर से पुलिस प्रशासन पहुंच चुकी थी. इस बीच ग्रामीण वासी और पुलिस के बीच शुरुआती झड़प में पुलिस ने गोली चलाने का हुक्म दे दिया. इस गोली-बारी में 4 लोग हलाक हुए जबकि 15 से अधिक ज़ख्मी हो गए.

यह वही भजनपुरा है, जिस इलाक़े को सियासतदां मुख्य धारा से जोड़ देने का वादा करते रहे हैं. अब ज़रा इसकी हक़ीक़त भी जान लीजिए.

भजनपुर गांव में आज भी 80 फीसदी लोग छप्पर के घरों मे रहते हैं. इसमें से एक घर 38 वर्षीय भुट्टी बेगम का है. रहमो-करम पर जिंदगी काट रही भुट्टी बेगम का इस जिंदगी में कोई नहीं. मसलन जिस घर में वो जिंदगी काट रहीं हैं, वह भी उनका नहीं.

Bhajanpur

भुट्टी बेगम की 12 साल पहले समद नाम के एक आदमी से से शादी हुई थी. बदकिस्मती से दो साल बाद ही पति की मौत हो गयी. कोई बच्चा पैदा नहीं हुआ. लिहाजा भाई की बेटी मदीना साथ रहती है, जिसका स्कूल से कोई नाता नहीं है.

सरकारी दावे भले ही बड़े-बड़े हों, लेकिन भुट्टी को किसी भी तरह की बुनियादी सुविधाओं का लाभ नहीं मिल सका है. न भुट्टी के पास कोई राशन कार्ड है न ही विधवा पेंशन. उनकी अपनी पहचान के लिए सरकार ने उन्हें मतदाता पहचान पत्र हाथों में थमा दिया है. लेकिन इस जम्हूरियत का रोना यह है कि यहां मतदाता सिर्फ बेबस इंसान है. यह तो एक बानगी भर है. कोसी क्षेत्र में जन-वितरण प्रणाली सिस्टम में भ्रष्टाचार लकड़ी में दीमक की तरह घुसा है.

Bhajanpur

तस्वीर खिंचवा कर भुट्टी अपना दर्द बयां करती हैं –कहती हैं कि कभी-कभी किसी के मार्फत मज़दूरी मिल जाती थी तो कभी खेत खलिहान में काम कर लेते थे. बाजार जाकर ईंट-पत्थर उठाते थे, लेकिन क़रीब चार महीने से कोई काम नहीं मिला है. आप सोचिए कैसे गुज़ारा होगा. कैसे पेट को रोटी मिले. पाई- पाई की मोहताजी चल रही है. वह उदास मन से रास्ते की तरफ़ देख रही हैं अब भी...

भुट्टी बेगम भजनपुरा की असली तस्वीर हैं. सरकार और प्रशासन का दावा है कि वह हमारी जिंदगी को बेहतर करने के लिए दिन-रात काम करता है. इस बात पर यक़ीन करने से पहले भुट्टी बेगम जैसे बेबस और लाचार लोगों की जिंदगी पर ज़रूर सोचना चाहिए...

(लेखक अंजर भजनपुरी 2011 से कोसी क्षेत्र मे सामाजिक-सांस्कृतिक गतिविधियो मे संलग्न हैं. फिलहाल ‘मिसाल नेटवर्क’ के साथ जुड़े हैं. उनसे 7070507791 सम्पर्क किया जा सकता है.)

शराब के नशे में ‘पुलिस’ वाले ने मारी फ़रहान खान को गोली

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Fahmina Hussain, TwoCircles.net

नई दिल्ली :शराब के नशे में तथाकथित पुलिस वाले के द्वारा एक 25 वर्षीय युवक को गोली मारने की घटना सामने आई है.

प्राप्त सूचना के मुताबिक़ इस युवक का नाम फरहान खान है. फ़रहान फ़रीदाबाद के अल-फ़लाह यूनिवर्सिटी में बी.टेक फाईनल ईयर के छात्र हैं. वो उत्तर प्रदेश के हापुड़ ज़िला के रहने वाले हैं.

फ़रहान खान ने TwoCircles.netसे खास बातचीत में यह बताया कि वो जामिया नगर के हाजी कॉलोनी में रहते हैं. रात के क़रीब 10 बजे अपने भाई को लेने महारानी बाग गए थे. क्योंकि उनके भाई का ऑफिस वहीं है.

फरहान बताते हैं कि अपने भाई के ऑफिस के बाहर खड़े होकर वो भाई को फोन लगा रहे थे. तभी एक शख्स जो कि सिविल ड्रेस में था, साथ ही शराब भी पी रखी थी. आकर इसका फोन मांगने लगा. पूछने पर कि फोन क्यों दूं तो कहने लगा कि मैं पुलिस वाला हूं. तुम किससे बात कर रहे हो. इतने में मेरे बड़े भाई भी आ गए. साथ ही दो और लोग भी आ गए. वो भी खुद को पुलिस वाला बता रहे थे. मुझे व मेरे भाई को मारने लगे.

फरहान बताते हैं कि तीनों लोगों के पास पिस्टल था. और सब अपने आप को पुलिस वाला बता रहे थे. एक ने मेरे भाई के सीने पर पिस्टल रख दिया. दूसरे ने अचानक से अपने पिस्टल से फायरिंग कर दी. पहली गोली मुझे नहीं लगी. लेकिन दूसरे फायरिंग में एक गोली मेरे जांघ आकर लगी. उसके बाद वो लोग हमें वहीं छोड़ कर भाग गए. किसी तरह से भाई हमें होली फैमली अस्पताल में लाकर भर्ती कराया.

फ़रहान के मुताबिक़ उसकी गोली निकाल दी गई है और वो अब सही महसूस कर रहा है. फ़रहान ने यह भी बताया कि सुबह क़रीब 11 बजे न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी थाने से पुलिस वालों ने आकर उसका बयान दर्ज कर लिया है.

‘जन विकल्प मार्च’ पर लाठी चार्ज, महिलाओं से अभद्रता, कई कार्यकर्ता हुए चोटिल

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TwoCircles.net News Desk

लखनऊ :उत्तर प्रदेश की सामाजिक संगठन रिहाई मंच द्वारा आज लखनऊ में आयोजित ‘जन विकल्प मार्च’ पर पुलिस ने लाठी चार्ज की घटना सामने आई है.

रिहाई मंच के नेताओं का आरोप है कि पुलिस ने महिला नेताओं से अभद्रता की और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर मारा-पीटा गया.

रिहाई मंच के नेताओं के मुताबिक़ –‘प्रदेश में सत्तारुढ़ अखिलेश सरकार द्वारा सरकार के चार बरस पूरे होने पर ‘जन विकल्प मार्च’ निकाल रहे लोगों को रोककर तानाशाही का सबूत दिया है.’

मंच ने अखिलेश सरकार पर आरोप लगाया कि जहां प्रदेश भर में एक तरफ संघ परिवार को पथसंचलन से लेकर भड़काऊ भाषण देने की आज़ादी है, लेकिन सूबे भर से जुटे इंसाफ़ पसंद अवाम जो विधानसभा पहुंचकर सरकार को उसके वादों को याद दिलाना चाहती थी, को यह अधिकार नहीं है कि वह सरकार को उसके वादे याद दिला सके. मुलायम और अखिलेश मुसलमानों का वोट लेकर विधानसभा तो पहुंचना चाहते हैं, लेकिन उन्हें अपने हक़-हुकूक़ की बात विधानसभा के समक्ष रखने का हक़ उन्हें नहीं देते.

अखिलेश सरकार पर लोकतांत्रिक अधिकारों को कुचलने का आरोप लगाते हुए मंच ने कहा कि इस नाइंसाफी के खिलाफ़ सूबे भर की इंसाफ़ पसंद अवाम यूपी में नया राजनीतिक विकल्प खड़ा करेगी.

Jan Vikalp March

रिहाई मंच के अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि जिस तरीके से इंसाफ़ की आवाज़ को दबाने की कोशिश और मार्च निकाल रहे लोगों पर हमला किया गया, उससे यह साफ़ हो गया है कि यह सरकार बेगुनाहों की लड़ाई लड़ने वाले लोगों के दमन पर उतारु है. उसकी वजहें साफ़ है कि यह सरकार बेगुनाहों के सवाल पर सफेद झूठ बोलकर आगामी 2017 के चुनाव में झूठ के बल पर उनके वोटों की लूट पर आमादा है. सांप्रदायिक व जातीय हिंसा, बिगड़ती कानून व्यवस्था, अल्पसंख्यक, दलित, आदिवासी, महिला, किसान और युवा विरोधी नीतीयों के खिलाफ़ पूर्वांचल, अवध, बुंदेलखंड, पश्चिमी उत्तर प्रदेश समेत पूरे सूबे से आई इंसाफ़ पसंद अवाम की राजधानी में जमावड़े ने साफ़ कर दिया कि सूबे की अवाम सपा की जन-विरोधी और सांप्रदायिक नीतियों से पूरी तरह त्रस्त है.

उन्होंने कहा कि सपा ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में वादा किया था कि आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों को रिहा करेगी, उनका पुर्नवास करेगी और दोषियों के खिलाफ़ कार्रवाई करेगी, पर उसने किसी बेगुनाह को नहीं छोड़ा. उल्टे निमेष कमीशन की रिपोर्ट पर कार्रवाई न करते हुए मौलाना खालिद मुजाहिद की पुलिस व आईबी के षडयंत्र से हत्या करवा दी. कहां तो सरकार का वादा था कि वह सांप्रदायिक हिंसा के दोषियों को सजा देगी, लेकिन सपा के राज में यूपी के इतिहास में सबसे अधिक सांप्रदायिक हिंसा सपा-भाजपा गठजोड़ की सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति द्वारा करवाई गई. भाजपा विधायक संगीत सोम, सुरेश राणा को बचाने का काम किया गया.

Shahnawaz Alam

उन्होंने कहा कि सपा सैफ़ई महोत्सव से लेकर अपने कुनबे की शाही विवाहों में प्रदेश के जनता की गाढ़ी कमाई को लुटाने में मस्त है. दूसरी तरफ़ पूरे सूबे में भारी बरसात और ओला वृष्टि के चलते फसलें बरबाद हो गई हैं और बुंदेलखंड सहित पूरे प्रदेश का बुनकर, किसान-मजदूर अपनी बेटियों का विवाह न कर पाने के कारण आत्महत्या करने पर मजबूर हैं.

रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या और जेएनयू में कन्हैया कुमार, उमर खालिद, अनिर्बान को देशद्रोही घोषित करने की संघी मंशा के खिलाफ़ पूरे देश में मनुवाद और सांप्रदायिकता के खिलाफ़ खड़े हो रहे प्रतिरोध को यह ‘जन विकल्प मार्च’ प्रदेश में एक राजनीतिक दिशा देगा.

उन्होंने कहा कि बेगुनाहों, मजलूमों के इंसाफ़ का सवाल उठाने से रोकने के लिए जिस सांप्रदायिक जेहनियत से ‘जन विकल्प मार्च’ को रोका गया, ये वही जेहनियत है जो जातिवाद-सांप्रदायिकता से आजादी के नाम पर जेएनयू जैसे संस्थान पर देश द्रोही का ठप्पा लगाती है.

उन्होंने कहा कि सपा के चुनावी घोषणा पत्र में दलितों के लिए कोई एजेण्डा तक नहीं है और खुद को दलितों का स्वयं भू-हितैषी बताने वाली बसपा के हाथी पर मनुवादी ताक़तें सवार हो गई हैं. प्रदेश में सांप्रदायिक व जातीय ध्रुवीकरण करने वाली राजनीति के खिलाफ़ रिहाई मंच व इंसाफ़ अभियान का यह ‘जन विकल्प मार्च’ देश और समाज निर्माण को नई राजनीतिक दिशा देगा.

Jan Vikalp March

इंसाफ़ अभियान के प्रदेश प्रभारी राघवेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि सपा सरकार के चार बरस पूरे होने पर यह जन विकल्प मार्च झूठ और लूट को बेनकाब करने का ऐतिहासिक क़दम था. सरकार के बर्बर, तानाशाहपूर्ण मानसिकता के चलते इसको रोका गया, क्योंकि यह सरकार चौतरफा अपने ही कारनामों से घिर चुकी है और उसके विदाई का आखिरी दौर आ गया है. अब और ज्यादा समय तक सूबे की इंसाफ़ पसंद आवाम ऐसी जन-विरोधी सरकार को बर्दाश्त नहीं करेगी.

सिद्धार्थनगर से आए रिहाई मंच नेता डॉ. मज़हरूल हक़ ने कहा कि मुसलमानों के वोट से बनी सरकार में मुसलमानों पर सबसे ज्यादा हिंसा हो रही है. हर विभाग में उनसे सिर्फ़ मुसलमान होने के कारण अवैध वसूली की जाती है. उन्हें निरंतर डराए रखने की रणनीति पर सरकार चल रही है. लेकिन रिहाई मंच ने मुस्लिम समाज में साहस का जो संचार किया है, वह सपा के राजनीतिक खात्में की बुनियाद बनने जा रही है.

वहीं गोंडा से आए जुबैर खान ने कहा कि इंसाफ़ से वंचित करने वाली सरकारें इतिहास के कूड़ेदान में चली जाती हैं. सपा ने जिस स्तर पर जनता पर जुल्म ढाए हैं, मुलायाम सिंह के कुनबे ने जिस तरह सरकारी धन की लूट की है उससे सपा का अंत नज़दीक आ गया है. इसलिए वह सवाल उठाने वालों पर लाठियां बरसा कर उन्हें चुप कराना चाहती है.

मुरादाबाद से आए मोहम्मद अनस ने कहा कि आज देश का मुसलमान आजाद भारत के इतिहास में सबसे ज्यादा डरा और सहमा है. कोई भी उसकी आवाज़ नहीं उठाना चाहता. ऐसे में रिहाई मंच ने आतंकवाद के नाम पर मुसलमानों के फंसाए जाने को राजनीतिक मुद्दा बना दिया है, वह भविष्य की राजनीति का एजेंडा तय करेगा.

प्रदर्शन को मैगसेसे अवार्ड से सम्मानित संदीप पांडे, फैजाबाद से आए अतहर शम्सी, जौनपुर से आए औसाफ़ अहमद, प्यारे राही, बलिया से आए डॉ. अहमद कमाल, रोशन अली, मंजूर अहमद, गाजीपुर से आए साकिब, आमिर नवाज़, गोंडा से आए हादी खान, रफीउद्दीन खान, इलाहाबाद से आए आनंद यादव, दिनेश चौधरी, बांदा से आए धनन्जय चौधरी, फरूखाबाद से आए योगेंद्र यादव, आज़मगढ़ से आए विनोद यादव, तारिक़ शफ़ीक़, शाह आलम शेरवानी, तेजस यादव, मसीहुद्दीन संजरी, सालिम दाउदी, गुलाम अम्बिया, सरफ़राज़ क़मर, मोहम्मद आमिर, अवधेश यादव, राजेश यादव, उन्नाव से आए ज़मीर खान, बनारस से आए जहीर हाश्मी, अमित मिश्रा, सीतापुर से आए मोहम्मद निसार, रविशेखर, एकता सिंह, दिल्ली से आए अजय प्रकाश, प्रतापगढ़ से आए शम्स तबरेज़, मोहम्मद कलीम, सुल्तानपुर से आए जुनैद अहमद, कानपुर से आए मोहम्मद अहमद, अब्दुल अजीज़, रजनीश रत्नाकर, डॉ. निसार, बरेली से आए मुश्फिक अहमद, शकील कुरैशी, सोनू आदि ने भी सम्बोधित किया. संचालन अनिल यादव ने किया.

पोस्ट-मैट्रीक छात्रवृति हेतु ऑनलाइन आवेदन की आज आख़िरी तारीख़, बढ़ाने की हो रही है मांग

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TwoCircles.net News Desk

पटना :सरकार द्वारा छात्रों को पोस्ट मैट्रीक छात्रवृति (अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति) हेतु ऑनलाइन आवेदन की अंतिम तिथि 17 मार्च 2016 तक तय की गई है, परंतु अभी तक छात्रों का एक बड़ा तबक़ा आवेदन नहीं कर पाई है.

आपको बताते चलें कि अपनी विभिन्न मांगों को लेकर विश्वविद्यालय व अंगीभूत कॉलेजों के 33 हज़ार कर्मचारी 15 मार्च को सामूहिक अवकाश पर चले गए थे, जिसके कारण इस दिन छात्रों का कॉलेज द्वारा छात्रवृति हेतु आवेदन प्रक्रिया नहीं हो सका. साथ ही मैट्रीक व इंटर की परीक्षा का सेन्टर कॉलेजों में पड़ने के कारण, कॉलेज द्वारा समय अवधि में भी फेर-बदल के कारण छात्रों को काफी परेशानी हो रही है.

ऑल इंडिया स्टूडेन्ट फेडरेशन (एआईएसएफ) के जिला अध्यक्ष महेश कुमार ने सरकार से मांग किया है कि छात्रों की परेशानी एवं शैक्षणिक भविष्य को देखते हुए ऑनलाइन आवेदन की तिथि कम से कम एक महीना के लिए बढ़ाई जाए, ताकि छात्र-छात्राएँ ऑनलाइन आवेदन की प्रक्रिया को पूरी कर सके एवं कोई छात्र वंचित न रह पाए.

उन्होंने कहा कि यह सिर्फ़ किसी एक ज़िला का मसला नहीं, बल्कि पूरे राज्य का मसला है. छात्रों में इस बात को लेकर काफी आक्रोश है. अगर तिथि नहीं बढ़ाई गई, तो छात्र आंदोलन करने को विवश होंगे.

उन्होंने कल्याण मंत्री से जल्द से जल्द तिथि बढ़ाने की दिशा में पहल करने की मांग की. साथ ही सरकार से हम यह भी मांग करते हुए कहा है कि –‘पिछली सत्र की छात्रवृत्ति की राशि छात्रों को जल्द से जल्द छात्रों के खाता में भेजी जाए, ताकि उनका शैक्षिक कार्य बाधित न हो.’

नवादा के कझिया गांव में सामंतों ने लगाया महादलितों के घरों में आग, वाम दलों ने सरकार से पक्के मकान देने की रखी मांग

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TwoCircles.net News Desk

पटना :नवादा ज़िले के अकबरपुर प्रखंड अन्तर्गत कझिया गाँव में वर्षों से बसे लगभग एक सौ महादलितों के घर में सामंती गुण्डों द्वारा पिछले हफ्ते मंगलवार को आग लगाने एवं हमला करने का मामला सामने आया है. सामंतों के इस कुकृत का वाम दल भाकपा, माकपा एवं फारवर्ड ब्लॉक ने घोर निन्दा की है.

इस घटना के बाद वामदलों का एक जांच दल 14 मार्च को घटना स्थल पर गया. जांच दल में माकपा के राज्य सचिव अवधेश कुमार, राज्य कमिटी सदस्य उमेश प्रसाद, एवं उपेन्द्र चौरसिया भाकपा के राज्य कार्यकारिणी सदस्य अर्जुन प्रसाद सिंह, नवादा जिला सचिव रामकिशोर शर्मा तथा फारवर्ड ब्लॉक के नेता दिनेश कुमार शामिल थे.

घटना स्थल का निरीक्षण, पीडि़त महादलित परिवार से मिलने एवं स्थानीय लोगों से पूछ-ताछ के बाद जांच-दल इस निष्कर्ष पर पहुँचा है कि उक्त ज़मीन पर नवधनाढ़ वर्ग के लोगों की नज़र गड़ी हुयी है. वे वहां से ग़रीब भूमिहीन महादलित परिवार को उजाड़ कर उस कीमती सरकारी ज़मीन पर क़ब्जा कर लेना चाहते है.

जांच दल को यह भी जानकारी मिली कि सामाजिक समरसता और सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने वाली ताक़त इस घटना के पीछे लगी हैं. पीडि़त लोगों ने यह भी बताया कि गत वर्ष भी दर्जनों घरों को जला दी गयी थी.

वामदलों के जांच दल ने इस गांव से लौटने के बाद नीतिश सरकार से अपनी मांग रखते हुए कहा है कि –‘वहां बसे सभी परिवारों को वासगीत का पर्चा दिया जाय तथा इंदिरा आवास के तहत पक्का मकान दिया जाय. साथ ही जले मकानों एवं समानों की क्षतिपूर्ति दी जाय, अग्नि पीडि़तों को मुफ्त में राशन-किरासन, पॉलीथिन एवं अन्य आवश्यक समानों को शीघ्र मुहैय्या किया जाय.

इस जांच दल ने यह भी मांग रखा कि –‘कम से कम इस गांव में पांच चापाकल लगवाया जाय.’

जांच दल में शामिल वामपंथी नेताओं ने दोषियों पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं होने पर रोष प्रकट करते हुए अविलम्ब गिरफ्तार करने की मांग भी उठाई है.

रोज़मर्रा की जंग से जूझते सलाउद्दीन, हंसी उड़ाती योजनाएं...

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Noor Islam for TwoCircles.net

दरभंगा :यह सलाऊद्दीन कुरैशी का परिवार है. सरसरी नज़रों से देखें तो यह परिवार भी बेहद सामान्य जिंदगी गुज़ार रहा है. इसमें नज़रों का कोई क़सूर नहीं. यह हमारी आदत में शुमार है कि ग़रीबी और बदहाली को देखकर हमारी रगों में खून नहीं दौड़ता.

इस देश में लाखों की तादाद में कुरैशी जैसे परिवार रात में इस मिन्नत के साथ सो जाते हैं कि जब उजाला हो तो कुछ उद्यम हमारे लिए भी बचा रहे. दरभंगा शहर के उर्दू बाज़ार में रहने वाले इस परिवार की कहानी भी उन कहानियों से साम्य रखती है, जिन्हें हम ग़रीब और बदहाल कह कर अपनी जिम्मेदारी को पूरा मान लेते हैं...

Salahuddin Qureshi

सलाऊद्दीन न ज़मींदार हैं न नंबरदार. एक कमरे के घर में जिंदगी गुज़र-बसर करने वाले सलाउद्दीन अकेले नहीं हैं. इनके परिवार में कुल 8 सदस्य मौजूद हैं. खाने को नहीं जुटता, लेकिन यह सलाऊद्दीन की सलाहियत है कि वे अपने बच्चों को सरकारी स्कूल भेजते हैं. यह बात अलग है कि उन्होंने स्कूल का मुंह तक नहीं देखा.

सरकारी योजनाएं इस घर से रूठी मालूम होती हैं. न सलाऊद्दीन किसी से अपनी बात रख पाते हैं न कोई हुक्काम इनकी बात सुनने में दिलचस्पी रखता है. न सरपंच की दालान में इनकी उपयोगिता है और न ही इन्हें समाज में एक इज्ज़तदार जिंदगी हासिल है.

हर कहीं से मार खाए सलाउद्दीन कहते हैं कि रोज़मर्रा की जिंदगी को चलाए रखने के लिए काम ढूंढना बेहद मुश्किल होता है. सलाउद्दीन का यह बयान सरकार के ज़रिए सभी को रोज़गार मुहैया कराए जाने के दावे की पोल खोलता है.

ब्यूरोक्रेसी की ठसक गांव में सरपंच के दालान तक पहुंचकर फुस्स हो जाती है. ख़ामियाज़ा सलाऊद्दीन जैसे परिवारों को उठाना पड़ता है. आठ जिंदगियों की लौ जलाए रखने के लिए सलाउद्दीन ज़बरदस्त मेहनत करते हैं.

वे कहते हैं कि एक दिन चूक जाओ तो चूल्हा जलना मुश्किल होता है. आप ही बताइए इस महंगाई के दौर में दो वक्त की रोटी, बच्चों को स्कूल भेज पाना आसान है क्या?

सलाउद्दीन कहते हैं कि घर की लड़कियां बोझ नहीं होतीं, लेकिन ग़रीबी इस बात का हमेशा अहसास कराती रहती है. इस जिल्लत की जिंदगी से बेहतर है कि खुदा हमें जल्द से जल्द इस दुनिया से रुख्सत कर दे.

वो कहते हैं कि मैं नाउम्मीद नहीं हूं, लेकिन हमारी हालात का भी कोई जायज़ा ले. योजनाएं तो सैकड़ों आती हैं, लेकिन हम इसका फ़ायदा नहीं जानते. न हमें कोई आजतक इसकी जानकारी देने आया. इस सोच से बच्चों को पढ़ने-लिखने के लिए भेजता हूं कि कम से कम वे दुनियावी दांव-पेंच सीख लें. उन्हें हमारी तरह घुरच-घुरच कर जीवन न बिताना पड़े.

Salahuddin Qureshi

सलाउद्दीन कुरैशी की पत्नी शाजरा खातून बताती हैं कि पूरा दिन पहाड़ के मानिंद लगता है. जब तक साहब काम से नहीं लौटते तब तक दिल बेचैन रहता है कि बच्चों को आज क्या नसीब होगा. हम उन परिवारों की गिनती में भी नहीं आएंगे जिनके घरों में अनाज जमा कर रखा जाता है. यहां रोज की मेहनत से ही पेट की आग शांत होती है. हमें अपनों से ज्यादा बच्चों की फिक्र रहती है, आखिर इनकी भूख को कैसे शांत किया जाए. कई दफ़ा तो यह स्थिति भी बनती है कि मिन्नतों और जारियों से ही बच्चों की भूख शांत करनी पड़ती है. लेकिन भूख से बिलबिलाते बच्चे बाजुओं में भी नहीं संभलते.

सलाउद्दीन का परिवार और उनकी सपाट बातें आपके दिल में तो जगह बना लेती हैं, लेकिन उन्हें कौन समझाए जिन्हें देश और इनकी बेहतरी के लिए चुनकर देश की संसद में भेजा गया है. सलाउद्दीन जैसे कितने परिवार हैं जिन्हें अपनी बात रखने के लिए मंच भी मुहैया नहीं है. वे हमें पाकर बेहद आशावान हुए, लेकिन हम भी उनकी बात लिखने के सिवा मजबूर ही नज़र आते हैं...

(लेखक नूर इस्लाम दरभंगा निवासी हैं. परास्नातक करने के बाद दीन-दुखिया के हक़-हकूक़ की लड़ाई लड़ते हैं. फिलहाल ‘मिसाल नेटवर्क’ से जुड़े हैं. इनसे 7070852322 पर संपर्क किया जा सकता है.)


‘आतंकवाद’ के आरोप से बरी वासिफ़ के 12 वर्षीय बेटी को जान से मारने की धमकी

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By Farhana Riyaz

कानपुर :उत्तर प्रदेश के ज़िला कानपुर के हुमायूं बाग में रहने वाले सैय्यद वासिफ़ हैदर की 12 वर्षीय बेटी को जान से मारने की धमकी दी गयी है.

पिता वासिफ़ के मुताबिक़ उनकी 12 वर्षीय बेटी मनाल जो सेंट मेरी कान्वेंट हाई स्कूल छावनी में कक्षा 6 की छात्रा है, को 27 जनवरी को स्कूल की छुट्टी के बाद जैसे ही वो स्कूल से बाहर आई, एक व्यक्ति ने उसका हाथ पकड़कर उठाने की कोशिश की. इसका बच्ची ने विरोध किया. ऐसे में भीड़ होने की वजह से वो सिर्फ़ इतना कहकर चला गया कि ‘अपने अब्बा से कहो कि केस न लड़ें, वर्ना तुम्हें जान से मार दूंगा. जिसके बाद वो किसी तरह घर वापस आई और घर आते ही बेहोश हो गयी. परिवार वालों ने उसे अस्पताल में भर्ती कराया, जहां 2 दिन बेहोश रहने के बाद वह होश में आई और परिवार वालों को सारी घटना के बारे में बताया.

इस 12 वर्षीय बच्ची के मुताबिक़ जिस व्यक्ति ने धमकी दी, उसका हुलिया चेहरा गोल, बाल सीधे सांवले रंग का औसत क़द का व्यक्ति था और उसने धूप का चश्मा लगाया हुआ था.

जिस दिन इस बच्ची के साथ ये घटना हुई वासिफ़ उस दिन दिल्ली गये हुए थे. बेटी की ख़बर मिलते ही वो वापस आ गए और उन्होंने इस मामले में अज्ञात व्यक्ति के ख़िलाफ़ थाना छावनी कानपुर महानगर में शिकायत दर्ज करायी है और अपनी बेटी की सुरक्षा की मांग की है.

वासिफ ने बताया कि उनकी बेटी उस दिन से डर व दहशत में है और स्कूल नहीं गयी है. परिवार वालों को आशंका है कि उसके साथ ये घटना दुबारा घट सकती है.

गौरतलब है कि कानपुर के रहने वाले सैय्यद वासिफ़ हैदर को 31 जुलाई 2001 को अगवा कर ‘आतंकवाद’ के आरोप में गिरफ़्तार बताया गया था, पूरे 8 साल जेल में रहने के बाद 12 अगस्त 2009 वासिफ़ हैदर को देश की अदालत ने बाइज्ज़त रिहा कर दिया था. रिहाई के बाद वासिफ़ इन दिनों अपने मुवाअज़े और ज़िम्मेदार पुलिस वालों पर क़ानूनी कार्रवाई को लेकर क़ानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं.

वासिफ़ हैदर की पुरी कहानी आप उन्हीं के ज़ुबानी नीचे पढ़ सकते हैं :

I am Syed Wasif Haider- A Terrorized Terrorist!

जिस ‘भारत माता’ के हाथ में भगवा, वो मेरी मां नहीं!

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Afroz Alam Sahil, TwoCircles.net

शेरवानी और टोपी पहनकर स्पष्ट मुस्लिम पहचान रखने वाले सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने एक बयान दिया और भारत के सारे मुसलानों और देश के प्रति उनकी मुहब्बत को कठघरे में खड़ा कर दिया गया. बिना यह जाने-समझे कि इसका एक आम भारतीय मुसलमान पर असर क्या होगा? उसके बारे में देश के अन्य समुदाय के लोगों में राय क्या बनेगी? या कैसे उसकी सुरक्षा को ख़तरा पैदा हो सकता है और उसके संवैधानिक अधिकारों के हनन की संभावना पैदा हो सकती है?

सवाल यह भी है कि इस देश का मुसलमान किस ‘भारत माता की जय’ कहे? आख़िर पहले यह तो तय हो ‘भारत माता’ हैं कौन? क्या ‘भारत माता’ का जो स्वरूप देश के सामने आरएसएस पेश करती आ रही है, क्या वही असली ‘भारत माता’ हैं? क्या वही ‘भारत माता’ हैं, जिनके हाथों में तिरंगे की जगह भगवा झंडा है?

BHARAT Ammi

देश में साम्प्रदायिकता की सियासत करने वाले लोग दूसरों की देशभक्ति पर सवाल उठाने और अपनी ‘देशभक्ति’ दिखाने के लिए जिस ‘भारत माता’ का नारा लगवा रहे हैं, वो ‘भारत माता’ है ही नहीं.

देश की जनता को इनसे पूछना चाहिए कि आख़िर क्यों ‘भारत माता’ के हाथ से तिरंगा को छीन कर भगवा झंडा थमा दिया गया है? आख़िर क्यों ‘भारत माता’ का भगवाकरण किया जा रहा है? कहीं इसके पीछे कोई साज़िश तो नहीं? अगर ‘भारत माता’ जिसके हाथ में तिरंगे की जगह भगवा झंडा हो, जो सिर्फ़ हिन्दुत्व की बात करने वालों की मां हो, वो ‘भारत माता’ इस देश के सेकूलर लोगों को क़तई स्वीकार नहीं है. और न ही मुसलमानों को ‘भारत माता’ की जय के नारे लगाने के लिए हमारे मुल्क का संविधान बाध्य करता है.

ज़रा सोचिए! अगर देश के मुसलमान मिलकर अपनी ‘भारत अम्मी’ की छवि गढ़ लें. जिसके हाथों में तिरंगा हो. और वो इन तथाकथित देशभक्तों से कहने लगें कि आओ ‘भारत अम्मी’ की जय या ज़िन्दाबाद के नारे लगाओ तो क्या मोहन भागवत या पीएम नरेन्द्र मोदी इसे स्वीकार करेंगे? अगर आप मुसलमानों द्वारा गढ़े गए ‘भारत अम्मी’ के ज़िन्दाबाद के नारे नहीं लगा सकते तो फिर आपको अपनी ‘भारत माता’ की जय के नारे लगवाने का अधिकार किसने दे दिया?

हैरानी की बात यह है कि लोग इन सवालों पर सोचने के बजाए आरएसएस द्वारा गढ़ी गई ‘भारत माता’ को अपनी ‘भारत मां’ मान रहे हैं.

दरअसल, सच तो यह है कि ‘भारत माता’ के बहाने इस मुल्क के आपसी सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश में सिर्फ़ साम्प्रदायिक ताक़ते ही नहीं, बल्कि तथाकथित सेकूलरिज़्म के वो बड़े-बड़े चेहरे भी शामिल भी शामिल हो गए हैं, जो अपने बाहरी पहनावे में एकदम अलग-थलग दिखने की कोशिश करते हैं.

इसमें कोई शक नहीं है कि अससुद्दीन ओवैसी एक मुस्लिम चेहरा हैं. मुस्लिम पोशाक पहनते हैं. दीन-नमाज़ की बात करते हैं. इसलिए उनको निशाना बनाना मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाना है. ठीक इसी तरह से जब भी मुल्क में आतंकी की बात होती है, तो अफ़ज़ल गुरू का चेहरा पेश किया जाता है. लेकिन साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित या असीमानंद आदि का नाम नहीं लिया जाता है. क्यों यह सवाल नहीं उठता है कि भारत के कितने मुसलमान भ्रष्टाचार के आरोप में बंद हैं? माल्या की तरह कितने भारतीय मुसलमान देश का पैसा हड़प कर मुल्क से भागे हैं? क्या किसी भारतीय मुसलमान ने देश की सम्पत्ति के साथ करोड़ों का घोटाला किया? क्या कभी भारत के मुसलमानों ने हज़ारों-करोड़ों की सम्पत्ति को आग लगाया है? लेकिन हरियाणा के जाट हज़ारों-करोड़ की सम्पत्ति फूंकने के बाद भी ‘देशभक्त’ बने हुए हैं.

और सबसे महत्वपूर्ण सवाल कि भारत का मुसलमान अपनी देशभक्ति का सबूत क्यों दे? यह देश न तो गीता से चलता है, न कुरआन से चलता है और न ही इसे गुरू-ग्रंथ साहिब या बाईबिल चलाते हैं. हमारा यह देश संविधान से चलता है, वही संविधान जिसके रक्षा की क़सम हमारे देश के राष्ट्रपति खाते हैं.

इस देश का मुसलमान भारत को अपना ‘मादरे-वतन’ मानते हैं. यानी मुल्क को मां का तमाम दर्जा देता है. और इस्लाम में बताया गया है कि ‘मां के क़दमों के नीचे जन्नत है.’ ऐसे में इस्लाम को मानने वाला हर मुसलमान मुल्क की खिदमत उसी तरह से करता है, जिस तरीक़े से एक फ़रमा-बरदार बच्चा अपनी मां की करता है. अब इससे ज़्यादा और इससे बड़ी मुहब्बत की निशानी और क्या हो सकती है? लेकिन इसके बावजूद एक नारे की आड़ में एक विचारधारा को थोप कर मुल्क का माहौल बिगाड़ने की कोशिश की जा रही है.

सवाल ये उठता है कि क्या मुल्क में कोई क़ानून बनाकर ज़ोर ज़बरदस्ती करके किसी को अपनी मां से प्यार करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता? शायद नहीं! लेकिन हां! इस्लाम अपने मानने वालों में यह भावना ज़रूर जगाता है कि अगर अपनी मां की खिदमत करेगा तो उसे जन्नत अता की जाएगी. यही भावना मुसलमानों को अपने मां या अपने ‘मादरे-वतन’ की ख़िदमत करने के लिए प्रेरित ज़रूर करती है.

ऐसे में यह कितना अजीब है कि ओवैसी ने ‘भारत माता की जय’ कहने से इंकार क्या किया. मुल्क के सियासतदानों का एक बड़ा तबक़ा तुरंत ही राजनीति के सारे हथियार इकट्ठा कर उन पर टूट पड़ा. कोई ओवैसी को कपूत बता रहा है तो कोई उनकी ज़ुबान काट कर लाने वाले को एक करोड़ का ईनाम देने की बात कर रहा है. तो किसी का कहना है कि ओवैसी की भारतीय नागरिकता छीन ली जाए...

ओवैसी के इस बयान के सियासी मायने ज़रूर हैं, क्योंकि ओवैसी बग़ैर फ़ायदे वाली बात पर टेंशन मोल लेने का काम नहीं करते. वो बहुत अच्छे से यह बात जानते हैं कि उनके इस तरह के बयान से उनका एक खास वोटर वर्ग खुश होता है. मगर इसे इस बार सियासी रंग देने में कोताही किसी ने भी नहीं की. महाराष्ट्र में जिस तरह से ओवैसी के पार्टी के एक विधायक को निलंबित करने में सभी पार्टियां एकजूट हो गई हैं, वो बताता है कि पॉलोराईज़ेशन का लेबल कितना गहरा और कितना व्यापक है.

यह बात भी सच है कि इस मुल्क में ओवैसी से पहले भी यह विवाद का विषय रहा है. संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान के तुरंत बाद ही इस पर कई हल्क़ों से तीख़ी प्रतिक्रियाएं आई थीं. जेएनयू छात्र-संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने भी अपने एक भाषण में एक बड़ा वाजिब सवाल किया था कि अगर आरएसएस के ‘भारत माता’ के कांसेप्ट में उसकी मां, करोड़ो दलितों-आदिवासियों की मां शामिल नहीं है, तो वे इस नारे को नहीं मानते.

यह बयान एक छात्र-संघ नेता का नहीं, बल्कि देश के उस तबक़े की सोच को दर्शाता है, जो देशभक्ति को दिल से महसूस करते हैं और जिसे किसी भी तरह के सर्टिफिकेट की ज़रूरत नहीं होती है.

इन सबके बीच ओवैसी के इस बयान की गुंज जारी है. जिस तरह से देश के कई प्रमुख राज्यों में चुनाव की तारीख़ नज़दीक आ रहे हैं, ऐसे में यह मुद्दा और भी भुनाया जाए तो कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए.

‘अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमतों में कमी, पर भारत में बढ़े दाम’

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TwoCircles.net News Desk

पटना :केन्द्र सरकार के द्वारा पेट्रोल एवं डीजल की कीमतों में पुनः की गई वृद्धि का भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने निन्दा की है. पार्टी ने इस बढ़ोत्तरी को महंगाई में वृद्धि करने वाला क़दम बताया है.

आज जारी एक प्रेस बयान में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव सत्य नारायण सिंह ने कहा है कि –‘केन्द्र सरकार द्वारा पेट्रोल और डीजल की कीमतों में क्रमशः 3.07 रूपये एवं 1.90 रूपये प्रति लीटर की बढ़ोत्तरी उस समय की गयी है, जब अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की क़ीमतों में लगातार कमी होती जा रही है.’

उन्होंने पीएम मोदी सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि –‘केन्द्र सरकार अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमतों में बढ़ोत्तरी को कारण बताकर पिछले दिनों लगतार इसकी कीमतों में वृद्धि करती रही, पर जब अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमतों में अप्रत्याशित कमी आई है तब भी वह उसका लाभ उपभोक्ताओं और आम जनता तक नहीं पहुंचने दे रही है.’

श्री सिंह ने कहा है कि केन्द्र सरकार द्वारा पेट्रोल और डीजल की कीमतों में वृद्धि का दुष्प्रभाव उपभोक्ता वस्तुओं के दाम के साथ-साथ यात्री एवं ढुलाई भाड़े पर पड़ेगा, जिससे महंगाई और अधिक बढ़ जाएगी.

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने केन्द्र से पेट्रोल और डीजल की इस मूल्य वृद्धि को वापस लेने की मांग की है और आम बिहार-वासियों का आह्वान किया है कि वे एकजुट होकर इस जन-विरोधी कार्रवाई का प्रतिरोध करें.

मुझे गर्व है 'जय हिन्द'कहने पर, लेकिन ‘भारत माता की जय’ पर मुझे एतराज़ है –ओवैसी

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TwoCircles.net News Desk

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (मजलिस) के सर्वे-सर्वा असदुद्दीन ओवैसी ने इन दिनों देश की राजनीत में भूकंप की स्थिति पैदा कर दी है. महाराष्ट्र के लातूर में भाषण के बाद उन्होंने आज फिर से बीबीसी के लिए लिखे अपने एक लेख में ‘भारत माता की जय’ कहने से इंकार किया है.

बीबीसी की वेबसाइट पर प्रकाशित अपने इस लेख में असदुद्दीन ओवैसी ने लिखा है –‘अगर देश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) या कोई भी संगठन यह कहता कि हिंदुस्तान में किसी भी हिंदुस्तानी की वफ़ादारी और उसके हिंदुस्तान से मोहब्बत का पैमाना यह होगा कि उसे किसी ख़ास तरह के नारे लगाने पड़ेंगे तो मुझे इस पर सख़्त एतराज़ है.’

ओवैसी लिखते हैं –‘मेरा मानना यह है कि लोकतंत्र में हर किसी को अधिकार है नारे लगाने का, अपने मुल्क से मोहब्बत का इज़हार करने का, मगर किसी को यह अधिकार नहीं हैं कि वह यह कहे कि जो नारा मैं लगा रहा हूं, वही नारा सच्चा है और अगर आप वह नहीं लगाएंगे तो आप इस मुल्क से प्यार नहीं करते हैं. दूसरी बात यह है कि हमारे क़ानून में इस बात का ज़िक्र नहीं हैं न हमारे संविधान के मौलिक अधिकारों में इसका शुमार होता है जैसा कि आरएसएस कह रहा है.’

ओवैसी आगे लिखते हैं कि –‘मुझे गर्व है 'जय हिन्द'कहने पर, मुझे खुशी होती है जब हिंदुस्तान ज़िंदाबाद कहता हूं. अगर किसी और को दूसरा नारा लगाने पर खुशी मिलती है तो मुझे उसपर कोई आपत्ति नहीं है लेकिन मैं वह नारा नहीं लगाउंगा.’

ओवैसी के मुताबिक़ अगर कोई मेरे सामने खड़े होकर यह कहता कि उसे यह नारा लगाने से खुशी मिलती है तो मैं उन्हें कहूंगा कि आप वह नारा लगाएं, पर मैं नहीं लगाउंगा. यही तो हमारे देश की खूबसूरती है. यही हमारी विविधता है, यही हमारी बहुलतावादी संस्कृति की ख़ास पहचान है.

ओवैसी लिखते हैं कि –‘इसमें कुछ भी इस्लामिक मसला नहीं हैं और न ही मैं किसी इस्लामिक कानून को जानता हूं. यह तो आलिमों का मसला है. हिंदुस्तान के कानून में धार्मिक स्वतंत्रता एक बुनियादी हक़ है और इस हक़ को कोई नहीं छीन सकता. इसके साथ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी है. हमारे देश के कानून के अनुसार मुझसे यह हक़ कोई नहीं छीन सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह हमारे संविधान का मौलिक हिस्सा है.’

महाराष्ट्र में अपने विधायक वारिस पठान के निलंबन को लेकर वो लिखते हैं कि –‘वारिस पठान को निलंबित करके आप क्या संदेश दे रहे हैं. कल को कोई कहेगा कि वारिस तुम्हारा मज़हब ठीक नहीं है तो अपना मज़हब बदल लो, कहां जा रहे हैं हम. अगर मैं किसी कानून को तोड़ता हूं तो मुझ पर केस दर्ज़ करें, सज़ा दिलाएं, जेल भेजें. मगर यह कहां से आ गया कि हमारे समूह या संगठन को यह चीज़ ख़राब दिख रही है और जो हम कहें वही कानून है. यह तो ठीक नहीं है. फिर तो कानून का शासन कहां रहेगा.’

ओवैसी लिखते हैं कि –‘हम अपनी मां से यकीनन प्यार करते हैं. जिस मां ने हमें पैदा किया उसके क़दमों के नीचे जन्नत है. लेकिन क्या हम अपनी मां की इबादत करते हैं? नहीं करते. हम अल्लाह की इबादत करते हैं.’

वो आगे लिखते हैं कि –‘हमें अपने देश से प्यार है और रहेगा. मैं इस देश का वफ़ादार हूं और रहूंगा. मगर यह किसी को अधिकार नहीं है कि वो मेरी वफ़ादारी पर शक़ करे. महज़ इस बुनियाद पर कि आपका जो नारा है वह हम नहीं लगाते. मुझे फ़ख़्र है कि मैं जय हिन्द कहता हूं. हिंदुस्तान ज़िंदाबाद के नारे लगाता हूं. महाराष्ट्र विधानसभा में जो हुआ वह अच्छा नहीं हुआ. भाजपा के अलावा अन्य राजनीतिक दलों ने जो रुख अपनाया वह उनकी पोल खोलने के लिए काफी है.’

अपने लेख में ओवैसी राहुल गांधी पर भी निशाना साधते हुए लिखते हैं कि –‘कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी जेएनयू गए थे और उन्होंने जो वहां भाषण दिया था, उसके आधार पर बात करें तो महाराष्ट्र के कांग्रेसी और तमाम धर्मनिरपेक्ष विधायकों का दोहरा चरित्र सामने आ जाता है. कांग्रेस उपाध्यक्ष जेएनयू में जाकर कहते हैं कि अपना पक्ष रखना एक बुनियादी हक़ है लेकिन महाराष्ट्र की विधानसभा जो हुआ वह क्या था. कांग्रेस उदारवादी तब तक ही है जब तक उन्हें राजनीतिक फायदा मिलता है. इसी तरह भाजपा भी तभी तक धर्मनिरपेक्ष बने रहना चाहती है जब तक उसके राजनीतिक हित सधते हैं. यह अव्वल दर्ज़े का दोहरा चरित्र है. कांग्रेस ने जेएनयू में जाकर जो किया वह एक नाटक के सिवाए कुछ नहीं था.’

वो आगे लिखते हैं कि –‘कुछ लोग मेरे बयान के समय पर सवाल उठा रहे हैं. उनका आरोप है कि इससे भाजपा को आने वाले पांच विधानसभा चुनावों में फायदा मिलेगा. मेरा इनसे सवाल क्या लोकसभा चुनावों में मेरे भाषणों के कारण भाजपा केंद्र में सत्ता में आई. क्या दिल्ली में आम आदमी पार्टी की जीत और कांग्रेस की हार मेरी वज़ह से हुई. अपने गुनाहों का टोकरा मेरे सिर पर क्यों रखना चाहते हैं. इन पांच राज्यों में कहां चुनाव लड़ रहा हूं, कहीं नहीं फिर भी मुझ पर आरोप लगाए जा रहे हैं.’

आख़िर में ओवैसी लिखते हैं -‘मैं एक हिंदुस्तानी हूं और मैं अपनी बात कहूंगा. यह मेरा बुनियादी हक़ है और हम कब तक अपनी ज़बान को बंद रखेंगे. क्या यह लोग हमारे राजनीतिक आका है जो हम इनकी सुनें.’

‘पाई पाई जोड़कर आगे की पढ़ाई जारी रखूंगी’

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Saba Yaseen for TwoCircles.net

फ़ैज़ाबाद : 22 साल की आयशा की ख्वाहिश वकालत की पढ़ाई करके जज बनने की है, लेकिन देश में लॉ पढ़ाई करने वाले अन्य बच्चों की तरह आयशा की क़िस्मत नहीं है. इनके घर के हालात ऐसे हैं, जो आगे आयशा की पढ़ाई पर किसी भी तरह खर्च हो सके.

हालांकि काफी मुश्किल हालात में आयशा ने रुदौली डिग्री कॉलेज से 52 फीसद नबंरो के साथ बीए तक की डिग्री हासिल कर ली है. अब घर में आमदनी का कोई ज़रिया नहीं बचा, इसलिए आयशा की पढ़ाई यहीं ठहर गई है, लेकिन उनके हौसलों की उड़ान बाकी है.

अपने इरादे को मज़बूत किए घर का सारा काम करने के बावजूद वक़्त निकाल कर आयशा चार महीने से सिलाई सीख रही हैं, ताकि उनकी ठहरी हुई जिंदगी को बेहतर मुकाम मिल सके. मोहल्ले में चल रहा सिलाई कढ़ाई सेंटर उनके सपनो को पंख दे रहा है.

Ayesha

आयशा कहती हैं कि –‘ मैं सिलाई इसलिए सीख रही हूं ताकि सिलाई का काम करके कुछ पैसे कमा सकूं. और फिर पाई पाई जोड़कर आगे की पढ़ाई जारी रखूंगी.’

स्पष्ट रहे कि आयशा का घर फ़ैज़ाबाद मुख्यालय से क़रीब 40 किमी दूरी पर रुदौली कस्बा के घोसियाना मोहल्ला में है. एक छप्पर के घर में आयशा सपने दिन-रात पल रहे हैं.

मोहम्मद सलमान, आयशा के अब्बा हैं, जो पहले दर्जी का काम करके किसी तरह से परिवार की जिम्मेदारी अपने मज़बूत कंधो से खींच रहे थे. लेकिन अचानक तीन साल पहले फालिज़ की वजह से अब बिस्तर पर हैं, जहां वो मौत से हर दिन सामना कर रहे हैं.

लखनऊ के केजीएमयू अस्पताल में इलाज कराते-कराते तंगहाली ने इस परिवार को ऐसा जकड़ा है कि दो महीने से इलाज के पैसे नहीं हैं. आयशा की अम्मी अब दूसरों के घरों में जाकर घरेलू काम करती हैं और किसी तरह से अपने बच्चों व पति का पेट पाल रही है.

आयशा के चार भाई-बहन हैं. सबसे बड़ी बहन कनीज़ फ़ातिमा की शादी तीन साल पहले हो चुकी है. आयशा का 17 वर्षीय भाई अली मियां 8वीं क्लास तक पढ़ने के बाद सिलाई का पुश्तैनी हुनर सीख गया है. आसमा बानो 15 साल की सबसे छोटी हैं, जो आठवीं तक ही पढ़ पाई है, 9वीं क्लास के लिए फीस का इंतजाम नहीं हो पाने पर अब घर पर ही रहती हैं.

ऐसे हालात में आयशा के लिए लॉ की पढ़ाई करना काफी मुश्किल महसूस होता है, लेकि आयशा के इरादे काफी बुलंद हैं. वो दिन-रात मेहनत करके अपने सपने को साकार करने की कोशिश में लगी हुई हैं. उम्मीद की जानी चाहिए कि आयशा की मेहनत एक न एक दिन ज़रुर रंग लायेगी.

सबा यासीन रुदौली में रहते हुए सामाजिक सरोकारी कार्यो से जुड़ी हैं. फिलहाल ‘मिसाल नेटवर्क’ से जुड़ी हुई हैं. उनसे ई-मेल sabarudauli200@gmail.comपर संपर्क किया जा सकता है.

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