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जीत का जश्न मीठा होना चाहिए, कड़वा नहीं!

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अफ़रोज़ आलम साहिल,

बिहार विधानसभा चुनाव ख़त्म हो चुका है. कल चुनाव के नतीजे भी आ जाएंगे. हालांकि इसको लेकर सबके अपने-अपने क़यास हैं, अपने-अपने एक्जिट पोल... लेकिन सच तो यह है कि जीत उसी की होनी है, जिसे बिहार की जनता का प्यार अधिक मिला होगा. और वो कहते हैं ना –जीत हमेशा सच्चाई की ही होती है. लेकिन मौजूदा हालात में इस बात से भी रूबरू रहना बहुत ज़रूरी है कि कभी-कभी सच हार भी जाता है.

यह बात किसी से छिपा नहीं है कि बिहार के इस चुनाव में धर्म, सम्प्रदाय और जाति के आधार पर लोगों को बांटने की हर मुमकिन कोशिश की गई है. कुछ राजनीतिक दलों ने तो इसमें अपनी समूची ताक़त झोंक दी. ऐसे में इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि धर्म के आधार पर वोटों की फ़सल काटने की इन कोशिशों से कहीं न कहीं समाज में कड़वापन अधिक छा गया है.

‘कड़वापन’ की बात पर ज़रूरी नहीं है कि आप भी सहमत हों. ये बात अपने खुद के तजुर्बे के आधार पर कह रहा हूं, क्योंकि पिछले तीन महीनों से TwoCircles.net के लिए बिहार चुनाव के रिपोर्टिंग के दौरान बिहार के लोगों के दिलों-दिमाग़ में ज़हर को घुलते बहुत क़रीब से देखा है. मज़हब के नाम पर लोगों को नफ़रत की खेती करते भी देखा है. ‘हिन्दुत्व’ के नाम पर पनपने वाले ज़ख़्मों को भी देखा है. देखा है कि किस प्रकार चुनावी लाभ के लिए दो भाईयों को आपस में लड़ाया जा सकता है. दो धर्म के लोगों को कैसे आमने-सामने किया जा सकता है.

पिछले तीन महीनों में देखा है कि कैसे राम-सेना, हनुमान सेना जैसी कई नए-नए सेनाएं बनाई गई हैं, जो बात-बात पर समाज को बांटने का काम करते हैं. बहाना गाय के रक्षा की होती है, लेकिन असल मक़सद इस ‘गौ–माता’ के नाम पर समाज का माहौल ख़राब करना होता है.

हैरानी इस बात पर होती है कि इस काम में सबसे अधिक मुसलमान लड़कों को ही इस्तेमाल किया गया. गाय को लेकर उनकी भड़काउ, गंदी व भद्दी बातों का वीडियो वाट्सअप पर खूब फैलाया गया. और सबसे हैरानी की बात यह है कि ये वीडियो मुस्लिम वोटरों के बजाए वाट्सअप के ज़रिए हिन्दू वोटरों के नंबरों पर अधिक पहुंचा है.

खासतौर पर यहां के दलितों को एक खास तबक़े के खिलाफ़ खूब भड़काया गया. उनको तरह-तरह की लालच दी गई. बताया गया कि अगर हमें वोट दोगे तो हम यहां से मुसलमानों को पाकिस्तान भगा देंगे और उनकी ज़मीनें आप सब लोगों में बांट दी जाएगी. साथ ही उन्हें डराया भी गया कि अगर वोट नहीं दिए और हमारी सरकार नहीं बनी तो मोदी जी जहां-जहां बीजेपी की सरकार है, वहां से तुम्हारे बच्चों को भगवा देंगे.

इन तीन महीनों में छोटे-छोटे साम्प्रदायिक तनाव फैलाने वाले हादसे भी खूब हुए. बल्कि चुनाव के बाद भी ऐसे हादसे रूके नहीं हैं. शुक्रवार को ही गोपालगंज के कटिया थाना क्षेत्र में मीर गयास चक गांव के एक युवक को बीजेपी कार्यकर्ताओं ने बंदुक के बट से पीटकर जान से मारने की कोशिश की.

स्थानीय अख़बार के ख़बर के मुताबिक़ उस दरम्यान बीजेपी एम.एल.सी. आदित्य पांडे व एलजेपी उम्मीदवार काली पांडे भी पहुंचे. लेकिन उन्होंने भी उस युवक को जान से मारने का ही हुक्म दिया. पुलिस ने इस घटना को दर्ज कर लिया है. लेकिन इलाक़े में इस घटना को लेकर काफी तनाव है.

औरंगाबाद ज़िला के मदनपुर थाना क्षेत्र के खिरियावां गांव में भी शुक्रवार को दो समुदाय के लोगों के बीच किसी बात को लेकर तनाव उत्पन्न हो गया. इस घटना में जमकर पथराव भी हुआ. मौक़े पर पुलिस ने पहुंच कर दोनों पक्षों को समझा बुझा कर शांत करा दिया है, लेकिन कहीं न कहीं तनाव अभी भी बरक़रार है.

नवादा के छोटकी पाली गांव में भी पिछले दिनों एक धार्मिक स्थल में बीफ़ के टुकड़े को फेंक कर तनाव फैलाने की कोशिश की गई थी. पुलिस ने उस समय मामले को नियंत्रण में ले लिया था, लेकिन उस घटना के बाद तनाव लगातार बना हुआ है.

ऐसे अनेकों उदाहरण हैं. लेकिन यहां यह बात भी ज़रूर कहना चाहुंगा कि ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती. कई मामलों में पहल मुसलमानों के तरफ़ से भी की गई हैं. शायद मुस्लिम नौजवान अपने जज़्बात को क़ाबू में नहीं रख पा रहे हैं. तो ऐसे में हमारे बुज़ुर्गों का फ़र्ज़ बनता है कि वो इन्हें अपने कंट्रोल में रखने की कोशिश करें. संयम बरतने की हिदायत दें.

लेकिन हां! इस चुनाव में यह बात स्पष्ट तौर पर सामने आ गई है कि बीजेपी वोटों की फ़सल काटने के लिए इस देश में कुछ भी कर सकती है. बल्कि यह बात भी खुलकर सामने आ चुकी है कि अख़बारों को विज्ञापन देकर इस देश में लोगों को आपस में लड़वाया जा सकता है.

पहले आरक्षण के नाम पर दो सम्प्रदाय के लोगों को बांटने की कोशिश की गई. फिर आतंकवाद को लेकर नीतिश-लालू पर निशाना साधा गया, लेकिन असल निशाना कुछ और था. गाय पर खूब राजनीति की गई. ‘गौ- रक्षा’ के नाम पर बिहार में जगह-जगह खूब मार-पीट की गई. फिर बिहार की पॉलिटिक्स पाकिस्तान भी पहुंच गई. जेल में बंद शहाबुद्दीन भी चर्चे में रहें. अमित शाह का यह दोनों बयान उनकी मानसिकता को दर्शाने और ‘पार्टी विथ द डिफ्रेंस’ की क़लई खोलने के लिए भी काफी है.

ख़ैर, कल जब चुनाव के नतीजे पूरी तरह से आ जाएंगे, तो सिर्फ़ बिहार ही नहीं, बल्कि सारा देश जश्न में डूब जाएगा. पर मुझे यहां एक बात ख़ास तौर पर कहनी है कि जीत चाहे जिसकी भी हो, जश्न मीठा होना चाहिए, कड़वा नहीं. ऐसे में आज ख़ास तौर पर लोगों को संयम बरतने की ज़रूरत है. सब्र से काम लेने की ज़रूरत है. ऐसा न हो कि जश्न में फोड़े गए पटाखों से कहीं हमारे समाज में ही आग न लग जाए.

क्योंकि राजनीतिक जीत या हार या आर्थिक विकास से ज़्यादा अहम सामाजिक भाईचारा है. पटरी से उतरी अर्थ-व्यवस्था को दुबारा लाईन पर लाया जा सकता है, लेकिन समाज अगर एक बार पटरी से उतर जाए तो दुबारा विश्वास पैदा करने में बहुत वक़्त लगता है. आज आप आपसी सौहार्द बनाए रखें और लोकतंत्र के पर्व के इस सबसे जश्न में समाज को पटरी में उतारने का मौक़ा न दें. वैसे बिहार दिवाली के साथ-साथ ईद का जश्न मनाने की भी पूरी तैयारी कर चुका है.

नोट: भाई... फोटो पुराने फाईल से कोई भी लगा दीजिएगा. मुमकिन हो तो पहले कुछ स्टोरी को इस के साथ लिंकअप कर दीजिएगा...


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