TwoCircles.net Staff Reporter
लखनऊ :आज से आठ साल पहले दिल्ली क्राईम ब्रांच ने 21 मई 2008 को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के क़रीब से हूजी के जिस तथाकथित आतंकी ‘मो. इक़बाल’ को गिरफ़्तार किया था, उसे गुरूवार को लखनऊ के विशेष अदालत ने बाइज़्ज़त बरी कर दिया है.
स्पष्ट रहे कि थाना वजीरगंज, लखनऊ अपराध संख्या 281/2007 में निरुद्ध शामली निवासी इक़बाल पुत्र मुहम्मद असरा, के ऊपर आईपीसी 307, 121, 121ए, 122, 124ए, यूएपीए 16, 18, 20, 23 के तहत मुक़दमा में पंजीकृत किया गया था. इतना ही नहीं, इक़बाल के ऊपर लखनऊ के अलावा दिल्ली में भी आतंकवाद का आरोप था, जिसमें वह पहले ही बरी हो चुके थे.
इक़बाल आज जिस मुक़दमें में दोषमुक्त हुए हैं, उसमें उन पर आरोप यह था कि वह जलालुद्दीन व नौशाद के साथ 23 जून 2007 में लखनऊ में आतंकी वारदात करने आए थे. हालांकि इससे पहले अक्टूबर 2015 में इस मुकदमें में इकबाल के सहअभियुक्त भी रिहा हो चुके हैं.
लखनऊ की सामाजिक संस्था रिहाई मंच ने आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाह मुहम्मद इक़बाल की आठ साल के बाद हुई इस रिहाई को वादा-खिलाफ़ सपा सरकार के मुंह पर तमाचा बताया है.
रिहाई मंच के अध्यक्ष एडवोकेट शुऐब के मुताबिक़ मो. इक़बाल का नाम तब्दील करके एटीएस ने इसका नाम अब्दुर रहमान रखा था. इसी नाम से उन्होंने मुक़दमा दर्ज कराया था. मो. इक़बाल को अब्दुर रहमान बनाकर अदालत में पेश किया गया था.
मंच के प्रवक्ता राजीव यादव ने बताया कि 21 मई 2008 को दिल्ली से इक़बाल की गिरफ्तारी में मोहन चन्द्र शर्मा व संजीव यादव जैसे दिल्ली स्पेशल सेल के अधिकारी थे. जिन्होंने उस वक्त कहा था कि आतंकी संगठन हूजी से जुड़ा इक़बाल ने राजधानी में जनकपुरी में विस्फोटक व अन्य पदार्थ छिपाए हैं और उसने पाकिस्तान में ट्रेनिंग ली थी.
उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि –‘बाटला हाऊस फ़र्जी मुठभेड़ में अपने ही पुलिस के साथियों द्वारा मारे गए मोहन चन्द्र शर्मा तो नहीं हैं, पर संजीव यादव से ज़रूर पूछताछ करनी चाहिए कि इक़बाल के पास से उन्होंने जो 3 किलो आरडीएक्स बरामद दिखाया था, वह उनके पास कहां से आया था. उन्हें किसी आतंकी संगठन ने आरडीएक्स दिया था खुफिया विभाग ने.’
राजीव यादव ने कहा कि इक़बाल से पास से जो विस्फोटक बरामदगी दिल्ली स्पेशल सेल ने दिखाई थी, उसके अनुसार जिस व्यक्ति ने इक़बाल को वह दिया था, उसे दिल्ली की एक कोर्ट ने अपने फैसले में एक काल्पनिक शख्स बताया था. उसी काल्पनिक शख्स के नाम पर तारिक़ कासमी की भी गिरफ्तारी का पुलिस ने दावा किया था.
उन्होंने कहा कि आतंकवाद के नाम पर हुई बेगुनाहों की रिहाई के बाद यह साबित हो जाता है कि आईबी मुस्लिमों के खिलाफ़ एक संगठित आतंकी संस्था के बतौर काम कर रही है. इन रिहाइयों पर आईबी चीफ़ को स्पष्टीकरण देना चाहिए.
रिहाई मंच के प्रवक्ता शाहनवाज आलम का कहना है कि –‘अब समय आ गया है कि खुद सुप्रीम कोर्ट दिल्ली स्पेशल सेल के खिलाफ़ अपनी निगरानी में आतंकवाद के मामलों में उसके द्वारा की गई गिरफ्तारियों की जांच कराए, क्योंकि दिल्ली स्पेशल के दावे अनगिनत मामले अदालतों द्वारा खारिज किए जा चुके हैं.’
उन्होंने दिल्ली स्पेशल को सरकार और आईबी संरक्षित आतंकी संगठन क़रार देते हुए कहा कि कश्मीरी लियाकत शाह को फंसाने के मामले में तो एनआईए ने दिल्ली स्पेशल सेल के अधिकारियों के खिलाफ़ कार्रवाई की सिफारिश तक की है. जिसमें उसने पाया था कि लियाकत शाह को फंसाने के लिए दिल्ली स्पेशल सेल ने अपने ही एक मुख़बिर साबिर खान पठान से लियाकत के पास से विस्फोटक दिखाने की कहानी गढ़ी थी. यहां यह जानना भी दिलचस्प होगा कि दिल्ली स्पेशल सेल का यह मुख़बिर ‘फ़रार’ चल रहा है.
उन्होंने कहा कि जब दिल्ली स्पेशल सेल से जुड़े तत्व ही आतंकी घटनाओं में शामिल पाए जा रहे हैं और अदालत में उसे पेश करने के बजाए दिल्ली स्पेशल सेल उसे फ़रार बता रही है तब दिल्ली स्पेशल और उसके अधिकारियों द्वारा आतंकवाद के मामलों में की जा रही गिरफ्तारियों पर अदालतें कैसे भरोसा कर ले रही हैं.
वहीं राजीव यादव का कहना है कि इक़बाल की रिहाई सिर्फ यूपी पुलिस द्वारा संगठित रूप से मुसलमानों को आतंकवाद में फंसाने का सुबूत नहीं है, बल्कि यह संगठित आतंकी गिरोह दिल्ली स्पेशल सेल की मुसलमानों को फंसाने की पूरी रणनीति का पर्दाफाश करती है.
उन्होंने आरोप लगाया कि दिल्ली स्पेशल सेल पूरे देश में राज्यों के संप्रभुता को धता बताते हुए बेगुनाहों को अपने ‘टॅार्चर सेंटर’ में रखकर जब किसी राजनेता का क़द बढ़ाना होता है तब किसी मुस्लिम युवा को दिल्ली स्टेशन से गिरफ्तार दिखा देती है.
उन्होंने बताया कि इक़बाल ने यह संदेह जाहिर किया है कि उसके शरीर में चिप लगाई गई है. जो एक अलग से जांच का विषय है.
गौरतलब है कि मंगलवार को मुम्बई के स्थानीय अदालत ने भी 2006 में मुम्बई में होने वाले सिलसिलेवार बम धमाकों में मुम्बई क्राईम ब्रांच द्वारा 13 अगस्त 2006 को शहर के अलग-अलग इलाक़ों से सिमी के नाम पर गिरफ़्तार पांच मुस्लिम नौजवानों, इरफ़ान सैय्यद, नजीब बकाली, फ़िरोज़ घासवाला, मोहम्मद अली चीपा और इमरान अंसारी को बाइज़्ज़त बरी किया है.