अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
बिहार में भूमिहीन दलितों को ज़मीन देने की नीतिश सरकार की पहल अब अगड़े तबक़े के भूमिहीन गरीबों तक भी पहुंचेगी, इस बात का ऐलान खुद नीतिश सरकार के राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री मदन मोहन झा ने एक प्रेस बयान में कर दिया है.
उन्होंने अपने बयान में कहा है कि बिहार में अब भूमिहीन दलितों के साथ-साथ भूमिहीन सवर्णों को भी 3 डिसमिल ज़मीन दी जाएगी.
उन्होंने यह भी कहा है कि अगर किसी इलाक़े में सरकारी या गैर-मजरुआ ज़मीन नहीं होगी, तो उस इलाक़े में सरकार ज़मीन खरीदकर गरीब सवर्णों को देगी. लेकिन इस बीच सवाल यह भी खड़ा हो गया है कि अल्पसंख्यकों को खासतौर पर मुसलमानों को इस योजना से महरूम क्यों रखा गया है?
यह सवाल खुद मंत्री जी के अपनी पार्टी से जुड़े यानी बिहार प्रदेश कांग्रेस (अल्पसंख्यक) के अध्यक्ष मिन्नत रहमानी ने उठाया है. उन्होंने इस सिलसिले में मंत्री मदन मोहन झा को एक ज्ञापन भी सौंपा है.
TwoCircles.net के साथ बातचीत में मिन्नत रहमानी ने बताया कि उन्होंने बिहार के भूमिहीन अल्पसंख्यकों खासकर मुसलमानों को भी नीतिश सरकार के इस योजना के तहत 3 डिसमिल ज़मीन उपलब्ध कराने की मांग बिहार के राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री मदन मोहन झा से की है.
मिन्नत रहमानी ने बातचीत में यह भी बताया कि मंत्री मदन मोहन झा ने उन्हें यह आश्वासन दिया है कि वो जल्द ही इस मांग पर विचार कर अल्पसंख्यकों को भी इस योजना में शामिल करेंगे.
मिन्नत रहमानी का कहना है कि –‘राज्य में भूमिहीन अल्पसंख्यको की संख्या बहुत अधिक है. खासकर मुसलमानों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. कोसी और मिथिला क्षेत्र में तो भूमिहीन लोग आज भी सड़क और बांध के किनारे रहने को मजबूर हैं.’ अल्पसंख्यक अध्यक्ष मिन्नत रहमानी का स्पष्ट तौर पर यह भी कहना है कि –‘प्रदेश के मुसलमानों ने अपना 90 फ़ीसदी वोट देकर मौजूदा गठबंधन सरकार को पूर्ण बहुमत दिया है. ऐसे में अब सरकार की बारी है कि वो उनकी मांगों और ज़रूरतों को अपनी प्राथमिकता में रखे.
दरअसल, सरकार के इन्दिरा आवास योजना के तहत गरीबों और महादलितों को घर बनाने के लिए तीन डिसमिल ज़मीन दिया जाता है. यदि सरकार के पास ज़मीन न हो तो सरकार ज़मीन खरीद कर देती है. नीतिश सरकार ने यह योजना 2009-10 में शुरू किया था.
हालांकि इस योजना पर कई आरोप भी लगे हैं. खुद उस समय विपक्ष में रहने वाले लालू प्रसाद यादव ने नीतिश सरकार को जंगलराज बताया था. लोगों का आरोप है कि भूमिहीनों को सरकारी पर्चा मिल गया है, लेकिन ज़मीन का स्वामित्व उन्हें अभी तक हासिल नहीं हो सका है.
इस आरोप पर मंत्री मदन मोहन झा ने कहा कि –‘भूदान या दान में दी गई ज़मीन के अलावा गैर-मजरुआ (सरकारी) के लाखों एकड़ ज़मीन का पर्चा भूमिहीनों को दिया गया था. पर्चा मिलने के बावजूद जिन गरीब भूमिहीनों को ज़मीन का स्वामित्व नहीं मिला है, उन्हें ज़मीन का क़ब्जा दिलाने के लिए सरकार विशेष अभियान चलाएगी.’
स्पष्ट रहे कि सच्चर समिति की रिपोर्ट यह बता चुकी है कि देश में मुसलमानों की हालत कई मामलों में दलितों से भी बदतर है. इससे पूर्व बिहार अल्पसंख्यक आयोग ने 2004 में मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति जानने के लिए एक सर्वेक्षण कराया था, जिसके मुताबिक़ क़रीब आधे मुसलमान ग़रीबी रेखा से नीचे हैं.
बिहार राज्य अल्पसंख्यक आयोग द्वारा प्रायोजित एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टिट्यूट (ADRI) के रिपोर्ट यह बताती है कि बिहार में 49.5 फ़ीसद ग्रामीण मुसलमान एवं 44.8 फ़ीसदी शहरी मुसलमान ग़रीबी रेखा से नीचे आते हैं, जिसमे 19.9 फ़ीसदी तो अत्यंत ही ग़रीब हैं. वहीं रिपोर्ट यह भी बताती है कि बिहार के गांवों में रहने वाले 28.04 फ़ीसदी मुसलमान आबादी भूमिहीन मजदूर हैं.
सच पूछे तो बिहार में मुसलमानों के साथ नाइंसाफ़ी का इतिहास रहा है. मौजूदा नीतिश सरकार से बिहार के मुसलमानों की काफी उम्मीदें हैं. ऐसे में मिन्नत रहमानी को भी उम्मीद है कि सरकार उनकी मांगों पर ध्यान देते हुए जल्द ही अपने फैसले में बदलाव करेगी और बिहार के दलितों व सवर्ण भूमिहीनों के साथ-साथ अल्पसंख्यक भूमिहीनों को भी ज़मीन का हक़ ज़रूर देगी.