By मोहम्मद इस्माईल खान, TwoCircles.net,
महाराष्ट्र इन दिनों कई किस्म के घमासानों का घर बना हुआ है. इस क्रम में नया बवाल हुआ है राज्य सरकार की उर्दू में प्रकाशित एक किताब को लेकर. किताब में कुछेक मराठी शिक्षाविदों के स्थान पर मुस्लिम शिक्षाविदों का नाम शामिल किए जाने से राज्य में नए विवाद ने जन्म ले लिया है. कट्टर मराठा समुदाय के लिए यह घटना उनकी अस्मित पर चोट सरीखा है. इसके उलट उर्दू विभाग और अध्यापकों ने इस घटना को एक समावेशी क़दम करार दिया है.
राज्य शिक्षा मंत्रालय के अधीन स्थित निकाय बाल भारती राज्य पाठ्य-पुस्तक ब्यूरो द्वारा प्रकाशित पर्यावरण विज्ञान की पुस्तक ‘माहौल का मुतला’ में समाजशास्त्र की मूलभूत जानकारी भी दी गयी है. पाठ्यपुस्तक में निहित एक अध्याय में चुनिंदा शिक्षाविदों और उनके द्वारा चलाए गए तमाम सुधार कार्यक्रमों के बारे में जानकारी दी गयी है. इस ब्यूरो में प्राथमिक कक्षाओं के उर्दू विभाग में कार्य करने वाले एकमात्र व्यक्ति खान नावेद उल हक़ ने इस किताब के ड्राफ्ट पर गौर किया कि उक्त अध्याय में दिए गए तमाम शिक्षाविदों में एक भी मुस्लिम शामिल नहीं था. इसके बाद उन्होंने मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, ज़ाकिर हुसैन, बदरुद्दीन तयाबजी, सर सैयद अहमद खां, फातिमा शेख, हकीम अब्दुल हमीद के नाम इस किताब में प्रविष्ट करवाने का निर्णय लिया. ज्ञात हो कि उक्त सभी नामों ने शिक्षा के क्षेत्र में अपना-अपना अप्रतिम योगदान दिया है.
पाठ्यपुस्तक का मुखपृष्ठ
इन नामों को प्रविष्ट करने के लिए नावेदउल हक़ ने सयाजीराव गायकवाड़, शाहो महाराज, पंडिता रामबाई, करमवीर बहुराव पाटिल और पंजाबराव देशमुख के नामों को हटाने का निर्णय लिया. किसी तरीके से महाराष्ट्र राज्य तकनीकी शिक्षा बोर्ड और मराठी अखबार लोकसत्ता की नज़र इस कार्यकलाप पर गयी. इसी के साथ लोकसत्ता ने १९ जुलाई को इस खबर को प्रमुखता व मराठी अस्मिता पर साम्प्रदायिकता की आंच के साथ प्रकाशित किया, जिसके बाद मामले को मराठा संगठनों ने आड़े हाथों लेने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
TCN से बातचीत में नावेदउल हक़ ने कहा कि ऐसा करने के पीछे उनका मकसद किसी किस्म का साम्प्रदायिक तनाव बढ़ाना नहीं था, वे बस मुस्लिम समुदाय के बच्चों को उनके समुदाय के लोगों के योगदान से परिचित कराना चाहते थे. वे कहते हैं, ‘बच्चे प्राथमिक शिक्षा के दौरान ही सबसे बुनियादी सबक लेते हैं. यदि उन्हें अभी इन चीज़ों के बारे में नहीं बताया गया तो आगे भी उन्हें कोई जानकारी नहीं हासिल होगी.’ यह जानते हुए कि नावेदउल को उनका पद ऐसा परिवर्तन करने का अधिकार नहीं देता और उन्हें कड़ी कार्यवाही का शिकार होना पड़ सकता है, वे कहते हैं, ‘मैंने एक कड़ा कदम उठाया. मैं अपनी जानकारी में अपने समुदाय को गलत शिक्षा नहीं प्रसारित होने दे सकता. लेकिन मैं शायद असफल रहा.’ नावेदउल के इस कदम के बाद भी किसी भी मुस्लिम नेता ने कोई पहल नहीं की. शिक्षा मंत्रालय के इतिहास प्रभाग की कार्यप्रणाली को देखते हुए स्पष्ट हो जाता है कि वे इन सभी किताबों को वापिस लेना और पुनः संशोधन – यानी मुस्लिम शिक्षाविदों के चित्र हटाकर – छापना चाहते हैं.
मुस्लिम शिक्षाविदों की तस्वीरों के साथ संशोधित संस्करण.
अखिल राज्य उर्दू शिक्षक संगठन, महाराष्ट्र के अध्यक्ष आसिफ़ इकबाल कहते हैं, ‘इन जानकारियों और चित्रों को काफी पहले ही शामिल कर देना चाहिए था. यह क़दम सराहनीय है. इन शिक्षाविदों को हिन्दी और मराठी पाठ्यपुस्तकों में भी शामिल किया जाना चाहिए और कोई सवाल ही नहीं है कि इन्हें उर्दू पाठ्यपुस्तकों से हटाया जाए.’
उर्दू कमेटी के अफ़सर नावेदउल हक़ ने TCN से बातचीत में खुलासा किया कि अकादमिक निदेशक और सचिव कोई बीच का रास्ता निकालने की तैयारी में थे. उनसे और इतिहास विभाग से मुलाक़ात के बाद दोनों ने कहा कि इन चित्रों को तब हटाना गलत है, जब क़िताबें लगभग छप चुकी हैं. नावेदउल के अनुसार विभाग अपनी योजनानुसार पाठ्यपुस्तकों को इस शैक्षिक सत्र में रहने देना चाहता था, जबकि अगले साल से सिर्फ़ कुछ मुस्लिम शिक्षाविदों के चित्र हटाकर मराठी और मुस्लिम शिक्षाविदों में साम्य बैठाने का प्रयास करता.
लोकसत्ता में प्रकाशित खबर
नावेदउल हक़ ने आरोप लगाया है कि इतिहास समिति मराठी मीडिया और नौकरशाहों के साथ लॉबिंग के परिणामस्वरूप उर्दू किताबों को वापिस लाकर पुनः प्रकाशित करने की तैयारी में है. महाराष्ट्र राज्य उर्दू शिक्षक संगठन ने कहा कि यदि वे बाल भारती पाठ्यपुस्तक ब्यूरो को ऐसा करने से रोकने में असफल रहे तो शिक्षा की सभी इकाइयों में सेकुलरिज़्म की समावेशी संस्कृति का लोप होना तय है.
(अनुवाद: सिद्धान्त मोहन)
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