राक़िब हमीद, TwoCircles.net
दिल्ली:देश के बड़े शिक्षण संस्थानों में शुमार जामिया मिल्लिया इस्लामिया में इस वक़्त माहौल गर्म है. विश्वविद्यालय में होने वाले वार्षिक दीक्षांत समारोह में इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बुलाए जाने को लेकर विश्वविद्यालय के मौजूदा और पुराने छात्रों, सभी में रोष व्याप्त है.
दीक्षांत समारोह में प्रधानमंत्री को बुलाए जाने पर नाराज़ छात्र जल्द ही जामिया के कुलपति को वह पत्र सौपेंगे, जिसमें उन्होंने इन बातों का ज़िक्र किया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बुलाना क्यों गलत फैसला है?
कुलपति को इत्तला करने वाले इन छात्रों में अधिकांश जामिया के पूर्व छात्र हैं, इस पत्र में उन्होंने यह दर्शाया है कि किस तरह से नरेंद्र मोदी और सत्तारूढ़ भाजपा के अन्य नेता जामिया के बारे में अपमानजनक और विद्वेषपूर्ण भाषा का इस्तेमाल करते रहे हैं.
टाइम्स ऑफ इण्डिया में गुरुवार को छपी खबर में मोदी के शिरक़त की पुष्टि हुई है. अखबार से बात करते हुए जामिया के कुलपति तलत अहमद ने कहा है, ‘हमने प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से पुष्टि का इंतज़ार कर रहे हैं. अभी तक शिरक़त की अर्ज़ी पर कोई मनाही भी नहीं की गयी है. लिहाज़ा दीक्षांत समारोह तभी होगा, जब प्रधानमंत्री समय देंगे.’
जामिया के कई पूर्वछात्र विश्वविद्यालय प्रबंधन की इस कार्रवाई के खिलाफ खुलकर प्रदर्शन कर रहे हैं. मोदी द्वारा गुजरात में बतौर मुख्यमंत्री 2008 में दिए गए एक भाषण में मोदी ने जामिया विश्वविद्यालय पर आरोप लगाते हुए कहा था कि ‘जामिया अपराधियों को जेल से बाहर निकालने के लिए वक़ीलों पर पैसे खर्च कर रही है.’जामिया के पूर्व छात्रों का कहना है कि कुलपति को दिए जाने वाले इस पत्र मदन इस विवादित वीडियो का लिंक भी मुहैया कराया जाएगा. यह वीडियो पहले से ही जामिया की सोशल मीडिया ग्रुपों में वायरल हो रहा है.
पत्रिका ‘तहलका’ के पत्रकार और जामिया से 2014 में पास हुए छात्र असद अशरफ इस मामले को सोशल मीडिया फेसबुक तक ले गए, जहां उनकी इस मुहिम को अच्छा-खासा समर्थन मिल रहा है. इस साल होने वाले दीक्षांत समारोह में उन्हें भी डिग्री मिलेगी. उन्होंने इस मामले पर एक ब्लॉग भी लिखा है, जिसमें उनका मूल प्रश्न है कि वे मोदी के हाथों से डिग्री क्यों लें?
अपने ब्लॉग में असद अशरफ लिखते हैं, ‘मैंने तय किया है कि इस बार मैं जाकर उस मुख्य अतिथि के हाथों से डिग्री नहीं लूंगा जिसने मेरे विश्वविद्यालय को आतंकवाद का पैदाईश का घर करार दिया था, जिसके बाद से इस विश्वविद्यालय के सभी छात्र जांच और खुफ़िया एजेंसियों द्वारा संभावित आतंकवादी की तरह देखे जाने लगे.’
अपने ब्लॉग में वे आगे लिखते हैं, ‘प्रधानमंत्री महोदय, जो गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री थे, ने 2008 में जामिया को आतंकवाद का घर और यहां के कुलपति को आतंकवादियों को कानूनी मदद पहुंचाने वाला करार देते हुए एक बार भी इस गरिमापूर्ण विश्वविद्यालय के इतिहास के बारे में नहीं सोचा.’
असद आगे लिखते हैं, ‘मेरे पास कोई पुरस्कार नहीं है, जिसे मैं लौटा सकूं. लेकिन मैं साफ़ शब्दों में लिखना चाहूंगा कि इस साल मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों से डिग्री नहीं लूंगा. प्रधानमंत्री ने अभी तक असहिष्णुता के मुद्दे पर एक शब्द भी नहीं बोला है और इसे देखते हुए लगता है कि नाज़ी जर्मनी के रास्ते पर हो रही आमजन की बर्बर हत्याओं और तमाम उपद्रव को उनका खुला समर्थन है.’
जामिया के एक और पूर्वछात्र महताब आलम ने भी इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया है. महताब लिखते हैं, ‘जामिया मिल्लिया इस्लामिया के बारे में दुखद और अपमानजनक वक्तव्य देने वाले प्रधानमंत्री को बुलाने के लिए जामिया के कुलपति को शर्म आनी चाहिए. नरेंद्र मोदी को जामिया मंप तब तक नहीं घुसने देना चाहिए, जब तक सितम्बर 2008 में दिए गए अपने वक्तव्य के लिए वे सार्वजनिक रूप से माफी नहीं मांग लेते.’
पूर्व छात्रों द्वारा लिखे गए पत्र को खूब समर्थन मिल रहा है, यह पत्र जल्द ही जामिया मिल्लिया इस्लामिया के कुलपति को सौंपा जाएगा.