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बिहार में भाजपा को एक अदद ‘किरण बेदी’ की तलाश, रूठते स्थानीय चेहरे

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अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

पटना: बिहार में दो चरणों के चुनाव पूरे हो चुके हैं. तीसरे चरण की तैयारी काफ़ी ज़ोरों पर है क्योंकि आगे की लड़ाई आरपार की होने वाली है. ऐसे में बिहार की इस चुनावी जंग में भाजपा नेताओं को लगता है कि सिर्फ दो गुजराती चेहरों के दम पर ‘बिहारी अस्मिता’ की जंग जीत मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है.

स्थानीय नेताओं का मानना है कि बिहार में भी एक अदद ‘किरण बेदी’ का होना ज़रूरी है. लेकिन इतना बड़ा रिस्क लिया कैसे जाए, बस इसी का समाधान निकालने के लिए अब अलग-अलग प्रत्याशियों ने खुद को सीएम पद का उम्मीदवार बताना शुरू कर दिया है.

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जहां सुशील कुमार मोदी खुद को सीएम पद के उम्मीदवार मान कर चल रहे हैं, वहीं गया टाउन के प्रेम कुमार भी इस बार एनडीए सरकार बनने पर खुद का सीएम बनना तय मान रहे हैं. ज़िला रोहतास के दिनारा विधानसभा क्षेत्र के उम्मीदवार राजेन्द्र प्रसाद सिंह के समर्थक भी उनको बिहार का दूल्हा बता चुके हैं. तो वहीं बेतिया विधानसभा क्षेत्र की उम्मीदवार व भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के समर्थक भी यह प्रचारित करते नज़र आ रहे हैं कि इस बार रेणु देवी मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार हैं. इससे पहले भाजपा के वरिष्ठ नेता सी.पी. ठाकुर भी खुद को सीएम पद की रेस का उम्मीदवार बता चुके हैं.

सच तो यह है कि भाजपा के केन्द्रीय नेताओं को भी अब लगने लगा है कि अब एक अदद ‘किरण बेदी’ ज़रूरत आ पड़ी है, ताकि अगर हार का मुंह देखना पड़ा तो सारा ठीकरा उसके सिर फोड़ा जा सके. हालांकि भाजपा अभी भी यह मानकर चल रही है कि इस बार बिहार में परिवर्तन तय है. जीत एनडीए की ही होगी.

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फिलहाल असल लड़ाई को छोड़कर विज्ञापनों की लड़ाई की बात करते हैं. यह विज्ञापन 'वॉर'भी बहुत दिलचस्प है. शुरू से ही बिहार में होर्डिंग्स में नरेन्द्र मोदी की जीत-हार होती रही है. उसके बावजूद उनके क़द के बराबर में किसी भाजपा नेता ने खड़े होने की हिम्मत नहीं जुटाई. मोदी अकेले बिहार के नेताओं को ऊंगली दिखाकर दहाड़ते नज़र आए.

‘स्वाभिमान रैली’ ने नीतिश के उत्साह को दुगुना किया. नीतिश ने भी आंकड़ों के सहारे भाजपा के विज्ञापनों का जवाब दिया. फिर से भाजपा के लोगों को लगा कि इससे काम नहीं बनने वाला. ऐसे में फिर से मोदी को वापस मैदान में कूदना पड़ा. रातों-रात शहर के होर्डिंग्स बदल दिए गए. पर इस बार विज्ञापन की तस्वीरों में पीएम मोदी हारते हुए नज़र आ रहे थे. मोदी की मुद्रा बदल गई थी. इस बार के पोस्टर व होर्डिंग्स में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दोनों हाथ जोड़े हुए थे.

लेकिन अब पार्टी अध्यक्ष अमित शाह खुद '180 प्लस मिशन'का सपना लिए इलेक्शन कैंपेन की कमान संभालने पटना पहुंच चुके थे. होटल मौर्या में खूब माथापच्ची हुई. कैंपेन स्ट्रैटजी तैयार की गयी और बताया गया कि बिहार के लिए जो स्ट्रैटजी बनाई जा रही है, वह पिछले साल लोकसभा चुनाव के दौरान यूपी के लिए बनाई गई स्ट्रैटजी से भी ज्यादा कारगर है. लेकिन एक संकट खड़ा हुआ कि बिहार के ज़्यादातर लोग तो अमित शाह को जानते ही नहीं. बस फिर क्या था. रातों-रात मोदी को उतार कर खुद अमित शाह मोदी के कंधे से कंधा मिलाकर बग़ल में खड़े हो गए.

एनडीए गठबंधन के नेताओं का भी ख्याल रखा गया. उनकी शिकायत थी कि भाजपा बार-बार ‘अबकी बार –भाजपा सरकार’ क्यों कह रही है. इसलिए इस बार होर्डिंग्स से सरकार की बात ही गायब है. बल्कि लड़ाई ‘बदलिए सरकार–बदलिए बिहार’ के नारे पर लड़ी जाने लगी.

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लेकिन पहले चरण के बाद ही बिहार के फ़िज़ा में यह ख़बर आग की तरह फैलने लगी कि भाजपा पहली दौड़ में ही काफी पिछड़ गई है. तो आनन-फानन में मोदी की 6 रैलियां कैंसिल कर दी गई. और शहर के होर्डिंग्स में मोदी की जगह स्थानीय नेताओं को तरजीह दिया जाने लगा. जहां पहले पोस्टरों में नरेंद्र मोदी और अमित शाह की तस्वीरों को प्रमुखता दी गई थी, वहीं अब पोस्टरों में सुशील मोदी, गिरिराज सिंह, रविशंकर प्रसाद, राजीव प्रताप रूडी, शहनवाज़ हुसैन, हुकुमदेव नारायण यादव और सीपी ठाकुर जैसे स्थानीय नेताओं को तरजीह दी जाने लगी.

जदयू के राज्यसभा सांसद पवन कुमार वर्मा और राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रो. मनोज झा ने मौक़े का फायदा उठाया और मीडिया में बयान जारी कर दिया कि मोदी पहले चरण के मतदान के बाद अपनी पार्टी की संभावित हार को देखते हुए बिहार की चुनावी रैलियां रद्द कर रहे हैं. हालांकि भाजपा ने संभावित रैली से इंकार किया. उनका कहना था कि मोदी की कोई रैली ही प्रस्तावित नहीं थी.

खैर, स्थानीय नेताओं की तस्वीरों वाली एक बड़ा होर्डिग पटना के चाणक्य होटल के क़रीब भी लगाया गया था. लेकिन यह बात जब मीडिया में आ गई और इससे भाजपा की किरकिरी होने लगी तो फौरन इसे भी उतार लिया गया. हालांकि मोदी व अमित शाह के तस्वीरों वाले होर्डिंग्स आज भी हैं. लेकिन अब एनडीए नेताओं की तस्वीरों वाली होर्डिंग्स को ज़्यादा तरजीह दी जा रही है.

अब अगर पोस्टर व होर्डिंग्स की बात छोड़कर हक़ीक़त की कहानी पर आ जाएं तो भाजपाके नेता भी अब हार मानते नज़र आ रहे हैं. खुद सांसद साक्षी महाराज ने यह कह डाला कि बिहार में एनडीए हार रही है, अगर ऐसा होता है तो यह पूरी तरह बिहार का नुक़सान होगा. लेकिन इस बयान पर हंगामा होते ही उन्होंने अपने बयान से पल्ला झाड़ लिया. इससे पूर्व शत्रुधन सिंहा ने भी प्रेस को दिए एक बयान में यह कह दिया था कि बिहार में पहले दो चरण के मतदान के बाद प्रदेश भाजपा नेताओं के चेहरे की हवाईयां उड़ी हुई है. मामला यहीं तक नहीं रूका. मोदी के साथ हर स्टेज पर साथ रहने वाले वरिष्ठ नेता सीपी ठाकुर ने भी कहीं न कहीं अपने बयान में भाजपा की हार मान ली. कल तक जो पूर्ण बहुमत की बात कर रहे थे, उन्होंने ही यह कह डाला कि मुक़ाबला बहुत सख्त है. इसलिए अभी सीटों की बात करने का कोई मतलब नहीं है कि कौन कितनी सीटें जीतेगा.

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सूत्रों की माने तो भाजपा ने बाकी तीन चरणों में बढ़त हासिल करने की नियत से खास रणनीति भी बनाई है, जिसमें यह तय हुआ है कि आरक्षण के मुद्दे पर लालू के हमले से बचने के लिए ज़रा संभलकर लेकिन ज्यादा बोलने की ज़रूरत को तरजीह दिया गया है. यह भी तय हुआ है कि इस मसले पर भाजपा के नेता स्वयं बोलने के बजाय अपने सहयोगी जीतनराम मांझी और रामविलास पासवान को आगे करें.

इधर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल भी भविष्यवाणी कर रहे हैं कि बिहार चुनाव में भाजपा हार रही है. बिहार चुनाव में जीत का समीकरण किसके पक्ष में सुलझेगा, यह आगे की बात है लेकिन इतना तो तय है कि भाजपा की पोस्टर पॉलिटिक्स ने महागठबंधन को उनकी किरकिरी करने का एक अच्छा मौक़ा ज़रूर दे दिया है.


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