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'रालोसपा'के कार्यक्रम में वीर अब्दुल हमीद का मज़ाक

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अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

पटना: भाजपा के सहयोगी दलों ने मुस्लिम वोटों की सियासत के नाम पर परमवीर चक्र विजेता शहीद अब्दुल हमीद को भी नहीं बख़्शा. सांसद उपेन्द्र कुशवाहा की ‘राष्ट्रीय लोक समता पार्टी’, जो भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है, सियासत के नाम पर शहीद अब्दुल हमीद का नाम भुनाने में लगी है.


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इसके लिए ‘राष्ट्रीय लोक समता पार्टी’ (रालोसपा) के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ ने गुरूवार दिनांक 10 सितंबर को पटना के विद्यापति भवन में ‘शहीद अब्दुल हमीद शहादत दिवस’ आयोजित किया. पार्टी नेता इस ‘शहादत दिवस’ की तैयारी कई दिनों से कर रहे थे. मगर हैरानी की बात यह है कि शहीद अब्दुल हमीद के नाम पर भाषण देने के लिए मंच पर उतरे पार्टी के ज़िला स्तरीय सिपाहसलारों को उनके बारे में बेसिक जानकारी भी नहीं थी.

एक नेता ने शहीद अब्दुल हमीद को ‘बिहार का सपूत’ बताया तो दूसरे ने उन्हें ग़ाज़ियाबाद का निवासी बताकर अपनी नेतागिरी चमकाई. कई उनके बारे में उलूल-जुलूल बातें करते नज़र आए. वहीं पार्टी के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के अधिकतर ज़िलाध्यक्षों को शहीद अब्दुल हमीद के बारे में कोई जानकारी ही नहीं थी. वे पूरे ईमानदारी से मंच पर बताते नज़र आए कि हमें शहीद अब्दुल हमीद की जानकारी नहीं है और वे फिर अपने भाषण में कभी गांधी जी का गुनगान तो कभी लालू-नीतिश को मुसलमान-दुश्मन बताते नज़र आए.

नौबत यहां तक आ गई कि उन्हीं की पार्टी के नेता सफ़दर इमाम ‘साहब’ को खुद आकर इस तरह की ग़लतियों को दूर करने के लिए दो पृष्ठों का शहीद अब्दुल हमीद के बारे लिखा गया पर्चा मंच से पढ़ना पड़ा.

‘शहीद अब्दुल हमीद शहादत दिवस’ के इस कार्यक्रम में रालोसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा को बतौर उद्घाटनकर्ता के रूप में आना था, वहीं पार्टी के सांसद व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अरूण कुमार इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे. लेकिन दिल्ली में सीट बंटवारे में लगे होने के ख़ातिर इन नेताओं को इतनी भी फुर्सत नहीं थी कि भारत के महान सपूत को श्रद्धांजलि देने के लिए वक़्त निकाल सकें. इसलिए ये काम उन्होंने अपने कारिन्दों पर छोड़ दिया और कारिन्दों ने चुनावी सियासत के नाम पर देश के इस सच्चे सपूत का मज़ाक़ बनाकर रख दिया.

स्पष्ट रहे कि 1965 के भारत-पाक युद्ध में शहीद होने वाले परमवीर चक्र विजेता शहीद अब्दुल हमीद का जन्म 1 जुलाई 1933 को उत्तर प्रदेश के ज़िला गाज़ीपुर के मगई नदी के किनारे बसे एक छोटे से गांव धामपुर के एक बेहद ही ग़रीब परिवार में हुआ था. इन्होंने 1954 से 1965 तक भारतीय सेना को अपनी सेवाएं दीं. 10 सितंबर 1965 को खेम-करन सेक्टर में पाकिस्तानी फ़ौज से लड़ाई लड़ते हुए शहीद हो गए. इतिहासकार बताते हैं कि पाकिस्तान का इरादा भारत के अमृतसर पर अपना अधिकार कर लेना था. अपनी योजना के तहत पाकिस्तानी सेना भारत पर गोले बरसाते हुए भारतीय सेना पर टूट पड़ी, तब अब्दुल हमीद खुद अपने जिस्म पर गोला बांधकर पाकिस्तानी टैंकों पर कूद पड़े. और दुश्मनों के कई टैंक और जवानों को मार गिराया. जिसके लिए उनकी शहादत के बाद भारत सरकार ने परमवीर चक्र से सम्मानित किया.


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