By सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net
वाराणसी:बात को रखने से पहले हेडली और उज्जवल निकम की वह बातचीत पढ़ लेते हैं जिसे आप सभी लगभग कई जगहों पर पढ़ चुके होंगे.
निकम – क्या लश्कर में कोई महिला विंग है?
हेडली – हाँ, है.
निकम – उसका हेड कौन है?
हेडली – अबू अमान की माँ
निकम – लश्कर में महिला मानव बम हैं?
हेडली – मुझे नहीं पता
निकम – तुम किसी महिला मानव बम का नाम बता सकते हो?
हेडली – मुझे नहीं पता
निकम – क्या भारत में किसी ऑपरेशन की तैयारी थी?
हेडली – हां एक था जिसके बारे में मुझे तब पता चला था जब ज़किउर्रह्मान लखवी इस बारे में मुज़म्मिल भट से बात कर रहा था. मुज़म्मिल से मैंने पूछा तो उसने कहा कि लश्कर की एक महिला सदस्या थी जिसे पुलिस ने एक नाके पर एनकाउन्टर में मार दिया था. पुख्ता जगह मुझे नहीं पता.
निकम – मैं तुम्हें तीन ऑप्शन देता हूँ. नूर बेगम, इशरत जहां और xxx?
हेडली – इशरत जहां
ऊपर लिखी बातचीत को पढ़कर यह तथ्य लगभग साफ़ हो जाता है कि किस तरह से सरकारी वकील उज्जवल निकम ने डेविड हेडली को इशरत जहां का नाम लिवाया है. ‘पुटिंग वर्ड्स इन माउथ’...इसे शायद यही कहेंगे क्योंकि निकम ने हेडली से वही बात कहवाई जिसकी पैरवी गुजरात सरकार करती आ रही है. यह वही थ्योरी का एक अध्याय है, जिसकी वकालत भाजपा हमेशा से करती रही है.
फिर से जानिए इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ काण्ड को
15 जुलाई 2014 को अहमदाबाद के बाहर एक पुलिस चेकपोस्ट पर गुजरात पुलिस ने इशरत जहां को एक ‘मुठभेड़’ में मार गिराया. बाद में सीबीआई और गुजरात हाईकोर्ट के आदेश पर गठित एसआईटी ने अपनी जांच के आधार पर इस मुठभेड़ को फर्जी करार दिया. इस मामले में सीबीआई द्वारा दाखिल की गयी चार्जशीट में गुजरात पुलिस के कई आला अधिकारी और गुजरात गृह मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले खुफिया विभाग के अधिकारी नामज़द किए गए.
इशरत जहां के फर्जी मुठभेड़ के बाद गुजरात पुलिस के कुछ अधिकारियों से पूछताछ हुई जिसमें यह बात खुलकर सामने आई कि ‘काली दाढ़ी और सफ़ेद दाढ़ी’ वाले के कहने पर ऐसा किया जा रहा है. बाद में तत्कालीन गृहमंत्री अमित शाह पर जांच की आंच आई लेकिन भारतीय न्याय प्रक्रिया की ‘खूबसूरती’ यहीं से शुरू होती है कि इस फर्जी मुठभेड़ का ट्रायल शुरू ही नहीं किया गया.
इशरत जहां मुठभेड़ में घटनास्थल की जांच में जिन प्रमुख बातों से फर्जी मुठभेड़ की पुष्टि हुई थी, वह इस प्रकार हैं –
• जिस कार से इशरत जहां व अन्य सहयोगियों की लाश बरामद की गयी थी, उस कार में से मिले हथियार एक साफ़-सुथरे और नए जैसे थे. ऐसे जैसे गोली मारने के बाद रखे गए हों.
• बरामद की गयी पिस्टल और मैगज़ीन एक दूसरे से मेल नहीं खा रही थीं. इससे यह साफ़ हो रहा था कि वे दोनों बाद में रखे गए थे
• कार की बाईं ओर से कार में गोली अन्दर जाने के निशान नहीं थे, लेकिन दाहिनी ओर से गोली बाहर निकलने के निशान मौजूद थे. इससे यह ज़ाहिर हो रहा था कि मारे गए सभी लोगों को खिड़की से बंदूकें अन्दर डालकर मारा गया था.
• जीएल सिंघल द्वारा दायर किए गए एफआईआर में पुलिस पार्टी की पोजीशन से संभावित दिशा और सीबीआई की जांच में मिली असली दिशा में ज़मीन आसमान का फर्क है.
नवम्बर 2011 में गुजरात उच्च न्यायालय में दायर की गयी अपनी रिपोर्ट में एसआईटी ने यह माना कि इशरत जहां की ह्त्या फर्जी मुठभेड़ में की गयी थी और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को इसकी पूरी जानकारी थी.
लेकिन मुद्दा उठता है उज्जवल निकम का. सरकारी वकील उज्जवल निकम और इस पूरे प्रकरण के बारे में कुछ बातें जान लेनी चाहिए –
• 26/11 मुंबई हमलों में जिंदा पकड़े गए आतंकी अजमल कसाब के बारे में उज्जवल निकम ने झूठ कहा था कि कसाब बिरयानी मांग रहा था. बाद में निकम ने यह खुद स्वीकार किया था. निकम ने ऐसा कसाब की मौत की सजा की प्रक्रिया और तेज़ बनाने के लिए किया था.
• उज्जवल निकम को कुछ दिनों पहले ही भाजपा की केंद्र सरकार ने पद्म पुरस्कार से नवाज़ा गया है.
• डेविड हेडली से पूछताछ करते समय उज्जवल निकम यह भूल गए कि वे 26/11 मुंबई हमलों की जांच में जुटे हुए थे न कि साल 2004 के फर्जी मुठभेड़ की जांच में.
• हेडली के बयान से साफ़ है कि निकम उसे इशरत जहां का नाम लेने पर मजबूर कर रहे थे, जबकि हेडली को इशरत का नाम ही नहीं मालूम है. न्यायपालिका में ऐसे बयान को आधार नहीं बनाया जा सकता है, जिसमें पूछताछ करने वाले ने बयान देने वाले शख्स को विकल्प देकर नाम लिवाया हो या किसी तरीके से बाध्य किया हो.
• यह भी एक तथ्य है कि निकम गुजरात हाईकोर्ट द्वारा गठित एसआईटी की फाइंडिंग पर सवाल उठा रहे हैं.
• निकम की कार्यशैली पर सवाल इसलिए भी उठाए जा सकते हैं कि इसी केस की तफ्तीश में निकम कसाब और बिरयानी को लेकर एक बड़ा झूठ बोल चुके हैं.
इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए देखें तो सरकारी वकील उज्जवल निकम की कार्यशैली और उनकी पारदर्शिता पर गहरे सवालिया निशान लग रहे हैं. कुछ ही देर पहले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस ने यह कहा कि डेविड हेडली के बयान पर सवाल उठाना राष्ट्र-विरोधी गतिविधि है. यानी किसी आतंकी और फिक्सर के बयान पर सवाल उठाना अब एक लोकतांत्रिक जुर्म घोषित किया जा रहा है. ऐसे में यह प्रश्न उठना लाज़िम है कि सरकारी वकील उज्जवल निकम की इस कारस्तानी को किस घेरे में रखा जाए.