अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
सीमांचल :‘मजलिस इस देश के दलितों, पिछड़ों व अति पिछड़ों की बात करता है. हां! हमारा फोकस मुसलमान ज़रूर होता है. तो इसमें किसी को क्या समस्या है? खुद सच्चर कमिशन की रिपोर्ट हमारे सामने जीता-जागता मिसाल है. मुसलमानों की हालत तो इस देश में दलितों व पिछड़ों से भी बदतर है. ऐसे में क्या हम मुसलमानों की आवाज़ उठाते हैं तो इसे आप धर्म के साथ क्यों जोड़ देते हैं? क्या अब हम अपनी आवाज़ भी नहीं उठाएं. अरे! बीजेपी का तो एक ही काम है –हिन्दू-मुसलमानों को आपस में लड़ाना...’
यह बातें असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ‘ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन’ (मजलिस) के कटिहार ज़िला के बलरामपुर विधानसभा क्षेत्र के उम्मीदवार आदिल हसन आज़ाद ने TwoCircles.net के साथ एक खास बातचीत में कहीं.
आदिल हसन आज़ाद ने अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत रामविलास पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी से की थी. लेकिन अब वो मजलिस में हैं. उन्होंने ऐसा क्यों किया? यह सवाल पूछने पर वो बताते हैं, ‘सीमांचल की बदहाली पर जब मजलिस ने आवाज़ उठाई तो मैं ओवैसी साहब के साथ जुड़ गया. आप ही सोचिए कि आज़ादी के 68 सालों के बाद यदि क्षेत्र की बदहाली दूर करने के लिए कोई शख्स आ रहा है तो उसके साथ क्यों नहीं जुड़ा जाए? सीमांचल को हमेशा से यहां की सरकारों ने नज़रअंदाज़ किया है, ऐसे में कोई हैदराबाद से आकर यहां के लोगों के हक़ की बात कर रहा है तो उसका साथ क्यों नहीं दिया जाए?’
एक लंबी बातचीत के दौरान आदिल कहते हैं, ‘आप ही सोचिए कि अब तक यहां के बदहाल लोगों ने यह नहीं जाना कि मीडिया किस चिड़िया का नाम है, लेकिन आज पूरे देश के मीडिया की नज़र सीमांचल पर है तो किसकी वज़ह से है? यह मजलिस की ही देन है कि आज पूरी दुनिया भारत के सबसे बदहाल इलाके सीमांचल से रूबरू हो रही है. यह सिर्फ़ हमारे बेबाक लीडर ओवैसी की वज़ह से हो रहा है.’
आदिल बताते हैं कि इस चुनाव में उनका नारा 'बदलेगा सीमांचल, बढ़ेगा सीमांचल'और 'बदलेगा बलरामपुर, बढ़ेगा बलरामपुर'है. वे बताते हैं, ‘हम चाहते हैं कि सीमांचल की बदहाली पर चर्चा हो. इस इलाक़े का जो हक़ है, वो यहां के लोगों को मिले. हम किसी सेकुलर जमाअत के ख़िलाफ़ नहीं हैं, लेकिन सेकुलरिज्म का झंडा यदि बाबरी मस्जिद गिराने वाला उठाए तो हम उसको कभी स्वीकार नहीं करेंगे.’
आदिल का इशारा दरअसल, जदयू के मंत्री व बलरामपुर के वर्तमान विधायक दुलाल चंद गोस्वामी की ओर था, जिन्होंने अपनी राजनीतिक करियर की शुरूआत बाबरी मस्जिद तोड़कर लाई गई एक इंट से की थी और उसी पॉलिटिक्स के दम पर भाजपा में शामिल हुए थे. बाद में नीतिश कुमार ने मौक़ा दिया, तब जदयू भाजपा के साथ थी.