By TCN News,
भारत की नयी-नयी चुनी गयी और विदेशी सम्बन्धों को प्रगाढ़ करने में जुटी भारत सरकार को भान भी न था कि भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का अमरीका में स्वागत एक अदालती समन के साथ होगा. प्रधानमंत्री द्वारा अमरीका की मिट्टी पर पांव रखने के पहले ही एक अमरीकी अदालत ने 2002 में हुए गुजरात दंगों में कथित संलिप्तता के आरोप में नरेन्द्र मोदी को समन जारी कर दिया है.
यह घटना इसलिए और भी विचारणीय है कि गुजरात में नरसंहार के आरोप में नरेन्द्र मोदी के वीज़ा पर अमरीकी सरकार ने पिछले नौ सालों से प्रतिबन्ध लगाया हुआ था, और उस प्रतिबन्ध के हटने और प्रधानमंत्री की पांच-दिनी अमरीका यात्रा के दरम्यान ही यह समन जारी किया गया.
अमेरिका की एक संघीय अदालत ने मोदी के खिलाफ यह समन मानवाधिकार संगठन ‘अमेरिकन जस्टिस सेंटर’ (एजेसी) की याचिका पर 2002 में हुए गुजरात दंगों में उनकी कथित भूमिका के लिए जारी किया है. इस मानवाधिकार संगठन की पहचान बरास्ते सन् 2002 में हुए भयावह गुजरात नरसंहार के दो उत्तरजीवियों के की गयी है. कोर्ट में दर्ज़ 28 पृष्ठों की शिक़ायत में मुआवज़े के साथ दंडात्मक कार्रवाई की मांग की गई है. इसमें मोदी के ऊपर मानवता के खिलाफ़ अपराध, हत्याृएं, टॉर्चर और दंगा पीड़ितों पर मानसिक और शारीरिक यंत्रणा पहुंचाने का आरोप लगाया गया है.
इस समन के जारी होने के 21 दिनों के भीतर एलियन टॉर्ट क्लेम्स एक्ट(एटीसीए) और टॉर्चर विक्टिम प्रोटेक्शन एक्ट(टीवीपीए) के तहत नरेंद्र मोदी को जवाब देना ज़रूरी है. अदालत ने यह भी कहा है कि यदि मोदी तयशुदा समय के भीतर इसका जवाब नहीं देते हैं तो फिर उनके खिलाफ़ ‘डिफॉल्टप जजमेंट’ का इस्ते माल किया जा सकता है.
गौरतलब है कि इस तरह के जजमेंट का प्रयोग तब होता है, जब किसी मामले में कोई एक पक्ष तय वक्त के भीतर जवाब नहीं दे पाता. ज़्यादातर मामलों में जब प्रतिवादी समन का जवाब देने में नाकाम रहता है तो फैसला वादी के पक्ष में जाता है.
अंग्रेज़ी अखबार ‘द हिन्दू’ को भेजे गए मेल में याचिका दायर करने वाले संगठन के वकील गुरपतवंत सिंह ने बताया कि वादी की ओर से जवाब नहीं मिलने पर ‘डिफॉल्ट जजमेंट’ अमेरिकी कानून के तहत फेडरल अदालत साल 2002 की हत्याओं को मुसलमानों का नरसंहार करार दे सकती है. इसके तहत यह संभव है कि दंगा पीड़ितों के पक्ष में आर्थिक और दंडात्मक मुआवज़े के फैसले की घोषणा अदालत करे.