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कोचाधामन - जहां ओवैसी को फायदा मिलेगा

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By अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

कोचाधामन:बिहार राज्य का एक ऐसा विधानसभा क्षेत्र, जहां सबसे अधिक मुस्लिम वोटर्स हैं. यहां लगभग 75 फीसदी मुस्लिम वोटर्स हैं. इसके अलावा यहां दलित व आदिवासियों की भी खासी तादाद है. यह विधानसभा क्षेत्र कोचाधामन प्रखंड की सभी पंचायतों के साथ किशनगंज प्रखंड की छह पंचायतों को जोड़कर 2010 में अस्तित्व में आया.


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दरअसल, सीमांचल के ज़िला किशनगंज का यह क्षेत्र किशनगंज के बदहाल इलाक़ों में से एक है. पक्की सड़कों के किनारे बसे कच्चे मकान इस इलाक़े के बदहाली के दास्तान सुनाने के लिए काफ़ी हैं. शायद यही वजह है कि जब किसी भी मुसलमान रहनुमा को नेता बनने की ख्वाहिश जगती है, तो वह यहीं का रूख़ करता है. यहां के लोगों को विकास के सपने दिखाता है, फिर सांसद बनकर दोबारा नज़र नहीं आता. यहां पूरा इतिहास ऐसी मिसालों से भरा पड़ा है.

शायद यही वजह है कि इसी बदहाली का फायदा उठाने की नीयत से हैदराबाद के अससुद्दीन ओवैसी ने भी यहीं का रूख किया. लेकिन लोगों को इन पर भरोसा इसलिए है कि बाकी नेताओं की तरह वे खुद चुनाव लड़ने नहीं आए हैं, बल्कि यहां के नेताओं के दम पर ही अपनी पार्टी को खड़ा करना चाहते हैं. जिसमें यहां के लोगों को कुछ ज़्यादा गड़बड़ नहीं दिखती.


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इस इलाके के 50 वर्षीय अताउर रहमान कहते हैं, ‘हमने सारी पार्टियों को आजमाया है. बिहार के सारे नेताओं ने हमारी वोटों से सत्ता की मलाई खायी है और देश में बड़े नेता के तौर पर स्थापित हुए हैं, लेकिन हमारे लिए किया कुछ नहीं. ऐसे में कोई हैदराबाद से आकर हमारी बदहाली की बात कर रहा है, तो एक बार इसको आज़मा लेते हैं. और वैसे भी वोट हम अख़्तरूल ईमान को दे रहे हैं. वह तो यहीं का है.’

मो. नसीम का भी कहना है, ‘सीमांचल का शेर मतलब - अख़्तरूल ईमान. वही एक मात्र नेता है, जो हमारे मसलों पर विधानसभा में गरजता है. सूर्य नमस्कार का विरोध करने की ताक़त सिर्फ अख्तरूल ईमान में ही है. और यदि विकास की बात करें तो उन्होंने काम भी खूब किया है.’

अफ़ज़ल व खुर्शीद मजलिस के असदुद्दीन ओवैसी से प्रभावित नज़र आते हैं. उनका कहना है कि भारत में मुस्लिमों के नेता तो ओवैसी ही हैं. वही हमारे मसलों पर खुलकर बोलते हैं. बाकी सब तो अपने पार्टी की दलाली करते हैं. उनका यह भी कहना है कि ओवैसी की तरह अख़्तरूल ईमान भी बिहार का शेर है. मुसलमानों के मसलों को बिहार विधानसभा में उससे अधिक किसी ने नहीं उठाया. उन्हें तो सांसद बनने का भी मौक़ा मिला, लेकिन उन्होंने कुर्बानी की जो मिसाल पेश की, वो शायद ही भारत की राजनीति में देखने को मिले.


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अख़्तरूल ईमान की कुर्बानी के बारे में बताते चलें कि पिछले दो कार्यकालों से ईमान राजद के टिकट से विधायक थे. लेकिन 2014 लोकसभा चुनाव में वह राजद को अलविदा कहकर जदयू में शामिल हो गए. जदयू ने उन्हें लोकसभा प्रत्याशी बनाया, लेकिन आख़िरी समय में नामांकन के बाद अख़्तरूल ईमान ने चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया. अख़्तरूल ईमान का मानना था तो उनके चुनाव लड़ने से कांग्रेस का वोट बंट जाएगा, जिसका डायरेक्ट फायदा भाजपा को मिलेगा. ऐसा वह हरगिज़ नहीं चाहते. हालांकि इस क़दम को कई लोगों ने गलत तौर पर भी देखा तो ज़्यादातर आवाम ने इसे अब तक का सबसे बड़ी क़ुर्बानी माना.

स्पष्ट रहे कि 2014 लोकसभा चुनाव के समय इस्तीफ़ा के बाद यह सीट खाली हो गयी. तब ऐसे यहां से जदयू के प्रत्याशी मास्टर मुजाहिद आलम की जीत हुई. कांग्रेस प्रत्याशी सादिक़ समदानी 10,238 वोटों से चुनाव हार गए. मुजाहिद को 41288 वोट हासिल हुए, जबकि सादिक़ समदानी को 31,050 वोट मिल पाए थे. वहीं भाजपा प्रत्याशी अब्दुर्रहमान 28924 वोट हासिल कर तीसरे स्थान पर नज़र आए.

स्थानीय लोगों का कहना है कि मास्टर मुजाहिद ने जीत के बाद विकास के कई काम किए. उनका वही काम अख्तरूल ईमान के 9 सालों के काम पर भारी पड़ रहा है. स्कूल भवनों का निर्माण, कुछ सड़कों और पुल-पुलियों का निर्माण हुआ और विद्युतीकरण कार्य ने गति पकड़ी. कुछ गांव प्रखंड मुख्यालय से जुड़े और पावर ग्रिड की स्थापना का कार्य निर्माणाधीन है.

ऐसे में मुजाहिद के समर्थकों की भी यहां अच्छी-खासी तादाद है. 22 साल के मो. सद्दाम कहते हैं, ‘नीतीश कुमार ने बिहार में विकास किया है, तो मुजाहिद ने कोचाधामन में विकास किया है. 15 महीनों में कोई क्या कर सकता है, फिर भी विकास के काम काफी हुए हैं. ऐसे में यहां के लोगों को फिर से उन्हें ही मौक़ा देना चाहिए.’

नसीम अख़्तर का मानना है कि इस बार तो लड़ाई एनडीए और महागठबंधन में ही है. इसलिए हम लोगों को नीतीश कुमार को ही मज़बूत करने के बारे में सोचना चाहिए. वो बताते हैं, ‘लालू भले ही गैर क़ौम के हैं, पर हमारी बात तो करते हैं. और नीतीश कुमार सबको लेकर चलते हैं. ऐसे में यहां ओवैसी का दाल नहीं गलने वाली.’

लेकिन यहां ऐसे लोगों की संख्या भी काफी अधिक है जो मानते हैं कि इस बार ओवैसी को मौक़ा देना चाहिए. उनका यह भी तर्क है कि अख्तरूल ईमान जीत के बाद अपना समर्थन तो महागठबंधन को ही करेंगे. और अख़्तरूल ईमान ने भी यहां काफी काम किया है. इस बार भी उन्हें मौक़ा ज़रूर मिलना चाहिए.

अख़्तरूल ईमान का पलड़ा यहां इसलिए भी भारी नज़र आ रहा है, क्योंकि 2014 उपचुनाव में 31 हज़ार वोट लाने वाले कांग्रेस के सादिक़ समदानी अब अपनी पूरी टीम के साथ अख़्तरूल ईमान के लिए मेहनत कर रहे हैं.


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दरअसल, हैदराबाद के बैरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन का बिहार में आने का श्रेय भी अख्तरुल ईमान को ही जाता है. ओवैसी ने अख्तरुल ईमान को बिहार में पार्टी का अध्यक्ष घोषित किया है. बिहार में मजलिस का भविष्य काफी हद तक अख्तरूल ईमान के जीत पर टिका हुआ है. शायद वही वजह है कि असदुद्दीन ओवैसी भी पिछले एक महीने से यहीं अधिक मेहनत करते नज़र आए.

ऐसे में कहना उचित होगा कि यहां जदयू व मजलिस में आरपार की लड़ाई है. लेकिन इस बीच स्थानीय लोगों का यह भी मानना है कि कहीं इन दो दोस्तों की लड़ाई में भाजपा का अब्दुर्रहमान बाज़ी न मार ले, क्योंकि 2014 के उपचुनाव में भाजपा यहां तकरीबन 28 हज़ार से अधिक वोट लाने में कामयाब रही थी.

यहां मतदान 5 नवम्बर को होना है. 2010 विधानसभा चुनाव में यहां मतदान का प्रतिशत 58.34 रहा था. इस बार इसमें और इज़ाफ़ा होने की संभावना दिख रही है.


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