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मेरे जेल जाने के बाद बच्चे पढ़ाई छोड़ सिलाई का काम करने को मजबूर हो गए -शेख मुख्तार हुसैन

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TwoCircles.net News Desk

लखनऊ :‘फिर से जिंदगी को पटरी पर लाने के लिए जो पैसा रुपया चहिए, वह कहां से आएगा? सरकार पकड़ते समय तो हमें आतंकवादी बताती है पर हमारे बेगुनाह होने के बाद न तो हमें फंसाने वालों के खिलाफ़ कोई कार्रवाई होती है और न ही मुआवजा मिलता है.’

यह बातें आज 8 साल 7 महीने लखनऊ जेल में रहने के बाद देशद्रोह के आरोप से दोषमुक्त हो चुके शेख मुख़्तार ने रिहाई मंच द्वारा आयोजित लखनऊ के यूपी प्रेस क्लब में प्रेस वार्ता के दौरान कहा.

पत्रकारों द्वारा सवाल पूछने पर कि मुआवजा की लड़ाई लड़ेगे? इस पर शेख मुख्तार ने कहा कि –‘छोड़ने के वादे से मुकरने वाली सरकार से मुआवज़े की कोई उम्मीद नहीं.’

Sheikh Mukhtar Hussain

मिदनापुर निवासी शेख मुख्तार हुसैन जो कि मटियाबुर्ज में सिलाई का काम करते थे, ने बताया कि उसने एक पुराना मोबाइल खरीदा था. उस समय उसकी बहन की शादी थी. उसी दौरान एक फोन आया कि उसकी लाटरी लग गयी है और लाटरी के पैसों के लिए उसे कोलकाता आना होगा.

इस पर उसने कहा कि अभी घर में शादी की व्यस्तता है अभी नहीं आ पाउंगा. उसी दौरान उसे साइकिल खरीदने के लिए नंद कुमार मार्केट जाना था तो उसी दौरान फिर से उन लाटरी की बात करने वालों का फोन आया और उन लोगों ने कहा कि वे वहीं आ जाएंगे.

फिर वहीं से उसे खुफिया विभाग वालों ने पकड़ लिया. जीवन के साढे़ आठ साल बर्बाद हो गए. उनका परिवार बिखर चुका है. उन्होंने अपने बच्चों के लिए जो सपने बुने थे, उसमें देश की सांप्रदायिक सरकारों, आईबी और पुलिस ने आग लगा दी. उनके बच्चे पढ़ाई छोड़कर सिलाई का काम करने को मजबूर हो गए, उनकी बेटी की उम्र शादी की हो गई है. लेकिन साढे आठ साल जेल में रहने के कारण अब वे पूरी तरह बर्बाद हो चुके हैं. अब उनके सामने आगे का रास्ता भी बंद हो गया है.

शेख मुख्तार से यह पूछने पर कि अब आगे जिंदगी कैसे बढ़ेगी, तो उन्होंने कहा कि बरी होने के बाद भी हमें ज़मानत लेनी है और अभी तक हमारे पास ज़मानतदार भी नहीं है. हम एडवोकेट मोहम्मद शुऐब के उपर ही निर्भर हैं.

इस सिलसिले में मोहम्मद शुऐब से पूछने पर कि ज़मानत कैसे होगी? ये कहते हुए वो रो पड़े कि आतंकवाद के आरोपियों के बारे में फैले डर की वजह से मुश्किल होती है और लोग इन बेगुनाहों के ज़मानतदार के बतौर खड़े हों. इसीलिए मैंने इसकी शुरूआत अपने घर से की. मेरी पत्नी और साले ज़मानतदार के बतौर खड़े हुए हैं.

इन भावनाओं से प्रभावित होते हुए पत्रकार वार्ता में मौजूद आदियोग और धर्मेन्द्र कुमार ने ज़मानतदार के बतौर खड़े होने की बात कही.

मो. शुऐब ने समाज से अपील की कि लोग ऐसे बेगुनाहों के लिए खड़े हों. इस मामले में अभी और ज़मानतदारों की ज़रूरत है. अगर कोई इनके लिए ज़मानतदार के बतौर खड़ा होगा तो ये जल्दी अपने घर पहुंच जाएंगे.


हम अपने देश के ख़िलाफ़ नारा लगाने की सोच भी कैसे सकते हैं? –अली अकबर

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TwoCircles.net News Desk

लखनऊ :‘जिस देश में हम रहते हैं उसके खिलाफ हम कैसे नारा लगाने की सोच सकते हैं. आज जब यह आरोप बेबुनियाद साबित हो चुके हैं तो सवाल उठता है कि हम पर देश के खिलाफ़ नारा लगाने का झूठा आरोप क्यों मढ़ा गया.’

यह बातें देशद्रोह के आरोप से दोषमुक्त हो चुके अली अकबर ने रिहाई मंच द्वारा आयोजित लखनऊ के यूपी प्रेस क्लब में आज प्रेस वार्ता के दौरान कहा.

पश्चिम बंगाल के 24 परगना बनगांव के रहने वाले अली अकबर हुसैन ने कहा कि देश के खिलाफ़ नारे लगाने के झूठे आरोप ने उसे सबसे ज्यादा झटका दिया.

Ali Akbar Hussain

उन्होंने कहा कि हमारे वकील मो. शुऐब जो कि हमारा मुक़दमा लड़ने (12 अगस्त 2008) कोर्ट में गए थे, को मारा पीटा गया और हम सभी पर झूठा मुक़दमा दर्ज कर दिया गया कि हम देश के खिलाफ़ नारे लगा रहे थे.

जेल की पीड़ा और अपने ऊपर लगे आरोपों से अपना मानसिक असंतुलन का शिकार हो चुके अली अकबर के पिता अल्ताफ हुसैन ने कहा कि मेरे बेटे की हालत की जिम्मेदार पुलिस और सरकार है.

एयर फोर्स के रिटायर्ड अल्ताफ ने कहा कि जिस तरह से झूठे मुक़दमें में उनके लड़के और अन्य बेगुनाहों को फंसाया गया, ऐसे में एडवोकेट मुहम्मद शुऐब की मज़बूत लड़ाई से ही इनकी रिहाई हो सकी.

उन्होंने कहा कि हमारे बेटों के खातिर मार खाकर भी जिस तरीके से शुऐब साहब ने लड़ा उससे इस लड़ाई को मज़बूती मिली.

इस पत्रकार वार्ता में रिहा हो चुके लोगों के परिजन अब्दुल खालिद मंडल, अन्सार शेख भी मौजूद रहे.

इन बेगुनाहों के पास से पुसिल ने जो आरडीएक्स, डिटोनेटर और हैंडग्रेनेड बरामद दिखाया, उसे वह कहां से मिला?

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TwoCircles.net News Desk

लखनऊ :‘प्रदेश के सपा सरकार ने चुनाव में मुसलमानों का वोट लेने के लिए उनसे झूठे वादे किए. जिसमें से एक वादा छूटे बेगुनाहों के पुर्नवास और मुआवजे का भी था. लेकिन किसी भी बेगुनाह को सरकार ने उनकी जिन्दगी बर्बाद करने के बाद आज तक कोई मुआवजा या पुर्नवास नहीं किया है.’

यह बातें आज पूरे 8 साल 7 महीने बाद देशद्रोह के आरोप से दोषमुक्त हो चुके अजीर्जुरहमान, मो0 अली अकबर, शेख मुख्तार हुसैन, उनके परिजनों की मौजुदगी में रिहाई मंच द्वारा आयोजित लखनऊ के यूपी प्रेस क्लब में प्रेस वार्ता के दौरान रिहाई मंच के अध्यक्ष अधिवक्ता मुहम्मद शुऐब ने कहा.

मुहम्मद शुऐब ने कहा कि –‘पुर्नवास व मुआवजा न देना साबित करता है कि अखिलेश यादव हिन्दुत्वादी चश्मे से बेगुनाहों को आतंकवादी ही समझते हैं.’

आगे उन्होंने कहा कि –‘सपा सरकार ने अगर आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों को छोड़ने का अपना चुनावी वादा पूरा किया होता तो यही नहीं इन जैसे दर्जनों बेगुनाह पहले ही छूट गए होते.’

उन्होंने पूछा कि सरकार को बताना चाहिए कि इन बेगुनाहों के पास से पुसिल ने जो आरडीएक्स, डिटोनेटर और हैंडग्रेनेड बरामद दिखाया गया, उसे वह कहां से मिला?

किसी आतंकी संगठन ने उन्हें ये विस्फोटक दिया या फिर पुलिस खुद इनका ज़खीरा अपने पास रखती है, ताकि बेगुनाहों को फंसाया जा सके.

उन्होंने कहा कि ऐसी बरामदगी दिखाने वाले पुलिस अधिकारियों का समाज में खुला घूमना देश की सुरक्षा के लिए ठीक नहीं है.

RIHAI MANCH

उन्होंने कहा कि जिस तरह से कुछ मीडिया संस्थानों ने इनके छूटने पर यह ख़बर छापी की ये सभी पाकिस्तानी हैं. असल में यह वही जेहनियत है, जिसके चलते पुलिस ने देश के खिलाफ नारा लगाने का झूठा एफआईआर करवाया.

आज असलियत आपके सामने है कि यह अपनी बात कहते-कहते भूल जा रहे हैं. मानसिक रुप से असुंतलित हो गए हैं. ऐसे में देशद्रोह और आतंकी होने का फर्जी मुक़दमा दर्ज कराने वाले असली देशद्रोही हैं, उनपर मुकदमा होना चाहिए.

उन्होंने सरकार से सवाल किया कि क्या उसमें यह हिम्मत है?

रिहाई मंच नेता राजीव यादव ने बताया कि आफताब आलम अंसारी, कलीम अख्तर, अब्दुल मोबीन, नासिर हुसैन, याकूब, नौशाद, मुमताज, अजीजुर्रहमान, अली अकबर, शेख मुख्तार, जावेद, वासिफ हैदर वो नाम हैं, जिन पर आतंकवादी का ठप्पा लगाकर उनकी पूरी जिंदगी बर्बाद कर दी गई. जिनके बरी होने के बावजूद सरकारों ने उनके प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं दिखाई. तो वहीं ऐसे कई नौजवान यूपी की जेलों में बंद हैं जो कई मुक़दमों में बरी हो चुके है, जिनमें तारिक कासमी, गुलजार वानी, मुहम्मद अख्तर वानी, सज्जादुर्रहमान, इकबाल, नूर इस्लाम है.

उन्होंने कहा कि सरकार बेगुनाहों की रिहाई से सबक सीखते हुए इन आरोपों में बंद बेगुनाहों को तत्काल रिहा करे और सांप्रदायिक पुलिस कर्मियों के खिलाफ़ कारवाई करे.

उन्होंने कहा कि जब इन बेगुनाहों को फंसाया गया तब बृजलाल एडीजी कानून व्यवस्था और बिक्रम सिंह डीजीपी थे और उन्होनें ही मुसलमानों को फंसाने की पूरी साजिश रची. जिनकी पूरी भूमिका की जांच के लिए सरकार को जांच आयोग गठित करना चाहिए ताकि आतंकवाद के नाम पर फंसाने वाले पुलिस अधिकारियों को सजा दी जा सके.

मंच ने यूएपीए को बेगुनाहों को फंसाने का पुलिसिया हथियार बताते हुए इसे खत्म करने की मांग की.

जंग-ए-आज़ादी में अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ पहला फ़तवा मौलाना शाह अब्दुल क़ादिर लुधियानवी ने जारी किया था...

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TwoCircles.net News Desk

लुधियाना :‘भारत के स्वतंत्रता संग्राम 1857 ई0 में अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ पहला फ़तवा मौलाना शाह अब्दुल क़ादिर लुधियानवी ने जारी किया था और आज दुनियाभर में अरबी भाषा सीखने के लिए पढ़ा जाने वाला क़ायदा ‘‘नूरानी क़ायदा’’ लुधियाना के ही मौलाना नूर मुहम्मद ने लिखा था.'

ऐसे अनेकों जानकारियां समेत लधुनियाना का समस्त इतिहास को भारत के स्वतंत्रता संग्राम में मुख्य भूमिका निभा चुके ‘मौलाना हबीब परिवार’ से संबंधित शाही इमाम पंजाब के सुपुत्र मौलाना मुहम्मद उसमान रहमानी की लिखी पहली पुस्तक ‘काफिला-ए-ईलमों हुर्रियत’ उर्दू भाषा में प्रकाशित हो गई है.

यह जानकारी स्वयं नायब शाही इमाम मौलाना मुहम्मद उसमान रहमानी लुधियानवी ने एक प्रेस विज्ञप्ति के ज़रिए दी.

Book Release on Ludhiyana

उन्होंने बताया कि लुधियाना के इतिहास पर उन्होंने 15 वर्ष पूर्व काम शुरू किया था और इस रिसर्च के दौरान उन्होंने भारत की तकरीबन सभी प्रसिद्ध लाइब्रेरियों में जाकर इतिहास की जानकारी एकत्रित की.

मौलाना उसमान ने बताया कि यह ऐतिहासिक पुस्तक 1720 ई0 से शुरू की गई है और इसमें 1947 ई0 तक लुधियाना में पैदा हुए उन सभी प्रसिद्ध इस्लामी विद्वानों का वर्णन है, जिन्होंने लुधियाना को दुनियाभर में पहचान दिलवाई.

मौलाना उसमान ने बताया कि यह पुस्तक प्रकाशित होकर अब आ चुकी है. इस पुस्तक के कुल 993 अध्याय हैं और कुछ ऐतिहासिक चित्र भी हैं.

उन्होंने बताया कि इस पुस्तक में लुधियाना की स्थापना से लेकर 1947 ई0 तक के सभी अहम तथ्य क़लमबंद किये गए हैं और विशेषकर लुधियाना में बनी इंडस्ट्री की शुरूआत किन लोगों ने की, उनका भी वर्णन है. अंग्रेज़ शासन में हुए जुल्म और स्वतंत्रता संग्राम में दी गई लुधियानवियों की कुरबानियों का संक्षिप्त वर्णन किया गया है.

मौलाना उसमान रहमानी ने बताया कि जल्दी ही उनकी इसी विषय पर दूसरी पुस्तक ‘‘दास्तान-ए-लुधियाना’’ हिन्दी भाषा में प्रकाशित होने जा रही है, जिसमें 1857 ई0 से 1947 ई0 तक चले स्वतंत्रता संग्राम में लुधियानवियों के योगदान का वर्णन होगा.

उन्होंने बताया कि दास्तान-ए-लुधियाना हिन्दी में प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी रइस-उल-अहरार मौलाना हबीब-उर-रहमान लुधियानवी, महान सपूत लाला लाजपत राय, नामधारी समाज के सतगुरू राम सिंह जी, शहीदे वतन सुखदेव थापड़, रहीम जोए, करीम जोए, लाला पूला राम जैसे उन सभी जांनिसारों की जीवनी होगी. जिन्होंने हमारे आज के लिए अपना सब कुछ देश पर न्योछावर कर दिया.

AMU व JMI पर मोदी सरकार के ‘वार’ पर लालू यादव का ‘पलटवार’

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TwoCircles.net Staff Reporter

पटना :अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) और जामिया मिल्लिया इस्लामिया के अल्पसंख्यक दर्जा के मसले पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल, उत्तरप्रदेश के कैबिनेट मंत्री आज़म ख़ान के बाद अब राष्ट्रीय जनता दल के मुखिया लालू प्रसाद यादव ने भी केन्द्र के मोदी सरकार को चेताया है.

एएमयू व जामिया के अल्पसंख्यक दर्जा को ख़त्म करने की साज़िश का नोटिस लेते हुए लालू प्रसाद ने केन्द्र के मोदी सरकार को वार्निंग दी है कि वो अपनी हरकत से बाज़ आए, वरना इसके ख़िलाफ़ देशव्यापी आन्दोलन छेड़ी जाएगी.

लालू की पार्टी ने अपने राष्ट्रीय कौंसिल के 9वें महाअधिवेशन में एएमयू व जामिया के सिलसिले में एक प्रस्ताव पारित करके केन्द्र के मोदी सरकार को चेताया कि वो अपना स्टैंड बग़ैर किसी देरी के वापस लें और दोनों यूनिवर्सिटियों के अल्पसंख्यक दर्जा को हर हाल में बहाल रखें, वर्ना नतीजे भुगतने के लिए तैयार हो जाएं.

Lalu Yadav

लालू प्रसाद यादव को इस 9वें महाअधिवेशन में राष्ट्रीय जनता दल के नौवीं बार राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया. पार्टी के निर्वाचन अधिकारी जगदानंद सिंह ने लालू के अध्यक्ष चुने जाने का औपचारिक एलान किया. वे पार्टी संविधान के नियम के तहत अगले तीन वर्ष के लिए अध्यक्ष रहेंगे.

इस अधिवेशन में लालू ने कई मुद्दों पर केन्द्र के मोदी सरकार को घेरते हुए कहा कि –‘मोदी की अल्पसंख्यक व पिछड़ा विरोधी सरकार आरएसएस के इशारे पर काम कर रही है और उसके एजेंडे को देश में लागू करने की कोशिश कर रही है.’

लालू यादव ने यह सवाल उठाया कि –‘मोदी देश को यह बताएं कि आरएसएस आख़िर किस हैसियत से प्रधानमंत्री को आदेश जारी करती है और अपने स्तर से सरकार का जायज़ा लेती है?’

लालू ने आगे कहा कि –‘हमने बिहार से मोदी का बोरिया-बिस्तर गोल किया है और दिल्ली से उखाड़ फेकेंगे. बिहार का खतरा तो टल गया है, मगर मुल्क पर ख़तरा बरक़रार है. अपने हमने संगठनीय चुनाव की वजह से रूके हुए थे. लेकिन अब जनवरी के बाद केन्द्र और बीजेपी के खिलाफ़ हमारी लड़ाई शुरू होगी.’

इस महाअधिवेशन में राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाने के बाद लालू को कार्यकर्ताओं ने बधाई दी. कार्यक्रम में लालू अपने पुराने अंदाज़ में ही दिखे और माइक पर पार्टी कार्यकर्ताओं को मंच से ही ज़रूरी संदेश देते रहें. 10 सर्कुलर रोड स्थित आवास से अधिवेशन स्थल श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल तक लालू यादव का जगह-जगह भव्य स्वागत हुआ. महाधिवेशन में कुल 21 राज्यों के प्रतिनिधि शामिल हुए.

बिना सूचना पुलिस ने किया रोहित वेमुला का अंतिम संस्कार

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By TwoCircles.net Staff Reporter

हैदराबाद: हैदराबाद के छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद उठा शोर अभी शुरू ही हुआ था कि प्रशासन की एक और हरक़त ने इस आग में घी डालने के काम किया है.

प्रशासन ने आज बिना किसी को सूचित किए जल्दबाज़ी और गुपचुप तरीके से रोहित वेमुला की अंतिम संस्कार संपन्न कर दिया. प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि रोहित के दाहसंस्कार के कोई इक्का-दुक्का लोग ही मौजूद थे. रोहित का दाहसंस्कार हैदराबाद के ही अम्बरपेट शवदाह स्थल पर किया गया. ‘हिन्दू श्मशान वाटिका प्रबंधक समिति’ की रसीद से शव के रोहित का होने की पुष्टि होती है, जिस पर रोहित का पूरा नाम 'वेमुला रोहित चक्रबर्ती'लिखा हुआ है.


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इस मामले में रोचक और रोषपूर्ण तथ्य यह है कि रोहित के शवदाह के पहले रोहित के घरवालों तक को इसकी सूचना नहीं दी गयी थी. रोहित के मित्र और आंबेडकर सर्किल के लोग कह रहे हैं कि पुलिस की इस हरक़त से रोहित के समर्थन में किए जा रहे आंदोलन और भी भड़क सकते हैं.

इस मामले में प्रशासन के पक्ष की पुष्टि नहीं हो सकी है. लेकिन प्रशासनिक अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर बता रहे हैं कि ऐसा लॉ एंड ऑर्डर को बनाए रखने के लिए किया गया.


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छात्र चिट्टीबाबू पदावला अपनी वॉल पर रोहित वेमुला के अंतिम संस्कार की इन तस्वीरों को शेयर करते हुए लिखते हैं, ‘क्या पुलिस और संघियों का ऐसा सोचना है कि रोहित की शवयात्रा से लॉ एंड ऑर्डर की समस्याएं उपजतीं? या वे एक 26 साल के शोधछात्र के समर्थन में एकता और सामर्थ्य का प्रदर्शन नहीं देखना चाहते हैं?’

रोहित के साथी कहते हैं कि क्या गलत था यदि हम अपने दोस्त को अंतिम बार देख लेते और विदाई दे देते?

(तस्वीरें Chittibabu Padavala की फेसबुक वाल से साभार)

रोहित वेमुला की आत्महत्या : अशोक वाजपेयी ने वापिस की डी.लिट् उपाधि

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By TwoCircles.net Staff Reporter

नई दिल्ली:दलित छात्रों के निष्कासन और रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद विरोध की आंच हैदराबाद, मुंबई और फिर दिल्ली तक पहुँच चुकी है.

हिन्दी के कवि, आलोचक और कला समीक्षक अशोक वाजपेयी ने हैदराबाद विश्वविद्यालय द्वारा प्रदत्त मानद डी.लिट् उपाधि विश्वविद्यालय को लौटाने की घोषणा की है.

अशोक वाजपेयी ने कहा, 'लेखक बनने की चाह रखने वाले एक दलित छात्र को विश्वविद्यालय के 'दलित-विरोधी'रवैये के कारण आत्मह्त्या करनी पड़ी. विश्वविद्यालय सरकार के दबाव में काम कर रही है. मैं विश्वविद्यालय प्रशासन के विरोध में यह उपाधि वापिस कर रहा हूं.'

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ललित कला अकादमी के चेयरमैन रह चुके अशोक वाजपेयी को कुछ वर्षों पहले हैदराबाद विश्वविद्यालय ने डी.लिट् की मानद उपाधि दी थी.

रोहित वेमुला उन पांच छात्रों में से एक थे, जिन्हें बीते साल अगस्त में विश्वविद्यालय से निष्कासित कर दिया गया था. विश्वविद्यालय से निष्कासन के साथ ही इन छात्रों को छात्रावास से भी निष्कासित कर दिया गया था.

केन्द्रीय मंत्री बंडारू दत्तात्रेय, कुलपति अप्पा राव और तीन अन्य के ख़िलाफ़ साइबराबाद थाने में नामज़द एफ़आईआर दर्ज की गयी है. हाल ही में इस मामले में मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी की संलिप्तता भी सामने आ रही है.

मालदा के कालियाचक की हिंसा : दो समुदायों के बीच का दंगा नहीं...

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कालियाचक के दौरे के बाद जन जागरण शक्ति संगठन की टीम की शुरुआती रिपोर्ट

TwoCircles.net News Desk

मालदा के कालियाचक में 3 जनवरी को हुई हिंसा, साम्प्रदायिक हिंसा नहीं दिखती है. इसे मुसलमानों का हिन्दुओं पर आक्रमण भी नहीं कहा जा सकता है. यह जुलूस में शामिल होने आए हजारों लोगों में से कुछ सौ अपराधिक प्रवृत्ति के लोगों का पुलिस प्रशासन पर हमला था. इसकी जद में कुछ हिन्दुओं के घर और दुकान भी आ गए. गोली लगने से एक युवक ज़ख्मी भी हुआ.

ये पूरी घटना शर्मनाक और निंदनीय है. ऐसी घटनाओं का फायदा उठाकर दो समुदायों के बीच नफ़रत और ग़लतफ़हमी पैदा की जा सकती है. यह राय मालदा के कालियाचक गई जन जागरण शक्ति संगठन (जेजेएसएस) की पड़ताल टीम की है.

Malda

हिन्दू महासभा के कथित नेता कमलेश तिवारी के पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद के बारे में दिए गए विवादास्पद बयान का विरोध देश के कई कोने में हो रहा है. इसी सिलसिले में मालदा के कालियाचक में 3 जनवरी को कई इस्लामी संगठनों ने मिलकर एक विरोध सभा का आयोजन किया. इसी सभा के दौरान कालियाचक में हिंसा हुई. इस हिंसा को मीडिया खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने जिस रूप में पेश किया, वह काफी चिंताजनक दिख रहा है. इस पर जिस तरह की बातें हो रही हैं, वह भी काफी चिंताजनक हैं.

10 दिन बाद भी जब कालियाचक की घटना की व्याख्याा साम्प्रदायिक शब्दावली में हो रही थी तब जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम) से सम्बद्ध जन जागरण शक्ति संगठन (जेजेएसएस) ने तय किया कि वहां जाकर देखा जाए कि आखिर क्या हुआ है?

Malda

जेजेएसएस ने तीन लोगों की एक टीम वहां भेजी. इसमें पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता नासिरूद्दीन हैदर ख़ान, जेजेएसएस के आशीष रंजन और शोहनी लाहिरी शामिल थे.

मालदा में एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शकन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स (एपीडीआर) के जिशनू राय चौधरी ने इस टीम की मदद की. ये टीम 16 जनवरी को मालदा पहुंची और 17 को वापस आई. इन्होंने जो देखा और पाया उसका संक्षेप में शुरुआती ब्योरा यहां पेश किया जा रहा है. टीम ने खासकर उन लोगों से ज्यादा बात की जो नाम से हिन्दू लगते हैं या जो अपने को हिन्दू मानते है.

Malda

टीम की शुरुआती संक्षिप्त बिंदुवार राय-

 कालियाचक में हिंसा की शुरुआत कैसे हुई –इस बारे में कई राय या कहानी सुनाई देती है. जुलूस में शामिल लोगों की संख्या के बारे में भी लोगों की अलग-अलग राय है.

 बातचीत में हमें पता चला कि जुलूस में शामिल होने आए लोगों ने थाने पर हमला किया. थाने में आग लगाई. थाने में तोड़-फोड़ की. कई दस्तावेज़ जलाए गए. वहां खड़ी ज़ब्त और पुलिस की गाडि़यों को जलाया गया. हमें एक गाड़ी जली दिखाई दी. थाने में मौजूद सिपाही भी ज़ख्मी हुए. वहां ज़ब्त कई सामान और हथियार भी लूटे जाने की ख़बर है.

 जब यह टीम थाने पहुंची तो वहां मरम्मत का काम चलता दिखा. रंगाई-पुताई होती दिखी. हालांकि इस टीम ने पुलिस अधिकारियों से बात करने की कोशिश की, लेकिन यह मुमकिन नहीं हो पाया. थाने में भी इस घटना के बारे में लोग जल्दी खुलकर बात नहीं करते हैं.

 थाने परिसर में ही एक लड़कियों का नया हॉस्टल दिखा. हालांकि उसमें अभी लड़कियां नहीं हैं. उसमें किसी तरह की तोड़-फोड़ नहीं दिखती है. इसी परिसर में दूसरे विभागों कें कुछ और दफ्तर भी हैं. उनमें भी तोड़-फोड़ या आगजनी जैसी चीज़ नहीं दिखाई देती है.

 थाने के ठीक पीछे एक मोहल्ला है, जिसे बालियाडांगा हिन्दूपाड़ा कहा जाता है. इस मोहल्ले का एक रास्ता थाने से होकर भी गुज़रता है. इस मोहल्ले की शुरुआत में एक पान गुमटी जली दिखी. चार-पांच दुकानों की होर्डिंग, बोर्ड, टिन शेड टूटे या फटे दिखे. एक मकान के कांच के शीशे टूटे दिखाई दिए. एक दुकानदार का दावा है कि उसकी दुकान का शटर तोड़ने की भी कोशिश हुई. एक चाय दुकानदार का भी कहना है कि उसकी दुकान में रखा दूध गिरा दिया गया.

 यहां एक मोटरसाइकिल जलाए जाने की भी बात सुनने को मिली.

 इसी मोहल्ले में थाने के ठीक पीछे एक मंदिर है. उस मंदिर के बाहर जाली की बैरिकेडिंग टूटी दिखाई दी. पड़ोसियों का कहना है कि इसे उपद्रवियों ने ही तोड़ा है. मंदिर का भवन और मूर्ति पूरी तरह सुरक्षित दिखी.

 इसी तरह थाने के सामने के एक बड़े मकान के कांच के शीशे टूटे दिखाई दिए.

 थाने के बगल में एक लाइब्रेरी है, उसमें भी तोड़-फोड़ हुई.

 थाने के अंदर एक बड़ा मंदिर है. हमें उस मंदिर में कुछ भी टूटा या गायब नहीं दिखा. मंदिर में लोहे का ग्रिल है, वह भी पूरी तरह सुरक्षित है. मूर्तियां अपनी जगह पर थीं. हमने पुजारी को काफी तलाशने की कोशिश की पर वह नहीं मिलें.

 इस हिंसा के दौरान एक युवक को गोली भी लगी है. वह अस्पताल से अपने घर लौट चुका है. हम उससे मिलने और बात करने उसके घर गए. हालांकि उसने और उसके परिवारजनों ने बात करने से मना कर दिया.

 इस युवक के अलावा हमें किसी और को गोली लगने या किसी और के ज़ख्मी होने की बात पता नहीं चली.

 हिन्दूपाड़ा लगभग एक किलोमीटर में दोनों ओर बसा है. हालांकि थाने के पीछे हिन्दूपाड़ा में हिंसा के निशान सिर्फ 50 मीटर के दायरे में ही कुछ जगहों पर दिखते हैं. हम एक छोर से दूसरी छोर तक गए. लोगों से बात की. इस 50 मीटर के दायरे के बाहर किसी ने अपने यहां पथराव, तोड़-फोड़ की बात नहीं बताई.

 हालांकि कुछ लोगों ने यह ज़रूर बताया कि जुलूस में शामिल कुछ लोग आपत्तिजनक नारे लगा रहे थे.

 हमने कई हिन्दू महिलाओं से भी बात की. इनमें से किसी ने अपने साथ अभद्रता या गाली गलौज की बात नहीं बताई. हालांकि पूछने पर वे बताती हैं कि ऐसा सुनने में आया है.

 थाने के ठीक सामने के बाजार में ज्‍यादातर दुकानें हिन्दुओं की हैं. हमने अनेक दुकानदारों से बात की. इनके दुकानों में भी तोड़-फोड़ नहीं हुई है.

 हिन्दू़पाड़ा के कुछ लोगों का कहना है कि जब थाने में हिंसा हुई और कुछ उपद्रवी मोहल्लेे की तरफ़ आए और मंदिर की तरफ़ बढ़े तो इधर से भी प्रतिवाद हुआ. इसके बाद मोहल्ले में पथराव या आगजनी हुई.

 यानी, हिंसा का दायरा काफी सीमित था. उसका लक्ष्य थाना ही था.

 हम रथबाड़ी, देशबंधु पाड़ा, कलेक्ट्रेट का इलाका, झलझलिया, स्टेशन सहित मालदा के कई इलाकों में गए. हमने खासकर हिन्दु़ओं से बात की. मालदा शहर में हमें एक भी ऐसा शख्स नहीं मिला, जो इसे साम्प्रदायिक गंडगोल या मुसलमानों का हिन्दुओं पर हमला मानता हो.

 यही हाल कालियाचक का भी दिखा. कालियाचक में भी ज्यादातर लोग इसे अपराधियों की हरकत बताते हैं. सबकी वजहें अलग-अलग हैं. हमें सिर्फ एक शख्स मिले, जिन्होंने बातचीत के दौरान खुलकर कहा कि यह हिन्दुओं पर जानबूझ किया गया हमला था. हिन्दूपाड़ा में कुछ लोग पूछने पर ज़रूर इसे कुछ कुछ साम्प्रदायिक कह रहे थे. कुछ घटना स्थलों को दिखाने को उत्सांहित भी दिख रहे थे.

 मालदा शहर में हिंसा का कोई असर नहीं दिखता है.

 मालदा से कालियाचक के बीच लगभग 28-30 किलोमीटर के सफ़र में, रास्ते में कई गांव पड़ते हैं. कहीं भी कुछ भी असमान्य नहीं दिखता है. बाजार पूरी तरह खुले दिखें. खूब चहल-पहल दिखी. महिलाएं भी सड़क पर बदस्तूर काम करती दिखाई दीं.

 यही हाल कालियाचक का है. कालियाचक में बाजार ऐसे गुलजार दिेखे, जैसे यहां कभी कुछ हुआ ही न हो. थाने के ठीक सामने के बाजारों की सभी दुकानें खुली थीं. लोगों का हुजूम सड़कों पर था. स्त्री-पुरुष, बच्चे-बूढे़ सभी आते जाते दिखाई दिए. इनमें से कोई थाने की टूटी बाउंड्री को पलट कर या ठहरकर देखता भी नहीं मिला.

 थाने के अंदर भी सबकुछ सामान्य लग रहा था. फरियादी दिख रहे थे. कई महिलाएं या नौजवान अपनी शिकायतें लेकर आए हुए थे. थाना परिसर में ही वेटनरी विभाग का दफ्तर है, उसमें महिलाएं अपनी बकरियों के साथ आती-जाती दिखीं.

 हिन्दूपाड़ा के ठीक सटे मुस्लिम पाड़ा है. हम यहां भी गए. हम उन लोगों से बात करना चाह रहे थे, जो जुलूस में गए हों. हमें कोई ऐसा नौजवान या शख्स नहीं मिला, जो यह कहे कि वह जुलूस में शामिल था. हर नौजवान या अधेड़ हमें यही कहता मिला कि वह जुलूस में नहीं गया था. वह कहीं और था. लोगों की बातें उनके मन के डर को साफ़ ज़ाहिर कर रही थीं. यह डर उस वक्त खुलकर सामने आ गया जब हमारी साथी ने महिलाओं से बातें की.

 इस मुस्लिम पाड़ा से दो लोग गिरफ्तार हुए हैं. हम इनके परिवारजनों से मिले. दोनों परिवारों का कहना है कि उनके लोग बेकसूर हैं. पुलिस उन्हें ग़लत तरीके से ले गई है. एक घर में पुलिस के जबरन घुसने और गिरफ्तार करने की भी बात पता चली.

 मुस्लिम पाड़ा के लोगों का कहना है कि पुलिस के पास सीसीटीवी फुटेज है. वह देखे और हमें दिखाएं. अगर हमारे लोग तोड़फोड़ में शामिल हैं तो हम उन्हें गिरफ्तार करवाएंगे. लेकिन हमारे साथ ज्यादती न की जाए.

 हमने वाम मोर्चा, भारत की कम्युनिस्ट पाटीं -मार्क्सवादी (माकपा), तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), शोधकर्ताओं, पत्रकारों से भी बात की. कमोबेश सबका यह मानना है कि यह साम्प्रदायिक घटना नहीं है. यह मुसलमानों का हिन्दु्ओं पर हमला नहीं था. भारतीय जनता पार्टी के नेता भी इस घटना को खुलकर साम्प्रदायिक नहीं कहते हैं.

 बातचीत में लोगों का यह भी कहना है कि पुलिस को जिस तरह तैयारी करनी चाहिए थी, उसने नहीं की. साथ ही इलाके में चलने वाली गैर-कानूनी गतिविधियों पर भी पुलिस का रवैया ढीला रहता है. हालांकि पिछले कुछ महीनों में बंगाल में पुलिस और थानों पर हमले बढ़े हैं. इस नज़रिए से भी इस घटना को देखा जाना चाहिए.

हमें पता चला कि इस इलाके में तस्करी, अफीम की खेती, जाली नोट का धंधा, बम और कट्टा बनाने का काम बड़े पैमाने पर होता है. इन धंधों में शामिल लोग या वे लोग जिनका हित इस धंधे से जुड़ा है, उन्हीं का इस हिंसा से रिश्ता दिखता है.

हमारा मानना है कि अगर यह साम्प्रदायिक घटना होती या हिंसा का मक़सद हिन्दुओं पर हमला करना होता तो हिन्दूपाड़ा या आसपास के इलाके की शक्ल आज अलग होती. इसे साम्प्रदायिक बनाने की कोशिश वस्तुत: अगले साल होने वाले चुनाव के परिप्रेक्ष्य में देखी जा सकती है.

2011 की जनगणना के मुताबिक़, कालियाचक की कुल आबादी 392517 यानी तीन लाख 92 हजार 517 है. इसमें महज़ 10.6 फीसदी हिन्दू (41456) है और 89.3 फीसदी मुसलमान (350475) हैं. आबादी की इस बनावट से अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिस तरह की बात हो रही है, अगर वह सच होता तो आज हालात क्या होते...


रोहित की ‘मौत’ के विरोध में जामिया के छात्रों का विरोध मार्च

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TwoCircles.net News Desk

नई दिल्ली :रोहित वेमुला की ‘आत्म हत्या’ के बाद ‘इंस्टिट्यूशनल हत्या’ के खिलाफ़ देश के हर शहर में छात्र जमकर विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं. इसी कड़ी में आज दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्रों ने भी अपना विरोध दर्ज कराया और मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी के इस्तीफ़े की मांग की.

प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे जामिया स्टूडेंट्स फ़ोरम के सदस्य मीरान हैदर ने मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी के इस्तीफे की मांग करते हुआ कहा है कि –‘रोहित वेमुला के दोषियों को कड़ी से कड़ी सज़ा दी जाए और हैदराबाद यूनिवर्सिटी के कुलपति अप्पा राव को तत्काल बर्खास्त किया जाए. इसके अलाव जितने भी दोषी हैं, सबको कड़ी से कड़ी सज़ा दी जाए.’

Protest in Jamia

जामिया स्टूडेंट्स फ़ोरम से जुड़े एक अन्य सदस्य व एनएसयूआई के अध्यक्ष इमरान खान ने कहा कि –‘ रोहित ने यूनिवर्सिटी प्रशासन के दबाव और उत्पीड़न से तंग आकर आत्महत्या की है. ऐसे में इसके लिए यूनिवर्सिटी प्रशासन इस आत्महत्या की ज़िम्मेदार है.’

जामिया स्टूडेंट्स फ़ोरम द्वारा निकाले गये इस विरोध मार्च में लगभग 300 से अधिक छात्र मौजूद थे. मार्च के दौरान छात्रों ने जमकर नारेबाज़ी की और मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी का पुतला जलाकर अपने गुस्से का इज़हार किया.

दूसरी तरफ़ इस कथित आत्महत्या के मुद्दे पर पुणे में फिल्म व टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एफटीआईआई) के छात्र संस्थान के द्वार के बाहर एक दिन के अनशन पर बैठे हैं.

इतना ही नहीं, जामिया मिल्लिया इस्लामिया से पासआउट छात्र, जो जामिया नगर में रह रहे हैं, ने भी आज जामिया नगर में एक बैठक आयोजित करके देश के अन्य छात्रों के साथ इस लड़ाई में कूदने की तैयारी का मन बना लिया है. फिलहाल, शुक्रवार को देश में दलित-आदिवासियों व अल्पसंख्यकों के खिलाफ़ के बढ़ते ज़ुल्म के विरोध में कैंडल मार्च आयोजित की जाएगी.

सवालों के घेरे में ‘अल-क़ायदा’ आतंकियों की गिरफ़्तारी!

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Afroz Alam Sahil, TwoCircles.net

सीमी, जैश-ए-मुहम्मद, लश्कर तैय्यबा, इंडियन मुजाहिदीन... यह सब नाम अब पुराने पड़ चुके हैं. अब नाम अल-क़ायदा (एक्यूआईएस) का है. और इसी अल-क़ायदा के नाम पर ग़िरफ़्तारियों का सिलसिला अब जारी है. घोषित तौर पर अब तक 6 ग़िरफ़्तारियां हो चुकी हैं. लेकिन जानकारों का कहना है कि यह संख्या 6 से अधिक है.

पिछले महीने उत्तरप्रदेश का संभल ज़िला निशाने पर था. अब झारखंड का जमशेदपुर इलाक़ा सुर्खियों में है. आख़िर हो भी क्यों न? इस शहर का नाम सुरक्षा एजेंसियां दिसम्बर में बेल्जियम के ग्लास्गो में हुए विस्फोट के साथ कनेक्शन जोड़कर जो देख रही हैं. जिसकी ख़बर देश के कई हिन्दी अख़बारों ने की है. लेकिन शायद ख़बर लिखते समय वो भूल गए कि ग्लास्गो बेल्जियम में नहीं, स्कॉटलैंड में है. और वहां ब्लास्ट 2007 में हुआ था. 2015 के दिसम्बर में किसी ब्लास्ट की कोई ख़बर किसी मीडिया ने नहीं की है.

इतना ही नहीं, भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की माने तो झारखंड के कम से कम 10 लोग इस आतंकी संगठन अल-क़ायदा से जुड़े हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ खुफिया एजेंसियों को शक है कि अल-क़ायदा ने झारखंड में कहीं पर ट्रेनिंग सेंटर भी खोल रखा है. जहां युवकों को बहका कर संगठन से जोड़ने के साथ-साथ दूसरी तरह की हल्की ट्रेनिंग भी दी जाती है.

अल-क़ायदा के नाम पर ताज़ा गिरफ़्तारी हरियाणा के मेवात इलाक़े से मो. अब्दुल समी नाम के युवक की हुई है. वहीं जमशेदपुर के मो. क़ासिम को भी अल-क़ायदा से जुड़े होने के शक में गिरफ़्तार किया गया है. जबकि इससे पहले संभल के आसिफ़, ज़फ़र महूमद, ओडिशा के कटक से मौलाना अब्दुल रहमान और बंग्लूरू से मौलाना अंज़र शाह क़ासमी की गिरफ़्तारी हो चुकी है.

दूसरी ओर मंगलवार को ही रूड़की से अख़लाक़ नाम के शख्स को गिरफ्तार किया गया है. इसके साथ गिरफ़्तार होने वाले तीन और लोग भी हैं. इन चारों पर आईएसआईएस के जुड़े होने का आरोप है. साथ ही यह भी आरोप है कि यह चारों हरिद्वार अर्धकुंभ मेले में हमले की साजिश रच रहे थे.

पुलिस व जांच एजेंसियों के दावों ने जमशेदपुर के लोगों के आंखों से रातों की नींदे ग़ायब कर दी है. यहां के स्थानीय अख़बार भी अलग-अलग आंकड़ों के साथ ख़बरें प्रकाशित कर रहे हैं. एक हिन्दी अख़बार का कहना है कि समी 20-25 युवकों के साथ जमाअत में गया था, तो वहीं एक अन्य हिन्दी अख़बार के मुताबिक़ समी 13 युवकों के साथ जमाअत में गया था. इसके अलावा सारे अख़बारों की अपनी अलग-अलग कहानी है. इन कहानियों के बीच स्थानीय लोग परेशान हैं कि कहीं जमशेदपुर को भी अगला आज़मगढ़ न बना दिया जाए.

एक स्थानीय पत्रकार के मुताबिक़ पुलिस भले ही समी और क़ासिम के गिरफ़्तारी की बात कर रही है, लेकिन सच्चाई यह है कि जमशेदपुर के चार लड़कों को पुलिस ने गिरफ़्तार किया है. जिनमें से दो के नाम तो सामने आ चुके हैं और दो नाम आने बाकी हैं.

मेवात के स्थानीय लोगों से बात करने पर वो बताते हैं कि उन्हें इस संबंध में कोई भी जानकारी नहीं है. क्योंकि अब्दुल समी एक जमाअत में यहां आया था. हालांकि एक ख़बर के मुताबिक़ यहां के एक स्थानीय युवक को भी स्पेशल सेल ने गिरफ़्तार किया था, जिससे पूछ-ताछ के बाद छोड़ दिया गया.

वहीं जमशेदपुर के स्थानीय निवासी इन ग़िरफ़्तारियों पर कई सवाल भी खड़े कर रहे हैं. स्थानीय लोगों, मीडिया व समी के घर वालों का बयान पुलिस के दावों से एकदम विपरित है.

जमशेदपुर के एक हिन्दी अख़बार के मुताबिक़ समी ने 16 दिसम्बर को ओडिशा के कटक से अब्दुल रहमान उर्फ कटकी की गिरफ़्तारी के बाद अब्दुल समी ने शहर छोड़ दिया था. अख़बार ने यह भी दावा किया है कि अब्दुल समी काफी भय में था कि कहीं पुलिस उस तक न पहुंच जाए. इसलिए उसने एक बार फिर जमाअत में जाने का प्लान बना लिया. लेकिन इसके विपरित एक दूसरे हिन्दी अख़बार के मुताबिक़ समी 4 जनवरी तक जमशेदपुर में ही था. अख़बार ने यह तथ्य इस मामले के एसएसपी अनुप टी मैथ्यू के हवाले से दी है.

स्पेशल सेल का कहना है कि जमशेदपुर के धतकीडीह निवासी अब्दुल समी 2014 में दुबई के रास्ते फर्ज़ी तरीक़े से पाकिस्तान के कराची शहर गया था, जहां सालभर रहकर हथियार चलाने की ट्रेनिंग ली थी. लेकिन समी के पिता हाजी सत्तार, जो टाटा स्टील के रिटायर कर्मचारी हैं, का कहना है कि –‘मेरा बेटा समी कभी भी विदेश नहीं गया. पाकिस्तान जाने का तो सवाल ही नहीं उठता. उसके पास तो पासपोर्ट भी नहीं है. टीवी पर जो दिखाया जा रहा है, वो गलत है. उसने कोई ट्रेनिंग नहीं ली. वो अधिकांश समय घर पर ही रहता था.’

हाजी सत्तार मीडिया को दिए अपने बयान में बताते हैं कि मेरा बेटा आतंकी नहीं हो सकता. मुझे बिल्कुल यक़ीन नहीं है. वह शांत स्वभाव का लड़का है. अक्सर जमाअत में जाया करता है. 10-12 दिन पहले ही वह दिल्ली जमाअत में जाने के लिए घर से निकला था.

वो आगे बताते हैं कि –‘मैंने बच्चों को अच्छी तालीम दी है. मैं शुरू से धार्मिक प्रवृत्ति का रहा हूं. इसी कारण मेरा बेटा समी भी दाढ़ी रखने लगा था. लेकिन वो आतंकी क़तई नहीं हो सकता.’

अब्दुल समी (32) ने जमशेदपुर के साकची स्थित कबीर मेमोरियल इंटर कॉलेज से 12वीं तक की पढ़ाई की है. उसके पिता के मुताबिक़ समी पढ़ने में कमज़ोर था, इसलिए उसने पढ़ाई छोड़ दी. उसने कई जगह नौकरी की तलाश की, लेकिन कहीं नौकरी नहीं मिला. इसलिए वो बेरोज़गार था.

कभी आतंकवाद पर गिरफ़्तारियों में सबसे ऊपर पढ़े-लिखे शिक्षित नौजवान निशाने पर थे, लेकिन अब मामला इसके उलट है. अब कम पढ़े-लिखे, मजदूरी करने वाले या फिर मदरसा व तब्लीग़ी जमाअत से जुड़े लोग निशाने पर हैं.

स्पष्ट रहे कि इससे पहले भी ऐसे कई मामले सामने आए हैं., जिनमें बेगुनाह मुस्लिम युवकों को एक लंबी उम्र जेल के सलाखों के पीछे गुज़ारने को मजबूर होना पड़ा. उन मामलों में भी पुलिस के पास सिर्फ़ दावे थे, कहानी से तथ्य पूरी तरह से गायब. मगर किसी ने कुछ सुनने या किसी भी तरह के विरोध को जगह देने की ज़रूरत नहीं समझी. अल-क़ायदा के नाम पर अब तक हुई तमाम गिरफ़्तारियों के बाद यह सारे सवाल एक बार फिर नए सिरे से खड़े हो गए हैं. और सबसे बड़ा सवाल यह है कि देशभर में जारी गिरफ़्तारियों के इस सिलसिले की विश्वसनीयता की पुष्टि कौन करेगा?

क्या इस्लाम दहशतगर्दी की इज़ाज़त देता है?

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By Maulana Mufti Harun Rashid Naqshbandi

इस्लाम लफ्ज़ सलाम से बना है, जिसका अर्थ होता है अमन और सलामती. आज पूरी दुनिया में जिस तरह मज़हब-ए-इस्लाम के नाम पर मासूमों/बेगुनाहों का खून बहाया जा रहा है और खून बहाने वाले दहशतगर्द तंजीमों के लोग खुद को मुसलमान कहते हैं. क्या वाक़ई मज़हब-ए-इस्लाम इन सब बातों की इज़ाज़त देता है? इस्लाम और मुसलमान दहशतगर्दी के खिलाफ़ है. तो आखिर वो कौन लोग हैं, जो इस्लाम व मुसलमानों को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बदनाम कर रहे हैं?

अगर हम मज़हब-ए-इस्लाम की मुक़द्दस कि़ताब को पढ़े, तो हमें पता चलता है ‘किसी मासूम/बेगुनाह व्यक्ति का क़त्ल करना पूरी इंसानियत की हत्या के बराबर है’ तो भला ऐसा मज़हब हिंसा व दहशतगर्दी की इज़ाज़त कैसे दे सकता है.

आज पूरी दुनिया में जिस तरह दहशतगर्द तंज़ीमें जो मज़हब के आड़ में अत्याचार, हत्या, लूट-पाट, और औरतों के साथ बलात्कार कर रहे हैं, जो इंसानियत व इस्लाम दोनों के विरुद्ध हैं. साम (सीरिया) में दहशतगर्द तंजीमें जो मज़हब के नाम पर नौजवानों की ज़ेहनसाजी व सब्ज़बाग़, इस्लाम की ग़लत व्याख्या पेश करके अपनी ओर आकर्षित कर रहा है. इसकी गतिविधियों पर नज़र डालें, तो पता चलता है कि ये मासूमों का खून बहा रहा है, औरतों को गुलाम बना कर अपनी हवस मिटा रहा है, इसकी क्रूरता के कारण हजारों लोगों को अपना घर-बार छोड़कर दुसरे देशों में शरण लेने के लिए बाध्य कर दिया है, जिसमें इन लोगों को तरह-तरह की मुश्किलात से रूबरू होना पड़ रहा है.

हम अपने नबी (स0) की बात करें तो मक्का फ़तह करने के बाद जब लोग डरे हुए थे कि मुहम्मद (स0) उनसे बदला लेंगे, लेकिन आपने वहां पहुँच कर लोगों को आश्वस्त किया कि किसी से भी बदला नहीं लिया जाएगा. आपने उनके जान-माल की गारंटी दी. तो फिर दहशतगर्द तंजीमें अपने आपको कैसे इस्लामिक संगठन कह सकता है?

पूरी दुनिया के मुस्लिम धर्म गुरुओं ने, जिसमें मुफ़्ती-ए-आज़म अरब शामिल हैं. इसकी गतिविधियों को गैर-इस्लामिक क़रार दिया है. अतः मुस्लिम नौजवानों को ऐसी तंज़ीमों के बहकावे में नहीं आना चाहिये.

अफ़ग़ानिस्तान के हालात पर नज़र डालें, तो वहां पर मुसलमान आपस में ही एक-दुसरे को मार रहे हैं. फिदाईन हमले हो रहे हैं. जबकि इस्लाम में इसको सबसे बड़ा गुनाह बताया गया है. खुदकुशी इस्लाम में हराम है, क्योंकि वह जिंदगी जिसे तुम्हें खुदा ने दी है, उसे तुम खु़द ख़त्म नहीं कर सकते हो. इसे “गुनाह-ए-कबीरा” बताया गया है.

नबी (स0) के समय की बात है. एक सहाबा जंग लड़ते हुए बुरी तरह से ज़ख्मी हो गए थे. अपने ज़ख्मों के दर्द के कारण उन्होंने खुद को ख़त्म कर लिया. जब ये बात नबी (स0) को पता चली तो उन्होंने कहा कि सहाबा ने बहादुरी के साथ लड़ाई लड़ी, लेकिन खुदकुशी करने की वजह से इनका स्थान जहन्नम होगा.

इस्लाम खुदकुशी के सख्त खिलाफ़ है. पड़ोसी देश पाकिस्तान की हालात को देखें तो वहां पर शिया-सुन्नी आपस में एक-दुसरे का खून बहा रहे हैं. नमाज़ पढ़ते हुए मस्जिदों में बम से हमला कर लोगों को हलाक कर दिया जाता है. अभी हाल ही में पेशावर के एक स्कूल में आतंकवादियों ने हमला कर सैकड़ों मासूम बच्चों की जान ले ली थी. अब यूनिवर्सिटी में बच्चों का क़त्ल किया गया. ये कौन सा इस्लाम है जबकि हमारे नबी (स0) बच्चों से बेईनतेहा मुहब्बत करते थे.

अब हम अपने प्यारे वतन हिन्दोस्तान को देखें. जहाँ जम्हूरियत की जड़ें मज़बूती के साथ जमी हुई हैं. हर इंसान को आजादी है. यहाँ पर नमाज़ पढ़ते वक्त़ यह ख़तरा नहीं है कि कोई हमलावर आकर मस्जिद में बम फेकेंगा, जैसा की पाकिस्तान में आम बात है.

हिन्दुस्तान में दहशतगर्द तंजीमों के पैर न पसार पाने व हिन्दुस्तानी शहरी को न बहका पाने का सबसे बड़ा कारण यह है कि हिन्दुस्तानी जम्हूरियत की जड़ें गहराई के साथ जमी हुई हैं. जो दो-चार मुट्ठी भर मुल्क के शहरी ऐसे तंजीमों के झांसे में आये हैं. वे नासमझी की वजह से उनका समर्थन करते हैं. ऐसे लोगों को हमें खुलकर उन्हें इस तरह के दहशतगर्द तंजीमों की सच्चाई बतानी होगी. ताकि ऐसे नौजवानों का मुस्तक़बिल बर्बाद होने से बचाया जा सके.

इन्सान का इंसान के साथ दो तरह का रिश्ता होता है. एक खून का और दूसरा मज़हब का. हम यह मानते हैं कि हम सब एक आदम और हौव्वा की औलाद हैं, तो पुरे इंसान आपस में एक-दुसरे के रिश्तेदार हैं. इसलिए हमें किसी के खिलाफ़ बोलने का हक़ नहीं है.

अभी हाल ही में इस्लामिक मुल्क यूएई गैर-इत्तेहादी सुलूक क़ानून लागू किया है. जो क़ानून किसी भी व्यक्ति को किसी के खिलाफ़ उसके धर्म, जाति, रंग व नस्ल के आधार पर भला बुरा नहीं कह सकता है. अगर कोई व्यक्ति अपने बयानात से समाज में नफ़रत फैलाता है तो वैसे व्यक्ति को 6 महीने से लेकर 10 साल तक की सज़ा हो सकती है.

कुरआन की एक सूरह में कहा गया है कि किसी पर भी ज़बरजस्ती अपने दीन को थोपने की कोशिश न करो और न किसी के मज़हब को भला बुरा कहो. फितरी तौर पर इंसान अमन पसंद है. दशहतगर्दी इन्सानियत के उसूलों के खिलाफ़ है.

कोई भी व्यक्ति नफ़रतों, फ़सादों में जिंदगी नहीं जीना चाहता है. समाज के कुछ शरारती तत्व आपस में फूट डलवा कर लोगों को लड़ाते हैं. इसलिए हमें ऐसे लोगों की पहचान कर पूरे समाज के सामने उन्हें उनके बुरे कामों का एहसास कराना पड़ेगा.

सच तो यह है कि आपस में प्यार-मुहब्बत रखना ही इन्सानियत का तकाज़ा और उसका उसूल है. जब हम समाज में एक-दुसरे के साथ प्यार-मुहब्बत के साथ रहेंगे, तो समाज का मुस्तक़बिल सुनहरा होगा. इस्लाम भी इन्हीं शिक्षाओं में यकीन करता है.

आज दहशतगर्दी पूरी इंसानियत के लिए बहुत बड़ा ख़तरा है. लिहाज़ा हर जिम्मेदार शहरी ख़ासतौर पर मज़हबी शहरियों की ये जि़म्मेदारी बनती है कि दहशतगर्द तंजीमों और उनसे जुड़े लोगों को बेनकाब करें और नौजवानों के मुस्तक़बिल को स्याह होने से बचायें.

लेखकों ने साहित्य अकादमी अवार्ड वापिस लेने शुरू किए

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By TwoCircles.net Staff Reporter

नई दिल्ली: लंबा वक़्त नहीं बीता जब विचारकों और लेखकों ने एमएम कलबुर्गी, नरेन्द्र दाभोलकर और गोविन्द पान्सारे की हत्याओं और उन पर सरकार की निष्क्रियता के विरोध में सरकार को साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा दिए थे. ज्ञात हो कि ऐसे लेखकों की कुल संख्या चालीस के ऊपर थी.


Sahitya_Akademi_Award

लेकिन मौजूदा हालात बताते हैं कि लेखकों ने अपने मन बदल लिए हैं, और अवार्ड वापिस लेना शुरू कर दिया है. इस कड़ी में पहला नाम नयनतारा सहगल का है. नयनतारा सहगल के बाद राजस्थानी लेखक नन्द भारद्वाज ने भी अपना पुरस्कार वापिस ले लिया है.

दरअसल, साहित्य अकादमी की नियमावली में पुरस्कार वापिस ले लेने का कोई प्रावधान नहीं है. अकादमी ने यही बात पुरस्कार लौटाने वाले सभी लेखकों को पत्र लिखकर कही है. जिनमें से नयनतारा सहगल और नन्द भारद्वाज राजी हो गये हैं.

हिन्दुस्तान टाइम्स से बातचीत के दौरान पंडित जवाहरलाल नेहरू की भांजी नयनतारा सहगल ने कहा है कि अकादमी मुझे पुरस्कार इसलिए वापिस कर रही है कि उनके पास पुरस्कार को वापिस ले लेने का कोई नियम नहीं है.

पुरस्कार के साथ-साथ अकादमी ने एक लाख रूपए की सम्मान राशि भी वापिस कर दी है, जिसके बारे में नयनतारा सहगल का कहना है कि इन रुपयों का इस्तेमाल वे किसी कल्याणकारी काम में करेंगी.

नन्द भारद्वाज ने पुरस्कार वापिस लेने का कारण स्पष्ट करते हुए कहा है कि वे लेखकों की हत्याओं पर अकादमी की कार्रवाई से संतुष्ट हैं. अकादमी ने सभी लेखकों को पात्र भेज तो दिया है, लेकिन इन दो प्रतिक्रियाओं के अलावा अन्य कोई भी प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है.

इधर दूसरी तरफ सोशल मीडिया पर नयनतारा सहगल और नन्द भारद्वाज की इस हरक़त से आलोचनात्मक प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं.

‘हिन्दुस्तान’ को नहीं पता कहां है बेल्जियम और ग्लास्गो…

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Afroz Alam Sahil, TwoCircles.net

जमशेदपुर इन दिनों चर्चा में है. वजह इस्पात के ख़ज़ाने नहीं, बल्कि आंतक के ख़ज़ाने हैं. यहां के स्थानीय अख़बारों के मुताबिक़ जमशेदपुर से पकड़े गए कथित ‘अल-क़ायदा’ आतंकियों का बेल्ज़ियम के ग्लास्गो शहर में हुए आतंकी हमलों से है.

सबसे पहले यह ख़बर झारखंड में नंबर –वन होने का दावा करने वाला दैनिक हिन्दुस्तान ने 19 जनवरी को अपने वेबसाइट व अख़बार में काफी प्रमुखता के साथ की है. इसके बाद तो लगभग दर्जनों अख़बारों व वेबसाइटों ने इस ख़बर को बिला सोचे-समझे अपने यहां प्रकाशित की है.

इस ख़बर के मुताबिक़ –‘बेल्जियम के ग्लास्गो में दिसंबर में हुए विस्फोट में भी जमशेदपुर कनेक्शन सामने आ रहा है. उच्चपदस्थ सुत्र बताते हैं कि जिस आसिफ़ को बेंगलुरू में एटीएस ने पिछले दिनों गिरफ़्तार किया था, उसके तार ग्लास्गो विस्फोट से जुड़े हुए हैं. इतना ही नहीं विस्फोट से जुड़े एक अन्य व्यक्ति का रिश्तेदार भी जमशेदपुर में रहता है. विस्फोट के बाद एटीएस की एक टीम ने जमशेदपुर आकर आरोपी के रिश्तेदारों से बातचीत की थी. लेकिन उस वक़्त सिर्फ़ एटीएस को इतना ही पता चल पाया था कि आसिफ़ का जमशेदपुर में दो बार आना हुआ है....’

Hindustan Paper Cutting

हिन्दुस्तान की वेबसाइट पर भी इस ख़बर को आप देख सकते हैं.

Hindustan Paper Cutting

मगर जब इन अख़बारों की पूरी ख़बर पर ग़ौर करेंगे तो इन ख़बरों के लिखने वालों के अधकचरा ज्ञान पर आपको हंसी आएगी और हक़ीक़त खुद-बखुद रूबरू हो जाएंगे.

इस ख़बर में न कहानी सही है और न ही तथ्य... बल्कि यहां सिर्फ़ अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घटनाओं के नामों का सहारा लेकर सनसनी फैलाने का कारोबार ही नज़र आ रहा है.

ज़रा इन अख़बारों व संपादकों व रिपोर्टरों के ज्ञान का अंदाज़ा लगाइए कि इन्हें यह नहीं पता कि बेल्ज़ियम कहां है और ग्लास्गो कहां है? काश! इन्हें पता होता कि ग्लास्गो बेल्ज़ियम में नहीं, स्कॉटलैंड में है.

यह कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती. हक़ीक़त तो यह है कि दिसम्बर 2015 में न ग्लास्गो में कोई ब्लास्ट हुआ है और न ही बेल्ज़ियम में किसी ब्लास्ट होने की कोई ख़बर किसी अख़बार ने लिखी है. ग्लास्गो में 30 जून 2007 में वहां के अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट पर एक ब्लास्ट ज़रूर हुआ था.

दरअसल, जमशेदपुर के अख़बारों की ये एक कहानी मुल्क की तासीर बयान करने के लिए काफी है. आतंक के नाम पर गिरफ़्तारियों का सिलसिला सामने आते के साथ ही बगैर किसी तथ्य के उजूल-जुलूल दावों का प्रकाशित करना भारतीय मीडिया के लिए एक आम बात है.

सच तो यह है कि इन अख़बारों के ज़रिए ऐसी ख़बरों को सनसनीखेज़ बनाने के कारोबार से न जाने इस मुल्क के कितने ही बेगुनाहों को अपनी उम्र का अच्छा-खासा हिस्सा जेल के सलाखों के पीछे काटने पर मजबूर होना पड़ा है. जमशेदपुर में एक बार फिर से यही ‘हादसा’ होता हुआ दिखाई पड़ रहा है.

जब मोदी के सामने लगे नरेन्द्र मोदी मुर्दाबाद! के नारे

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By TwoCircles.net Staff Reporter

लखनऊ:प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बाबासाहब भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय में अपने वक्तव्य की शुरुआत में ही सकपका गए, जब उन्हें सामने मौजूद श्रोताओं की भीड़ में से 'नरेंद्र मोदी गो बैक! नरेंद्र मोदी मुर्दाबाद'के नारे सुनाई दिए. नारे लगाते छात्रों को सुरक्षाकर्मियों और साथी छात्रों ने साथ मिलकर प्रेक्षाग्रह से बाहर का रास्ता दिखाया.

इस घटना से प्रधानमंत्री कुछ शुरुआत में कुछ सकपकाए हुए दिखे, लेकिन बाद में उन्होंने अपना भाषण जारी रखा. नारेबाजों ने यह नारे हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या पर प्रधानमंत्री की चुप्पी और सरकार के रवैये के खिलाफ लगाए.

नरेन्द्र मोदी के खिलाफ नारे लगाते छात्र (साभार - एबीपी न्यूज़)]

वहीँ दूसरी ओर दक्षिणपंथी ताकतों से लड़ने वाले लखनऊ के ही सामाजिक संगठन रिहाई मंच ने नारे लगाने वाले छात्रों को सम्मानित करने की बात कही है.

रिहाई मंच का कहना है कि ‘मोदी गो बैक’ का नारा देकर बाबासाहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के छात्रों ने पूरी दुनिया को यह संदेश दिया है कि तर्कशील समाज किसी किस्म के फासिस्ट निजाम को बर्दास्त नहीं करेगा. बकौल रिहाई मंच, 'रोहित की मौत की वजह जो भी रही हो'सरीखा बयान देकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दलित विरोधी केंद्र सरकार की संलिप्तता को उजागर कर दिया है.

मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी की विवादित प्रेस कांफ्रेंस अभी तक सुर्ख़ियों से नीचे नहीं उतर पायी है. मोदी और उनके मंत्री पहले ही साफ कर चुके हैं कि दलित और मुस्लिम उनकी फासिस्ट राजनीति के परिप्रेक्ष्य में कुचले जाने के लिए ही बने हैं.

रिहाई मंच के कार्यकर्ताओं के मुताबिक़, ‘मोदी गो बैक’ के नारे से तिलमिलाए मोदी असफलताओं से सीखने की बात कह रोहित और उसके न्याय के लिए लड़ने वाले साथियों को नैतिकता की शिक्षा देना बंद करें. मंच ने कहा कि जिस अच्छे-बुरे का भेद सिखाने वाली शिक्षा के बारे में मोदी बात कर रहे थे उसी संविधानसम्मत चेतना से लैस होकर रोहित लड़ रहा था और उसके न होने पर इंसाफ के लिए लड़ते हुए साथियों ने लखनऊ से ‘मोदी गो बैक’ का नारा दिया है.

नैतिकता का पाठ पढ़ाकर, रोहित के दोषियों को बचाने की फ़िराक़ में मोदी

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TwoCircles.net News Desk

लखनऊ : बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में रोहित वेमुला की आत्महत्या के लिए मोदी को जिम्मेदार मानते हुए ‘मोदी गो बैक’ के नारे लगाने वाले अंबेडकरवादी प्रतिरोध की परंपरा का झंडा बुलंद करने वाले छात्रों को लखनऊ की सामाजिक संस्था रिहाई मंच ने सम्मानित करने का ऐलान किया है.

Protest against Modi

रिहाई मंच के प्रवक्ता शाहनवाज़ आलम और राजीव यादव ने जारी बयान में कहा है कि ‘मोदी गो बैक’ का नारा देकर बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के छात्रों ने पूरी दुनिया को यह संदेश दिया है कि तर्कशील समाज इस फासिस्ट निजाम को बर्दास्त नहीं करेगा, चाहे वह इसे रोकने के लिए कितने भी सुरक्षा प्रबंध कर ले.

उन्होंने कहा कि मोदी ने रोहित की मौत की वजह जो भी रही हो कहकर अपनी दलित विरोधी सरकार की संलिप्तता को उजागर कर दिया है कि चाहे कितने भी रोहित मर जाएं मोदी और उनकी सरकार पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला है. मोदी को ‘मां भारती’ के लाल की इतनी ही चिंता थी तो उन्होंने क्यों नहीं उसके दोषियों को सज़ा देने की बात कही. मोदी और उनके मंत्री पहले ही साफ़ कर चुके हैं कि दलित और मुस्लिम उनकी फासिस्ट राजनीति के लिए कुत्ते के पिल्ले से ज्यादा की अहमयित नहीं रखते हैं.

उन्होंने कहा कि ‘मोदी गो बैक’ के नारे से तिलमिलाए मोदी असफलताओं से सीखने की बात कह रोहित और उसके न्याय के लिए लड़ने वाले साथियों को नैतिकता की शिक्षा देना बंद करें.

मंच ने कहा कि जिस अच्छे-बुरे का भेद सिखाने वाली शिक्षा के बारे में मोदी बात कर रहे थे, उसी संविधान सम्मत चेतना से लैश होकर रोहित लड़ रहा था और उसके न होने पर इंसाफ़ के लिए उसके साथी लड़ते हुए लखनऊ से ‘मोदी गो बैक’ का नारा दिया है.


‘मोदी गो बैक’ का नारा लगाने वाले छात्रों को किया गया सम्मानित

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TwoCircles.net News Desk

लखनऊ :बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में ‘मोदी गो बैक’ का नारा लगाना वाले छात्र रामकरन, अमरेन्द्र और सुरेन्द्र को रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने हज़रतगंज स्थित अंबेडकर प्रतिमा स्थल पर शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया.

छात्रों को सम्मानित करते हुए मुहम्मद शुऐब ने कहा कि ‘मोदी गो बैक’ का नारा लगाने वाले दलित छात्रों ने पूरे दलित समाज में आरएसएस और मोदी सरकार के खिलाफ़ बढ़ते आक्रोश को व्यक्त किया है. जिसने आने वाले भविष्य का संकेत दे दिया है कि संघ और भाजपा का इस आंधी में उड़ना तय है.

उन्होंने कहा कि छात्रों की नारेबाजी के बाद मोदी का भाषण के दौरान रुककर रोहित वेमुला की मौत पर अफ़सोस जताना मोदी की पैंतरेबाजी है. जिसे दलित समाज बखूबी समझ रहा है. दुनिया में फासीवाद को छात्रों ने ही हर दौर में चुनौती दी है. ‘मोदी गो बैक’ का नारा लगाने वाले छात्र उसी परम्परा के वारिस हैं.

Rihai Manch Program

इस मौके पर सम्मानित छात्र रामकरन, अमरेन्द्र और सुरेन्द्र कहा कि अगर आप संघ की विचारधारा से सहमत हैं तो आपको प्रोफेसर और वाईस-चांसलर बनाया जाता है. विश्वविद्यालय का जिस तरह भगवाकरण किया जा रहा है उसे तत्काल बंद किया जाए.

‘मोदी गो बैक’ का नारा क्यों लगाया इस बात का जवाब देते हुए कहा कि देश में दलितों के साथ हमेशा अन्याय होता रहा है. अगर हम इस अन्याय के खिलाफ़ आवाज़ नहीं उठाएंगे तो कौन उठाएगा?

उन्होंने बताया कि पुलिस ने विरोध करने के बाद हमको गाड़ी में ले जाकर 30 मिनट तक मारा पीटा. छात्रों ने सवाल किया कि मोदी ने बीबीएयू में रोहित वेमुला के लिए क्यों संवेदना जताई? जबकि उन्हें तो हैदराबाद जाना चाहिए.

रिहाई मंच प्रवक्ता शाहनवाज़ आलम ने कहा कि जिस तरीके से लोकतांत्रिक तरीके से आवाज़ उठाने वाले छात्रों की पुलिस प्रताड़ना की गई और उन्हें उनके गेस्ट हाउस से निकाला गया वह इस बात का सबूत है कि हमारी व्यवस्था रोहित वेमुला की मौत से कोई सबक़ नहीं ले पाई है.

उन्होंने कहा कि जिस तरह से बीबीएयू के वीसी आरसी सोबती ने छात्रों पर कार्यवाई करने की बात कहते हुए कहा कि जिन लड़कों ने पीएम के खिलाफ़ नारे लगाए वे दागी प्रकृति के हैं, उनके खिलाफ़ केस दर्ज है, यह कहकर उन्होंने साबित किया है कि जिस विश्वविद्यालय के कुलपति लोकतांत्रिक मूल्यों को नहीं मानते, उस विश्वविद्यालय के हालात क्या होंगे.

उन्होंने सवाल किया कि जब कुलपति छात्रों पर यह आरोप लगा रहे हैं कि वे विश्वविद्यालय में दलित मूवमेंट चला रहे थे तो ऐसे में उन्हें अंबेडकर विश्वविद्यालय का कुलपति बने रहने का कोई हक़ नहीं है, क्योंकि इन छात्रों ने अम्बेडकर के विचारों से ही अन्याय का विरोध करने की प्रेरणा ली है.

रिहाई मंच नेता राजीव यादव ने कहा कि अगर ‘मोदी गो बैक’ का नारा लगाने वाले छात्रों का करियर ख़राब करने की कोई साजिश की गई तो उसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. अब कोई रोहित आत्महत्या के लिए मजबूर नहीं होगा. यह नागरिक अभिनंदन इसी बात का प्रतीक है कि भगवा आतंक के खिलाफ़ अब समाज लड़ने को तैयार हो रहा है. उन्होंने छात्रों का मेडल और डिग्री ससम्मान देने की मांग की.

‘मोदी गो बैक’ का नारा लगाने वाले छात्रों के नागरिक अभिनंदन में मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित संदीप पाण्डे, पीयूसीएल महासचिव वंदना मिश्रा, वरिष्ठ साहित्यकार भगवान स्वरुप कटियार, सीपीआई एमएल के राजीव, डा0 एम.पी. अहिरवार, सीमा चन्द्रा, दिवाकर, नदीम, आरिफ़ मासूमी, जुबैर जौनपुरी, सैयद मोईद, पीसी कुरील, खालिद कुरैशी, फहीम सिद्दीकी, अनिल यादव, केके वत्स, एस के पंजम, अजीजुल हसन, प्रदीप कपूर, अजय शर्मा, आशीष अवस्थी आदि उपस्थित थे. कार्यक्रम का संचालन लक्ष्मण प्रसाद ने किया.

जेलों में 64 फ़ीसदी आबादी दलित व पिछड़ों की, अल्पसंख्यकों की संख्या भी बढ़ी है

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Afroz Alam Sahil, TwoCircles.net

देश में जहां दलितों व पिछड़ों के ख़िलाफ़ अपराध में इज़ाफ़ा हुआ है, वहीं भारत के जेलों में भी इनकी संख्या काफी अधिक है.

नेशनल क्राईम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ें बताते हैं कि जेल की कुल आबादी का 64 फीसदी आबादी एसटी, एससी व ओबीसी हैं.

एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक़ साल 2014 में भारत विभिन्न जेलों में कुल सज़ायाफ़्ता क़ैदियों की संख्या 131517 है, उनमें से 33.4 फीसदी ओबीसी, 21.3 फीसदी एससी और 11.9 फीसदी एसटी क़ैदी हैं. यानी कुल 66.6 फीसद क़ैदी एसटी, एससी व ओबीसी समुदाय से हैं.

यदि अंडरट्रायल क़ैदियों की बात करें तो एनसीआरबी के आंकड़ें बताते हैं कि भारत के विभिन्न जेलों में साल 2014 में कुल 282879 क़ैदी विचाराधीन हैं. इनमें से 31.3 फीसदी ओबीसी, 20.2 फीसदी एससी और 11.2 फीसदी एसटी क़ैदी हैं. यानी कुल 62.7 फीसद क़ैदी एसटी, एससी व ओबीसी समुदाय से हैं.

वहीं अगर डिटेन किए गए क़ैदियों की बात की जाए तो भारत के विभिन्न जेलों में साल 2014 में कुल 3237 क़ैदी डिटेन किए गए हैं. उनमें से 38.1 फीसदी ओबीसी, 18.8 फीसदी एससी और 5.1 फीसदी एसटी क़ैदी हैं. यानी कुल 62 फीसद क़ैदी एसटी, एससी व ओबीसी समुदाय से हैं.

मानवाधिकार कार्यकर्ता हिमांशु कुमार कहते हैं कि –‘ये जातियां हिन्दुस्तान में पिछड़ी व गरीब हैं. इनके साथ सरकारें सामाजिक व आर्थिक न्याय नहीं कर रही हैं. ये ही सबसे अधिक अन्याय के शिकार हैं. जो अपने हक़ की लड़ाई लड़ रहे हैं, वही जेलों में हैं.’

अब अगर बात इनके साथ होने वाले अपराधों की करें तो एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक साल 2014 में दलितों के ख़िलाफ़ 47064 अपराध हुए. यानी औसतन हर घंटे दलितों के ख़िलाफ़ पांच से ज़्यादा (5.3) के साथ अपराध हुए हैं.

आंकड़े बताते हैं कि साल 2014 में 744 दलितों के हत्या के मामले दर्ज हुए हैं, जबकि 2013 में यह आंकड़ा 676 था. वहीं 2252 मामले बलात्कार के संबंध में दर्ज हुए हैं, जबकि 2013 में यह आंकड़ा 2073 था. इसके अलावा 101 मामले दलितों के मानवाधिकार उल्लंघन के संबंध में दर्ज हुए हैं, जबकि 2013 में यह आंकड़ा सिर्फ 62 था. यानी साल 2014 में दलितों के ख़िलाफ़ होने वाले अपराधों में इसके पिछले साल के मुक़ाबले 19 फ़ीसद का इज़ाफ़ा हुआ है.

ऐसे में यदि अपराधों की गंभीरता को देखें तो इस दौरान हर दिन 2 दलितों की हत्या हुई और हर दिन औसतन 6 दलित महिलाएं (6.17) बलात्कार की शिकार हुईं हैं.

देश में अल्पसंख्यकों का हाल भी कुछ ऐसा ही है. आंकड़े बताते हैं कि इनके ऊपर भी होने वाले अत्याचार में इज़ाफ़ा हुआ है.

नेशनल क्राईम रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ें कहते हैं कि 2013 में देश के कुल कैदियों में 28.5 फीसदी अल्पसंख्यक क़ैदी थे, वहीं 2014 में 34.65 फीसदी अल्पसंख्यक कैदी जेलों में बंद हैं. जबकि देश की आबादी में इनकी हिस्सेदारी मात्र 18.25 फीसद है.

जेलों में बंद धार्मिक अल्पसंख्यकों की बात की जाए तो 2014 के अंत तक 26.4 फीसदी मुसलमान जेलों में बंद हैं. जबकि 2011 के जनगणना के अनुसार देश की आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी 14.23 फीसदी है.

यही कहानी दूसरे अल्पसंख्यकों के साथ भी है. सिक्ख समुदाय के 3.06 फीसदी लोग जेलों में बंद हैं, जबकि आबादी के लिहाज़ से इनकी जनसंख्या देश में मात्र 1.72 फीसद है. ईसाई समुदाय के 5.95 फीसद लोग जेलों में बंद हैं, जबकि हिन्दुस्तान की आबादी में उनका योगदान 2.3 फीसदी है.

आंकड़े यह भी बताते हैं कि 16.4 फीसदी मुसलमान, 5.5 फीसदी सिक्ख और 3.9 फीसदी ईसाई कैदियों पर ही आरोप तय हो पाया है. बाकी 21.1 फीसदी मुसलमान, 3.6 फीसदी सिक्ख और 3.9 फीसदी ईसाई कैदी फिलहाल अंडर ट्रायल हैं. वहीं 20.3 फीसदी मुसलमान व 15.6 फीसदी ईसाईयों को डिटेंन किया गया है.

मानवाधिकार कार्यकर्ता मनीषा सेठी कहती हैं कि –‘देश का क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम ही गरीबों व अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ है. पुलिस व जांच एजेंसियां निष्पक्ष नहीं हैं. आप देखेंगे कि मुसलमान 20-20 साल जेलों में रह रहे हैं और उसके बाद अदालत उन्हें निर्दोष बताती है. हम सबको इस पर ज़रूर सोचना चाहिए.’

स्पष्ट रहे कि एनसीआरबी ने साल 2015 के आंकड़े अभी जारी नहीं किए हैं और इस साल के जून-जुलाई तक इन आंकड़ों के आने की उम्मीद है.

जीवनगढ़: जहां दो विधवा बहनें ‘डेथ-सर्टीफिकेट’ के लिए तरस रही हैं...

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Asma Ansari for TwoCircles.net

अलीगढ़ शहर का एक छोर… लेकिन यहां मामला शहर से बिल्कुल उल्टा है. पतली गलियां... बजबजाती नालियां... फटे-पुराने झुग्गी-झोंपड़ियां... ग़ुरबत... मुसीबतों का पहाड़... लोगों की ज़िन्दगी बदहाल... लेकिन इलाक़े का नाम –जीवनगढ़...

जीवनगढ़ का यह इलाक़ा आज भी विकास नाम की चीज़ से कोसो दूर है. बदहाली का आलम यह है कि यहां रहने वाले लोगों को वो मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिल पाती हैं, जिनका वादा सरकार यहां के चुनाव के समय लोगों का वोट लेने के लिए करती हैं. बल्कि सच तो यह है कि जीवनगढ़ में लोगों की ज़िन्दगी नरक से भी बदतर है.

आप सोच रहे होंगे कि मैं इन गैर-ज़रुरी बातों का ज़िक्र यहां क्यों कर रही हूं? यक़ीक़न किसी की भी दिलचस्पी उस ‘जीवनगढ़’ में क्यों होगा, जहां लोग हर पल घूट-घूट कर मर रहे हों. लेकिन फिर भी मैं सोचती हूं कि आपको जीवनगढ़ से ज़रूर रूबरू कराना चाहिए, ताकि देश में होने वाले विकास की सच्चाई को समझने में आपको आसानी हो. बल्कि इस जीवनगढ़ का नब्ज़ टटोल कर पूरे इलाक़े की सेहत का अंदाज़ा लगा सकते हैं कि ज़मीनी सतह पर लाचार और बेसहारा लोगों के लिए सरकारी योजनाओं और उसके पैरोकारों की क्या मंशा है?

जीवनगढ़ की गली नंबर -5... सबसे आखिर में एक खंडहरनुमा घर... छत पूरी तरह से गायब... यह घर है मरहूम मुन्ना का... जिनका 23 अप्रैल 2009 को इन्तेक़ाल हो चुका है. अब इसी घर में उनकी दो बदनसीब बहने रहती हैं. दोनों दिल की मरीज़ हैं और उनका लगातार इलाज़ चल रहा है.

Jeevangarh

दरअसल, बड़ी बहन मुन्नी के पति नासिर अली भी लंबे समय से गंभीर रूप से बीमार रहे. इलाज के लिए पैसे की दरकार थी. लिहाज़ा जीवनगढ़ के 7 नंबर गली में जो उनका घर था, न चाहते हुए भी बिक गया. लेकिन सारे उपाय बेअसर रहे. नासिर अली इस दुनिया को छोड़कर चल बसे.

दूसरी बहन हसीना बेगम की भी जिन्दगी का सफ़र अपनी बहन से जुदा नहीं है. दरअसल, हसीना बेगम के पति ईदे खां ने दूसरी शादी की थी. हसीना से कोई औलाद नहीं हुई तो हसीना ने एक बच्ची को गोद ले लिया. जिसका नाम इमराना है. 17 साल की इमराना भी बड़ी मुश्किल से 5वीं क्लास तक ही पढ़ पाई. क्योंकि ईदे खां भी 2006 में इस दुनिया को छोड़ चलें.

अब इमराना के जिम्मे घर का सारा दारोमदार आ पड़ा है. किसी तरह थोड़ा-बहुत सिलाई, केयर टेकर या घरों में हाड़-तोड़ मेहनत के बाद 1500 रूपये महीने का इंतज़ाम कर पाती है. इमराना की मां हसीना बेगम काम नहीं कर पाती हैं, क्योंकि वो दिल की मरीज़ हैं और उनका इलाज लगातार चल रहा है.

लेकिन ज़रा सोचिए कि मौजूदा महंगाई के दौर में इमाराना अपना परिवार कितने दिनों तक चला पाएगी? महंगाई का दंश झेलते हुए यह परिवार अब पूरी तरह से बेदम चुका है. सरकार की कोई भी कल्याणकारी स्कीम इन खंडहरनुमा घर के चौखट तक नहीं पहुंच पाई है.

इमराना कहती है कि –‘मैंने हर विधायक, नेता सबके घर का चक्कर काट लिया, पर किसी ने मेरी एक न सुनी.’

हद तो यह है कि दोनों विधवा बहनें अपने अपने शौहर के ‘डेथ-सर्टीफिकेट’ के लिए तरस रही हैं. सरकारी दफ्तरों का चक्कर काटते-काटते अब थक चुकी हैं. लेकिन एड़ियां गिसने के बाद भी आज तक न सर्टिफिकेट बना और न ही उनका कोई पुरसाहाल है. ऐसे में यह आज तक विधवा पेंशन से भी महरूम हैं.

इमराना कहती है कि –‘एक तरफ़ तो देश में गरीबों के लिए न जाने कितने स्कीम चल रहे हैं, लेकिन सच यह है कि गरीबों को शायद इसका लाभ मिल पा रहा है. मेरी मां विधवा होकर भी विधवा पेंशन से महरूम है. खैर, अल्लाह ही बेहतर जानता है कि हमारे ‘अच्छे-दिन’ कब आएंगे.’

(लेखिक असमा अंसारी रिक्शा चालक की इकलौती बेटी हैं. मां–बाप का लगातार इलाज के बावजूद असमा ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पीजी तक की पढाई की. हमेशा सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय रहीं. इन दिनों सामाजिक संस्था ‘मिसाल’ से जुड़ी हुई हैं.)

26 जनवरी के आस-पास खुफिया और सुरक्षा एजेंसियां करा सकती हैं धमाके –रिहाई मंच

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TwoCircles.net News Desk

लखनऊ :देश में अल-क़ायदा के नाम पर गिरफ़्तारी के बाद अब आईएसआईएस के नाम पर गिरफ़्तारी जारी है. अख़बारों में प्रकाशित ख़बरों के मुताबिक़ पिछले कुछ दिनों में 6 राज्यों से अब तक 15 युवकों की गिरफ्तारी हो चुकी है.

लेकिन उत्तरप्रदेश की सामाजिक संस्था रिहाई मंच ने आतंकी संगठन आईएस से कथित तौर पर जुड़े लोगों की उत्तरप्रदेश से गिरफ्तारी को खुफिया एजेंसियों द्वारा गणतंत्र दिवस के अवसर पर मुसलमानों की छवि बिगाड़ने की साजिश का हिस्सा बताया है.

संगठन ने आशंका व्यक्त की है कि खुफिया और सुरक्षा एजेंसियां मोदी सरकार के खिलाफ़ बढ़ रहे चौतरफ़ा आक्रोश से ध्यान हटाने के लिए 26 जनवरी के आस-पास देश में विस्फोट कराकर तबाही मचा सकती हैं.

रिहाई मंच ने सपा सरकार को भी चेतावनी दी है कि यदि आतंकवाद के नाम पर बेगुनाहों की गिरफ्तारियां नहीं रुकीं तो उसे बड़े आंदोलन का सामना करना पड़ेगा.

आईएसआईएस के नाम पर पिछले दिनों 6 राज्यों से 15 युवकों की गिरफ्तारी पर रिहाई मंच के अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि आईएसआईएस के नाम पर भाजपा सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों के ज़रिए मुस्लिमों का उत्पीड़न कर रही है.

उन्होंने कहा कि ठीक इसी तरह गुजरात में मोदी और खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों ने आतंकी संगठनों का हौव्वा खड़ाकर मुस्लिमों का फर्जी एनकाउंटर किया, ठीक वही काम अब आईएसआईएस के नाम पर किया जा रहा है.

रिहाई मंच द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में मंच के अध्यक्ष एडवोकेट मुहम्मद शुऐब ने कहा है कि मोदी के लखनऊ दौरे के दिन जिस तरह लखनऊ से विडियो-फोटोग्राफी का काम करने वाले और नाई के बेटे स्नातक तृतीय वर्ष के छात्र मो. अलीम को आईएस का आतंकी बताकर पकड़ा गया, वह साबित करता है कि मोदी सरकार अपने खिलाफ़ बढ़ रहे गुस्से को भटकाने के लिए अब गुजरात की तर्ज पर आतंकवाद के नाम पर बेगुनाहों के फर्जी मुठभेड़ और गिरफ्तारियों की पुरानी आपराधिक रणनीति पर उतर आई है.

मुहम्मद शुऐब ने कहा कि इस मामले में पुलिस के हवाले से मीडिया द्वारा यह लगातार बताया जा रहा है कि अभी लखनऊ में दो और आईएस आतंकी छुपे हुए हैं, जो कि खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों द्वारा अपनी कहानी को और मार्केटेबल बनाने की कोशिश है.

उन्होंने कहा कि यह सब इसलिए किया जा रहा है ताकि 26 जनवरी के आस-पास पहले से अपने पास गैर कानूनी हिरासत में मौजूद किसी बेगुनाह मुस्लिम को या तो फर्जी एनकाउंटर में मारा जा सके या विस्फोटकों के साथ गिरफ्तार दिखाया जा सके.

उन्होंने सवाल उठाया कि किसी नए बेगुनाह मुस्लिम युवक को आतंकी बताकर फंसाने से पहले एटीएस को यह बताना चाहिए कि पिछले दिनों अदालत से बरी हुए चार बंगाली मुस्लिम युवकों के पास से उसने जो एके-47, चार किलो आरडीएक्स और दर्जनों की संख्या में डेटोनेटर बरामद कराया था, वह उसे संघ परिवार ने दिया था या खुफिया विभाग ने?

उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और संघ परिवार के क़रीबी अजित डोभाल इस समय देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी चुनौती हैं. जिन्होंने लोकसभा चुनाव से पहले विवेकानंद फाउंडेशन, संघ और खुफिया विभाग के अपने नेटवर्क के ज़रिए मोदी की रैलियों के दौरान विस्फोट कराकर सामान्य हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण भाजपा की तरफ़ कराया था. जो अब एनएसए की हैसियत से यही सब ज्यादा खुलकर और आक्रामक तरीके से कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट की देख-रेख में आतंकवाद के नाम पर हुई घटनाओं और फर्जी गिरफ्तारियों की जांच कराई जाए तो उसमें डोभाल जैसे तमाम संघी खुफिया अधिकारियों की भूमिका उजागर हो सकती है.

प्रेस विज्ञप्ति में रिहाई मंच नेता राजीव यादव ने कहा है कि अभी पिछले दिनों ही रिहाई मंच के प्रयास से हूजी के आतंकी बताकर पकड़े गए चार बंगाली युवक साढ़े आठ साल जेल में बिताने के बाद निर्दोष साबित हो कर छूटे हैं. लेकिन खुफिया और सुरक्षा एजेंसियां इनसे सबक सीखने के बजाए और भी फर्जी गिरफ्तारियां करके अपनी विश्वसनियता ख़त्म कर रही हैं.

उन्होंने कहा कि प्रदेश से हुई गिरफ्तारियों में प्रदेश एटीएस के भी शामिल रहने ने साबित कर दिया है कि बेगुनाहों के फंसाए जाने के इस मुस्लिम विरोधी अभियान में सपा सरकार भी शामिल है. जिसने अपने विधानसभा चुनाव में आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों को छोड़ने का झूठा वादा किया था.

उन्होंने कहा कि आतंकवाद से लड़ने के नाम पर बेगुनाहों को फंसाने की योजना पर सपा और भाजपा मिलकर काम कर रही हैं, इसीलिए एक तरफ एटीएस गिरफ्तार युवकों पर मुजफ्फ़रनगर में हुए मुसलमानों के जनसंहार का बदला लेने की योजना बनाने का झूठा आरोप लगा रही है तो दूसरी तरफ़ सपा सरकार मुज़फ्फ़रनगर जनसंहार की जांच करने वाली सहाय कमीशन की रिपोर्ट पर अमल न करके दोषियों को बचा रही है.

राजीव यादव ने मुसलमानों से अपील की है कि 26 जनवरी के आस-पास अकेले न घूमें, क्योंकि खुफिया और सुरक्षा एजेंसियां सपा और भाजपा के एजेंडे को बढ़ाने के लिए उन्हें आईएस का आतंकी बताकर पकड़ सकती हैं.

अमरीकी संस्था ने उत्तर भारत के 1200 परिवारों को गर्म कपड़े और कम्बल बांटे

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By TCN News

बिहार/ झारखंड/ उत्तर प्रदेश:सर्दियों का मौसम आने के बाद और तापमान में अचानक भारी गिरावट आने के बाद अमरीकी संस्था इन्डियन मुस्लिम रिलीफ़ एंड चैरीटीज़ यानी IMRC ने उत्तर भारत के भिन्न-भिन्न राज्यों में कम्बल और गर्म कपड़ों के वितरण की मुहिम शुरू की है.

इस कठिन मौसम में बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के 1200 परिवारों को कम्बल और 300 परिवारों को गर्म कपड़े IMRC ने बांटे हैं.

झारखंड के चतरा व पलामू और बिहार के सीमावर्ती नगर गया में लगभग 600 परिवारों को कम्बल बांटे गए हैं. वहीँ 300 ज़रूरतमंद परिवारों को स्वेटर, जैकेट और शॉल जैसे गर्म कपड़े बांटे गए हैं.

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IMRC के झारखंड संस्करण के कार्यकर्ता वाहिद नदवी कहते हैं, 'हमने चतरा के प्रतापपुर ब्लॉक, पलामू के मनातू ब्लॉक और गया के इमामगंज और डुमरिया में लगभग 600 परिवारों को सर्दियों की ज़रूरतें मुहैया कराई हैं. इन सभी जिलों में लगभग 150 गांव ऐसे हैं, जहां हमने ज़रूरतमंदों के लिए कार्य किया है.'

बिहार में संस्था की यह मुहिम अभी भी अपना रास्ता तय कर रही है और अब तक तकरीबन 200 परिवारों को यह सुविधाएं मुहैया करा दी गयी हैं.

बिहार IMRC के कार्यकर्ता अफज़ल हुसैन कहते हैं, 'हमने हाजीपुर और सीवान के गांवों में वितरण का कार्य संपन्न कर लिया है. लेकिन अभी भी 10 गांव ऐसे हैं जिनमें इस मुहिम को अंजाम दिया जाना बाक़ी है.'

उत्तर प्रदेश के फैजाबाद के करीब 100 परिवारों में IMRC ने कम्बल वितरण किए हैं. नगर के ही एक मदरसे में भी कम्बल बांटे गए हैं. उत्तर प्रदेश IMRC के मेराज कहते हैं, 'फैजाबाद और अयोध्या के 100 परिवार और एक मदरसा हमारी संस्था की इस मुहिम से लाभान्वित हुए हैं.'

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उत्तर प्रदेश के नज़ीबाबाद के 250 परिवारों में कम्बल और गर्म कपड़े बांटने का कार्य अभी जारी है. साथ ही साथ सहारनपुर में गर्म कपड़े बांटने की इस मुहिम से करीब 1200 परिवार सर्द मौसम में अपनी रक्षा कर पाएंगे.

संस्था के निदेशक मंज़ूर घोरी कहते हैं, 'हम हर साल सर्दियों के कठोर मौसम में ज़रूरतमंदों की मदद करते हैं. हमारा लक्ष्य है कि समाज के गरीब और ज़रूरतमंद तबके तक हमारी मदद पहुंचे. हमारा प्रयास रहा है कि हम समाज के उस हिस्से तक ज़रूर पहुंचे, जो मुख्यधारा से अलग-थलग कर दिए गए हैं.'

IMRC की इस मुहिम में कोई भी बमुश्किल 10 डॉलर यानी लगभग 600 रूपए देकर जुड़ सकता है. इसके लिए मुहिम के पते http://www.imrcusa.org/winter-appeal/पर जाकर ज़रूरतमंदों की मदद के लिए हाथ बढ़ाए जा सकते हैं.

साल 2014 की सर्दियों में IMRC ने तकरीबन 7000 लोगों को कम्बल और गर्म कपड़े बांटे थे. इस दौरान देश के सात राज्यों हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, झारखंड और बिहार में IMRC ने इस मुहिम को अंजाम दिया था.

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