By TCN News,
लखनऊ: आतंकवाद के नाम पर क़ैद बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों को इंसाफ दिलाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ने वाले मुम्बई के वकील शाहिद आज़मी की शहादत की पांचवी बरसी पर रिहाई मंच ने ‘लोकतंत्र, हिंसा और न्यायपालिका’ विषय पर सेमिनार आयोजित किया था.
यूपी प्रेस क्लब में मंगलवार को आयोजित सेमिनार में मुख्य वक्ता के बतौर बोलते हुए वरिष्ठ पत्रकार आनंद स्वरूप वर्मा ने कहा कि ‘हमारे लोकतंत्र के सामने कई बार चुनौतियां पेश हुई हैं. जब भी लोकतंत्र पर खतरे बढ़ते हैं उस खतरे के खिलाफ़ हिंसा भी बढ़ जाती है.’ दिल्ली में आए चुनावी नतीज़ों को इंगित करते हुए उन्होंने कहा कि ये नतीज़े इस हिंसा पर केवल एक फौरी राहत भर महसूस कराते हैं. देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के स्वरूप पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि आज़ादी के समय भी इस आज़ादी के स्वरूप को लेकर कई सवाल उठे थे. कई लोगों ने इसे झूठी आज़ादी तक कहा था.
गोष्ठी में संवाद करते वरिष्ठ पत्रकार आनंद स्वरूप वर्मा
वर्मा ने कहा, ‘बेगुनाहों को फंसाने से उनके मन में राज्य के प्रति नफ़रत पैदा हो जाती है और राज्य की मशीनरी यही चाहती है. हमारी अदालतों द्वारा आज फर्जी मुठभेड़ों को जस्टीफाई किया गया है. आज मंत्री इसे सावर्जनिक तौर पर जस्टीफाई करते हैं. कल्याण सिंह ने खुद विधानसभा में फर्जी एनकाउंटर को जस्टीफाई किया था. शर्मनाक तो यह है कि अदालतें भी इसे मान रही हैं. राजनाथ सिंह ने मिर्जापुर में 16 दलितों की फर्जी हत्या करवाई थी. बुद्धदेव भट्टाचार्य ने सार्वजनिक तौर पर पुलिस को निर्देश दिया था कि वे खुलकर मारें डरने की कोई बात नही है. बिल क्लिंटन के भारत दौरे के समय सेना ने छत्तीसिंह पुरा में 36 लोगों को मार डाला. लेकिन आज जब यह साफ हो गया कि यह फर्जी मुठभेड़ थी तो भी आज तक दोषी दंडित नही हुए. क्या बेगुनाहों की ये हत्याएं इस लोकतंत्र का गला नहीं घोट रही हैं?’ हालिया घटनाओं के बाबत उन्होंने कहा कि इशरत जहां के फर्जी एनकाउंटर में आरोपियों की जमानत हो गई, इसके दूरगामी असर होने तय हैं. इंसाफ से वंचित लोगों का हिंसक होना क्या गलत है? उन्होंने कहा, ‘इस मुल्क में गरीबों को ही फांसी होती है और दबंग सामंत बच जाते हैं. शंकर बिगहा हत्याकांड इस बात की तस्दीक़ कर देता है. राज्य का तंत्र इस मंसूबे के साथ काम करता है कि गरीब लोग स्वाभाविक तौर पर अपराधी होते ही हैं. आज भी यह मानसिकता काम कर रही है. यह इंसाफ के लिए बहुत ही खतरनाक है.’
संघ द्वारा देश को फाशीवाद के रास्ते पर लेकर जाने की कोशिशों पर बोलते हुए वर्मा ने कहा कि कल के दिल्ली नतीजे 2025 तक देश को हिन्दू राष्ट्र होने की संघ की मुहिम को थोड़ा रोकते हैं. लेकिन समस्या अभी भी जस की तस है. संघ के विचारक आज भी मुसलमानों के खिलाफ ज़हर उगलते रहते हैं. ‘भारत हिन्दुओं का देश है’ यह मानसिकता ही खतरनाक है. इस समय वे सत्ता में हैं इस लिहाज़ से यह दौर तब और भी खतरनाक हो जाता है. ऐसी ही ताक़तों के खिलाफ़ शाहिद आजमी ने सच के लिए अपनी शहादत दी है और इसे हमें आगे बढ़ाना है.’
उन्होंने कहा कि आपातकाल के दौर में जनता ने फाशीवाद का मुकाबला किया. वह एक दूसरा दौर था लेकिन 1990 में उदारीकरण के दौर में नए खतरे भी लोकतंत्र पर आए. नेहरू के समय में ऐसा लगता है कि राज्य अपनी कल्याणकारी भूमिका में था, लेकिन आज उदारीकरण के बाद यह नहीं कहा जा सकता.
आनन्द स्वरूप वर्मा ने आगे कहा, ‘उदारीकरण के बाद 1998 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने इस दिशा पर तेज़ी से काम करना शुरू किया. उन्होंने पूंजीपतियों को विभाग तक बांट दिए थे. तब की सरकार में मुकेश अंबानी शिक्षा संबंधी नीतियां देखते थे. तब से लगातार यही सब चल रहा है. राज्य के काम अब देश के बड़े पूंजीपति करने लगे हैं. आज इसी क्रम में देश की खनिज संपदा की लूट जारी है. इस लूट से होने वाले विरोध से निपटने के लिए राज्य का सैन्यीकरण जरूरी था. फिर आतंकवाद और माओवाद का हौवा प्रायोजित करके राज्य ने आम जनता के खिलाफ काले कानून बनाने शुरू किए.’
उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश से लेकर महाराष्ट्र तक हम पाते हैं कि सामाजिक और राजनैतिक बदलाव के लिए चिंतित नौजवानों को हिंदू होने पर माओवादी और मुस्लिम होने पर आतंकवादी कहकर जेलों में बंद कर दिया जाता है. यह हौवा राज्य के पूर्ण सैन्यीकरण की तैयारी भर है. उन्होंने कहा कि आतंकवाद और माओवाद के हौवे के पीछे पैकेज खाने की राजनीति भी है. उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद खंडूरी ने 208 करोड़ का पैकेज उत्तराखंड से माओवाद के खात्मे के नाम पर केन्द्र सरकार से लिया था, जबकि उत्तराखंड में कोई माओवादी आंदोलन का नामोनिशान तक नहीं है. बाद में स्टेट्समैन अखबार के पत्रकार प्रशान्त राही को उत्तराखंड सरकार द्वारा माओवादी बता कर गिरफ्तार किया गया. यह सब उस फंड को जस्टीफाई करने के लिए था, जिसे खंडूरी ने केन्द्र से लिया था. यह पूरा केस ही फर्जी था लेकिन झूठा फंसाने वालों के खिलाफ अदालत ने भी कोई कारवाई नहीं की. आनन्द स्वरूप वर्मा ने कहा कि बेगुनाहों को जेल भेजने के मामले में आतंकवाद और माओवाद का आधार लिया जाता है. लेकिन ऐसा करने वालों के खिलाफ कोई कारवाई नही होती जबकि जज सब जानते हैं. उन्होंने कहा कि आज के ही दिन मकबूल बट को फांसी दी गई थी जो कि न्याय की हत्या थी. इसलिए यह दिन और भी महत्वपूर्ण है.
आनन्द स्वरूप वर्मा ने कहा, ‘देश के सात राज्यों में जहां अफस्पा लागू है वहीं 16 से ज्यादा नक्सल प्रभावित हैं. इस तरह इनके बाद केवल 5 राज्य ही शांत बचते हैं. क्या यही हमारा लोकतंत्र है? लेकिन इसके प्रचार की राजनीति को हमें समझना होगा. दरअसल यह केवल हौवा है और राज्य के सैन्यकरण की कोशिश हैं. ऐसी बातें आम जनता को टेरराइज करने की राजनीति के तहत की जातीं हैं. वास्तव में यह सब उस समाज में बाजार के घुसाने की एक कोशिश से ज्यादा कुछ नहीं है जो कि अभी भी अपनी गौरवशाली परंपरा बचाए हुए हैं.’
सेमिनार को संबोधित करते हुए वीरेन्द्र यादव ने कहा, ‘रिहाई मंच के इस अभियान को अधिक व्यापक होना चाहिए. राज्य आज आतंककारी भूमिका में खुलकर आ चुका है. लेकिन हमें लड़ना ही होगा क्योंकि आज समय क्रोनी कैपिलटिज्म से आगे जा चुका है. आज अभिव्यक्ति की आज़ादी पर गंभीर खतरा मंडराने लगा है और यह वक्त लोकतंत्र के लिए शर्मनाक है.
बलिया से आए सामाजिक कार्यकर्ता बलवंत यादव ने सेमिनार को संबोधित करते हुए कहा, ‘लूट के खिलाफ़ पुतला फूंकने पर ही हमारे खिलाफ़ एफआईआर दर्ज हो गयी. सड़क खोदकर फेंक दी गई थी लेकिन आज तक उसे बनाया नही गया. इसी मांग पर हमने आंदोलन किया और हमारे ऊपर मुकदमा दर्ज कर दिया गया. यह समय के संकट को गंभीरता से दर्शाता है.’
वरिष्ठ रंगकर्मी राकेश ने कहा कि बिहार के शंकर बिगहा में 24 लोगों के हत्याकांड के आरोपियों को जिस तरह से रिहा किया गया है, वह साफ कर देता है कि आखिर यह किसका लोकतंत्र है? यह लोकतंत्र आज फाशिज्म के मुखौटे को लेकर चल रहा है. अयोध्या आंदोलन के दौर में हम सामान्य प्रतीकों को हिंसक प्रतीकों में बदलते देखते हैं. यही फाशीवाद का प्रभाव है. इस चुनौती से प्रभावी तरीके से निपटना होगा.’
कार्यक्रम की अध्यक्षता रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने की और संचालन अनिल यादव ने किया. कार्यक्रम के अंत में मोहम्म्द शुऐब ने आगन्तुकों को धन्यवाद किया. कार्यक्रम में नसीम इक्तेदार अली, अखलाक चिश्ती, वीरेन्द्र यादव, डा. रमेश दीक्षित, राघवेन्द्र प्रताप सिंह, ताहिरा हसन, अजय सिंह, तारिक शफीक, जुबैर जौनपुरी, सैयद मोईद अहमद, मो० सुलेमान, शाहआलम संजरी, अवसाफ आलम, मो० प्यारे राही, आदियोग, रामकृष्ण, अखिलेश खालिद कुरैशी, जैद अहमद फारूकी, इसहाक नदवी, पीसी कुरील, गुफरान सिद्दीकी, अनिल यादव, दिनेश चौधरी, हरेराम मिश्र, हाजी फहीम सिद्दीकी, एहसानुल हक़ मलिक आदि शामिल रहे.
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