By TCN News,
लखनऊ : राजनीतिक दल ‘राष्ट्रीय उलेमा कौंसिल’ ने उत्तरप्रदेश के अखिलेश सरकार पर यह आरोप लगाया है कि ‘सरकार ने चुनाव के समय मुसलमानों को उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षण, रंगनाथ मिश्रा व सच्चर कमेटी की सिफारिशों को लागू करने का वादा किया था, लेकिन सत्ता में आने के बाद वो अपने वादे पूरा न कर जनता को धोखा देने का काम कर रही है.’
साथ ही उन्होंने मांग भी रखा कि ‘विधानसभा के शीतकालीन सत्र में मुज़फ्फ़रनगर साम्प्रदायिक हिंसा की जांच करने वाली जस्टिस सहाय कमीशन की रिपोर्ट को सदन में पेश कर उसे सार्वजनिक किया जाए और उस रिपोर्ट के आधार पर दोषियों के विरुद्ध कार्यवाही की जाए.’
उलेमा कौंसिल के उत्तरप्रदेश अध्यक्ष डा. निज़ामुद्दीन ख़ान ने पार्टी की ओर से जारी एक प्रेस बयान में कहा कि –‘सूबे की सरकार कानून व्यवस्था व विकास के मामले में पूरी तरह से फेल हो चुकी है. जिन जगहों पर विकास की ज़रूरत है, उसे नज़रअंदाज़ कर कुछ खास इलाकों में विकास का ढिंढोरा पीटा जा रहा है.’
उन्होंने आरोप लगाया कि ‘सपा सरकार आतंकवाद के झूठे आरोप में जेलों में बंद निर्दोषों की रिहाई का वादा किया था, लेकिन सरकार निर्दोषों की रिहाई के बजाए बसपा शासनकाल में अपनी पार्टी नेताओं पर लगे केस हटवाने का काम कर रही है.’
राष्ट्रीय उलेमा कौंसिल का यह भी आरोप है कि ‘सपा सरकार में हुए मुस्लिम-विरोधी साम्प्रदायिक हिंसा के असल दोषी आज़ाद घूम रहे हैं, जबकि आतंकवाद के नाम पर क़ैद बेगुनाह मुस्लिम जेलों में बंद हैं. हद तो यह है कि सरकार के साथ-साथ सपा के मुस्लिम मंत्री व विधायक भी इस पर चुप्पी साधे हुए हैं.’
निज़ामुद्दीन ख़ान ने यह भी कहा कि ‘मुलायम यादव ने मुसलमानों को आरक्षण देने का वादा किया था, लेकिन आरक्षण देने के बजाए बुनकरी जैसे उनके पारम्परिक पेशे को भी तबाह कर उन्हें भुखमरी के कगार पर धकेला जा रहा है.’
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि ‘सपा सरकार अब भाजपा से मिलकर साम्प्रदायिक कार्ड खेलने की रणनीति पर चल रही है. इसीलिए उसने बिहार में मोदी को जिताने की नाकाम कोशिश की. उत्तरप्रदेश की जनता को सपा और भाजपा के साम्प्रदायिक गठजोड़ से चौकन्ना रहने की ज़रूरत है.’