By फ़हमिना हुसैन, TwoCircles.net
नई दिल्ली:दिल्ली के एक अस्तपताल में एक मासूम अपनी मां के लिए तरस रहा है. क्योंकि सरोगेसी के ज़रिए इस बच्चे को दुनिया में लाने वाले मां-बाप नार्वे में रहते हैं और जन्म देने वाली मां अपनी फीस लेकर घर जा चुकी है. ऐसे में अस्पताल वाले भी परेशान हैं कि इस बच्चे का क्या करें?
उधर बच्चे के जन्म के बाद नार्वे में उनके मां-बाप भी परेशान हैं, क्योंकि भारतीय दूतावास ने वीजा देने से मना कर दिया है. क्योंकि भारत सरकार ने 3 नवम्बर 2015 से सरोगेसी के लिए मेडिकल वीजा बंद कर दिया है.
दरअसल, दैनिक हिन्दुस्तान की एक ख़बर के मुताबिक़ नार्वे के ओत्तार इंजे सम्सटड व उनकी पत्नी जीना जैक्सन सम्सटड इस साल मार्च में संतान की चाहत में भारत की राजधानी दिल्ली आए थे. यहां आईवीएफ फर्टिलिटी रिसर्च सेन्टर में उन्होंने सरोगेट मदर रीना की मदद से बच्चा पैदा करने का क़रार किया. इस क़रार के बाद यह दम्पत्ति अपने मुल्क नार्वे लौट गया. इसी बीच केन्द्र सरकार ने 18 अक्टूबर को एक आदेश जारी कर विदेशी जोड़ों के लिए सरोगेसी पर पाबंदी लगा दी है.
अब आईवीएफ़ रिसर्च सेन्टर ने विदेश मंत्रालय से मानवीय आधार पर नार्वे दूतावास को वीज़ा जारी करने की गुहार लगाई है, लेकिन अभी तक नार्वे दम्पत्ति को अभी तक वीजा नहीं मिल पाया है.
यह कहानी सिर्फ़ नार्वे दम्पत्ति की ही नहीं है. बल्कि इस दुनिया में आने वाले सैकड़ों मासूमों के ज़िन्दगी पर भी संकट आ गया है, जो भविष्य के कुछ महीनों में भारत के आबो-हवा में जन्म लेने वाले हैं. एक अनुमान के मुताबिक़ दिल्ली, मुंबई और गुजरात जैसे शहरों में अगले कुछ महीनों में सैकड़ों बच्चे सरोगेसी मदर के ज़रिए जन्म लेने वाले हैं.
दरअसल, हमारे देश में पूर्व में ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं, जिनको ध्यान रखते हुए सरकार ने विदेशी जोड़ों के लिए सरोगेसी पर पाबंदी लगा दी है. क्योंकि मामला यह था कि सरोगेसी के इस कारोबार में कई समस्याएं पैदा होने लगी थी. पिछले वर्ष एक ऑस्ट्रेलियाई दंपत्ति ने जुड़वा बच्चों में से एक को अपनाने से मना कर दिया था. दंपत्ति का तर्क था कि वह एक ही बच्चा चाहता है पर आरोप लगा कि वे एक बच्चे को उसके लिंग की वजह से छोड़ दिये. 2008 में भी बेबी मांझी का मामला भी कानूनी रूप से पेचीदा हो गया था. पिता ने पारंपरिक व्यवस्था के अनुरूप अपनी जैविक बच्ची को गोद लेकर जापान जाने का प्रयास किया तो उसे इजाज़त नहीं मिली, क्योंकि भारतीय कानून नवजात शिशु के संरक्षण की जिम्मेदारी किसी स्त्री को ही देता है.
ऐसे कई मामले देश में लागातार सामने आते रहें, जिनमें सरोगेट मदर से बच्चा विकलांग पैदा हो जाए या फिर क़रार एक बच्चे का हो और जुड़वा बच्चे हो जाएं तब कई तरह के विवाद सामने आए हैं. जिनमें आधिकारिक माता-पिता द्वारा बच्चे को अपनाने से इंकार किया है. दरअसल, भारत दुनिया में सरोगेसी का सबसे बड़ा ठिकाना है. एक रिपोर्ट के मुताबिक़ देश में इससे सालाना लगभग 10 हज़ार करोड़ रुपये भी ज्यादा का कारोबार हर साल होता है. ऐसे में इस धंधे में कई ख़राबियों का आना स्वाभाविक है.
इन्हीं ख़राबियों को लेकर भारत में विभिन्न संस्थाएं इस कारोबार पर पाबंदी लगाने की मांग करते आए हैं. पिछले 16 दिसम्बर को आंध्र प्रदेश, तेलंगाना के महिला संगठन प्रोग्रेसिव ओर्गनइजेशन ऑफ़ विमेन ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना दिया और भारत में सरोग्रेसी पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग को सामने रखा. इनका मानना है कि भारत की ग़रीब महिलाओं को सरोगेसी के नाम पर उनका शारीरिक और मानसिक शोषण हो रहा है. इसलिए सरोगेसी द्वारा महिलाओं के कोख के सौदे को आज़ादी से जोड़कर देखना शर्मनाक तथा हास्यास्पद है.
इतना ही नहीं, अगर मुस्लिम मान्यता के पहलू पर ग़ौर करें तो 2012 में बरेली मरकज दारूल इफ्ता द्वारा इस मामले को लेकर फतवा भी जारी किया जा चुका है. इस फ़तवे में कहा गया है कि कृत्रिम गर्भधारण, सरोगेसी (किराए की कोख), टेस्ट-ट्यूब बेबी का सहारा लेना इस्लामी नज़रिए से नाजायज़ है.
इन सबके बीच भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने अपने प्रस्तावित क़ानून में कई नए प्रावधान जोड़े हैं. इस नए प्रावधान के तहत अब कोई भी महिला सिर्फ़ एक बार ही सरोगेट मदर की भूमिका निभा पाएगी. जबकि इससे पूर्व के प्रावधान में तीन बार सरोगेट मदर बनने की इजाज़त थी.