Quantcast
Channel: TwoCircles.net - हिन्दी
Viewing all articles
Browse latest Browse all 597

सवालों के घेरे में ‘अल-क़ायदा’ आतंकियों की गिरफ़्तारी!

$
0
0

Afroz Alam Sahil, TwoCircles.net

सीमी, जैश-ए-मुहम्मद, लश्कर तैय्यबा, इंडियन मुजाहिदीन... यह सब नाम अब पुराने पड़ चुके हैं. अब नाम अल-क़ायदा (एक्यूआईएस) का है. और इसी अल-क़ायदा के नाम पर ग़िरफ़्तारियों का सिलसिला अब जारी है. घोषित तौर पर अब तक 6 ग़िरफ़्तारियां हो चुकी हैं. लेकिन जानकारों का कहना है कि यह संख्या 6 से अधिक है.

पिछले महीने उत्तरप्रदेश का संभल ज़िला निशाने पर था. अब झारखंड का जमशेदपुर इलाक़ा सुर्खियों में है. आख़िर हो भी क्यों न? इस शहर का नाम सुरक्षा एजेंसियां दिसम्बर में बेल्जियम के ग्लास्गो में हुए विस्फोट के साथ कनेक्शन जोड़कर जो देख रही हैं. जिसकी ख़बर देश के कई हिन्दी अख़बारों ने की है. लेकिन शायद ख़बर लिखते समय वो भूल गए कि ग्लास्गो बेल्जियम में नहीं, स्कॉटलैंड में है. और वहां ब्लास्ट 2007 में हुआ था. 2015 के दिसम्बर में किसी ब्लास्ट की कोई ख़बर किसी मीडिया ने नहीं की है.

इतना ही नहीं, भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की माने तो झारखंड के कम से कम 10 लोग इस आतंकी संगठन अल-क़ायदा से जुड़े हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ खुफिया एजेंसियों को शक है कि अल-क़ायदा ने झारखंड में कहीं पर ट्रेनिंग सेंटर भी खोल रखा है. जहां युवकों को बहका कर संगठन से जोड़ने के साथ-साथ दूसरी तरह की हल्की ट्रेनिंग भी दी जाती है.

अल-क़ायदा के नाम पर ताज़ा गिरफ़्तारी हरियाणा के मेवात इलाक़े से मो. अब्दुल समी नाम के युवक की हुई है. वहीं जमशेदपुर के मो. क़ासिम को भी अल-क़ायदा से जुड़े होने के शक में गिरफ़्तार किया गया है. जबकि इससे पहले संभल के आसिफ़, ज़फ़र महूमद, ओडिशा के कटक से मौलाना अब्दुल रहमान और बंग्लूरू से मौलाना अंज़र शाह क़ासमी की गिरफ़्तारी हो चुकी है.

दूसरी ओर मंगलवार को ही रूड़की से अख़लाक़ नाम के शख्स को गिरफ्तार किया गया है. इसके साथ गिरफ़्तार होने वाले तीन और लोग भी हैं. इन चारों पर आईएसआईएस के जुड़े होने का आरोप है. साथ ही यह भी आरोप है कि यह चारों हरिद्वार अर्धकुंभ मेले में हमले की साजिश रच रहे थे.

पुलिस व जांच एजेंसियों के दावों ने जमशेदपुर के लोगों के आंखों से रातों की नींदे ग़ायब कर दी है. यहां के स्थानीय अख़बार भी अलग-अलग आंकड़ों के साथ ख़बरें प्रकाशित कर रहे हैं. एक हिन्दी अख़बार का कहना है कि समी 20-25 युवकों के साथ जमाअत में गया था, तो वहीं एक अन्य हिन्दी अख़बार के मुताबिक़ समी 13 युवकों के साथ जमाअत में गया था. इसके अलावा सारे अख़बारों की अपनी अलग-अलग कहानी है. इन कहानियों के बीच स्थानीय लोग परेशान हैं कि कहीं जमशेदपुर को भी अगला आज़मगढ़ न बना दिया जाए.

एक स्थानीय पत्रकार के मुताबिक़ पुलिस भले ही समी और क़ासिम के गिरफ़्तारी की बात कर रही है, लेकिन सच्चाई यह है कि जमशेदपुर के चार लड़कों को पुलिस ने गिरफ़्तार किया है. जिनमें से दो के नाम तो सामने आ चुके हैं और दो नाम आने बाकी हैं.

मेवात के स्थानीय लोगों से बात करने पर वो बताते हैं कि उन्हें इस संबंध में कोई भी जानकारी नहीं है. क्योंकि अब्दुल समी एक जमाअत में यहां आया था. हालांकि एक ख़बर के मुताबिक़ यहां के एक स्थानीय युवक को भी स्पेशल सेल ने गिरफ़्तार किया था, जिससे पूछ-ताछ के बाद छोड़ दिया गया.

वहीं जमशेदपुर के स्थानीय निवासी इन ग़िरफ़्तारियों पर कई सवाल भी खड़े कर रहे हैं. स्थानीय लोगों, मीडिया व समी के घर वालों का बयान पुलिस के दावों से एकदम विपरित है.

जमशेदपुर के एक हिन्दी अख़बार के मुताबिक़ समी ने 16 दिसम्बर को ओडिशा के कटक से अब्दुल रहमान उर्फ कटकी की गिरफ़्तारी के बाद अब्दुल समी ने शहर छोड़ दिया था. अख़बार ने यह भी दावा किया है कि अब्दुल समी काफी भय में था कि कहीं पुलिस उस तक न पहुंच जाए. इसलिए उसने एक बार फिर जमाअत में जाने का प्लान बना लिया. लेकिन इसके विपरित एक दूसरे हिन्दी अख़बार के मुताबिक़ समी 4 जनवरी तक जमशेदपुर में ही था. अख़बार ने यह तथ्य इस मामले के एसएसपी अनुप टी मैथ्यू के हवाले से दी है.

स्पेशल सेल का कहना है कि जमशेदपुर के धतकीडीह निवासी अब्दुल समी 2014 में दुबई के रास्ते फर्ज़ी तरीक़े से पाकिस्तान के कराची शहर गया था, जहां सालभर रहकर हथियार चलाने की ट्रेनिंग ली थी. लेकिन समी के पिता हाजी सत्तार, जो टाटा स्टील के रिटायर कर्मचारी हैं, का कहना है कि –‘मेरा बेटा समी कभी भी विदेश नहीं गया. पाकिस्तान जाने का तो सवाल ही नहीं उठता. उसके पास तो पासपोर्ट भी नहीं है. टीवी पर जो दिखाया जा रहा है, वो गलत है. उसने कोई ट्रेनिंग नहीं ली. वो अधिकांश समय घर पर ही रहता था.’

हाजी सत्तार मीडिया को दिए अपने बयान में बताते हैं कि मेरा बेटा आतंकी नहीं हो सकता. मुझे बिल्कुल यक़ीन नहीं है. वह शांत स्वभाव का लड़का है. अक्सर जमाअत में जाया करता है. 10-12 दिन पहले ही वह दिल्ली जमाअत में जाने के लिए घर से निकला था.

वो आगे बताते हैं कि –‘मैंने बच्चों को अच्छी तालीम दी है. मैं शुरू से धार्मिक प्रवृत्ति का रहा हूं. इसी कारण मेरा बेटा समी भी दाढ़ी रखने लगा था. लेकिन वो आतंकी क़तई नहीं हो सकता.’

अब्दुल समी (32) ने जमशेदपुर के साकची स्थित कबीर मेमोरियल इंटर कॉलेज से 12वीं तक की पढ़ाई की है. उसके पिता के मुताबिक़ समी पढ़ने में कमज़ोर था, इसलिए उसने पढ़ाई छोड़ दी. उसने कई जगह नौकरी की तलाश की, लेकिन कहीं नौकरी नहीं मिला. इसलिए वो बेरोज़गार था.

कभी आतंकवाद पर गिरफ़्तारियों में सबसे ऊपर पढ़े-लिखे शिक्षित नौजवान निशाने पर थे, लेकिन अब मामला इसके उलट है. अब कम पढ़े-लिखे, मजदूरी करने वाले या फिर मदरसा व तब्लीग़ी जमाअत से जुड़े लोग निशाने पर हैं.

स्पष्ट रहे कि इससे पहले भी ऐसे कई मामले सामने आए हैं., जिनमें बेगुनाह मुस्लिम युवकों को एक लंबी उम्र जेल के सलाखों के पीछे गुज़ारने को मजबूर होना पड़ा. उन मामलों में भी पुलिस के पास सिर्फ़ दावे थे, कहानी से तथ्य पूरी तरह से गायब. मगर किसी ने कुछ सुनने या किसी भी तरह के विरोध को जगह देने की ज़रूरत नहीं समझी. अल-क़ायदा के नाम पर अब तक हुई तमाम गिरफ़्तारियों के बाद यह सारे सवाल एक बार फिर नए सिरे से खड़े हो गए हैं. और सबसे बड़ा सवाल यह है कि देशभर में जारी गिरफ़्तारियों के इस सिलसिले की विश्वसनीयता की पुष्टि कौन करेगा?


Viewing all articles
Browse latest Browse all 597

Latest Images

Trending Articles





Latest Images