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इस हफ़्ते आप सभी को दिया जाता है ‘प्रतिबंध’

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By सिद्धान्त मोहन, TwoCircles.net,

नई दिल्ली: यह बात आश्चर्यजनक ही होगी कि भारतीय नागरिकों के लिए यह बीत रहा हफ्ता प्रतिबंधों की सौगात लेकर आया है. कई सारे और किस्म-किस्म के प्रतिबंध. इस सूची की ज़रूरत न पड़ती यदि इस खबर के लिखे जाने तक भी किसी तरीके का बैन न लगाया गया होता. लेकिन अब ज़रूरत है तो है, तो पाठकों के लिए क्रमवार सिलसिले में ‘प्रतिबंधों’ का सिलसिला आगे दिया जा रहा है.

१. इस हफ़्ते सोमवार को महाराष्ट्र की देवेन्द्र फडनवीस सरकार ने राष्ट्रपति की अनुमति से महाराष्ट्र में बीफ़ यानी गाय के मांस पर प्रतिबन्ध लगा दिया. और दक्षिणपंथ के विरोधियों को सरकार को घेरने का एक और मौक़ा दे दिया. दरअसल यह कोई नया फ़ैसला नहीं है, साल 1995 में ही भाजपा-शिवसेनानीत प्रदेश सरकार ने इसकी तैयारियां कर ली थीं, लेकिन उस दौरान कोई निष्कर्ष नहीं निकल पाया था. अब महाराष्ट्र में आलम यह है कि यदि कोई भी गाय के मांस का व्यापार करते पकड़ा गया, उसे पांच साल की जेल के साथ-साथ दस हज़ार रुपयों का जुर्माना भी भरना पड़ सकता है. अब देखने की बात है कि पूंजीपति प्रेमी और आम जनता की अप्रिय होने का आरोप झेल रही भाजपा किस तरीके से पूरा महाराष्ट्र में फैले भिन्न-भिन्न मांस निर्यातकों और फ़ूड-चेन के मालिकों का कैसे सामना करती है.


फिफ्टी शेड्स ऑफ़ ग्रे से एक दृश्य
फिफ्टी शेड्स ऑफ़ ग्रे से एक दृश्य

२. फ़िल्म में गालियों पर बैन लगना एक लंबे समय से भारतीय सेंसर बोर्ड की ‘आंतरिक संस्कृति’ का हिस्सा रह चुका है. हाल में ही नवगठित सेंसर बोर्ड ने कई शब्दों, जिनमें मुख्यतः गालियां थीं, की सूची जारी की और यह निदेशित किया कि ये शब्द फ़िल्मों में इस्तेमाल में नहीं लिए जा सकते हैं. इसके बाद ‘दम लगा के हईशा’ नाम की औसत बजट की फ़िल्म सामने आई, जिसके बाबत सोमवार को यह खबर पता चली कि इस फ़िल्म के डायलॉग में सेंसर बोर्ड ने ‘लेस्बियन’ शब्द के इस्तेमाल पर रोक लगा दी. फ़िल्मों पर केंद्रित ब्लॉग ‘फाईट क्लब’ के हवाले से यह खबर पता चली और भारतीय मनोरंजन जगत के लिए सोमवार का दिन नया सन्देश लेकर आया. जानकारों और कई फ़िल्म निर्माताओं ने कहा कि यदि दृश्यों में किसी किस्म की अश्लीलता या फूहड़पन होता तो, उसे काटना समझ में आता. लेकिन शब्दों को ही प्रतिबंधित करने का मतलब है कि कल आप कुछ भी बंद कर देंगे.

३. मंगलवार का दिन बिहार की राजनीति में उतना भी अहम महत्त्व नहीं रखता, जितना मनोरंजन जगत में. के.सी. बोकाड़िया की फ़िल्म ‘डर्टी पॉलिटिक्स’ पर बिहार हाईकोर्ट ने प्रतिबन्ध लगा दिया. सेंसर बोर्ड ने भी कुछ पेंच लगा दिए. हाईकोर्ट ने कहा कि इस फ़िल्म में कई आपत्तिजनक दृश्य हैं, बाद में निर्माता ने लिखित पेटिशन में यह बात कही कि फ़िल्म में कहीं भी कोई भी ऐसा दृश्य नहीं है जो आपत्तिजनक लगे, जिसके बाद बुधवार को यह बैन वापिस ले लिया गया.


इंडियाज़ डॉटर से एक दृश्य
इंडियाज़ डॉटर से एक दृश्य

४. दिल्ली का बहुचर्चित ‘निर्भया रेप काण्ड’ बुधवार से अब फ़िर से सुर्ख़ियों में है. ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कार्पोरेशन यानी ‘बीबीसी’ ने एक काण्ड पर एक डॉक्यूमेंट्री बनायी, जिसका शीर्षक रखा गया ‘इंडियाज़ डॉटर’ यानी ‘भारत की बेटी’. इस बीच इस डाक्यूमेन्ट्री को लेकर जो कुछ भी हुआ, वह हम सब जानते हैं. डाक्यूमेंट्री हो सकता था कि लुक-छिप प्रदर्शित भी कर दी जाती, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. जेल में बंद एक आरोपी से लिए गए इंटरव्यू का कुछ हिस्सा बाहर आ गया और मच गया शोर. केन्द्र सरकार ने बीबीसी समेत सभी समाचार चैनलों को निर्देश जारी कर दिया कि वे इस डाक्यूमेंट्री का प्रदर्शन न करे. सरकार ने यह कारण दिया कि इस डाक्यूमेंट्री के निर्माण में सही तरीके से अनुमति नहीं ली गयी है. यह मुद्दा पूरी शाम टीवी चैनलों पर गर्माया रहा और सारे निर्देशों-आदेशों-प्रतिबंधों को धता बताते हुए बीबीसी ने 5 मार्च को तड़के ही इस डाक्यूमेंट्री का प्रसारण कर डाला, और दिन चढ़ते-चढ़ते इस वीडियो की कई कॉपियां बनने और बंटने लगीं. 5 मार्च की शाम तक आलम यह है कि ढूंढ-ढूंढ कर डिलीट की जा रही इस डाक्यूमेंट्री को लोग पूरे मनोबल और ध्यान से खोजने और देखने में लगे हुए हैं. यानी, लोग बीबीसी की चाल को समझ पाते इससे पहले 8 मार्च को दिखाई जाने वाली डाक्यूमेंट्री बीबीसी ने तीन दिनों पहले ही प्रदर्शित कर सरकार को ठेंगा दिखा दिया.


दम लगा के हईशा'को दिए गए निर्देश (साभार - फाईट क्लब)
दम लगा के हईशा'को दिए गए निर्देश (साभार - फाईट क्लब)

५. गुरुवार का दिन भी मनोरंजन जगत और कलाप्रेमियों के लिए निराशाजनक ही रहा. मशहूर फ़िक्शन सीरीज़ ‘फिफ्टी शेड्स ऑफ़ ग्रे’ पर हाल में ही बनी फ़िल्म को सैम टेलर – जॉनसन ने निदेशित किया है. ब्रिटिश लेखक इ.एल. जेम्स द्वारा लिखी रूमानी उपन्यास पर आधारित इस फ़िल्म के भारत में प्रदर्शन पर रोक लगा दी गयी. यह बात और आश्चर्यजनक तब लगती है जब पता चलता है कि फ़िल्म निर्माताओं ने सेंसर बोर्ड के निर्देश पर फ़िल्म में से सभी ‘अश्लील’ व आपत्तिजनक दृश्य हटा दिए थे. यह भी बात है कि सेंसर बोर्ड ने फ़िल्म को प्रमाणित न करने के लिए कोई कारण भी नहीं बताया है.


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