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जन आंदोलनों की व्यापक एकता पूंजीवाद के खात्मे के लिए ज़रूरी - वर्कर्स काउंसिल

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By TCN News,

लखनऊ: ऑल इंडिया वर्कर्स काउन्सिल के तीसरे राष्ट्रीय अधिवेशन के दूसरे दिन देश के विभिन्न भागों से आए प्रतिनिधियों ने मजदूर वर्ग की समस्याओं से निपटने और देश में चल रहे जन आंदोलनों की व्यापक एकता के सहारे पूंजीवाद के खात्मे के लिए रणनीतिक खाका तैयार करने की दिशा में गहन चर्चा की.

सत्र में बोलते हुए पश्चिम बंगाल के मजदूर नेता सुरंजन भट्टाचार्य ने कहा, “संघर्ष के रास्तों पर बहस और विमर्श के लिए आज हम यहां पर जुटे हैं. जिन लोगों का यह सोचना है कि मार्क्सवाद के ज़रिए बदलाव नही लाया जा सकता, वे कुंठित और निराश हैं. इस देश का मजदूर तबका और उसका स्तर ही पूरी इंडस्ट्री के चेहरे को दिखा देता है. हमें अपने दायरे को और आगे ले जाने की जरूरत है. बिना इसके हम किसी बड़ी सफलता की आशा नही कर सकते. हमें अपने संगठन को देशभर के मजदूरों की एकजुट आवाज़ बनाना चाहिए. हमें यह भी निश्चित करना होगा कि हम कामगार जनता की आवाज कैसे बनें?” सुरंजन भट्टाचार्य ने सुझाव दिया कि वर्कर्स काउन्सिल को सदस्यता फार्म लाना चाहिए और उसके पीछे उद्देश्य भी निर्धारित कर तय समय पर उसकी सफलता या चुनौतियों की समीक्षा भी करनी चाहिए.


Workers council

बलिया के एक मजदूर यूनियन के अध्यक्ष जी.पी. वर्मा ने कहा, “आज के दौर में श्रमिक संगठनों का क्या दायित्व बनता है, इस पर विचार करने की जरूरत है.” उन्होंने यह सवाल किया कि अन्य संघर्ष में लगे हुए लोगों के साथ किस रणनीति के तहत खड़ा हुआ जाए? और देश के बंद उद्यागों को फिर से कैसे शुरू कराया जाए?

सम्मेलन में बोलते हुए अवधेश सिंह ने कहा, ‘मजदूर और किसान दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं. उनकी समस्याएं भी एक दूसरे की पूरक हैं और इसीलिए उन्हें साथ आना ही होगा. देश, जाति और संप्रदायवाद के प्रभुत्व ने हमारे सामने मुश्किलों का अंबार खड़ा कर दिया है, लेकिन इससे घबराने की ज़रूरत नही है.’ उन्होंने आगे कहा, ‘विकास की असमानता ने भी मजदूरों के सामने चुनौतियां पेश की हैं. विकास की असमानता पूंजीवाद की आवश्यक देन है और पूंजीवाद के बढ़ रहे प्रभाव से यह और तेजी से बढ़ेगा. इस चुनौती के खिलाफ़ भी संघर्ष करना होगा. इसके लिए मजदूरों चेतना से लैस करना ही होगा.


Workers council

उदय ने सम्मेलन में बोलते हुए कहा कि वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य किसके ज़रिए देश में आया है, इस पर भी विचार करने की आवश्यकता है. अपनी बात पहुंचाने के लिए हमें अपने खुद के साधन विकसित करने ही होंगे. हमें इस पर विचार करना ही होगा कि क्या अब सभ्यताओं के संघर्ष का प्रचार होगा या फिर वर्ग संघर्ष होगा. उन्होंने कहा कि वर्तमान दौर में हमें गेट से एनजीओ तक पर चोट करनी है. हमारी असफलता के एक बड़े कारण में पहचान की राजनीति रही है. उन्होंने यह सुझाव भी दिया कि काउन्सिल में होल टाइमर कार्यकर्ताओं की एक बॉडी बनानी चाहिए.

केरल से आए एम. राजन ने देश और दुनिया की वर्तमान परिस्थिति पर एतिहासिक दृष्टिकोणों से प्रकाश डालते हुए कहा कि आज पूरी दुनिया में जन पक्ष धर शक्तियों के आंदोलन की भूमिका तैयार हो चुकी है. यह सम्मेलन भी उसी का एक अभिन्न हिस्सा है.


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