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निर्भया काण्ड के बाद घटने के बजाय बढ़े हैं बलात्कार के मामले

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By अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

नई दिल्ली:निर्भया कांड के तीन साल पूरे हो चुके हैं. इन बीते तीन सालों में बलात्कार की घटनाएं और दोषी क़रार दिए जाने वालों की संख्या बढ़ी है.

नेशनल क्राईम रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि साल 2013 और 2014 में पूरे देश में कुल 17067 लोगों को बलात्कार के मामले में दोषी क़रार दिया गया है. वहीं इन दो सालों में पूरे देश में कुल 42194 क़ैदी ऐसे हैं जो बलात्कार के मामले में अंडर-ट्रायल चल रहे हैं.


(साभार - बिज़नेस इनसाइडर)

इन आंकड़ों के मुताबिक़ साल 2014 में कुल 8879 क़ैदी दोषी क़रार दिए गए. वहीं 22500 लोग बलात्कार के मामले में अंडर-ट्रायल हैं. अगर दिल्ली की बात करें तो साल 2014 में यहां 546 क़ैदी बलात्कार के मामले में दोषी क़रार दिए गए हैं. वहीं 1583 क़ैदी अभी भी अंडर-ट्रायल क़ैदी के रूप में दिल्ली के अलग-अलग जेलों में बंद हैं. हालांकि इस मामलों में उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर है. दूसरे स्थान पर मध्य प्रदेश का नंबर आता है.

उत्तर प्रदेश में साल 2014 में कुल 1862 क़ैदी बलात्कार के मामले में दोषी क़रार दिए गए हैं. वहीं 5098 क़ैदी अंडर-ट्रायल हैं. जबकि मध्य प्रदेश में 1414 क़ैदी दोषी क़रार दिए गए हैं वहीं 2393 क़ैदी इस मामले में अंडर-ट्रायल हैं.

यदि बात साल 2013 की करें तो इस साल 8188 क़ैदी पूरे देश में बलात्कार के मामले में दोषी क़रार दिए गए हैं, जबकि 2012 में यह संख्या सिर्फ़ 7009 थी. वहीं 19694 क़ैदी अंडर-ट्रायल हैं, जबकि 2012 में 14926 क़ैदी अंडर-ट्रायल थे.

बलात्कार के मामले में 2013 में दिल्ली में 472 क़ैदियों को दोषी क़रार दिया गया था, जबकि 2012 में यह संख्या 424 थी. वहीं 2013 में 19694 क़ैदी अंडर-ट्रायल थे, जबकि 2012 में सिर्फ़ 879 क़ैदी ही अंडर-ट्रायल थे.

दिल्ली पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक़ दिल्ली में साल 2014 में बलात्कार के 2,069 मामले सामने आए थे, जबकि 2013 में बलात्कार के 1,571 मामले दर्ज किए गए थे. यानी साल दर साल बलात्कार के मामले बढ़ते जा रहे हैं. स्पष्ट रहे कि निर्भया कांड के बाद सरकार ने कई नए क़ानून बनाए थे. फंड भी जारी किए थे, लेकिन ऐसी घटनाओं में कोई कमी दिखाई नहीं दे रही है.

जामिया मिल्लिया इस्लामिया के ‘सरोजनी नायडू सेन्टर फॉर वूमेन स्टडीज’ की क़ानून विशेषज्ञ व असिस्टेंट प्रोफेसर तरन्नुम सिद्दीक़ी बताती हैं, ‘निर्भया कांड के बाद ऐसा लगा था कि देश में अब बलात्कार की घटना तकरीबन बंद हो जाएगी. क्योंकि हर कोई इस मामले को लेकर सड़कों पर था. वहीं सरकार ने भी कई नियम-क़ानून बनाएं, लेकिन पिछले तीन सालों में सब फेल नज़र आते हैं.’

तरन्नुम सिद्दीक़ी का कहना है कि लोगों को क़ानून की कोई जानकारी ही नहीं है. यहां तक कि दिल्ली की पढ़ी-लिखी लड़कियां भी इससे अनभिज्ञ हैं. दूसरी तरफ़ बलात्कारियों के मन में क़ानून का कोई भय भी नहीं दिखाई देता. सबसे ज़िम्मेदार तो इस मामले में प्रशासन ही है. प्रशासन की उदासीनता का अंदाज़ा आप इसी से लगा सकते हैं कि दिल्ली में आज तक ‘जेंडर ऑडिट’ भी नहीं कराया जा सका है. इसीलिए बलात्कार के मामले घटने के बजाए, बढ़ रहे हैं.

लेकिन इसके विपरित दिल्ली पुलिस संख्या में बढ़ोतरी को अच्छा संकेत मानती है. उसका मानना है कि महिलाएं अब सामने आने और घटना के बारे में रिपोर्ट करने में पहले के मुक़ाबले अधिक सहज महसूस कर रही हैं. क़ानून बदलने और पुलिस को संवेदनशील बनाने से महिलाओं में नया आत्मविश्वास आया है.


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