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अल्पसंख्यकों के उम्मीदों पर भारी पड़ा मोदी का बजट

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Afroz Alam Sahil, TwoCircles.net

मोदी सरकार ने कभी बड़े ज़ोर-शोर से ‘सबका साथ –सबका विकास’ के नारे को प्रचारित किया था. सरकार का यह दावा था कि बजट के ज़रिए अल्पसंख्यक तबक़े की तमाम ज़रूरतों को वो न सिर्फ़ पूरा करेगी, बल्कि अल्पसंख्यकों का उत्थान कर उन्हें भी ‘मेनस्ट्रीम’ के साथ लाकर खड़ा कर देगी. मगर इस बार का भी बजट अल्पसंख्यकों के उम्मीद पर खड़ा उतारता दिखाई नहीं देता है.

स्पष्ट रहे कि इस बार के बजट में मोदी सरकार ने अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय का कुल बजट 3827 करोड़ प्रस्तावित किया है, जबकि पिछले वित्तीय वर्ष में इस मंत्रालय का बजट 3736 करोड़ का था. यानी इस बार के बजट में सिर्फ़ 91 करोड़ का इज़ाफ़ा किया गया है.

इस प्रकार यदि इस बार के बजट का आंकलन किया जाए तो ताज़ा बजट में न तो अल्पसंख्यकों के बेहतरी लिए अलग से किसी विशेष फंड का इंतज़ाम किया गया है और न ही पहले से चल रही स्कीमों में कोई क्रांतिकारी बदलाव किए गए हैं.

बल्कि ताज़ा बजट के आवंटन में अल्पसंख्यकों के उत्थान के लिए कुछ महत्वपूर्ण स्कीमों के बजट पहले से कम भी कर दिए गए हैं. उदाहरण के तौर पर एमएसडीपी (Multi-Sectoral Development Programme) का प्रस्तावित बजट इस बार कम होता नज़र आ रहा है.

पिछले वित्तीय साल यानी 2015-16 में इस स्कीम के लिए 1251.64 करोड़ का बजट रखा गया था. लेकिन इस साल इस एमएसडीपी स्कीम के लिए प्रस्तावित बजट को घटाकर 1125 करोड़ कर दिया गया है.

स्पष्ट रहे कि एमएसडीपी स्कीम अल्पसंख्यक मंत्रालय का सबसे महत्वपूर्ण स्कीम माना जाता है, जिसे यूपीए सरकार ने 2008-09 में 90 अल्पसंख्यक बहुल जिलों में शुरू किया गया था. इस स्कीम का मक़सद अल्पसंख्यकों के सामाजिक-आर्थिक अवसंरचना का सृजन करते हुए तथा आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध कराते हुए अल्पसंख्यक बहुल जिलों की विकास सम्बन्धी कमियों को दूर करना था.

इसी तरह से राज्यों के वक़्फ़ बोर्ड को मज़बूत करने के लिए पिछले साल 6.70 करोड़ का बजट रखा गया था, लेकिन इस बार ये सरकार के प्रस्तावित बजट में नदारद है.

इसी प्रकार पिछले साल मौलाना आज़ाद मेडिकल एड स्कीम की शुरूआत की गई थी, जिसे सरकार ने ‘सेहत स्कीम’ का नाम दिया था. लेकिन इस बार के प्रस्तावित बजट में यह स्कीम गायब नज़र आ रही है.

इतना ही नहीं, सरकार ने सबसे अधिक निशाना अल्पसंख्यक छात्रों पर साधा है. शैक्षिक रूप से पिछड़े अल्पसंख्यक छात्रों के स्कॉलरशिप पर जमकर कैंची चलाई गई है.

अल्पसंख्यक छात्रों के लिए सबसे महत्वपूर्ण स्कॉलरशिप यानी प्री-मैट्रिक मैट्रिक स्कॉलरशिप का बजट साल 2015-16 में 1040.10 करोड़ रखा गया था, लेकिन इस बार के प्रस्तावित बजट में इसे 931 करोड़ कर दिया गया है.

यही कहानी पोस्ट-मैट्रिक स्कॉलरशिप की भी है. पिछले साल यानी 2015-16 में इस स्कॉलरशिप के लिए 580.10 करोड़ का बजट प्रस्तावित किया गया था, लेकिन इस बार इसे घटाकर 550 करोड़ कर दिया गया है.

हालांकि मौलाना आज़ाद नेशनल फेलोशिप का बजट पिछले साल के मुक़ाबले थोड़ा बढ़ा हुआ नज़र आता है. साल 2015-16 में मौलाना आज़ाद नेशनल फेलोशिप का बजट 49.83 करोड़ रखा गया था, लेकिन इस बार के प्रस्तावित बजट में इसे 80 करोड़ कर दिया गया है.

इस तरह सरकार के इस बजट से उन लोगों को बेहद निराशा हुई है, जिन्होंने ‘सबका साथ –सबका विकास’ जैसे नारों व वादों पर ऐतबार करके अपने मुस्तक़बिल के बदलने के ख़्वाब संजो लिए थे.

TwoCircles.netके पास मोदी सरकार के पिछले बजट का पूरा लेखा-जोखा मौजूद है. पिछली बार सरकार ने जो योजनाएं शुरू की थी, उन योजनाओं को आगे बढ़ाने की बात थी, मगर यह दावे ज़मीन पर कहीं दिखाई नहीं देती.

हर बार बजट अल्पसंख्यकों के उत्थान के लिए पैसे आवंटित किए गए, लेकिन उन स्कीमों की त्रासदी यह है कि इनके खर्च न के बराबर ही हैं और सबकुछ कागज़ों पर ही नज़र आता है. यानी कुल मिलाकर अल्पसंख्यकों के लिए इस बार का बजट महज़ छलावा साबित हुआ है.

TwoCircles.netपिछले बजट और इस बजट के बीच जो फासला है और जो उम्मीदों के धाराशाई होने का सिलसिला है. उसका पूरा ब्योरा अपने पाठकों के लिए कल से पेश करना शुरू करेगा.


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