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सैय्यद हसन की याद में नज़्म

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आह सय्यद हसन!

(अपने उस्ताद मुहतरम जनाब सय्यद हसन साहब, को मनज़ूम खिराज-ए-अक़ीदत)>

By नदीम ज़फर जिलानी

हर शख़्स सोगवार है, हर आँख अश्कबार,
ग़ुंचे, लिपट के फूलों से रोते हैं बार-बार,

उस बाग़बाँ के जाने का मातम चमन में है,
बंजर ज़मीं को जिसने बनाया था लाला-ज़ार,

दुन्या को दे रहा था जो इंसानियत का दर्स,
ख़ामोश हो गया वही, दरवेश-ए- ख़ाकसार I


Dr. Hasan in USA 1

मोहलत मिली न सय्यद-ए-आली-मुक़ाम को,
अपने चमन की देखी न पच्चास्वीं बहार *

रौशन किया अँधेरे में तालीम का चिराग़,
मानी न जिसकी लौ ने कभी आँधियों से हार I

बे-लौस मुल्क-व-क़ौम की ख़िदमत में था मगन,
शौक़-ए-नमूद-व-नाम, न सौदा-ए-इश्तेहार!

उस "शख़्सियत-तराश"के फ़न का सुबूत हैं,
बे-मायह पत्थरों से जो निकले हैं शाहकार!

थी सादगी मिज़ाज में अज़मत ख़याल में,
अपनी ख़ुदी की उस पे हक़ीक़त थी आशकार I

"जन्नत ख़ुदा के बन्दों की ख़िदमत का है सिला,
अपना हो या के ग़ैर, लुटाओ सभी पे प्यार"

"काँटे अगर हटाते चलें रास्तों से हम,
धरती बनेगी अपनी गुलिस्तान-ए-खुशगवार" I

"मेराज आदमी की है, इंसान बन सके",
'सय्यद हसन'ने है दिया पैग़ाम यादगार !!

बेदार करके क़ौम को अब सो गया है वो,
उसकी तड़प को आख़िरश आ ही गया क़रार !

बुझने न पाएँ उस ने जलाये हैं जो दिए,
इस रौशनी को अब हमें रखना है बरक़रार !!

(नदीम ज़फर जिलानी, मैनचेस्टर, इंग्लैंड में डॉक्टर हैं. उनसे nzjilani@gmail.comपर संपर्क किया जा सकता है.)


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