TwoCircles.net News Desk
भोपाल में यूनियन कार्बाइड गैस हादसे के पांच संगठनों के नेताओं ने आज एक पत्रकार वार्ता में अमरीकी कंपनियों से अतिरिक्त मुआवज़े के लिए दायर सुधार याचिका के प्रति राज्य तथा केंद्र सरकारों द्वारा जान-बूझकर की जा रही लापरवाही की तीव्र निंदा की है. साथ ही इन संगठनों ने आज सर्वोच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार को सुधार याचिका पर त्वरित सुनवाई के लिए निवेदन करते हुए पोस्टकार्ड कैंपेन भी शुरू किया है.
इस पत्रकार वार्ता में भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की रशीदा बी ने कहा कि –‘सरकार द्वारा सुधार याचिका दायर करने के 5 से ज़्यादा साल बीत चुके हैं और आज तक एक भी सुनवाई नहीं हुई है.’
उन्होंने आगे कहा कि –‘यह बड़ी शर्म की बात है कि सरकार ने अतिरिक्त मुआवज़े की याचिका पर त्वरित सुनवाई के लिए एक भी दरख़्वास्त पेश नहीं की है और यहां भोपाल में गैस काण्ड के पीड़ित गैस जनित बीमारियों और अपर्याप्त मुआवज़े की वजह से आर्थिक तंगी से जूझते हुए दम तोड़ रहे हैं.’
स्पष्ट रहे कि रशीदा बी को पिछले ही महीने राष्ट्रपति द्वारा ‘कामयाब महिला’ के तौर पर पुरस्कृत किया गया है.
भोपाल गैस पीड़ित निराश्रित पेंशनभोगी संघर्ष मोर्चा के बालकृष्ण नामदेव ने कहा कि –‘गैस पीड़ितों के सही मुआवज़ा पाने के कानूनी हक़ के प्रति सरकार की उदासीनता गैस पीड़ितों की मौत और बीमारी के सही आंकड़े पेश करने में लापरवाही से स्पष्ट होता है.’
उन्होंने आगे बताया कि –‘केंद्रीय मंत्री से साल भर पहले दिए गए वायदे के विपरीत गैस काण्ड की वजह से हुई मौतों और बीमारियों के आँकड़े बहुत काम करके बताए जा रहे हैं.’
भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एंड एक्शन के सतीनाथ षडंगी के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष भारत सरकार की 1. 2 बिलियन डॉलर की अतिरिक्त मुआवज़े की याचिका 474 पन्नों की है. इसके विपरीत 1989 में 470 मिलियन डॉलर समझौते राशि को पर्याप्त ठहराने के यूनियन कार्बाइड और डाऊ केमिकल के तर्क 3657 पन्नों में पेश किया गया है. बात सिर्फ़ पन्नों की नहीं है. तथ्यों और तर्कों में सुधार की बहुत गुंजाइश है, पर सबसे ज़रूरी है कि सुधार याचिका को तुरंत सुना जाए.
भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा के नवाब ख़ाँ ने कहा कि –‘सरकार के द्वारा हाल में जो दस्तावेज़ पेश किया गया है, वह रसायन एवं खाद्य विभाग के अवर सचिव के व्याकरण और तथ्यों की गलतियां युक्त 7 पन्नों का हलफ़नामा है. यही दिखाता है कि सुधार याचिका सरकार के लिए महत्वपूर्ण मामला नहीं है.’
साफ़रीन ख़ान पीएम नरेन्द्र मोदी से सवाल पूछती हैं कि –‘अमरीका के राष्ट्रपति ने 11 मौतों के लिए एक ब्रिटिश कम्पनी को 20 बिलियन डॉलर हर्ज़ाने में देने के लिए मजबूर किया. लेकिन 25,000 हज़ार मौतों के लिए दो अमरीकी कम्पनियों से इस राशि का मात्र 5% माँगा जा रहा है, तो हमारे प्रधानमंत्री क्यों कुछ नहीं बोलते?’
उनके मुताबिक़ अतिरिक्त मुआवज़े के लिए मज़बूत मामला तैयार करने और उसकी जल्द-से-जल्द सुनवाई करवाने के प्रति सरकारी लापरवाही से सिर्फ अमरीकी कंपनियों को ही फायदा पहुंच रहा है.