अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
पटना के अनिसाबाद से आप जैसे ही आगे बढ़ते हैं. फुलवारीशरीफ़ विधानसभा का क्षेत्र शुरू हो जाता है. फुलवारीशरीफ़ का एक लंबा धार्मिक इतिहास रहा है. यहां गंगा जमुनी संस्कृति की ज़िन्दा तस्वीरें आपको हर समय देखने को मिल जाएंगी.
कहा जाता है कि प्राचीन समय में फुलवारीशरीफ़ एक ऐसा क्षेत्र था, जहां सूफ़ी संतों ने अपने धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक कृत्यों द्वारा प्रेम और सहनशीलता का संदेश फैलाया था. आज भी फुलवारीशरीफ़ में राष्ट्रीय स्तर पर अहमियत रखने वाले कई धरोहर हैं. इमारत-ए-शरिया, खानकाह मुजीबिया और महाबीर मंदिर के चढ़ावे से गरीबी के लिए चलने वाला महावीर कैंसर हॉस्पीटल यहीं है. बिहार का एम्स भी यहीं बनाया गया है. मजारों व मंदिरों की भी अच्छी-खासी तादाद है. खोजा इमली का मजार भी यहीं है और कहा जाता है कि पटना का यह पहला ऐसा मजार है, जो किसी महिला सूफी का है.
इस क्षेत्र में जहां एक तरफ़ बड़े-बड़े अपार्मेंट हैं, वहीं आपको ऐसे इलाक़े भी मिलेंगे जो कई बुनियादी सहुलतों के लिए संघर्ष कर रहे हैं. जहां इस इलाक़े में महंगी व शानदार गाड़िया देखने को मिल जाएंगी, वहीं सड़क किनारे ज़िन्दगी गुज़र-बसर करने वाले लोग भी नज़र आ ही जाएंगे.
इस इलाक़े में जहां तकरीबन 25 फीसदी दलित वोटर हैं, वहीं 15 फिसदी से अधिक मुसलमान वोटर भी मौजूद हैं. हालांकि मुस्लिम वोटरों का ये आंकड़ा इससे उपर भी हो सकता है, क्योंकि हाल के दिनों में मुसलमानों के कई कॉलोनियां इस क्षेत्र में बसी हैं. यही नहीं, यादव व कुर्मी भी यहां अच्छी-खासी संख्या में हैं.
यदि चुनावी समीकरण की बात करें तो यहां पिछले 20 सालों से 5 बार श्याम रजक ही जीतते आएं हैं. श्याम रजक पहले राजद में हुआ करते थे, पर अब जदयू के अहम दलित चेहरा हैं. 2010 चुनाव में इन्होंने राजद के उदय कुमार 21180 वोटों से पटखनी दी थी. पर अब समीकरण बदल गया है. इस बार जीतन राम मांझी की पार्टी हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्यूलर) के राजेश्वर मांझी इनके सामने ताल ठोंक रहे हैं. लेकिन ज़्यादातर स्थानीय मतदाताओं का मानना है कि यहां लड़ाई दूसरे नंबर पर रहने के लिए होगी. श्याम रजक की जीत पक्की है.
हालांकि रामेश्वर झा का कहना है इस बार परिवर्तन करना ज़रूरी है. हमें मांझी को भी एक मौक़ा देना चाहिए. इलाक़े में विकास काफी कम हुआ है. सड़क जाम एक बड़ी समस्या है. पीने के पानी की भी समस्या है. जल जमाव भी एक बड़ी समस्या है. गली- मोहल्ले में जर्जर लटकते तार लोगों के लिए बड़ी परेशानी है. कई लोग ज़मीन में झुलते तार से हादसे के शिकार हो चुके हैं.
लेकिन अतुल मांझी का कहना है कि श्याम रजक जी बड़े और अच्छे नेता हैं. उन्होंने यहां काफी विकास किया है. उनकी ओर से क्षेत्र में 588 चापाकल लगाए गए हैं. सड़कों की हालत में काफी सुधार हुआ है. कुछ इलाक़ों को छोड़कर बिजली हर जगह 18-20 घंटे से अधिक रहती है.
हारून नगर के मो. नियाजुद्दीन भी बताते हैं कि नीतिश के कार्यकाल में यहां काफी विकास कार्य हुआ है. बिजली तो यहां हर दिन कम से कम 22 घंटे ज़रूर रहती है. सड़कें भी बेहतर हैं. जो सड़कें नहीं बनी हैं, उनमें भी काम लगा हुआ है. धरायचक से इसापुर तक सड़क निर्माण को आप जाकर देख सकते हैं.
अल्बा कॉलोनी में रहने वाले अरशद अजमल भी बताते हैं कि यहां तो श्याम रजक की जीत तय है. जो लोग यह कहते हैं कि यहां विकास नहीं हुआ है, उन्होंने 20 साल पहले वाले फुलवारीशरीफ को याद कर लेना चाहिए.
अनिल राम बताते हैं कि श्याम रजक बाकी दलित नेताओं की दलित होने का दिखावा नहीं करते हैं, बल्कि दलितों के काम करते हैं. उनकी आवाज़ उठाते हैं.
दरअसल, यहां लड़ाई इसलिए भी लोग कमज़ोर मानकर चल रहे हैं कि श्याम रजक के मुक़ाबले में एनडीए ने काफी कमज़ोर उम्मीदवार उतारा है. हम (सेक्यूलर) के प्रत्याशी राजेश्वर मांझी का राजनीतिक क़द थोड़ा छोटा है. वो डुमरी पंचायत के पूर्व सरपंच रहे हैं. जबकि फरवरी 2005 में श्याम रजक को हराने वाले उदय मांझी को इस बार भाजपा से टिकट मिलने वाला था, लेकिन जब टिकट नहीं मिला तो वो सपा के टिकट से मैदान में उतर गए हैं. ऐसे में उदय मांझी एनडीए के उम्मीदवार को ही कमज़ोर कर रहे हैं. दूसरे तरफ़ भाकपा माले और बसपा जैसी पार्टियां भी अपने कैडर वोट के सहारे इस जंग के मैदान में डटे हुए हैं. इस तरह से यहां इस बार 19 प्रत्याशी मैदान में हैं.
स्पष्ट रहे कि श्याम रजक कभी लालू के करीबियों में शामिल रहे थे, लेकिन अब जदयू के कद्दावर नेताओं में से एक हैं. लालू सरकार में कई बार मंत्री बनाये गये. 2009 में लालू के साथ मतभेदों के बाद उन्होंने राजद के महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया और जेडीयू में शामिल हो गए. 2010 का विधानसभा चुनाव श्याम रजक ने जदयू के टिकट पर जीता और नीतीश सरकार में खाद्य प्रसंस्करण मंत्री बनाए गए. वर्तमान में श्याम रजक जदयू के राष्ट्रीय महासचिव हैं. श्याम रजक का क्षेत्र से लोगों से खासा जुड़ाव है. अपने इलाके के छोटे बड़े सभी कार्यक्रमों में इनकी भागीदारी होती है.
ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि श्याम रजक क्या छठी बार जीत का परचम लहरा पाते हैं या हार का मुंह देखना पड़ेगा. यह 8 नवम्बर को आने वाले नतीजे ही बताएंगे कि फुलवारीशरीफ़ से इस बार जीत किसकी होगी. फुलवारीशरीफ़ सुरक्षित विधानसभा सीट है. यहां मतदान तीसरे चरण यानी 28 अक्टूबर को हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में मतदान का प्रतिशत 54.75 रहा था. उम्मीद है कि इस बार इसमें और इज़ाफ़ा होगा.