By TwoCircles.net staff reporter,
जयपुर: भारतीय गणराज्य के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने जयपुर में आयोजित ‘काउंटर टेररिज़्म कॉन्फ्रेंस’ के उद्घाटन सत्र में हिस्सा लिया. इस मौके पर उन्होंने भारतीय मुसलमानों और आतंकवाद के मद्देनज़र बहुत सारी बातें कहीं.
राजनाथ ने कहा, ‘भारतीय मुसलमान देशभक्त हैं और इसीलिए वे किसी चरमपंथी विचारधारा के बहकावे में नहीं आए हैं.’ राजनाथ सिंह ने यह कहा कि चरमपंथ भारतीय मुसलमानों की प्रकृति नहीं है. चरमपंथ की परिभाषाओं का अपने ही ढंग से आंकलन करते हुए राजनाथ सिंह ने कहा कि भारतीय मुस्लिम युवाओं को आईएसआईएस बहकाने में इसलिए असफल रहा क्योंकि इन युवाओं की प्रकृति चरमपंथ की ही है नहीं.
इसके बाद बात पाकिस्तान तक पहुंच गयी. राजनाथ सिंह ने कहा कि पड़ोसी देश आतंकवाद को अपने हथियार के रूप में इस्तेमाल करना बंद करे. ‘भारत में आतंकवादी गतिविधियों का सबसे बड़ा स्रोत सीमापार स्थित है. हमारे पड़ोसी देश आतंकवाद की इतनी बड़ी कीमत चुकाने के बाद भी यह क्यों नहीं समझ पा रहे हैं कि अच्छे या बुरे आतंकवाद जैसा कुछ भी नहीं होता है’, ऐसा कहा राजनाथ सिंह ने.
उन्होंने आगे कहा, ‘यदि पाकिस्तानी सेना और आईएसआई आतंकवादी संगठनों को समर्थन देना बंद कर दें तो मैं यह बिना किसी हिचकिचाहट के कह सकता हूं कि दक्षिण एशिया की सुरक्षा स्थिति में व्यापक सुधार होगा’
इन सब संजीदा व अर्थपरक बातों के बावजूद वह एक सबसे ज़रूरी बात का उल्लेख करना गृहमंत्री भूल गए, और वह बात थी धर्माधारित आतंकवाद की विवेचना. विश्व के जिन भी देशों में आतंकवाद की आलोचना होती है, उनमें इस्लाम और उसके बाशिंदों का नाम सबसे ऊपर पाया जाता है. लेकिन मई 2014 के बाद से भारत में जिस तरीके से हिन्दू चरमपंथ उग्र हुआ है, वह भी क़ाबिल-ए-गौर है.
हाल की ही चर्च में मूर्ति रख देने की घटनाएं और सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा गिरजों और मस्जिदों को केवल ईंट-पत्थर से बना भवन साबित करने के बयान को गिना जाए तो आतंकवाद-रोधी बहसों का कैनन और बड़ा हो जाता है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद् और अन्य हिन्दू कट्टरपंथी संगठनों से केन्द्र सरकार की करीबी को नकारा नहीं जा सकता है, लेकिन मुल्क का निजाम होने की नैतिक जिम्मेदारी के तहत आप आतंकवाद को अपने ही अर्थों में परिभाषित नहीं कर सकते.
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