By सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net
वाराणसी:बनारस में आज जापान के प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे बनारस के सांसद और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ आ रहे हैं. वे काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन करेंगे फिर दशाश्वमेध घाट पर गंगा आरती देखेंगे और वापिस चले जाएंगे. इसके लिए शहर में तैयारियां की गयी हैं, लेकिन इन तैयारियों की आड़ में सबकुछ डावांडोल और फजीहत से भरा हुआ है.
इस आगमन के फलस्वरूप की गयी तैयारियां एक किस्म का छलावा है. एयरपोर्ट से लेकर घाट तक के समूचे रास्ते पर पुराने पीले हैलोजन बदलकर उन्हें सफ़ेद एलईडी लाइटों से महज़ दो रोज़ के भीतर बदला गया है. इन लाइटों से ठीक दस मीटर की दूरी पर पुरानी पीली लाइटें अभी भी जल रही हैं, लेकिन उनसे कोई वास्ता इसलिए नहीं होना चाहिए कि आबे-मोदी यहां से नहीं गुजरेंगे. दिखाना यह है कि हम कितनी सहजता से क्योटो हो जाना चाहते हैं, चाहे उसकी कीमत कुछ भी क्यों न हो?
बनारस के अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट से लेकर गंगा घाट तक के रास्ते अब गरीबों, भीख मांगने वाले लोगों के लिए नहीं रहे. ये रास्ते अब एक गलीच जगह बन गए हैं. रोज़ सब्जी के ठेले पर सब्जियां और रोज़मर्रा के ज़रूरी सामान बेचने वाले लोग परेशान हैं कि उनसे तीन दिन की रोटी छीन ली गयी है. इस तीन दिन की रोटी का रास्ता तीन दिनों की कमाई से होकर जाता है.
यह बनारस का क्योटो मॉडल है, जहां हम सभी पूंजी की चमक से ग्रस्त हैं.
शहर में जगह-जगह पर बांस की बल्लियों से रास्ता रोकने की कवायद का नतीज़ा यह है कि कबीरचौरा मोहल्ले में स्थित मंडलीय चिकित्सालय के आकस्मिक चिकित्सा विभाग के ठीक सामने महज़ इतनी जगह छोड़ी गयी है कि एक चारपहिया को पास करने में मुश्किल हो. लेकिन आकस्मिक चिकित्सा चार पहिया वाहन से ज्यादा एम्बुलेंसों के सहारे चलती है, तय है कि जिसे पार करने में दिक्कत होगी.
शहर को 'तैयार'करने में मुस्लिम मोहल्लों में भाजपा का काडर सफाई के लिए प्रेरित करता रहा. इसकी ज़रुरत मुस्लिम मोहल्लों में ही क्यों पड़ी? क्योंकि वहां चमड़े के काम होते हैं? यानी क्योटो मॉडल की इस बहस की हाथ से किए जाने वाले छोटे स्तर के कामों की कोई सुनवाई नहीं होनी है.
तीन दिनों से एसपीजी के दौरे लग रहे हैं. रह-रहकर जैमरों की टेस्टिंग हो रही है, यानी रह-रहकर मोबाइल फोन बंद हो जा रहे हैं. दशाश्वमेध घाट पर रोज़ भीख मांगकर गुज़ारा करने वाले लोग खदेड़ दिए गए हैं. इसके जवाब में भाजपा कहती है कि भीख मांगना कमाने का कोई जरिया नहीं है? उन्हें कड़ी मेहनत करके कमाना चाहिए.
पूंजी के समाज में ऐसी परम्पराओं का विकसित होना नया नहीं है, लेकिन यह विकास महज़ दो दिनों में घटित हुआ है. समाजवादी पार्टी और भाजपा के बीच का फ़र्क मिट चुका है. पोस्टरों और बैनरों में दोनों ही शिंज़ो आबे का सम्मान-स्वागत करते नज़र आ रहे हैं. दोनों पूंजी के आगे नतमस्तक होते दिख रहे हैं.